Wednesday 29 February 2012

नार्वे सरकार के कानून कुदरत के कानून से ऊपर नहीं है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 1st March 2012
अनिल नरेन्द्र
हम नार्वे के कानूनों व देश का सम्मान करते हैं और यह भी मानते हैं कि हर देश को अपना कानून बनाने की आजादी है। अगर वहां की जनता किसी कानून का समर्थन करती है तो सरकार उसे कानून बना सकती है पर कुछ कानून ऐसे भी होते हैं जो ऊपर वाला बनाता है और उसे हर आदमी, सरकार व देश को मानना चाहिए। ऐसे ही कानूनों में बच्चों की परवरिश का मां-बाप को करने का अधिकार है। आप छोटे-छोटे बच्चों को उनके मां-बाप से अलग कर रहे हैं, यह कैसा अजीब कानून है। ऐसा ही एक कानून आजकल चर्चा में है। दरअसल पिछले साल नवम्बर में नार्वे के अधिकारियों ने अनुरूप और उनकी पत्नी सागारिका भट्टाचार्य के साथ रह रहे उनके बच्चों को सरकार के हवाले करने का फैसला किया था। बच्चों के नाम हैं अभिज्ञान (3 साल) और ऐश्वर्या (1 साल)। पेशे से जियो वैज्ञानिक अनुरूप भट्टाचार्य पर नार्वे सरकार का आरोप है कि वह अपने हाथों से बच्चों को हाथ से खाना खिलाते थे। उन्हें अपने साथ ही बिस्तर पर सुलाते थे। बच्चों के नाना मनतोष चकवर्ती ने कहा कि उन्हें अपने बच्चों को वापस लाने के अभियान में सारी दुनिया से समर्थन मिला है। इधर नई दिल्ली में नार्वे दूतावास के सामने चार दिवसीय धरना शुरू हो चुका है। पहले दिन जन समुदाय व राजनीतिज्ञों के मिले समर्थन से लगता है कि यदि नार्वे सरकार अनुरूप भट्टाचार्य के तीन साल के बेटे अभिज्ञान और एक साल की बेटी ऐश्वर्या को भारत भेजने में अपनी हठधर्मिता नहीं छोड़ता तो यह आंदोलन देशव्यापी हो सकता है। दरअसल सोमवार को अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, पांस, कनाडा, स्विटजरलैंड समेत 14 से अधिक देशों में रह रहे वैज्ञानिकों व उनके परिवारों के सदस्यों ने मेल के जरिए नार्वे की सरकार की भर्त्सना की है। संदेशों में कहा गया है कि वे उनके साथ हैं, यह लड़ाई मानवता की रक्षा के लिए है। पूर्व नियोजित कार्यकम के तहत सोमवार को सुबह 11 बजे लोग नार्वे दूतावास के बाहर पहुंचे लेकिन कुछ समय बाद ही पुलिस ने उन्हें चाणक्यपुरी मार्ग की ओर भेज दिया जहां पर वे धरने पर बैठ गए। धरने के पहले दिन अभिज्ञान एवं ऐश्वर्या के नाना-नानी, उनके परिवार के सदस्य, लोकसभा के विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, माकपा सांसद वृंदा करात और अन्य नेता स्थानीय नार्वे दूतावास के सामने धरने पर बैठ गए। विरोध-पदर्शन में शिरकत कर रहे नेताओं ने कहा कि वे इस मुद्दे को 12 मार्च से शुरू होने वाले संसद के बजट सत्र के दौरान भी उठाएंगे। सुषमा जी ने कहा कि नार्वे सरकार का यह कदम मानव विरोधी है, इसलिए उसे चाहिए कि बिना समय गवाएं बच्चों को उनके परिजनों को सौंपने की पहल करे। माकपा नेता वृंदा करात ने कहा कि जब बच्चों के पेरेन्ट्स व रिश्तेदार अपने बच्चों को भारत लाना चाहते हैं तो फिर उन्हें कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए। भारत सरकार ने भी मामले में सकियता दिखते हुए विदेश मंत्रालय में सचिव ने नार्वे में वहां के विदेश मंत्री से मुलाकात की है। उन्होंने बच्चों को उनके माता-पिता को लौटाने का अनुरोध दोहराया। सूत्रों के अनुसार इस पूरे पकरण पर नार्वे के रवैए से भारत आहत हुआ है। मुलाकात सकारात्मक रही और उम्मीद की जानी चाहिए कि नार्वे की सरकार जल्द बच्चों को मां-बाप को सौंप देगी। वह बेशक ऐसा बेतुका कानून अपने नागरिकों पर थोपे पर उस देश में रह रहे विदेशियों पर नहीं थोप सकता।
Anil Narendra, Children Separated, Daily Pratap, Norway, Vir Arjun

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