Sunday 12 February 2012

मालदीव में तख्तापलट क्या भारत के हित में होगा?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 12th February  2012
अनिल नरेन्द्र
भारत की बदकिस्मती कहें या फिर हमारी विदेश नीति की असफलता। हम अपने पड़ोसियों के मामले में फेल होते जा रहे हैं। महज 400 किलोमीटर की दूरी पर हिन्द महासागर में द्वीपों में बसे मालदीव अब भारत के लिए एक नई चिन्ता का सबब बनता जा रहा है। भारत का पड़ोस असुरक्षा का वातावरण और सामरिक चुनौतियां पैदा करता रहता है। मालदीव में तख्तापलट जैसी घटना कुछ इसी प्रकार की चुनौती का संकेत है। हालांकि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने अपने देश को रक्तपात से बचा लिया, लेकिन उन्हें न केवल इस्तीफा ही देना पड़ा पर अब जेल यात्रा भी करनी पड़ रही है। मालदीव में इस सत्ता परिवर्तन के मुख्य कारण पूर्व तानाशाह गयूम के कथित हमदर्दी और उग्रवादियों की रिहाई के लिए एक सीनियर जज की गिरफ्तारी का आदेश बन गया। चार साल पहले मानवाधिकार कार्यकर्ता और अपने सवालों व सरोकारों के लिए गयूम राज में ज्यादातर जेल में रहे नशीद को तीन लाख की आबादी वाले इस देश में लोकतांत्रिक तौर-तरीकों वाली ऐतिहासिक सरकार का नेतृत्व सम्भाला था। फिर नशीद ने इतनी बड़ी गड़बड़ी क्या कर दी है कि जनता को उन्हें गद्दी से उतारने का फैसला लेना पड़ा। पहली तो यह कि राष्ट्रपति नशीद सत्ता में आकर भी कट्टर कार्यकर्ता बने रहे। इस मिजाज के नेता बने व्यक्ति में सरकार चलाने लायक लचीलापन कम होता है। ऐसे देश में जहां जम्हूरियत की दूब तक नहीं पनपी हो, वहां मनमाफिक नीतियां लागू करने और उन्हीं के मुताबिक नतीजे पाने के अड़ियल आग्रह भी तानाशाही लगने लगते हैं। मालदीव के उदार और लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पहले राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने कई हफ्तों की राजनीतिक उथलपुथल के बाद विद्रोहियों के साथ पुलिस के मिल जाने पर अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि मोहम्मद नशीद के इस्तीफे को एक सामान्य घटना नहीं माना जा सकता। यह सही अर्थों में मालदीव में उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कट्टरपंथी ताकतों की विजय है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आगामी चुनाव में कट्टरपंथ अहम भूमिका में होगा। दरअसल मालदीव के लोग चाहते हैं कि उनके देश का राष्ट्रपति ऐसा हो जो इस्लामी कानूनों का निष्ठापूर्वक पालन करे और मोहम्मद नशीद उनकी इस मंशा पर खरे उतर नहीं पा रहे थे। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के पीछे पाकिस्तान और चीन की अहम भूमिका रही। पाकिस्तान यह चाहता है कि मालदीव कट्टरपंथ का गढ़ बन जाए ताकि पाकिस्तान अपनी भारत विरोधी गतिविधियों को मालदीव के जरिये अंजाम दे सके। मालदीव के अधिकांश युवा उच्च शिक्षा के लिए पाकिस्तान का रुख करते हैं और वहां जाकर वे शिक्षा के साथ-साथ कट्टरपंथी इस्लामवादी विशेषताओं से सम्पन्न होकर लौटते हैं। मालदीव की समस्या यह है कि वहां की आबादी हालांकि इतनी कट्टरपंथी नहीं है पर वह परम्परागत इस्लामिक विचारों से जुड़ी है, लेकिन आय का मुख्य साधन पर्यटन है, इसलिए मालदीव में आम नागरिकों के लिए अलग नियम है और पर्यटकों के लिए अलग। अरब प्रभाव और पैसे की वजह से कट्टर वहाबी इस्लाम का प्रभाव मालदीव में बढ़ता जा रहा है। हालांकि सामरिक दृष्टि से मालदीव का कोई शासक भारत की अनदेखी नहीं कर सकता या भारतीय हितों के खिलाफ नहीं जा सकता। नशीद से पहले राष्ट्रपति गयूम भी भारत के मित्र थे और 1988 में भारतीय सेना ने गयूम के खिलाफ विद्रोह को विफल किया था। लेकिन भारत का दूरगामी हित इसमें है कि उपमहाद्वीप के तमाम देशों में उदार, लोकतांत्रिक व्यवस्था रहे। नशीद इसलिए भारत के लिए महत्वपूर्ण थे। नए राष्ट्रपति भी कट्टरपंथी नहीं हैं और भारत के मित्र हैं पर उनकी समस्या यह है कि मजलिस में उनके समर्थक नहीं हैं। आशंका यह है कि जन असंतोष का फायदा उठाकर कट्टरपंथी अपना वर्चस्व न स्थापित कर दें। पुलिस व सेना का विद्रोह भी लम्बी अस्थिरता पैदा कर सकता है। इस बार सत्ता परिवर्तन बिल्कुल घरेलू अपेक्षाओं का मामला था इसलिए भारत का किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करना ही सही था। 1988 की तरह तमिल उग्रवादियों का आक्रमण नहीं था जब नशीद के बुलावे पर भारत ने सेना भेजी थी।
Anil Narendra, Daily Pratap, India, Maldives, Vir Arjun

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