सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार का बोलबाला चौंकाने वाला है। कुछ सरकारी अधिकारियों ने तो अवैध सम्पत्ति बनाने की होड़ में सारी हदें पार कर ली हैं। ऐसा एक उदाहरण हमें पिछले दिनों मध्य प्रदेश से मिला। मध्य प्रदेश लोकायुक्त टीम ने गत दिनों एक सरकारी डाक्टर दम्पति के उज्जैन व नागदा स्थित घर पर छापा मारा। जिले के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत डॉ. विनोद एवं डॉ. विद्या लहरी के पास आय से अधिक करोड़ों की सम्पत्ति मिली है। पांच मकान, एक पेट्रोल पम्प, वेयर हाउस, 150 बीघा जमीन, पोहा फैक्टरी का खुलासा हुआ है। एक अनुमान के अनुसार उनकी सम्पत्ति 35 करोड़ रुपये की आंकी जा रही है। लोकायुक्त एसपी अरुण मित्रा ने बताया कि इन्दिरा नगर निवासी डॉ. विनोद लहरी व उनकी पत्नी विद्या लहरी 22 सालों से शासकीय सेवा में दोनों दो वर्ष से निलम्बित होने के कारण ज्वाइंट डायरेक्टर कार्यालय उज्जैन में पदस्थ हैं। इन्हें अब तक की इस सरकारी नौकरी में करीब 80 लाख रुपये वेतन मिला है। डाक्टर दम्पति की इतनी आय होती है कि वे हाथों से नोट नहीं गिन पाते थे। उनके घर में नोट गिनने की मशीन भी मिली। लोकायुक्त का दूसरा दल जब नागदा में डॉ. लहरी के हॉस्पिटल रोड स्थित मकान पर तलाशी के लिए गया तो मकान देखकर चौंक पड़ा क्योंकि वहां मकान नहीं, महल बना हुआ है। काफी समय से बन्द पड़े इस महल के अन्दर आधुनिक नर्सिंग होम और एक स्वीमिंग पूल भी मिला है। दम्पति पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है, सम्पत्ति के मूल्यांकन के बाद उसकी कीमत का सही अनुमान लग सकेगा। इधर सूत्रों के मुताबिक लोकायुक्त सम्पत्ति की कीमत करीब 35 करोड़ से अधिक है। मजेदार बात यह भी है कि दोनों डाक्टर जून 2010 से निलम्बित हैं। नागदा सेवाकाल में शिकायतों के चलते ये निलम्बित हुए थे। सवाल है कि सरकार अब इस डाक्टर दम्पति के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगी? इन मामलों में बिहार ने अच्छी पहल की है। हाल ही में पटना की निगरानी अदालत के विशेष न्यायाधीश रमेश चन्द्र मिश्र ने एक फरवरी को बिहार के पूर्व डीजीपी नारायण मिश्र की आय से करीब एक करोड़ 40 लाख रुपये से अधिक की सम्पत्ति जब्त करने के आदेश दिए। बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी अभियान में यह एक महान उपलब्धि है। एक तरह जहां 2जी स्पैक्ट्रम लाइसेंस को रद्द करवाने के लिए लोगों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है वहीं बिहार राज्य सरकार ने एक नया कानून बनवाकर अपने सर्वोच्च पुलिस अधिकारी की सम्पत्ति भी जब्त करवाने में सफलता पा ली है। इससे पहले भी पटना की निगरानी अदालत बिहार कैडर के आईएएस अफसर एसएस वर्मा सहित कई लोक सेवकों की सम्पत्ति जब्त कर चुका है। वर्मा के पटना स्थित निजी आवास में अब सरकारी स्कूल चल रहा है। निगरानी अदालत पटना कोषागार के पूर्व अधिकारी गिरीश कुमार, गया नगर निगम के पूर्व अफसर योगेन्द्र सिंह, कैमूर के वन प्रमंडल अधिकारी भोला प्रसाद जैसे कई अन्य विवादास्पद अफसरों की भी सम्पत्ति जब्त करने के आदेश दे चुकी है। सवाल सिर्प राजनीतिक इच्छाशक्ति का है और बिहार ने रास्ता दिखा दिया है। मध्य प्रदेश को भी बिहार से सीख लेनी चाहिए।
Anil Narendra, Black Money, Corruption, Daily Pratap, Lokayukta, Madhya Pradesh, Vir Arjun
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