Sunday, 5 February 2012

झटकों पर झटके झेलने के आदी मनमोहन सिंह और उनकी सरकार

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 5th February  2012
अनिल नरेन्द्र
मनमोहन सिंह सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लगातार झटके लगते ही जा रहे हैं। शीर्ष अदालत द्वारा यूपीए-2 को इस तीसरे झटके को मिलाकर पांचवां झटका है। बृहस्पतिवार का झटका इसलिए ज्यादा उद्वेलित करने वाला है, क्योंकि सीएजी ने 1.67 लाख करोड़ रुपये के 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले को उजागर कर सनसनी फैलाई थी कि प्रधानमंत्री स्वयं ए. राजा के बचाव में आए थे और पूरी सरकार पहले सीएजी फिर पीएसी के पीछे पड़ गई थी। कटु सत्य तो यह है कि यूपीए सरकार ने बेशकीमती स्पैक्ट्रम को रेवड़ी की तरह बांट दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपीए-घ्घ् को बृहस्पतिवार को यह तीसरा झटका था। इससे पहले मुख्य सतर्पता आयुक्त पर पीजे थॉमस की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया था। तब भी प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की आलोचना हुई थी क्योंकि सीवीसी की चयन समिति में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज की आपत्ति को नजरअंदाज कर दिया गया था यह सीधे तौर पर पीएम के लिए झटका था। सुप्रीम कोर्ट ने 2जी मामले में ही दोषियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने में देर लगाने को गलत करार दिया और इस सीमा को अधिकतम चार महीने की सीमा तय कर दी। इस मुद्दे में भी पीएमओ की किरकिरी हुई थी। इस बार भी पीएमओ कठघरे में है। तीसरा और ऐतिहासिक फैसला बृहस्पतिवार को आया जो सबसे बड़ा झटका है। इस बार भी प्रधानमंत्री और तत्कालीन वित्तमंत्री कठघरे में हैं क्योंकि जब सीएजी ने यह मामला उठाया था और मीडिया ने इसे उछाला तो प्रधानमंत्री ने राजा को निर्दोष बताया था और बार-बार उन्हें बचाने की कोशिश की थी। जब बात ज्यादा बढ़ी तो वह जेल भेज दिए गए। तब मनमोहन सिंह ने बचाव में यह दलील दी कि गठबंधन सरकार के सामने ऐसी मजबूरियां होती हैं। ताजा फैसले ने 2जी स्पैक्ट्रम की प्रक्रिया को ही गलत करार दिया है यानि कि वह गलत और पक्षपाती था। सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री ने इस गैर कानूनी-गलत प्रक्रिया को डिफैंड किन बेसिस पर किया? क्या उन्हें नैतिक आधार पर अब अपने पद से इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए? और कितनी विपरीत टिप्पणियों का इंतजार करेंगे मनमोहन सिंह? इससे पहले भी जब यूपीए-घ् का शासन था तब भी सुप्रीम कोर्ट ने मनमोहन सरकार को दो बार तगड़े झटके दिए थे। एक बार जब बिहार में एनडीए को सरकार बनाने का मौका न देकर राष्ट्रपति शासन लगाया था तब कोर्ट ने राज्यपाल के व्यवहार को असंवैधानिक करार दिया था। दूसरी बार झारखंड में भी यही स्थिति रही। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद शिबू सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा था और एनडीए की सरकार बन गई थी। कांग्रेस पार्टी और संप्रग सरकार के लिए एक साथ एक नहीं बल्कि तीन मोर्चे खुल गए हैं। सबसे पहले उत्तर प्रदेश चनाव, दूसरे पी. चिदम्बरम का भविष्य और तीसरे दोनों को बचाने में संप्रग गठबंधन की चिन्ता। उत्तर प्रदेश चुनाव से ठीक पहले 122 टेलीकॉम लाइसेंस रद्द होने के बाद कांग्रेस पूरी ताकत से अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री पी. चिदम्बरम का बचाव तो कर रही है लेकिन इसके सियासी असर को लेकर उसकी जान हलक में जरूर अटकी होगी। कांग्रेस और सरकार दोनों ने मान लिया है कि अब उसके पास इस मुद्दे पर आक्रामक रुख अख्तियार करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। इन्हीं सब पहलुओं पर चर्चा करने के लिए कांग्रेस के सर्वोच्च नेताओं की कोर कमेटी की बैठक हुई। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व मान रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से विपक्ष को चुनाव से पहले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक हथियार तो मिल ही गया है। जिस तरह से कपिल सिब्बल ने अपनी प्रेस वार्ता के दौरान द्रमुक कोटे के दूरसंचार मंत्री रहे ए. राजा पर ठीकरा फोड़ा है उससे कहीं एक और नया मोर्चा न खुल जाए। ममता और शरद पवार ने पहले ही नाक में दम कर रखा है। अब पूरे घोटाले के लिए राजा को अकेले जिम्मेदार ठहराना पहले से नाराज द्रमुक को और उकसाना है। कहीं पहले से लगी आग और न भड़क जाए?
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