महाराष्ट्र के 10 महानगर पालिका चुनावों का हालांकि राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में इतना महत्व न हो पर इसका असर जरूर पड़ेगा। महाराष्ट्र में तो खैर यह एक तरह से विधानसभा मिनी चुनाव जरूर माना जा सकता है। इस चुनाव के नतीजों से जहां शिवसेना-भाजपा गठबंधन प्रसन्न होगा वहीं यह कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के लिए एक झटका है। देश के आधे से ज्यादा राज्यों के सालाना बजट वाली देश की सबसे बड़ी महानगर पालिका बृहन्न मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) की सत्ता के बिल्कुल करीब पहुंचकर शिवसेना ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि चुनाव हवा-हवाई दौरों से नहीं बल्कि मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर ले जाकर जीते जाते हैं। 10 महानगर पालिका के चुनावों में शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने पांच शहरों में भगवा लहराया है। कांग्रेस और एनसीपी को चार शहरों में ही जीत मिल सकी। राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना अप्रत्याशित तौर से नासिक में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। शिवसेना और भाजपा व आरपीआई ने मिलकर 227 सीटों वाली बीएमसी में से 107 सीटें जीतकर सबसे बड़े गठबंधन के तौर पर जीत दर्ज कराई है। कांग्रेस और एनसीपी ने पहली बार यहां मिलकर चुनाव लड़ा और मुंह की खाई। चुनाव परिणाम आते ही कांग्रेस पार्टी में अंतर्पलह शुरू हो गई है। पार्टी नेता एक दूसरे पर पराजय का ठीकरा फोड़ रहे हैं। मुंबई कांग्रेस इकाई प्रमुख कृपाशंकर को स्थानीय सांसद संजय निरूपम और प्रिया दत्त ने हार के लिए जिम्मेदार ठहराया है जबकि कृपाशंकर मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के सिर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि पूरा चुनाव श्री चव्हाण के नेतृत्व में ही लड़ा गया तो फिर वे ही हार के जिम्मेदार माने जाने चाहिए जबकि दिल्ली में बैठे कांग्रेस के दूसरे नेताओं का कहना है कि मुंबई को गैर-मराठी नेताओं के हवाले करने का खामियाजा उठाना पड़ा है। मराठी मानुष के नाम पर शिवसेना और मनसे जैसी पार्टियां कामयाब रही हैं। उनका मानना है कि सोची-समझी रणनीति के तहत मराठी नेतृत्व को मुंबई में पनपने नहीं दिया गया। इस समय मुंबई में दो कांग्रेसी नेता हैं और दोनों कृपाशंकर और संजय निरूपम उत्तर भारत के हैं। मुरली देवड़ा राजस्थान से तो प्रिया दत्त पंजाब से हैं। ऐसे में मराठी वोट किस कारण कांग्रेस को मिलता? कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुंबई की हार को गम्भीरता से लिया है। आलाकमान ने मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में हार की वजहों की पड़ताल के लिए मुंबई कांग्रेस कमेटी, प्रदेश कांग्रेस कमेटी और मुख्यमंत्री से अलग-अलग रिपोर्ट मांगी है। पार्टी का एक धड़ा आपसी गुटबाजी मान रहा है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि बतौर मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को सूबे में भेजे जाने के फैसले को प्रदेश की सियासत में सक्रिय प्रभाव रखने वाले तमाम नेता अभी तक पचा नहीं पाए हैं। कांग्रेस-राकांपा के बीच बेहतर तालमेल न रहने को भी हार का कारण माना जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, विलास राव देशमुव के अलग-अलग खेमे में सूबे में पृथ्वीराज चव्हाण की भूमिका को सही मन से नहीं स्वीकार कर पाए। विवादों के घेरे में आए कृपाशंकर जैसे नेताओं का बचाव भी पार्टी के पक्ष में नहीं गया। चुनाव के दौरान राष्ट्रपति के बेटे राजेन्द्र सिंह शेखावत से करोड़ रुपये मिलना भी पार्टी को विवादों के पचड़े में डाल गया। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने चुनाव में पूरी ताकत लगाई थी। उन पर विरोधी चुटकी भी ले रहे थे कि वे गली-कूचों की खाक छान रहे हैं। नतीजे यूपी चुनाव के दौरान आए हैं। लिहाजा पार्टी के लिए यह अतिरिक्त झटका है। हालांकि पार्टी ने इस बात से इंकार किया कि चुनाव नतीजों का असर यूपी चुनाव में पड़ेगा। पार्टी ने कहा कि राहुल गांधी के प्रयासों और यूपी के चुनाव पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। प्रभारी मोहन प्रकाश ने कहा कि यह विधानसभा चुनाव नहीं था। स्थानीय निकाय का चुनाव था जहां परिणाम स्थानीय कारणों पर निर्भर करता है।
Anil Narendra, BJP, Congress, Daily Pratap, Maharashtra, MNS, Shiv Sena, Vir Arjun
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