Tuesday 31 March 2015

यमन पर सउदी हमले से फिर सुलगा मध्य पूर्व एशिया

गृहयुद्ध के कगार पर पहुंच चुके अरब देश यमन में शिया हुदी विद्रोहियों के ठिकानों पर सउदी अरब के नेतृत्व में गत गुरुवार को हवाई हमले शुरू किए गए। राष्ट्रपति आबिद रब्बू मंसूर हादी के देश छोड़कर भागने के बाद यमन में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। सउदी अरब ने देश में शियाओं के समूह हुदी मिलिशिया के विद्रोहियों के बढ़ते असर को रोकने के लिए उनके खिलाफ ताबड़तोड़ हमले से स्थिति और ज्यादा खराब हो गई है। सउदी अरब ने दावा किया है कि उसने पहले ही दिन हुदी विद्रोहियों की वायुसेना को नाकाम कर दिया है। याद रहे कि राजधानी सना और उसके आसपास के इलाकों पर इन विद्रोहियों का कब्जा है। अमेरिका में सउदी अरब के राजदूत आदिल अल जुबैर ने कहा, फिलहाल कार्रवाई विभिन्न लक्ष्यों पर हवाई हमले तक सीमित है लेकिन यमन की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार को बचाने के लिए जो भी करना होगा किया जाएगा। यमन के राष्ट्रपति आबिद रब्बू मंसूर हादी ने सउदी अरब समेत अन्य देशों से मदद की मांग की थी, इसलिए यह सैन्य अभियान शुरू किया गया है। यमन में 2011 की अरब क्रांति के बाद से ही शिया और सुन्नी के बीच संघर्ष चल रहा है। जिसमें सुन्नियों का समर्थन अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे संगठन दे रहे हैं। इस बीच सुन्नी बहुल सउदी अरब के परम्परागत कहे जाने वाले और हुदी मिलिशिया के मुख्य सहयोगी ईरान ने सउदी अरब की निंदा करते हुए आरोप लगाया है कि सउदी के यह हमले अमेरिका के इशारे पर हो रहे हैं। ईरान ने चेतावनी देते हुए कहा है कि सउदी के इस खतरनाक कदम से यमन बिखर और बंट सकता है। हुदी मिलिशिया नियंत्रित टेलीविजन चैनल ने सउदी हवाई हमलों के बाद शहरों की तस्वीरें दिखाई, जिसमें हर ओर लाशों के ढेर और जख्मी लोग नजर आ रहे हैं। यमन में विद्रोहियों के खिलाफ इस लड़ाई में सउदी अरब के सहयोगियों में अब जार्डन भी शामिल हो गया है। खाड़ी देशों के इस गठबंधन में जार्डन के अलावा संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, कुवैत, बहरीन और कतर जैसे 10 से ज्यादा देश शामिल हो गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस गठबंधन को सामरिक और इंटेलीजेंस सपोर्ट देने की घोषणा की है। वहीं ईरान ने यमन में हुदी  मिलिशिया को समर्थन देने की बात कही है। माना जा रहा है कि यमन में सरकार गिराने आए हुदी विद्रोहियों को ईरान का समर्थन है। शिया हाउदी विद्रोहियों की बढ़त के चलते अमेरिकी समर्थक राष्ट्रपति आबिद रब्बू मंजूर हादी को भागना पड़ा है। सउदी अरब के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन के यमन में हमले इस्लामी जगत के लम्बे शिया-सुन्नी जंग में उलझ जाने का अंदेशा पैदा हो गया है। इराक और सीरिया में `खिलाफत' (इस्लामिक स्टेट-आईएस) कायम करने वाले चरमपंथी सुन्नी गुट के खिलाफ लड़ाई में ईरान ने अग्रणी भूमिका ले रखी है। आईएस, हुदी और अलकायदा अपनी कट्टरपंथी विचारधारा के कारण उस पूरे इलाके में हिंसा और आतंकवाद का स्रोत बन गए हैं। सवाल है कि क्या हुदी, आईएस और बाकी चरमपंथी गुटों को परास्त किया जा सकेगा? यह संभवत आसान होता अगर शिया तथा सुन्नी दोनों चरमपंथियों के खिलाफ सउदी अरब और ईरान समेत सभी देशों में मतैक्य जबकि वर्तमान स्थिति में इस्लाम के इन दोनों पंथों के आमने-सामने आ खड़ा होने का वास्तविक भय है। बहरहाल पश्चिम एशिया में भड़की ताजी लड़ाई का असर तेल के बाजार पर भी पड़ता दिख रहा है। सउदी हमले के साथ कच्चे तेल का भाव डेढ़ डॉलर प्रति बैरल चढ़ गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मौजूदा युद्ध चरमपंथ को नष्ट करने का अपना मकसद जल्द हासिल करते हुए यथाशीघ्र खत्म हो। यदि संघर्ष यमन में ही केंद्रित रहता है और फैलता नहीं है तो इसका आर्थिक प्रभाव ज्यादा नहीं होगा, लेकिन हमें महंगे तेल की मार तो झेलनी पड़ सकती ही है।

-अनिल नरेन्द्र

सोनिया बेचारी और राहुल आउट ऑफ मार्केट

जब वक्त बुरा होता है तो परछाईं भी दूर भागती है। कांग्रेस नेतृत्व के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। गांधी-नेहरू परिवार के वफादार रहे वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हंसराज भारद्वाज ने गत सप्ताह पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए एक नई चर्चा शुरू कर दी है। हंसराज भारद्वाज ने कहा कि अब कांग्रेस का दोबारा खड़ा होना मुश्किल है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की गुमशुदगी पर तीखा सियासी वार करते हुए भारद्वाज ने कहा कि राहुल तो मार्केट में ही नहीं हैं और कांग्रेस को दोबारा खड़ा करना `बेचारी' सोनिया के वश की बात नहीं है। भारद्वाज ने कहा कि कांग्रेस अब कभी दोबारा खड़ी नहीं हो सकेगी क्योंकि लोग अब उसकी सुनने तक के लिए तैयार नहीं हैं। उनके अनुसार कांग्रेस को अगर दोबारा खड़ा करना है तो फिर प्रियंका को लाए बिना यह संभव नहीं है। लोकसभा चुनाव के बाद सोनिया-राहुल पर पार्टी नेताओं ने पहले भी हमले किए हैं मगर पहली बार गांधी परिवार के करीबी किसी वरिष्ठ नेता ने दोनों नेताओं पर सार्वजनिक और तीखा हमला बोला है। प्रियंका को आगे करने की वकालत करते हुए भारद्वाज ने कहा कि जब यह लड़की काम करती है तो इसका अंदाज ही कुछ दूसरा होता है। लोग इसको चाहते हैं। कांग्रेस हाई कमान के इर्द-गिर्द काबिज नेताओं पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि वास्तव में अगर सोनिया पार्टी का भला चाहती हैं तो सबको आमंत्रित करें, सबको कहें काम करें लेकिन उनके इर्द-गिर्द तो केवल तीन-चार लोग हैं और वो जो कह देते हैं वही ठीक है। वास्तव में कांग्रेस इस समय रेल का डिब्बा हो गया है जो घुस गया सो घुस गया। पार्टी की दुर्गति के लिए राहुल पर व्यंग्यात्मक हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि आप बेवजह उन्हें जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, वह तो मार्केट में है ही नहीं। हमें सोनिया गांधी से हमदर्दी हो रही है। राहुल के मार्केट से गायब होने की वजह से उन्हें दोगुनी मेहनत करनी पड़ रही है। वह अब सड़कों पर उतर आई हैं। हंसराज भारद्वाज के  कथन से कांग्रेस के उस धड़े को थोड़ी निराशा जरूर होगी जो अविलंब राहुल गांधी की ताजपोशी चाहते हैं। हंसराज भारद्वाज ने 2जी घोटाले और आईटी अधिनियम की विवादास्पद धारा 66ए के लिए जिम्मेदार नेताओं को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। सवाल यह है कि इतने दिनों बाद भारद्वाज जी क्यों बोल रहे हैं? उन्हें तो तभी सामने आना चाहिए था जब वह सरकार और पार्टी में गड़बड़ होते हुए देख रहे थे। जिस तरह हंसराज भारद्वाज की नाराजगी सार्वजनिक होने के बाद यह समझना कठिन है कि वे चाहते क्या हैं उसी तरह कांग्रेस की दशा-दिशा के बारे में भी जानना कठिन है। इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी एक नए तरह की राजनीति करने का इरादा तो रखते हैं लेकिन वह अचानक गायब हो जाते हैं। जब उन्हें मैदान में होना चाहिए तो वह गायब हैं। बेशक कांग्रेस अपने प्रवक्ताओं की फौज खड़ी कर अपना बचाव तो कर सकती है पर न तो वह यह बता सकती है कि राहुल कहां हैं, कब वापस आएंगे? बेचारी सोनिया को खराब तबीयत  होने के बावजूद नेतृत्व देना पड़ रहा है।

Saturday 28 March 2015

धारा 66ए को सुप्रीम कोर्ट ने दी सजा-ए-मौत!

लोकतंत्र की रक्षा में देश की सर्वोच्च अदालत और आम आदमी की आजादी के लिए सुखद संकेत है। सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए को जिस तरह असंवैधानिक करार दिया उससे यह स्पष्ट हो गया कि इस कानून का दुरुपयोग इसीलिए हो रहा था, क्योंकि उसका निर्माण ही दोषपूर्ण ढंग से किया गया था। विवादास्पद धारा 66ए को रद्द कर संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ही नया आयाम दिया है। दरअसल इंटरनेट के बढ़ते दायरे के साथ ही उसके जरिये प्रसारित होने वाली अथाह सामग्री को नियंत्रित करने के लिए कानून की जरूरत महसूस की गई थी, जिसके फलस्वरूप आईटी एक्ट अस्तित्व में आया। मगर इसकी धारा 66ए को ठीक से परिभाषित नहीं किए जाने से सरकारों और पुलिस को सोशल नेटवर्किंग या अन्य साइट्स पर कथित आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित करने पर संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का मनमाना अधिकार मिल गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट कानून के जिस हथियार को मोथरा बनाया है उसके खिलाफ आवाज कानून की ही एक नौजवान छात्रा ने उठाई थी। अदालत ने भी अपने स्वर जोड़ते हुए लोकतंत्र की बुनियाद को दरकने से बचा लियाöअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बिना कैसा प्रजातंत्र और कैसा लोकतंत्र? धारा 66ए को असंवैधानिक और अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ बताते हुए इसे रद्द करने के फैसले का आमतौर पर स्वागत ही हुआ है क्योंकि पिछले दिनों इसके दुरुपयोग के कई मामले सामने आए थे। इस कानून के तहत यह संभव था कि अगर किसी नेता के किसी कार्टून या उसके खिलाफ टिप्पणी को फेसबुक पर किसी ने लाइक कर लिया या फारवर्ड कर लिया तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता था। यह सिर्प आशंका नहीं थी, इस तरह के कई किस्से सामने आए थे। यह किस्से किसी एक इलाके या राज्य के नहीं हैं और न ही इस कानून का दुरुपयोग करने में सिर्प एक पार्टी की सरकार दोषी है बल्कि पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में ऐसी टिप्पणियों के लिए लोगों को जेल भुगतनी पड़ी है, जिन्हें आम राजनीतिक अभिव्यक्तियां कहा जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेताओं ने धारा 66ए की आलोचना तो की पर दोनों पार्टियों ने इसे खत्म करने की पहल नहीं की  बल्कि यह काम सुप्रीम कोर्ट ने किया है। शीर्ष अदालत का फैसला सरकारों और राजनीतिक वर्ग के लिए ही नहीं  बल्कि नैतिकता के स्वयंभू झंडाबरदारों के लिए भी कड़ा संदेश है। लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी का यह मतलब भी कतई नहीं कि दूसरों की भावनाओं को आहत किया जाए, उन्हें ठेस पहुंचाई जाए। इसके साथ ही यह समझने की भी जरूरत है कि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है बल्कि वह कानून और संविधान के दायरे में है। हालांकि साइबर संसार के बेजा दुरुपयोग की आशंका अब भी बनी हुई है। इसे केवल उपयोगकर्ता के विवेक के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता पर इसको देखने के लिए और भी विवेक चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र


सिडनी से भारत तक करोड़ों के सपने टूटे

भारत के लिए क्रिकेट वर्ल्ड कप 2015 का सफर खत्म हो गया है। सेमीफाइनल मैच में टीम इंडिया आस्ट्रेलियाई टीम से 95 रन से हार गई। इसी के साथ टूट गए वो सपने भी जो सिडनी से भारत तक करोड़ों भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने देखे थे। वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया के हाथों टीम इंडिया की हार से क्रिकेट फैंस गम और गुस्से में हैं। यूपी और बिहार में भारत के मैच हारने के बाद लोगों ने टीवी सेट तोड़ डाले, वहीं कुछ ने खिलाड़ियों के पोस्टर जलाए। लखनऊ में मैच हारने के बाद सचिवालय के कर्मचारी ने बापू भवन की सातवीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली। सेमीफाइनल के चलते सड़कों पर सन्नाटा रहा। लोग सुबह से ही टीवी क्रीन से चिपके रहे। बाजारों में चहल-पहल कम रही तो सरकारी ऑफिस, हॉस्टल, दुकानों, नुक्कड़ों पर लोग वर्ल्ड कप मैच देखने में डूबे रहे। हार के बाद कई खिलाड़ियों के घर की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई है। कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के घर के बाहर कमांडो तैनात कर दिए गए हैं। मुंबई पुलिस ने रोहित शर्मा के घर के बाहर सुरक्षा कड़ी कर दी है। मैच में चार विकेट लेने वाले तेज गेंदबाज उमेश यादव के पिता तिलक यादव से पत्रकारों ने सवाल कियाöक्या आप मानते हैं कि आपके बटे ने अच्छा खेला? इस सवाल पर यादव के पिता ने जवाब दिया, कैसा अच्छा खेल? जब भारतीय टीम हार गई। भारतीय टीम क्यों हारी इसके विश्लेषण चलेंगे पर कुछ बातें तो साफ हैं। लगातार सात मैचों में शानदार प्रदर्शन करने वाले भारतीय तेज गेंदबाज सेमीफाइनल में उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। आस्ट्रेलिया के खिलाफ तीनों भारतीय पेसरों ने छह से ज्यादा की औसत से रन दिए। वहीं बैटिंग पॉवर प्ले में तो भारतीय पेसरों की गेंदबाजी बेहद खराब रही और उन्होंने करीब 62 रन दिए। भारतीय टीम की हार का एक बड़ा कारण शीर्ष क्रम बल्लेबाजी का खराब शॉट चयन रहा। आस्ट्रेलियाई बॉलरों ने इतनी अच्छी बॉलिंग नहीं की, भारतीय बल्लेबाजों ने तो अपनी विकेट थ्रो की। अच्छी पारी खेल रहे शिखर धवन ने हेजुलवुड की गेंद पर खराब शॉट खेलकर विकेट गंवाई वहीं विराट कोहली ने जॉनसन की शॉर्ट पिच गेंद पर जोखिम उठाया और एक रन बनाकर लौट गए। सुरेश रैना फॉक्नर की ऑफ स्टम्प पर सीने तक उठी गेंद पर विकेट कीपर को कैच थमा बैठे। भारतीय बल्लेबाजों के शॉर्ट पिच गेंद न खेल पाने की कमजोरी का फायदा आस्ट्रेलिया पेसरों ने उठाया। भारतीय गेंदबाज स्टीवन स्मिथ का तोड़ इस बार भी नहीं ढूंढ पाए। टेस्ट और त्रिकोणीय सीरीज में भारत के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करने वाले स्मिथ ने अपनी लय सेमीफाइनल में भी कायम रखी और 105 रन की पारी खेली। टीम इंडिया की हार में थर्ड अम्पायर के एक गलत फैसले का होना भी रहा। जडेजा ने एरॉन फिंच के खिलाफ एलबीडब्ल्यू की अपील की जब वह 43 रन पर खेल रहे थे। मैदानी अम्पायर ने नॉटआउट करार दिया जिसके बाद धोनी ने डीआरएस का इस्तेमाल किया। साफ दिख रहा था कि गेंद मिडिल स्टम्प पर टकरा रही है लेकिन थर्ड अम्पायर ने फैसला नॉटआउट ही दिया। कमेंटरी कर रहे दिग्गजों ने भी इस फैसले की आलोचना की। टीम इंडिया दो-तीन मौकों पर चूक गई। 37वें ओवर के बाद आस्ट्रेलिया का स्कोर दो विकेट पर 231 रन था मगर उसने अगले छह ओवरों में 19 रन जोड़कर तीन विकेट गंवा दिए। भारतीय गेंदबाजों के पास आस्ट्रेलिया को 300 से कम स्कोर पर रोकने का बढ़िया मौका था लेकिन अंतिम सात ओवरों में 78 रन जोड़कर स्कोर को 328 रन तक पहुंचाने में आस्ट्रेलिया सफल रहा। रोहित और शिखर की ओपनिंग जोड़ी ने 76 रन की बेहतरीन पार्टनरशिप की मगर टीम इंडिया ने 13 से 23वें ओवर के बीच 35 रन जोड़कर, शिखर, विराट, रोहित और रैना के विकेट गंवा दिए। कम अंतराल में चार विकेट गंवाने का खामियाजा टीम इंडिया को भुगतना पड़ा। 24वें ओवर में वनडे के फिनिशर कहे जाने जाने वाले एमएस धोनी बैटिंग करने उतरे। धोनी ने रहाणे के साथ पांचवीं विकेट के लिए 80 बॉल में 70 रन की पार्टनरशिप की। यह पार्टनरशिप 37वें ओवर में रहाणे के आउट होने से टूटी। धोनी का साथ देने के लिए कोई स्पैशलिस्ट बल्लेबाज नहीं बचा था। रहाणे के आउट होने से इंडिया की जीत की उम्मीदें टूट गईं। भारत का यह आस्ट्रेलिया दौरा अब तक के सबसे खराब दौरों में से एक है। टेस्ट मैच, त्रिकोणीय सीरीज में हारने का क्रम सेमीफाइनल में भी चला। चलो हमें इस बात की खुशी तो है कि हम अपने से बेहतर टीम से हारे। यह सही है कि जीत और हार खेल का हिस्सा है लेकिन टीम इंडिया जिस तरह 95 रन के बड़े अंतराल से हारकर विश्व कप से बाहर हुई, यह बात लोगों को अरसे तक सताती रहेगी। 1987 विश्व कप के बाद यह पहली बार होगा जब कोई एशियाई टीम फाइनल मुकाबले में खेलती नजर नहीं आएगी। क्या करें भाग्य ने भी हमारा साथ नहीं दिया, धोनी टॉस हार गए।

Friday 27 March 2015

The Big Question: Who is responsible for Hashimpura massacre?

According to prosecution, Police, PAC and the Army had run a search operation during Meerut riots in the month of Ramzaan on 22nd March,1987 at Hashimpura Mohalla in front of Gulmarg Cinema on Hapur road and arrested around 50 persons of a particular community and took them in trucks to Police Line. After sunset, PAC personnel took the trucks to Ganga Cannal in Murad Nagar. Here the PAC shot them dead one by one and dumped their dead bodies in canal.  Hearing the sound of bullets, other youths sitting in a truck tried to rebel but the PAC open fired them with bullets. After the mass execution the truck was taken to Hindon River in Ghaziabad and the dead bodies were thrown into the River. Few of those who were shot survived. Babudin, one of the survivors, reached Link Road Police Station and lodged a report. Only after that Hashimpura incident came into the limelight. The death of 42 innocents was an example of horrifying killing in custody. And even the judgment that came after 28 years is very disappointing where all the accused are let free due to the inability of the witnesses to identify the accused. This court decision that came after 28 years can be called a distortion of justice. The reason of saying this is not to question the intention of the Judiciary system in India. The courts depend on facts and proof for delivering justice, which are to be firmly submitted to the court by the search agencies. If 28 years ago the case has not been boldly build to give justice to the deceased 42 people then it is the fault of intentional sluggishness in investigation or the uselessness of CID.  The court released all the accused due to the failure of all the five witness to recognize the culprits.  It is to be considered that all the five witnesses were the people who were allegedly taken prisoner with the other 42 people by the police. When the final judgment came at 3.30 pm on Saturday, thousands of people here were taken aback. People were expecting that the accused will face strict punishment but nobody ever expected that they will be released due to lack of evidence. Some people believed that at least the accused will get lifelong imprisonment. The devastated families regarded the Government as well as administration responsible in this matter and said that they will keep up their fight for justice. They will knock the doors of High Court. In the regime of Government, administration and justice, we will get very less examples of such incidences where in-between communal animosity the police arrest some innocent people and then kill them one by one in the darkness of the night. Such a barbaric act can be compared to Nazi and Hitler Regime or to the recent manslaughter in cast wars in Bathani Tola, Lakshmanpur Bathe and Shankar Bigha areas of Bihar, where the weaker section of the society have been repeatedly attacked by bullets of the elite casts. The Hashimpura case has happened not in some remote place but only within 50 to 60 kilometers from the country’s Capital. The massacre that pressed the then Prime Minister Rajiv Gandhi to come to Hashimpura, the then ruling congress party had insisted to give this case to CID for investigation instead of the CBI. If the case had been properly investigated then today the situation would have been absolutely different. If CID could not find the uniformed culprits and punish them then it showcases its incompetence or its bad intentions. Anyway this judgment can impart a wrong message. Country’s internal and external enemies can try to cite this decision and manipulate a certain community. But the truth is that such incident occurred not due to the support or non support of a certain community but due to the flaws of the system.  This decision has underlined the implication of sluggishness of the law and the need of improvement of the Police force.  Until the flaws in the Police and Judiciary system are removed, the fear of such decisions will remain which will make a jest of justice. Undoubtedly the doors of upper courts are open to the unfortunate families of Hashimpura but such incidences where a minority community is targeted and then the investigation is handled with a slack, gives a wrong image of such a country which is proud of its democratic rule and law and order. 


The Big Question: Who is responsible for Hashimpura massacre?

Anil Narendra

According to prosecution, Police, PAC and the Army had run a search operation during Meerut riots in the month of Ramzaan on 22nd March,1987 at Hashimpura Mohalla in front of Gulmarg Cinema on Hapur road and arrested around 50 persons of a particular community and took them in trucks to Police Line. After sunset, PAC personnel took the trucks to Ganga Cannal in Murad Nagar. Here the PAC shot them dead one by one and dumped their dead bodies in canal.  Hearing the sound of bullets, other youths sitting in a truck tried to rebel but the PAC open fired them with bullets. After the mass execution the truck was taken to Hindon River in Ghaziabad and the dead bodies were thrown into the River. Few of those who were shot survived. Babudin, one of the survivors, reached Link Road Police Station and lodged a report. Only after that Hashimpura incident came into the limelight. The death of 42 innocents was an example of horrifying killing in custody. And even the judgment that came after 28 years is very disappointing where all the accused are let free due to the inability of the witnesses to identify the accused. This court decision that came after 28 years can be called a distortion of justice. The reason of saying this is not to question the intention of the Judiciary system in India. The courts depend on facts and proof for delivering justice, which are to be firmly submitted to the court by the search agencies. If 28 years ago the case has not been boldly build to give justice to the deceased 42 people then it is the fault of intentional sluggishness in investigation or the uselessness of CID.  The court released all the accused due to the failure of all the five witness to recognize the culprits.  It is to be considered that all the five witnesses were the people who were allegedly taken prisoner with the other 42 people by the police. When the final judgment came at 3.30 pm on Saturday, thousands of people here were taken aback. People were expecting that the accused will face strict punishment but nobody ever expected that they will be released due to lack of evidence. Some people believed that at least the accused will get lifelong imprisonment. The devastated families regarded the Government as well as administration responsible in this matter and said that they will keep up their fight for justice. They will knock the doors of High Court. In the regime of Government, administration and justice, we will get very less examples of such incidences where in-between communal animosity the police arrest some innocent people and then kill them one by one in the darkness of the night. Such a barbaric act can be compared to Nazi and Hitler Regime or to the recent manslaughter in cast wars in Bathani Tola, Lakshmanpur Bathe and Shankar Bigha areas of Bihar, where the weaker section of the society have been repeatedly attacked by bullets of the elite casts. The Hashimpura case has happened not in some remote place but only within 50 to 60 kilometers from the country’s Capital. The massacre that pressed the then Prime Minister Rajiv Gandhi to come to Hashimpura, the then ruling congress party had insisted to give this case to CID for investigation instead of the CBI. If the case had been properly investigated then today the situation would have been absolutely different. If CID could not find the uniformed culprits and punish them then it showcases its incompetence or its bad intentions. Anyway this judgment can impart a wrong message. Country’s internal and external enemies can try to cite this decision and manipulate a certain community. But the truth is that such incident occurred not due to the support or non support of a certain community but due to the flaws of the system.  This decision has underlined the implication of sluggishness of the law and the need of improvement of the Police force.  Until the flaws in the Police and Judiciary system are removed, the fear of such decisions will remain which will make a jest of justice. Undoubtedly the doors of upper courts are open to the unfortunate families of Hashimpura but such incidences where a minority community is targeted and then the investigation is handled with a slack, gives a wrong image of such a country which is proud of its democratic rule and law and order. 

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क्यों मजबूर हैं किसान आत्महत्या करने पर?

देश के किसानों ने बड़ी उम्मीदों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने मन की  बात साझा करते सुना होगा वरना गांव-देहात से आज कौन संवाद बनाता है? मौका माकूल था क्योंकि बेमौसम बरसात और ओलों की मार से बर्बाद फसलों से किसान बेजार है। बारिश व ओलावृष्टि के कारण फसलें बर्बाद होने से किसानों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है। हाल ही में छह किसानों ने मायूसी के कारण आत्महत्या कर ली। उरई में तीन, महोबा, ललितपुर और बांदा में एक-एक की मौत हो गई। यह सभी उत्तर प्रदेश में हुईं। जमनपुर/डकोर (उरई) के रामपुरा के कस्बा नगन्द्रपुर में भगवान दास (65) की फसल चौपट होने के गम से मौत हो गई, उसके पास चार एकड़ जमीन थी। गेहूं की फसल पककर तैयार थी। बारिश से फसल चौपट हो गई। डकोर के ग्राम काबिलपुरा निवासी राम बिहारी (38) ने भी जहर खाकर जान दे दी। राम बिहारी पर आठ लाख का कर्ज था। चुरकी के ग्राम खाकड़ी निवासी महावीर पुत्र शोभरन सिंह की बर्बाद फसलें देखकर हार्ट अटैक से मौत हो गई। किसानों को उम्मीद बांधने की सख्त जरूरत है और यह काम प्रधानमंत्री से बेहतर और कौन कर सकता था। मोदी की मन की  बात के बेशक अपने रानीतिक स्वार्थ रहे हों, जो भूमि अधिग्रहण कानून के पक्ष में प्रधानमंत्री के स्वरों से झलके भी। लेकिन किसानों के सरोकारों से सीधे संवाद की यह पहल एक अति आवश्यक जरूरत थी, चाहे आप इसे राजनीतिक, सामाजिक या सरकारी किसी भी नजरिये के चश्मे से देखें। तेजी से औद्योगिकीकरण से आज कृषि का महत्व व वर्चस्व घटता जा रहा है। देश की जीडीपी में इसका योगदान अब 20 फीसदी से भी नीचे आ गया है पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी हमारी आधी आबादी इन्हीं खेत-खलिहान की बदौलत अपना पेट भरती है। प्रधानमंत्री की यह पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकतर राजनेताओं को हमारे अन्नदाताओं की तभी याद आती है जब उन्हें चुनाव में इनकी वोटें चाहिए होती हैं। लेकिन सत्ता की चॉभी हाथों तक पहुंचते ही देश की सबसे बड़ी साधनहीन आबादी को उसकी तकदीर पर छोड़ दिया जाता है कि वह प्रकृति के बदलते तेवरों का मुकाबला नंगे हाथों और खून-पसीने से करें ताकि खुशहाल आबादी तक भोजन-पानी का सामान बेहिचक पहुंचता रहे और खुद हालात से परेशान होकर आत्महत्या करने पर मजबूर हों। महाराष्ट्र में पिछले सात महीनों में किसानों की खुदकुशी के मामले 40 फीसद बढ़ गए हैं। पहले भारी सूखे ने खेतों में खड़ी फसलें जला डालीं और पिछले दिनों आई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने दूसरे दौर की फसलों को भी जमीन पर लिटा दिया। महंगी खाद, बीज, कीटनाशक के बढ़ते खर्चे से हलकान किसान अब भारी कर्ज का बोझ कैसे झेलें यह प्रश्न सबके लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए। आधी सदी पहले तक सबसे उत्तम पेशा मानी जाने वाली खेती आज सबसे निकृष्ट और खतरनाक क्यों हो गई है, उपज का लाभकारी मूल्य कैसे समय पर सीधे किसान तक पहुंचे, उपज को सुरक्षित बनाने के लिए आसान और असरदार तरीके से उचित बीमा की व्यवस्था करना सबसे बड़ी चुनौती है। अन्नदाता की इस दुर्दशा पर सभी को चिन्ता होनी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

आप में शह-मात का खेल चरम सीमा पर

आम आदमी पार्टी (आप) में सतह पर बेशक सुलह-समझौते की कोशिश चल रही है लेकिन अंदरखाते शह-मात का सियासी खेल चल रहा है। दोनों गुट दमदारी से अपनी चाल चल रहे हैं। नजर राष्ट्रीय परिषद की पर बैठक है। बेंगलुरु से इलाज के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की कमान क्या संभाली, ऐसा लग रहा है कि आम आदमी पार्टी में सारे विवाद खत्म हो गए और सब कुछ शांत-शांत-सा नजर आ रहा है। लेकिन यह शांति कहीं तूफान से पहले की शांति तो नहीं है क्योंकि न तो अब योगेन्द्र यादव कुछ बोलते दिखाई दे रहे हैं और न ही अरविंद केजरीवाल के खेमे में कोई उथल-पुथल। सूत्रों की मानें तो दिल्ली में 28 मार्च वाली राष्ट्रीय परिषद की बैठक में सब कुछ ठीक नहीं रहने वाला है। बताया जा रहा है कि दोनों गुट अपने-अपने गुटों को जोड़ने में लगे हुए हैं। एक ओर योगेन्द्र यादव आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों को अपने खेमे में जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं तो मिशन विस्तार की घोषणा के जरिये पार्टी ने भी राष्ट्रीय परिषद के लोगों को पद और चुनाव का लालच देकर पार्टी में और अरविंद केजरीवाल के खेमे में रहने का संकेत दे दिया है। लेकिन सूत्रों की मानें तो योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी इतनी आसानी से माफ नहीं करेगी। बताया जा रहा है कि दिल्ली इकाई की रिपोर्ट के आधार पर पार्टी योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से बाहर तो नहीं निकालेगी, लेकिन दिल्ली से बाहर किसी और राज्य की जिम्मेदारी दे सकती है। पीएसी से निकाले जाने के बाद यादव और प्रशांत भूषण खेमा कार्यकर्ताओं से सीधी बात कर रहा है। इसमें आम कार्यकर्ताओं की दुखती रग दबाई जाती है। सीधा सवाल यही होता है कि पार्टी फिलहाल उनसे संवाद कर रही है या नहीं। मंगलवार को अरविंद केजरीवाल को भेजी गई चिट्ठी में योगेन्द्र और प्रशांत भूषण ने एक बार फिर दोहराया है कि पार्टी में कार्यकर्ताओं को सम्मान मिले। दूसरे राज्यों में पार्टी विस्तार व पारदर्शिता की बात कही है। हमें नहीं लगता कि करीब तीन साल पहले बनी आम आदमी पार्टी में मचे घमासान में अब सुलह की संभावना बची है। 28 तारीख की नेशनल काउंसिल के लिए तलवारें खिंच चुकी हैं। पार्टी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय संयोजक ही नेशनल काउंसिल की मीटिंग की अध्यक्षता करता है। अगर वो मौजूद नहीं हैं तो उनकी जगह कोई और अध्यक्षता कर सकता है। अगर सूत्रों की मानें तो यह लगभग तय हो चुका है कि प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को पार्टी से बाहर निकाला जाएगा। नेशनल काउंसिल की बैठक में पॉलिटिक्स अफेयर्स कमेटी का कोई सदस्य एक लाइन का प्रस्ताव रखेगा जिसमें यह कहा जाएगा कि अगर प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव पार्टी में रहते हैं तो अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय संयोजक के तौर पर काम नहीं कर पाएंगे। हालांकि पार्टी के नेता इस बारे में खुलकर कुछ बोलने से कतरा रहे हैं। केजरीवाल विरोधी गुट के एक सदस्य ने बताया कि पार्टी के संविधान को चुनाव आयोग से मान्यता मिली हुई है। इस संविधान के मुताबिक एक व्यक्ति दो पदों पर नहीं रह सकता है। कुल मिलाकर 28 मार्च की राष्ट्रीय काउंसिल की मीटिंग हंगामेदार होगी। इसमें कुछ भी हो सकता है।

Thursday 26 March 2015

सवाल स्कूल-कॉलेजों में जंकफूड पर पतिबंध का

दिल्ली हाई कोर्ट का केंद्र सरकार से जंकफूड पर पतिबंध लगाने के लिए तय दिशा-निर्देश पर लागू करने का निर्देश स्वागत योग्य है। हाई कोर्ट ने इसके लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक पाधिकरण (एफएसएसआई) को तीन माह का वक्त दिया है। हाई कोर्ट के आदेश पर इसे देश भर के स्कूलों और कॉलेजों में लागू किया जाएगा। चीफ जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस राजीव सहाय एंडले की पीठ ने यह फैसला गैर सरकारी संगठन उदय फाउंडेशन की ओर से वकील अमित सक्सेना द्वारा दाखिल जनहित याचिका का निपटारा करते हुए दिया है। हालांकि हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता संगठन और मामले में सुझाव देने के लिए नियुक्त न्याय मित्र के सुझावों को दरकिनार कर दिया है। हाई कोर्ट ने इसे तैयार किया है और इस पर अब विचार करने की जरूरत नहीं है। जंकफूड से न सिर्फ बच्चे मोटापे के शिकार हो रहे हैं बल्कि अनिद्रा, तनाव व मधुमेह जैसी बीमारियों की चपेट में भी आ रहे हैं। हाई कोर्ट द्वारा मंजूर की गई विशेषज्ञ समिति ने जंकफूड से बच्चों को दूर करने के लिए टेलीविजन, अखबारों के अलावा सोशल मीडिया का भी सहारा लेने का निर्णय किया है। हाई कोर्ट के आदेश पर जंकफूड पर तैयार नए दिशा-निर्देश के पारूप के तहत सूचना एवं पसारण मंत्रालय एक लघु फिल्म भी जारी करेगा जो सभी स्कूलों में बच्चों को दिखाई जाएगी। सरकार  ने सीधे तौर पर स्कूलों व कैंटीनों में जंकफूड पर पतिबंध नहीं लगाने के पीछे का मकसद यह बताया था कि यदि कैंटीन में जंकफूड की बिकी पर पतिबंध लगा दिए जाएं तो बच्चे बाहर जाकर इसका सेवन करेंगे। समिति ने कहा था कि इसलिए जरूरी है कि बच्चों में जंकफूड के पति उनके माता-पिता को भी शिक्षित किया जाए। उदय फाउंडेशन ने अपनी याचिका में अनुरोध किया था कि 2011 में स्कूलों-कॉलेजों की कैंटीनों में जंकफूड पर पतिबंध और इसके पांच सौ मीटर के दायरे में बिकी पर पतिबंध लगाने की मांग की थी। इसमें कहा गया था कि जंकफूड से बच्चों में मोटापे और कई बीमारियां हो रही हैं। हाई कोर्ट के आदेश पर 22 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने अगस्त 2013 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। उदय फाउंडेशन ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का विरोध करते हुए जंकफूड पर पूरी तरह से पतिबंध लगाने की मांग की थी। स्कूलों की मान्यता के लिए कैंटीन में जंकफूड से तौबा और पौष्टिक आहार मुहैया कराना अहम शर्त होगी। हाई कोर्ट ने सीबीएसई को किसी भी स्कूल की मान्यता देते वक्त बच्चों को कैंटीन में सिर्फ पौष्टिक आहार मुहैया कराने की शर्तें लागू करने को कहा है कि हमें ऐसा लगता है कि स्कूलों को मान्यता देते वक्त जंकफूड से तौबा और पौष्टिक आहार मुहैया कराने की शर्त लगाने से इस दिशा-निर्देश को लागू कराने में व्यापक और सार्थक असर पड़ेगा। हालांकि हाई कोर्ट ने यह जरूर कहा है कि सीबीएसई का पक्ष नहीं सुना गया है, ऐसे में इसे लागू करना संभव है या नहीं, इस पर विचार करना होगा। हाई कोर्ट ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से 30 अपैल  तक इस बारे में सभी पहलुओं पर विचार कर उचित निर्णय लेने का आदेश दिया है।

-अनिल नरेंद्र

अखिलेश यादव अपनी छवि बदलना चाहते हैं

तीन वर्ष के शासन के बाद उत्तर पदेश में समाजवादी पाटी की सरकार अपनी छवि बदलने की कोशिश में है। दो साल बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पाटी एक खास वर्ग के साथ जोड़कर देखी जाने वाली अपनी पहचान से आगे निकलना चाहती है। यही वजह है कि अखिलेश यादव ने श्रवण यात्रा की शुरुआत कर बुजुर्गें के लिए तीर्थाटन की योजना शुरू की है ताकि वह सभी के दिलों में सरकार के लिए स्थान तलाश सकें। इसके अलावा अपैल से मुख्यमंत्री का पदेश का औचक निरीक्षण करने का कार्यकम है ताकि विकास के सच की जमीनी तस्दीक की जा सके। तीन साल पहले यूपी में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी सरकार पर एक खास धर्म और जाति के हितों पर अधिक ध्यान देने के आरोप लगते रहे हैं। विपक्ष समय-समय पर सपा सरकार पर यह आरोप मढ़ता रहा है कि उसने सरकार बनाने के बाद एक खास जाति के विकास को ज्यादा तरजीह दी है। खुद पाटी मुखिया मुलायम सिंह यादव को सफाई देनी पड़ी थी कि समाज का जो तबका सबसे पिछड़ा है उसका विकास करना सरकार की सर्वेच्च पाथमिकता है। एक जाति व धार्मिक वर्ग के पति सहानुभूति की छवि से आगामी विधानसभा चुनाव में सपा को नुकसान हो सकता है, इसलिए अब अपनी छवि बदलना चाहते हैं। तीन वर्ष पूर्व विधानसभा चुनाव में सपा को मिलीं 224 सीटें इस बात का संकेत हैं कि पाटी को सभी धर्मों और जातियों ने बराबरी से स्वीकार किया था पर बीते वर्ष हुए लोकसभा के चुनाव में उत्तर पदेश में पाटी को मिली करारी शिकस्त के बाद हार के कारणों पर वरिष्ठ नेताओं ने कई चक मंथन और चिंतन बैठकें कीं। इन बैठकों में पाटी की हार की बड़ी वजह उसकी मुसलमानों और यादवों के करीबी होने व दिखने की छवि को ठहराया गया। इसके बाद से सपा आलाकमान ने सभी धर्में और जातियों तक खुद को पहुंचाने की रणनीति तैयार की है। इसी कम में मुख्यमंत्री अखिलेश ने कई कदम उठाए हैं और उठाने जा रहे हैं। इसी कम में सिंधु दर्शन की यात्रा पर जाने वाले राज्य के मूल निवासियों को 10 हजार रुपए का अनुदान देने का फैसला किया है। सिंधु दर्शन यात्रा हर साल जून में आयोजित की जाती है। अखिलेश यादव भी अब पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राह पर चल निकले हैं। उन्होंने भी आम लोगों तक अपनी पहुंच बनाने की योजना बनाई है। इसके तहत वह भी `मन की बात' कार्यकम का आयोजन करेंगे। जल्द ही वह यूपी के छात्रों से मन की बात करेंगे। पिछले दिनों पीएम मोदी ने भी छात्रों से मन की बात की थी। सूत्रों की मानें तो अखिलेश यादव सिर्फ उन छात्रों से ही मन की बात करेंगे जिनको उनकी सरकार ने लैपटॉप दिए थे। ऐसे करीब 15 लाख छात्र हैं। उन्हें तीन साल पहले लैपटॉप दिए गए थे। 2017 के चुनाव में इन छात्रों की बड़ी भूमिका हो सकती है। वे 2017 तक मतदाता बन जाएंगे। गौरतलब है कि सपा ने 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान 12 वीं पास छात्रों को लैपटॉप देने का वादा किया था। सरकार बनी तो उन सभी छात्रों को लैपटॉप बांटे गए जिन्होंने 2012 में इंटर किया था। अखिलेश यादव सरकार को अपनी छवि बदलनी होगी और यही करना चाह रहे हैं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव।

Wednesday 25 March 2015

बॉल टू बॉल पर क्रिकेट वर्ल्ड कप का सट्टा

क्रिकेट वर्ल्ड कप 2015 के फाइनल में अब सिर्प कुछ ही दिन बाकी हैं और पूरी दुनिया की नजरें इस पर टिकी हुई हैं। धड़कते दिल से लोगों को अब उस दिन का इंतजार है जब फाइनल मैच में दुनिया के दो महारथी एक-दूसरे को टक्कर देंगे। यह सभी जानते हैं कि ऐसी खेल प्रतियोगिता में भारी सट्टा भी लगता है। क्रिकेट की खुमारी के बीच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने क्रिकेट सट्टेबाजी का एक बड़ा रैकेट पकड़ा है। मुमकिन है कि आपने सट्टेबाजी के ऐसे कंट्रोल रूम की फोटो कभी नहीं देखी होगी। यही है वह कंट्रोल रूम जहां से बुकीज को 100 से अधिक लाइनें दे रखी हैं। इस कंट्रोल रूम से चल रही सट्टेबाजी के तार देश के कई बड़े शहरों से जुड़े बताए जा रहे हैं। क्राइम ब्रांच ने एक आरोपी को गिरफ्तार किया है और तफ्तीश जारी है। क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर रविन्द्र यादव ने बताया कि क्रिकेट वर्ल्ड कप की सट्टेबाजी का कंट्रोल रूम वेस्ट दिल्ली के पश्चिम विहार स्थित हाउस नम्बर बीजी-6/198सी से आपरेट हो रहा था। यहां से पकड़ा गया आरोपी 57 साल का शांति स्वरूप है। क्राइम ब्रांच ने जिस वक्त छापेमारी की वहां इंडिया-बांग्लादेश के क्वार्टर फाइनल मैच पर सट्टा लग रहा था। बुकीज की लाइनें ऑन थीं। हत्थे चढ़ा सट्टेबाज वर्ल्ड कप के मैचों की हर गेंद पर दांव लगवा रहा था। उसे हर बॉल का रेट मुंबई से मिलता था। क्राइम ब्रांच को शक है कि मुंबई का सट्टेबाज दुबई से इनपुट ले रहा था। क्राइम ब्रांच को सीकेट इनपुट यह मिला था कि पश्चिम विहार के एक मकान में इंडिया-बांग्लादेश के क्वार्टर फाइनल मैच में लाइव सट्टेबाजी चल रही है। सट्टेबाज को रंगे हाथ दबोचने के लिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी डीके गुप्ता की अगुवाई में यहां छापेमारी की गई। कमरे के भीतर का नजारा दिलचस्प और चौंकाने वाला था। सट्टेबाज शांति स्वरूप ने लकड़ी की एक अलमारी में कंट्रोल रूम बना रखा था। इसमें 109 मोबाइल फोन, ईयरफोन और मोबाइल चार्जर के साथ अटैच करके लगाए गए थे। मुंबई के सट्टेबाज से हर गेंद का रेट मिलने के बाद शांति स्वरूप उसका ऐलान करता था। अलमारी में लगे फोन के जरिये जानकारियां बाकियों तक पहुंचती थीं। इस तरह हर गेंद पर दांव लगाने का यह गोरखधंधा जारी था। पूछताछ में शांति स्वरूप ने बताया कि उसे हर गेंद पर रेट मेन लाइन प्रोवाइडर सोर्स (मुंबई में  बैठा सट्टेबाज) देता था। वह उस रेट को फौरन बाजी लगाने वालों तक पहुंचाता था। क्राइम ब्रांच ने इसके पास से 110 मोबाइल फोन, एक एलसीडी, एक लैपटॉप, 81 मोबाइल चार्जर, 109 ईयरफोन, एक हैड फोन, 20 एक्सटेंशन कार्ड, दो सेट टॉप बॉक्स और दो चार्जिंग बोर्ड जब्त किए हैं। सिडनी में आस्ट्रेलिया और भारत के  बीच होने वाले सेमीफाइनल मैच पर सट्टा बाजार में काफी हलचल है। इस मैच पर आस्ट्रेलिया को 32 जबकि भारत को 36 पैसे का भाव दिया गया है। सट्टेबाजों का दूसरा ग्रुप 45/47 का भाव दे रहा है यानि दोनों ही ग्रुप आस्ट्रेलिया को हॉट फेवरेट मान रहे हैं। यह रेट एक रुपए पर है। टॉस पर भी दांव लग रहा है। आस्ट्रेलिया अगर टॉस जीता तो बैटिंग करेगा। बाजार का कहना है कि भारत को अपनी गेंदबाजी पर भरोसा ज्यादा है। वैसे स्कोर चेंज करने में भारत का रिकार्ड अच्छा है। सेमीफाइनल का स्कोर 282 के आसपास रहने की उम्मीद है। इंग्लैंड जैसे देशों में बेटिंग लीगल है। हमें भी इस पर विचार करना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

बड़ा सवाल ः हाशिमपुरा हत्याकांड का जिम्मेदार कौन?

अभियोजन पक्ष के अनुसार मेरठ दंगों के दौरान रमजान के महीने में 22 मई 1987 को हापुड़ रोड पर गुलमर्ग सिनेमा के सामने हाशिमपुरा मोहल्ले में पुलिस, पीएसी और मिलिट्री ने सर्च अभियान चलाया और यहां से एक समुदाय विशेष के करीब 50 लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन में ले जाया गया था। एक ट्रक को दिन छिपते ही पीएसी के जवान मुरादनगर गंगनहर पर ले गए थे। वहां पीएसी के जवानों ने ट्रक से उतारकर लोगों को गोली मारने के बाद एक-एक कर शवों को गंगनहर में फेंक दिया। गोलियों की आवाज सुनकर ट्रक में बैठे अन्य युवकों ने विद्रोह करने की कोशिश की तो जवानों ने ट्रक के भीतर अंधाधुंध गोलीबारी की। बाद में ट्रक गाजियाबाद में हिंडन नदी पर ले जाया गया और शवों को वहां फेंक दिया। इनमें से कुछ लोग गोली लगने के बावजूद बच गए थे। इन्हीं में से एक बाबूदीन ने गाजियाबाद के लिंक रोड थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसके बाद हाशिमपुरा कांड पूरे देश में चर्चा में आया। हाशिमपुरा के 42 बेगुनाहों की मौत हिरासत में हत्या का भयावह उदाहरण थी, तो करीब 28 वर्ष बाद आया उसका फैसला उससे कम हताश करने वाला नहीं है, जिसमें अभियोजन पक्ष द्वारा पहचान साबित करने में नाकाम रहने के कारण सभी आरोपी रिहा हुए हैं। 28 साल बाद आए इस अदालती फैसले को अगर इंसाफ का मजाक कहा जाए तो गलत नहीं होगा। ऐसा कहने के पीछे आशय न्यायपालिका के इरादे पर सवाल उठाना नहीं है। अदालतों के फैसले तो तथ्यों और सबूतों की रोशनी पर आधारित होते हैं, जिन्हें मजबूती से पेश करने की जिम्मेदारी जांच एजेंसियों की होती है। यदि बीते 28 सालों में 42 बेगुनाहों के गुनाहगारों को सजा दिलाने लायक केस खड़ा नहीं किया जा सका तो यह या तो जांच में जानबूझ कर बरती गई ढिलाई का नतीजा है अथवा सीआईडी के नाकारेपन का। अदालत ने इस आधार पर आरोपियों को बरी किया कि सभी पांच गवाह उन्हें पहचान नहीं पाए। गौरतलब है कि यह वह पांच लोग थे जिन्हें आरोप के मुताबिक मारे गए लोगों के साथ ही पुलिस उठाकर ले गई थी। शनिवार दोपहर 3.30 बजे के बाद कोर्ट के फैसले की जानकारी मिली तो यहां के हजारों लोग हक्के-बक्के रह गए। लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि आरोपियों को सजा सख्त होगी लेकिन उन्हें साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया जाएगा ऐसा किसी ने सोचा तक नहीं था। कुछ लोग मान रहे थे कि कम से कम आजीवन कारावास तो होगा ही। पीड़ित परिवारों ने सरकार के साथ प्रशासन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि वह न्याय के  लिए संघर्ष जारी रखेंगे। हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। सरकार-प्रशासन और कानून के राज में ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलेंगे, जिसमें सांप्रदायिक विद्वेष के बीच हमारी व्यवस्था के रक्षक कुछ निर्दोष लोगों को पकड़ कर ले जाएं, फिर रात के अंधेरे में उन्हें एक-एक कर गोली मार दें। ऐसी बर्बरता की तुलना या तो हिटलर नाजी अत्याचारों से की जा सकती है या आधुनिक दौर में जाति युद्ध के लिए कुख्यात बिहार के बथानी टोला, लक्ष्मणपुर बाथे और शंकर बिगाह में हुए नरसंहार से, जहां समाज के कमजोर लोग बार-बार सवर्णों की गोलियों का निशाना बने। हाशिमपुरा कांड को देश के किसी दुर्गम इलाके में नहीं, राष्ट्रीय राजधानी से महज 50-60 किलोमीटर दूर अंजाम दिया गया था। जिस हत्याकांड ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को हाशिमपुरा का दौरा करने के लिए बाध्य किया था उसकी जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को देने की बजाय कांग्रेस की ही तत्कालीन राज्य सरकार ने सीआईडी को दी थी। अगर तफ्तीश सही ढंग से होती तो आज स्थिति ही कुछ अलग होती। यदि सीबीसीआईडी वर्दीधारी गुनाहगारों को खोजकर उन्हें सजा नहीं दिला पाई तो इससे या तो उसकी अक्षमता जाहिर होती है या बदनीयती। बहरहाल इस फैसले से बहुत गलत संदेश जाने का खतरा है। देश के आंतरिक और बाहरी दुश्मन इसका हवाला देकर एक तबके को बरगलाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इसका लेना-देना किसी समुदाय के प्रति आग्रह-दुराग्रह से नहीं बल्कि व्यवस्था के चरित्र से है। इस निर्णय ने न्याय तंत्र की सुस्ती के अर्थ और पुलिस सुधार की दरकार को फिर रेखांकित किया है। जब तक पुलिस और न्याय तंत्र की इन खामियों को दूर नहीं किया जाता तब तक इंसाफ का माखौल उड़ाने वाले ऐसे निर्णयों के आते रहने का अंदेशा बना रहेगा। बेशक हाशिमपुरा के पीड़ितों के लिए ऊपरी अदालत में जाने का दरवाजा खुला है पर समाज के कमजोर तबकों को सामूहिक तौर पर निशाना बनाने फिर अभियोजन पक्ष द्वारा ढिलाई बरतने, जिससे पीड़ित न्याय से वंचित रहते हैं, की घटनाओं से देश की छवि के लिए ठीक नहीं माना जा सकता जो अपनी लोकतांत्रिक पारदर्शिता और कानून के राज पर गर्व करता है।

Tuesday 24 March 2015

आजम का फर्जी बयान पोस्ट करने वाले बालक को जेल?

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश पुलिस से उन हालात का खुलासा करने को कहा है कि जिनकी वजह से समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान के खिलाफ फेसबुक पर कथित तौर पर आपत्तिजनक बयान पोस्ट करने के आरोप में एक लड़के को गिरफ्तार किया गया। न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस से याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा है। याचिका में आरोप है कि इसमें आईजी और डीआईजी जैसे शीर्ष स्तर के पुलिस अधिकारियों से मशविरे के सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66ए नहीं लगाने के सुप्रीम कोर्ट के परामर्श का उल्लंघन हुआ है। पीठ ने कहाöहम गौर करेंगे। फिर उसने मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद मुकर्रर की। वकील मनाली सिंघल ने याचिका के संबंध में मौखिक जिक्र किया कि खबर आई है कि 19 वर्षीय लड़के को जमानत मिल गई है और औपचारिकता सम्पन्न होने के बाद जल्द ही वह रिहा होगा। एक स्थानीय अदालत ने 18 मार्च को बरेली के लड़के को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। उसकी गिरफ्तारी पर सवाल उठाने वाली मौजूदा याचिका दिल्ली की कानून की एक छात्रा श्रेया सिंघल ने दायर की है। आईटी कानून की धारा 66ए की वैधता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर करने वाली वह पहली शख्स है। उन्होंने शिवसेना नेता बाल ठाकरे के निधन पर मुंबई में बंद के खिलाफ टिप्पणी पोस्ट करने और उसे लाइक करने के मामले में ठाणे जिले के पालघर में दो लड़कियोंöशाहीन और रीनू की गिरफ्तारी के बाद कानून की धारा 66ए में संशोधन की मांग उठाई। अदालत ने 2013 में कहा था कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आपत्तिजनक बयान पोस्ट करने के आरोपी व्यक्ति को पुलिस तब तक गिरफ्तार नहीं कर सकती जब तक कि वरिष्ठ अधिकारी इसकी इजाजत नहीं देते। फेसबुक पर टिप्पणी के लिए बरेली के एक छात्र की गिरफ्तारी से आहत संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शुक्रवार को कहा कि विधि प्रवर्तन एजेंसियों को आईटी कानून का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने राजनीतिज्ञों से कहा कि वह विशेष रूप से सोशल मीडिया पर आलोचनाओं को सहने की क्षमता रखें। प्रसाद ने कहा कि मैं देशभर की विधि प्रवर्तन एजेंसियों से अपील करता हूं कि वह आईटी कानून की धारा 66ए के तहत गिरफ्तारी के अधिकार का इस्तेमाल करते समय संवेदनशीलता बरतें। इस विवादास्पद धारा के तहत अपने कम्प्यूटिंग उपकरण से आपत्तिजनक संदेश भेजने वाले व्यक्ति को तीन साल की जेल हो सकती है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार सोशल मीडिया पर नागरिकों के अधिकार का पूरा समर्थन करती है। इसके अलावा राज्यों को केंद्र की इस सलाह का पालन करना चाहिए कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66ए का दुरुपयोग न किया जाए। उल्लेखनीय है कि फेसबुक पर आजम खान की फर्जी बयान पोस्ट करने वाले बरेली के एक युवक को धार्मिक उन्माद फैलाने समेत कई गंभीर धाराओं में जेल भेज दिया गया। बुधवार को रामपुर में 11वीं क्लास में पढ़ने वाले के बालिग होने पर चर्चा दिनभर चली। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में आ गया है।

-अनिल नरेन्द्र

बेशक आस्ट्रेलिया से बेहतर फार्म में है टीम इंडिया पर मुकाबला कड़ा है

आस्ट्रेलिया ने शुक्रवार को पाकिस्तान को छह विकेट से हराकर सेमीफाइनल में भारत से आर-पार की लड़ाई तय कर ली। विश्व कप में भारत की अब सबसे बड़ी परीक्षा बृहस्पतिवार को होगी जब वह सेमीफाइनल मुकाबले में टीम आस्ट्रेलिया से भिड़ेगी। पाकिस्तानियों में आस्ट्रेलिया के हाथों अपनी टीम की दुर्दशा पर भयंकर प्रतिक्रिया हुई। कराची में क्रिकेट प्रेमियों ने अपने टीवी सेट फोड़ डाले और पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का प्रतीकात्मक जनाजा भी निकाला। मुल्तान में करीब 50 लोगों ने क्रिकेट बल्लों और गेंदों से पाक क्रिकेट का जनाजा निकाला और बाद में उसे पूंक दिया। दो नाराज प्रशंसकों ने तो मैच के बाद टीवी सेट फोड़ डाले। अब एशिया की एक ही टीम प्रतियोगिता में बची है। श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान बाहर हो चुकी हैं। अब सबकी नजरें बृहस्पतिवार के सेमीफाइनल पर टिकी हैं। टीम इंडिया ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया है। पाक से जीतने के बाद आस्ट्रेलिया ने मैदान के बाहर माइंड गेम शुरू भी कर दी है। कप्तान माइकल क्लार्प ने कहा कि अगला मैच हमारे लिए एक अन्य मैच की तरह होगा। उधर भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने कहा कि चुनौती अच्छी क्रिकेट खेलने की है। तभी हम 29 मार्च को फाइनल में खेल पाएंगे। निसंदेह आस्ट्रेलिया अपने घरेलू मैदान पर किसी शेर की माफिक है, लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान के खिलाफ छोटा लक्ष्य हासिल करने में उनके पसीने छूट गए उससे यही जाहिर होता है कि यह टीम अजेय नहीं है। शीर्ष फार्म में चल रही भारतीय टीम यह बाधा पार कर सकती है। टीम इंडिया अपने सारे और कुल सात मुकाबले जीतकर सेमीफाइनल में जगह बनाने में कामयाब हुई है जबकि आस्ट्रेलियाई टीम ने अपने सेमीफाइनल तक के सफर में सात में पांच मुकाबले जीते हैं। टीम आस्ट्रेलिया के खिलाफ हमारी पिछली याद जोश बढ़ाने वाली है। दोनों टीमें पिछले (2011 के) क्वार्टर फाइनल मैच में भिड़ी थीं। तब आस्ट्रेलिया तीन बार का चैंपियन था। 25 मैच से नहीं हारा था। लेकिन मेजबान भारत ने उसका विजय रथ रोककर खिताब भी जीता था। पूर्व बल्लेबाज वीवीएस लक्ष्मण का मानना है कि गेंदबाजों का शानदार फार्म बरकरार रहने पर भारत सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया को हरा सकता है। लक्ष्मण ने एक टीवी चैनल से कहा कि आस्ट्रेलिया के बल्लेबाज अपनी सर्वश्रेष्ठ फार्म में नहीं हैं। लिहाजा भारतीय गेंदबाज उन पर दबाव बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ स्मिथ को छोड़कर सभी आस्ट्रेलियाई दबाव में दिखे। वह वहाब रियाज का सामना नहीं कर पा रहे थे जो भारत के लिए अच्छा संकेत है। अगर टीम इंडिया को खिताब बचाए रखना है तो उसे चार  बार के विजेता आस्ट्रेलिया से पार पाना होगा और यह काम आसान नहीं है। पाकिस्तान की हार से भारत ने जरूर सीख ली होगी। इन बातों पर टीम इंडिया को गौर करना होगाöपहला, आस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी ताकत उसके तीन घातक गेंदबाज हैंöमिशेल स्टार्प, मिशेल जॉनसन और  जोश हेजलवुड। भारतीयों को शुरुआती 10 ओवर सतर्पता से खेलने होंगे। बेशक रन ज्यादा न बनें पर अपनी विकटें बचाकर रखनी होंगी। दूसरा, पाकिस्तान ने आस्ट्रेलियाई पेसरों के बाद स्पिनरों के खिलाफ तेजी से रन बटोरने की जल्दबाजी दिखाई। इस जल्दबाजी में पाक ने अपने विकेट गंवाए। भारतीय बल्लेबाजों ने ऐसी ही गलती इंग्लैंड दौरे पर मोइन अली के खिलाफ की थी। तीसरा, आस्ट्रेलियाई बल्लेबाज डेविड वॉर्नर, एरोन फिंच और शेन वाटसन पाक पेसरों की तेज और बाउंस गेंदों पर लड़खड़ाते दिखे। भारतीय पेसरों को शुरुआती ओवरों में सटीक बाउंसर डालकर आस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों में खौफ पैदा कराना चाहिए। चौथा, पाक ने दो बेशकीमती कैच टपकाए। भारतीय फील्डर किसी भी हालत में कैच टपकाने की भूल न करें। हालांकि अभी तक भारतीय फील्डिंग अच्छी रही है। पांचवां, ग्लैन मैक्सवेल अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी से किसी भी समय पर मैच का रुख मोड़ देते हैं। कप्तान धोनी को मैक्सवेल को जल्द आउट करने की विशेष रणनीति बनानी होगी और अंतिम भारत को एक अच्छा ओपनिंग स्टैंड देना होगा। शिखर धवन, रोहित शर्मा, विराट कोहली और अजिंक्य रहाणे में से एक को सैकड़ा जड़ना होगा और बाकी को 50 रन से ज्यादा बनाने होंगे। सिडनी में टीम इंडिया का रिकार्ड अच्छा नहीं है। 17 मैचों में से सिर्प चार मैच ही जीते हैं और 12 हारे हैं। सटोरियों की नजरों में आस्ट्रेलिया फेवरेट है। उम्मीद की जाती है कि टीम इंडिया अपना विजय रथ आगे बढ़ाएगी और आस्ट्रेलिया पर पार पा लेगी। बैस्ट ऑफ लक टीम इंडिया।

Sunday 22 March 2015

ट्रेनों में लूटपाट की बढ़ती घटनाएं

ट्रेन का सफर कितना असुरक्षित होता जा रहा है यह जबलपुर-निजामुद्दीन एक्सप्रेस ट्रेन की इस घटना से पता चलता है। मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री जयंत मलैया और उनकी पत्नी से चलती ट्रेन में लूटपाट करने का मामला सामने आया है। चलती ट्रेन में वह भी वातानुकूलित डिब्बे में खंजर दिखाकर लुटेरों ने सोने की चेन, अंगूठी और कुछ नकदी की लूट की। दम्पत्ति दिल्ली आने के लिए दमोह से ट्रेन में सवार हुए थे। अपने दुखद अनुभव के बारे में संसद के बाहर जयंत मलैया की पत्नी सुधा ने बताया कि हम दिल्ली आने के लिए जबलपुर-निजामुद्दीन ट्रेन में यात्रा कर रहे थे और हम ट्रेन में दमोह से चढ़े थे। सुबह करीब चार बजे हमारे कूपे के दरवाजे पर दस्तक दी गई, जब मैंने दरवाजा खोला तो एक शख्स खंजर लेकर जबरदस्ती अंदर घुस आया और उसके साथ चार अन्य लोग भी आ गए। सुधा खुद भाजपा की कार्यकर्ता हैं, उन्होंने कहा फिर उन लोगों ने मेरा पर्स, चेन और अंगूठी छीन ली। वह मेरे पति के पर्स में रखे पैसे भी ले गए। मेरे बाएं हाथ की अंगुली में एक अन्य अंगूठी थी जो नहीं निकल रही थी तो उन्होंने मेरी अंगुली ही काटने की धमकी दी। हालांकि उनमें से एक लुटेरे ने अंगूठी को बाहर निकालने की कोशिश की पर उसे कामयाबी नहीं मिली। उन्होंने आरोप लगाया कि लुटेरों ने आसपास के कूपे के मुसाफिरों को भी लूटा। आरपीएफ की प्रतिक्रिया के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि आरपीएफ की वजह से ही अन्य यात्री सुरक्षित रहे। चेन खींचने की वजह से ट्रेन रुकी थी और आरपीएफ के जवान आए तो लुटेरे भाग गए। प्रह्लाद पटेल ने यह मुद्दा संसद में भी उठाया। इस बीच भोपाल से मिली सूचना के अनुसार रेलवे सुरक्षा बल के एक अधिकारी ने बताया कि मंत्री से लुटेरे करीब 20 से 22 हजार रुपए नकद और कुछ सोने के आभूषण ले गए। रेलवे के प्रवक्ता अनिल सक्सेना के मुताबिक ट्रेन में मौजूद रहे तीन आरपीएफ कर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। साथ ही रेलवे ने इस घटना की जांच के आदेश भी दे दिए हैं। उधर थाना फरह क्षेत्र स्थित दिल्ली-आगरा रेलवे ट्रैक पर एक्सप्रेस ट्रेन को रोक कर बदमाशों ने हथियारों का भय दिखाकर लूट की और चेन पुलिंग कर भाग गए। गेटमैन की सूचना पर पहुंची जीआरपी एवं थाना फरह ने जांच के बाद गाड़ी को आगे रवाना कर दिया। प्राप्त जानकारी के अनुसार नई दिल्ली से चलकर हैदराबाद जा रही दक्षिण एक्सप्रेस को हथियारों से लैस चार बदमाशों ने बृहस्पतिवार रात करीब सवा दो बजे थाना फरह क्षेत्र के गांव धतिया के निकट गेट नम्बर 577 पर चेन पुलिंग कर रोक लिया और एसी कोच बी-दो में लूटपाट शुरू कर दी। रेल मंत्री सुरेश प्रभु को यात्रियों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। अब तो वातानुकूलित डिब्बों में भी घुसकर लूटपाट होने लगी है। यात्रियों को  लुटेरों से कैसे बचाया जाए यह रेलवे अधिकारियों के लिए एक चुनौती है। फिलहाल रेल यात्रा करना जोखिम भरा है और यात्री भगवान भरोसे यात्रा करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

गौहत्या पर रोक फिर भी 61 लाख किलो रोज बीफ खपत

हिन्दुस्तान में हिन्दुओं के लिए गाय का विशेष महत्व है। यह खुशी की बात है कि कुछ राज्यों ने अंतत गौवध पर प्रतिबंध लगा दिया है। 20 साल की लम्बी लड़ाई के बाद आखिरकार महाराष्ट्र सरकार गौवंश हत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने में कामयाब हुई। राज्य में गौहत्या 1976 से प्रतिबंधित है, अब बैल-बछड़े की हत्या भी गैर कानूनी है। इस तरह देश के 29 राज्यों में से 24 में गौहत्या पर प्रतिबंध है। इधर हरियाणा विधानसभा में सोमवार को हरियाणा गौवंश संरक्षण व गौसंवर्द्धन विधेयक 2015 को ध्वनिमत से मंजूरी मिल गई, साथ ही अब प्रदेश में गौहत्या गैर जमानती अपराध होगा और दोषियों को तीन से 10 साल की कैद व एक लाख रुपए तक जुर्माने की सजा हो सकती है। एक तरफ तो प्रतिबंध लग रहा है पर जमीनी हकीकत तो दूसरी ही तस्वीर दिखाती है। झारखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पंजाब में प्रतिबंध के  बावजूद गायों की हत्या की जा रही है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान में गायों की हत्या के मामले तो सामने नहीं आए हैं, लेकिन यहां गौ तस्करी होती रहती है। बिहार में गौवंश हत्या प्रतिबंधित नहीं है लेकिन यहां गैर लाइसेंसी बूचड़खानों में अवैध गौहत्या होती है। झारखंड में प्रतिदिन 500 गायों की हत्या की जा रही है। साल में गौहत्या-तस्करी के 312 मामले दर्ज हुए। झारखंड में औसतन 500 से 1000 गायों की तस्करी होती है। पंजाब में एक वर्ष में 4000 गायें छुड़ाई गईं। हालत यह है कि बीते चार सालों में भारत में बीफ यानि गौवंश और भैंस के मीट की खपत में करीब 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। 2011 में बीफ की खपत 20.4 लाख टन थी, जो 2014 में बढ़कर 22.5 लाख टन हो गई। इसके विपरीत पशु गणना के अनुसार देश में गौवंश की संख्या में 2007 के मुकाबले 2012 में 4.1 प्रतिशत की कमी आई है। भारत ने पिछले वर्ष 19.5 लाख टन बीफ का निर्यात किया। भारत बीफ निर्यात में विश्व में नम्बर दो पर है। चौंकाने वाला आंकड़ा है कि रोज भारत में 61 लाख किलो बीफ की खपत है। केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाला सत्ताधारी यूडीएफ और माकपा के नेतृत्व वाला विपक्षी एलडीएफ भले ही विभिन्न मुद्दों पर एक-दूसरे से मतभेद रखते हों, लेकिन गौवध और गौमांस पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाने के राजग सरकार के कदम के खिलाफ एकजुट होकर सामने आए हैं। यूडीएफ और एलडीएफ दोनों ने ही राज्य सरकार के इस कदम की निजी स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने हाल में कानून मंत्रालय से सलाह मांगी है कि क्या केंद्र गुजरात समेत कई राज्यों में गौवध के खिलाफ लागू किए गए कानूनों को मॉडल बिल के तौर पर अन्य राज्यों के पास भी भेज सकता है ताकि वह अपने यहां ऐसे कानूनों के बारे में विचार कर सके। जैसा मैंने कहा कि गाय का हर हिन्दू के लिए विशेष महत्व है, वह गाय को माता का एक रूप मानते हैं। गौवध पर प्रतिबंध लगना चाहिए और गौमांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगना चाहिए। बिहार, केरल, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नागालैंड में अभी भी गौहत्या पर प्रतिबंध नहीं है।

Saturday 21 March 2015

सोनिया की सक्रियता से कांग्रेस को मिली संजीवनी

भूमि अधिग्रहण विधेयक के मामले में मोदी सरकार के खिलाफ मंगलवार को हुए 14 राजनीतिक दलों के मोर्चे ने जहां केंद्र सरकार के लिए समस्या पैदा कर दी वहीं इस एकजुटता ने राजनीतिक रूप से सुषुमत नजर आ रही कांग्रेस को अचानक नई जान दे दी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सक्रियता से भी पूरी पार्टी अचानक रौ में नजर आने लगी है। कांग्रेस अध्यक्ष अचानक सक्रिय हो गई हैं। मंगलवार को लोकसभा में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक पर कमान संभाली। इसके बाद वह लगभग समूचे विपक्ष की नेता के तौर पर मार्च करते हुए संसद भवन से राष्ट्रपति भवन तक गईं। इस पूरी कवायद में पार्टी के तमाम शीर्ष नेता एकजुट नजर आए। वह स्वयं नेताओं को अपने साथ आगे चलने के लिए बुला रही थीं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कई मुद्दों ने पार्टी में जान पूंकने का मौका दे दिया है। हाल तक निक्रिय और हताश दिखने वाली कांग्रेस पार्टी में एक नए जोश का संचार हुआ है। निश्चय ही इसका श्रेय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जाता है। उन्होंने जता दिया कि लंबी अस्वस्थता के बावजूद वह पस्त नहीं पड़ी हैं और जरूरत पड़ने पर आज भी सड़क पर उतर सकती हैं। इससे दिशाहीन कांग्रेस में भी एक नई चेतना लौटी है। सोनिया की सक्रियता यह भी दर्शाती है कि वह पार्टी के भीतर सर्वोच्च नेता हैं और लीडरशिप को लेकर पार्टी में कोई असमंजस नहीं होना चाहिए। महत्वपूर्ण यह भी है कि सोनिया के सड़क पर उतरने से कांग्रेसी कार्यकर्ता भी सक्रिय हो गए हैं। दूसरी तरफ भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सरकार को घेरने में कांग्रेस को मिली कामयाबी राहुल के रास्ते में रोड़ा भी बन सकती है। एक सप्ताह में दो बार सड़क पर उतर कर कांग्रेस को संघर्ष में लाने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सक्रियता देख पार्टी में बदलाव की मुहिम को मोथरा करने के प्रयास तेज हो गए हैं। मंगलवार को समूचे विपक्ष को पार्टी के पीछे खड़ा कर चुकीं सोनिया की अगुवाई को लेकर फिर बुजुर्ग कांग्रेसी मैदान में हैं जबकि बजट सत्र से पहले छुट्टी लेकर गए पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर टीम राहुल पशोपेश में है। इन सभी दलों के लिए किसान का मुद्दा बेहद अहम है और भाजपा से अपने-अपने किले बचाने में उसके खिलाफ एकजुट होना उनकी मजबूरी भी है। बिहार में लालू, नीतीश और कांग्रेस मिलकर भाजपा को चुनौती देने की योजना बना रही है। बीएसपी, एआईडीएमके और बीजेडी जैसे अहम क्षेत्रीय दल अभी इस व्यापक विपक्षी गोलबंदी से दूर हैं। चूंकि अधिग्रहण पर विपक्ष के तेवरों को देखते हुए केंद्र सरकार ने इसे राज्यसभा में लाने और फिर से अध्यादेश लाने, संयुक्त संसद का सैशन समेत सारे विकल्प खुले रखे हैं। इस पर जारी अध्यादेश की अवधि पांच अप्रैल को समाप्त हो रही है। राज्यसभा में अल्पमत और भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ अधिकांश विपक्ष की एकजुटता सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बन गई है और उसे अब विकल्पों पर विचार करना होगा।
-अनिल नरेन्द्र



डीके रवि की रहस्यमय मौत पर उठे कई सवाल? ़

रेत माफिया के खिलाफ अभियान चलाने वाले ईमानदार आईएएस अधिकारी डीके रवि की मौत की गूंज कर्नाटक में विधानसभा से सड़क तक सुनाई दे रही है। विपक्षी सदस्यों ने मंगलवार को विधानसभा में यह मामला उठाते हुए सरकार पर एक ईमानदार अफसर को बचा पाने में विफल रहने का आरोप लगाया। पुलिस भले ही 2009 बैच के अफसर डीके रवि की मौत को प्रथम दृष्टया आत्महत्या बता रही है लेकिन सवाल उठना लाजिमी है कि जिस अधिकारी के पैर ऊंची पहुंच वाले भ्रष्टाचारियों के सामने नहीं कांपे, वह दुनिया छोड़ने के लिए इतना कायराना रास्ता क्यों चुनेंगे? डीके रवि के करीबी दोस्तों ने कहा है कि नेताओं के करीबी नामी-गिरामी बिल्डरों और भूमाफियाओं पर शिकंजा कसने वाले रवि को अंडरवर्ल्ड से भी जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं। एक किसान परिवार से आने वाले रवि ने कठिन मेहनत के बलबूते आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वर्ष 2009 बैच के कर्नाटक कैडर के अफसर रवि को कोलार जिले में रेत और भूमाफियाओं के खिलाफ अभियान से लोकप्रियता मिली थी। अक्तूबर में कोलार से रवि के स्थानांतरण का स्थानीय जनता ने भारी विरोध किया था। बेंगलुरु में उन्होंने कई बड़े बिल्डरों, रियल एस्टेट समूहों और रिटेल कारोबारियों पर कर चोरी मामले में शिकंजा कसा। साथ ही हजारों करोड़ रुपए की कब्जाई जमीन भी मुक्त कराई। वर्तमान में वह बेंगलुरु में एडिशनल कमिश्नर (वाणिज्य कर) के बतौर पदस्थ थे। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि रवि कर चोरी के बड़े मामलों का खुलासा करने के लिए कुछ बड़े बिल्डरों पर छापेमारी की योजना बना रहे थे। खबरों के मुताबिक वह ऐसी कार्रवाइयों के जरिये 400 करोड़ रुपए से अधिक की वसूली कर चुके थे। जाहिर है कि ऐसे में रवि बहुतेरे ताकतवर लोगों की निगाह का कांटा रहे होंगे। रवि के पिता करियप्पा, मां गौरम्भा और भाई रमेश ने बुधवार को विधानसभा के सामने धरना दिया और धमकी दी कि यदि (सीबीआई जांच की) उनकी मांग नहीं मानी गई तो वह आत्महत्या कर लेंगे। पहले से परेशान प्रशासन पर इस धमकी से दबाव और बढ़ गया है। उधर विधानसभा में विपक्ष ने भी सीबीआई जांच की मांग करते हुए दूसरे दिन भी सरकार पर दबाव बनाए रखा। हालांकि सरकार ने इसे मानने से इंकार कर दिया और कहा कि घटना की सीआईडी जांच होगी। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने विधानसभा के बाहर कहाöयह ऐसा मामला नहीं है जिसे सीबीआई को सौंपा जाए। डीके रवि 35 साल के थे। जरूरी है कि उनकी मौत की वजह का ठीक खुलासा हो। यदि जांच में यह साबित भी हो जाए कि उन्होंने वाकई आत्महत्या की है, तब भी यह सच्चाई सामने आनी चाहिए कि उन्हें किन हालात में यह कदम उठाना पड़ा? बेहतर होगा कि दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए राज्य सरकार प्रकरण को जल्द से जल्द सीबीआई को सौंप दे ताकि रवि यदि किसी साजिश का शिकार हुए हैं तो उसे बेपर्दा किया जा सके। डीके रवि जैसे निडर और ईमानदार अफसर का यूं असमय जाना न केवल उनके परिवार और सरकार बल्कि देश की क्षति है। हम ऐसे बहादुर अफसर को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं।

Friday 20 March 2015

नकली नोट, ड्रग्स और सैकड़ों फर्जी बैंक खाते ः आईएसआई चला रही है

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई न केवल आतंकवादी बल्कि भारत में नकली भारतीय करेंसी तथा मादक द्रव्यों की तस्करी में भी लगी है। सन 2008 से पाक के कब्जे वाले कश्मीर से सटे जम्मू-कश्मीर के हिस्सों से व्यापार के लिए खोले गए खातों से नकली भारतीय करेंसी तथा ड्रग्स अन्य सामान की आड़ में भेजे जाने की रिपोर्ट आई है। श्रीनगर से एजेंसियों के अनुसार पीओके के एक ड्राइवर समेत दो लोगों को श्रीनगर-मुजफ्फराबाद मार्ग पर नियंत्रण रेखा के पार से कथित रूप से मादक पदार्थ तस्करी करने को लेकर गिरफ्तार किया गया है। बारामूला के पुलिस अधीक्षक सुहैल मीर ने कहा कि मुजफ्फराबाद निवासी ड्राइवर अनायत हुसैन को मादक पदार्थ बरामद होने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने बताया कि स्थानीय व्यापारी अहमद मल्ला यह खेप लेने वाला था। पुंछ के चक्का-दा-बाग तथा पाक के कब्जे वाले कश्मीर के रावलाकोट के मध्य जारी ट्रेड सेंटर के रास्ते अरसा पूर्व किरयाने के सामान से लदे एक ट्रक में बड़ी मात्रा में नकली भारतीय करेंसी जब्त की गई थी। उसके बाद उड़ी के सलामाबाद नियंत्रण रेखा पर बने ट्रेड प्वाइंट पर गत वर्ष 17 जनवरी को 114 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी गई थी। अब ताजा मामला बीते बृहस्पतिवार का है जब पाक के कब्जे वाले कश्मीर-मुजफ्फराबाद के रास्ते से एक ट्रक से एक बार फिर नशीले पदार्थ की खेप पकड़ी गई। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत में नकली भारतीय करेंसी घुसेड़ने के लिए बांग्लादेश बॉर्डर का भी इस्तेमाल करती है। बांग्लादेश के रास्ते पाकिस्तान भारत में नकली नोट भेज रहा है। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने नकली नोटों का धंधा करने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ किया है। पुलिस ने इस संबंध में एक नाबालिग समेत चार लोगों को दबोचा है। आरोपियों की पहचान बेतिया बिहार निवासी शाहनवाज अंसारी (20) और दो सगे भाई शेख नूर उल्लाह (21) व शेख अताउल्लाह (19) के रूप में हुई है। पुलिस ने इनके पास से 6.5 लाख रुपए बरामद किए हैं। आईएसआई के भारत में कई स्लीपर सेल हैं। यह वो स्लीपर सेल्स हैं जो अपने आकाओं के एक इशारे पर कहीं भी मौत का मंजर पैदा कर देते हैं। खुफिया एजेंसियों ने सैकड़ों ऐसे बैंक खातों को ढूंढ निकाला है जिनकी मदद से इन आतंक के मोहरों को धन पहुंचाया जाता है और वह तबाही मचाते हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों को सैकड़ों ऐसे बैंक खातों की जानकारी मिली है जिनके जरिये आईएसआई और पाकिस्तान के दर्जनों जेहादी संगठन पैसों का लेन-देन करते हैं। हमारी एजेंसियों ने देश के 16 बैंकों के 1162 खुफिया खातों का पता  लगाया है जिनमें यह काम हो रहा है। इन खातों से पाकिस्तान के 1175 और भारत के 305 मोबाइल नम्बर भी जुड़े हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह बैंक खाते ऐसे लोगों के हैं जिनकी आय बेहद कम है, मगर इनके खातों में लाखों रुपए का ट्रांजैक्शन है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह सारे खाते बहुत कम पैसों में खोले गए थे। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक ऐसे करीब 30 फीसदी खाते बिहार, 18 फीसदी खाते पश्चिम बंगाल, 13.5 फीसदी खाते यूपी में और 11 फीसदी खाते मध्यप्रदेश में खुलवाए गए हैं। इस काले खेल का एक सिरा हवाला से जुड़ा है तो दूसरा आतंकवाद से।

-अनिल नरेन्द्र

राष्ट्रीय परिषद में केजरीवाल को झटका लग सकता है

अंदरुनी कलह से जूझ रही आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल के वापस आने के बाद सुलह के प्रयास तेज हो गए हैं। मंगलवार को वरिष्ठ नेता प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव के साथ सुलह समझौते की प्रक्रिया के लिए हाथ बढ़ाने के साथ ही अन्य राज्यों में पार्टी के आधार को विस्तार के प्रयास पर सहमति जताते हुए मतभेद समाप्त करने की दिशा में कदम उठाने का फैसला किया। ऊपरी सतह पर लगता है कि सुलह-सफाई का प्रयास हो रहा है पर अंदर खाते मतभेद अभी बरकरार हैं। अरविंद केजरीवाल प्रशांत भूषण से वन टू वन मिलने में कतरा रहे हैं। सही मायने में एकता तभी होगी जब मुद्दों पर सहमति होगी और वह फिलहाल होती नजर नहीं आ रही। प्रशांत भूषण ने कहा है कि वह सिर्प केजरीवाल से बात करेंगे। केजरीवाल ने प्रशांत भूषण को आशीष खेतान से मिलने को कहा था पर प्रशांत भूषण ने खेतान से मिलने से साफ इंकार कर दिया है। आप की राजनीतिक मामलों की कमेटी (पीएसी) से हटाए गए प्रशांत भूषण ने कहा है कि वह केवल अरविंद केजरीवाल से ही मुलाकात करेंगे। उन्होंने मंगलवार को कहा कि कुछ अहम मुद्दों का समाधान करने के लिए वह केजरीवाल के अलावा किसी दूसरे नेता से नहीं मिलेंगे। पार्टी की दिल्ली इकाई से जुड़े एक अहम सदस्य आशीष खेतान ने उनके साथ बैठक का अनुरोध किया था। बता दें कि जब दोनों समूहों के बीच तीखी बयानबाजी चल रही थी तो संयोग से खेतान ने भी भूषण पर हमला बोला था। उन्होंने प्रशांत भूषण, उनके पिता एवं पार्टी के संरक्षक शांति भूषण और बहन शालिनी पर पार्टी की सभी इकाइयों में नियंत्रण की चाहत रखने का आरोप लगाया था। अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि सभी विवाद पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की महत्वपूर्ण बैठक जो इसी महीने के अंत में होनी है, से पहले सुलझा लिए जाएं। बेशक योगेन्द्र यादव-प्रशांत भूषण पर आम आदमी पार्टी से बाहर होने की तलवार लटक रही है लेकिन पार्टी की राष्ट्रीय परिषद में पासा पलट भी सकता है। संभव है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पार्टी का संयोजक पद छोड़ना पड़े। केजरीवाल के नजदीकी भी मान रहे हैं कि दोनों गुटों के बीच लड़ाई कांटे की है। दरअसल स्थिति यह है कि राष्ट्रीय परिषद के बहुमत सदस्य योगेन्द्र यादव ने बनाए हैं और संभव है कि वोटिंग की नौबत आए तो यादव पक्ष केजरीवाल पक्ष पर हावी रहे। राष्ट्रीय परिषद आप की सबसे बड़ी इकाई है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) के बारे में फैसला और पार्टी के संविधान में संशोधन का अधिकार भी इसी के पास है। परिषद में फिलहाल 400 से ज्यादा सदस्य हैं। इसमें दिल्ली के सदस्यों की संख्या 50 से भी कम है और इसकी बैठक एक साल पहले हुई थी। दिल्ली के सदस्यों को छोड़कर टीम केजरीवाल का सीधा सम्पर्प इनसे ज्यादा नहीं रहा है। दूसरी तरफ योगेन्द्र यादव आप के मिशन विस्तार से जुड़े रहे हैं। केजरीवाल के नजदीकियों के मुताबिक परिषद के सदस्यों के नियमित सम्पर्प में रहने से मुमकिन है कि इसमें यादव समर्थकों का पलड़ा भारी है। 28 मार्च को परिषद की बैठक तय है। टीम केजरीवाल को आशंका इसलिए भी है क्योंकि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पीएसी से योगेन्द्र यादव-प्रशांत भूषण को निकालने का प्रस्ताव 11-8 के बेहद करीबी अंतर से पास हुआ था। इधर आम आदमी पार्टी की अंतर्पलह से आहत उनके समर्थकों का अनिश्चितकालीन धरना मंगलवार को सातवें दिन भी जारी रहा। धरने पर बैठे लोगों ने आप के मुखिया व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र भी भेजा है। धरने पर बैठे लोगों को उम्मीद थी कि केजरीवाल इस समस्या के निस्तारण के लिए ठोस कदम उठाएं जो फिलहाल हुआ नहीं है। उम्मीद की जाती है कि आम आदमी पार्टी के मंथन से अमृत निकलेगा।

Thursday 19 March 2015

बेमौसम बारिश ने तोड़ी किसानों की कमर

मार्च महीने में चौथी बार बारिश वह भी भारी ने किसानों की कमर तोड़ दी है। इस महीने में बारिश ने न केवल सौ साल का रिकार्ड ध्वस्त किया है बल्कि किसानों की रही-सही उम्मीदें भी धो डालीं। भारत गांवों का देश है यह मुहावरा अभी पुराना नहीं हुआ है। अनुमान है कि देश की तकरीबन 68 फीसदी आबादी गावों में ही निवास करती है जो खेती में लगी हुई है और इसी पर निर्भर है। पश्चिम विक्षोभ के कारण मार्च महीने में चौथी बार बेमौसम बारिश के साथ तेज हवाओं के झोंके ने बारिश के बावजूद कुछ इलाकों में समूची गेहूं की फसल को तबाह कर दिया है। गेहूं के साथ सरसों, आलू, मटर और सब्जियों को नुकसान पहुंचा है। हालत का अदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते 11 मार्च तक देश भर में औसत से 237 फीसदी अधिक बारिश हुई है। करीब 1015 फीसदी की मार हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली के किसानों को झेलनी पड़ी है जबकि पूवी और पश्चिम उत्तर पदेश में औसत से 640-646 पतिशत अधिक बारिश हो चुकी है। कृषि विशेषक्षों का मानना है कि बेमौसम बारिश से जहां किसान बेहाल होंगे वहीं इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को जेबें ढीली कर उठाना पड़ेगा। आलू और प्याज की फसल को नुकसान होने के भारी अंदेशे से इनकी कीमतों में तेजी का अनुमान है। गमी के मौसम के पमुख फल आम के बौर के झड़ने और टूटकर गिरने से गंभीर क्षति हुई है। रबी फसलों के शानदार पदर्शन की उम्मीद लगाई जा रही थी लेकिन मार्च की पाकृतिक आपदा ने किसानों की मंशा पर पानी फेर दिया है। संसद में पिछले सप्ताह ही कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने 50 लाख हेक्टेयर रबी फसलों के नुकसान के तथ्य को स्वीकार कर लिया था। लेकिन बारिश और तेज हवाओं का झोंका चालू सप्ताह में भी जारी है। खेतों में खड़ी फसलें बेकार हुई ही हैं, काट कर रखी कृषि-उपजों की भारी पैमाने पर बर्बादी हुई है। किसानों के लिए यह आफत इतनी बड़ी है कि अलग-अलग क्षेत्रों से अन्नदाताओं द्वारा आत्महत्या करने की खबरें लगातार आ रही हैं। रविवार को हुई बारिश से फसल खराब होते देख आगरा के मालपुरा के किसान पेम सिंह और खंदौली के किसान राजेंद्र सिंह फाकरे की सदमे से मौत हो गई। इनके अलावा मैनपुरी के बरनाहल के किसान रोहन सिंह और मध्य पदेश के खंडवा में भी एक किसान की हृदयगति रुकने से मौत की सूचना है। बारिश से राजस्थान में 12 लोगों की मौत हुई है जबकि यूपी में पांच और उत्तराखंड में दो लोगों की जान चली गई। जुबानी मरहम सदमाग्रस्त किसानों के लिए काफी नहीं होगा। जरूरी है कि युद्ध स्तर पर ऐसे इंतजाम किए जाएं ताकि फसल बर्बाद होने से टूट चुकी किसानों की कमर सीधी हो सके। एक तरफ उनकी जाया हो चुकी लागत की भरपाई जरूरी है तो दूसरी तरफ यह भी आवश्यक है कि उनके भरण-पोषण का मुकम्मल इंतजाम हो। तात्कालिक राहत देने के साथ-साथ इस बात का पबंध किया जाना चाहिए कि ऐसी आपदाओं के समय किसानों को बीमा के जरिए पभावी सुरक्षा छतरी उपलब्ध कराई जाए। उपभोक्ताओं का भी ध्यान रखना होगा।

-अनिल नरेंद्र

मोदी ने श्रीलंका में आई दरार को पाटने का पयास किया

पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की तीन द्वीपीय देशों की यात्रा का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव श्रीलंका था। यों तो इस पड़ोसी देश के साथ भारत के रिश्ते हमेशा दोस्ताना रहे हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षें में बीच-बीच में थोड़ी खटास भी आई खासकर दो मुद्दों पर। मछुआरों से संबंधित और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पश्चिमी देशों की तरफ से लाए गए पस्ताव पर भारत के समर्थन का। इस पृष्ठभूमि को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत-श्रीलंका रिश्तों में एक नया अध्याय शुरू हुआ है। यूपीए सरकार का पिछला एक दशक विदेश नीति के मोर्चे पर हताश करने वाला ज्यादा था। परिणामस्वरूप श्रीलंका भारत की अपेक्षा चीन के ज्यादा करीब हो गया था। चीन ने इस खटास का पूरा फायदा उठाते हुए श्रीलंका में अपना पभाव बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस दौरान श्रीलंका से हमारे रिश्ते इतने बिगड़े कि पड़ोस में चीन के वर्चस्ववाद का हम कायदे से विरोध करने की स्थिति में भी नहीं रह गए थे। हालांकि श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों की खराब स्थिति भी कोलंबो से हमारे कटु रिश्ते की वजह बनती रही है। इसके अलावा तमिल मछुआरों को श्रीलंका के जल क्षेत्र में निशाना बनाने की घटनाएं भी चिंताजनक हैं। पधानमंत्री के श्रीलंका में होने के दौरान भी कुछ भारतीय मछुआरों को निशाना बनाया गया। ऐसे में इस मुद्दे का समाधान दोनों तरफ से संयम की भी मांग करता है। बड़ी बात यह है कि पिछले दिनों श्रीलंका के चुनाव में चीन समर्थित राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे की हार से दोतरफा रिश्तों के पटरी पर आने की जो उम्मीद बनी, पधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दौरे से उसे मूर्त रूप देने की पूरी कोशिश की गई है। सिर्फ यही नहीं कि तमिल बहुल उत्तरी पांत की राजधानी जाफना में पहुंचने वाले मोदी पहले पीएम बने, एकाधिक पतीकों के जरिए उन्होंने तमिल हितों से जुड़ी हमारी भावनाओं का सटीक संदेश भी दिया। पधानमंत्री ने वहां 13वें संशोधन को जल्द एक पूर्ण कार्यान्वयन और तमिल अल्पसंख्यक समुदाय के साथ सुलह के लिए इससे आगे जाने की अपील की। पधानमंत्री ने एकजुट श्रीलंका में समानता, न्याय, शांति एवं सम्मान के लिए तमिलों समेत समाज के सभी वर्गें की आकांक्षाओं को जगह देने वाले एक भविष्य के निर्माण के पयासों को भारत के समर्थन की बात करते हुए कहा थाः हमारा मानना है कि 13वें संशोधन के जल्द एवं पूर्ण कार्यान्वयन और इससे आगे जाने से इस पकिया में मदद मिलेगी। मोदी ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति मैत्री पाला सिरीसेना के साथ अपनी बैठक में यह टिप्पणी की थी। श्रीलंका में चीन ने जिस व्यापक पैमाने पर निवेश किया है, अपना पभाव बढ़ाया है उसे देखते हुए यह मानना भूल होगी कि महज सत्ता परिवर्तन से बीजिंग का वर्चस्व कम होगा। पर कई ऐसे मोर्चे हैं जिन पर श्रीलंका के साथ आगे बढ़कर हम दोस्ती की नई इबारत लिख सकते हैं।

Wednesday 18 March 2015

आईटीओ चौराहे पर जाम से मिलेगी राहत?

वाहन चालक आईटीओ के डब्ल्यू प्वाइंट, तिलक मार्ग, मथुरा रोड और सुप्रीम कोर्ट के आसपास जाम से परेशान हैं। शाम को पांच बजे के बाद अगर आप  बहादुर शाह जफर मार्ग से तिलक मार्ग या प्रगति मैदान की ओर जाना चाहते हैं तो आपको 10 से 15 मिनट रेड लाइट पर खड़े रहना साधारण बात हो गई है। कभी-कभी तो 25 मिनट तक लग जाते हैं। अगर आपको समय से पहुंचना है तो आपको पांच बजे से पहले ही अपने कार्यालय से चलना होगा नहीं तो आप किसी भी हालत में समय से नहीं पहुंच सकते। एक तो रेड लाइट तो दूसरी तरफ मेट्रो का चलता काम, दोनों ने मिलकर वाहन चालकों की नाक में दम कर रखा है। चूंकि लगता है कि मेट्रो का काम तो अपने अंतिम चरण में है, इसलिए इससे जल्दी निजात मिल जाएगी पर रेड लाइट का क्या करें? खबर है कि दिल्ली की ट्रैफिक पुलिस ने आईटीओ समेत तिलक मार्ग डब्ल्यू प्वाइंट और दिल्ली गेट क्रॉसिंग को जाम फ्री करने का प्लान भी तैयार कर लिया है। ट्रैफिक पुलिस का दावा है कि उसके कहने पर डीएमआरसी ने एक कंसल्टेंट को नियुक्त कर बाकायदा इन जगहों पर स्टडी करवाई है और उसी के अनुसार इन जगहों पर ड्रीकंजेशन के प्लान बनाए गए हैं, लेकिन असल में तिलक मार्ग और आईटीओ के आसपास लगने वाले जाम की समस्या को दूर करने के लिए ट्रैफिक पुलिस ने जो प्लान फाइनल किए हैं, उन्हें पांच साल पहले ही बनाया जा चुका है। खैर! जो प्लान बनाया गया है इसमें कुछ जगहों पर ट्रैफिक वन-वे करना भी शामिल है। ट्रैफिक पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि कुछ समय पहले उपराज्यपाल को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा गया है। आईटीओ पर मेट्रो निर्माण कार्य इस महीने के अंत तक पूरा होने की संभावना है। इसके बाद यातायात पुलिस प्रस्ताव को अमली जामा पहनाएगी। डॉ. दिनेश नंदिनी डालमिया चौक पर आने वाले वाहनों को सिकंदरा रोड के लिए राइट टर्न नहीं मिलेगा। वाहन चालक यहां से सीधे तिलक मार्ग पर भी नहीं जा सकेंगे। उन्हें मथुरा रोड पर जाना होगा। प्रगति मैदान के गेट नम्बर सात के सामने से वाहन चालक भगवान दास रोड पर निकलेंगे। इसी मार्ग पर सुप्रीम कोर्ट का सी एवं डी गेट पड़ता है। यह मार्ग वन-वे रहेगा। इस रोड के जरिये ही वाहन तिलक मार्ग जा सकते हैं। वहां से उन्हें सिकंदरा रोड पर जाना होगा। इन बदलावों में तिलक मार्ग पर सुप्रीम कोर्ट चौराहे से लेकर डब्ल्यू प्वाइंट तक की सड़क को वन-वे बनाया जाएगा। यहां डब्ल्यू प्वाइंट की तरफ से वाहन नहीं आ सकेंगे जबकि सुप्रीम कोर्ट से दोनों मार्गों का इस्तेमाल करते हुए वाहन चालक आईटीओ पहुंच सकते हैं। आईटीओ चौक से प्रगति मैदान वाली सड़क पर सुंदर नगर तक कम से कम छह रेड लाइट सिग्नल हैं। इनमें लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। क्या इसका भी कोई समाधान ट्रैफिक पुलिस ने सोचा है? देखें, इन प्रस्तावों पर क्या-क्या अमल होता है और हमें कितनी राहत मिलती है?

-अनिल नरेन्द्र

पहली बार चार एशियाई टीम वर्ल्ड कप क्वार्टर फाइनल में

पूल मैचों के अंतिम दिन पाकिस्तान और वेस्टइंडीज की प्रभावशाली जीत से आईसीसी विश्व कप की क्वार्टर फाइनल लाइनअप तय हो गई है। ग्रुप दौर खत्म हो चुका है और अब बारी है नॉकआउट दौर की यानि जीते तो सेमीफाइनल में और हार गए तो बाहर। यह आईसीसी वर्ल्ड कप में पहली बार हुआ है कि चार एशियाई टीमें क्वार्टर फाइनल में पहुंची हैं। न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया की संयुक्त मेजबानी में हो रहे इस टूर्नामेंट के नॉकआउट चरण की शुरुआत 18 मार्च को सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर दक्षिण अफ्रीका और 1996 के विजेता श्रीलंका के बीच मुकाबले के साथ होगी। क्रिकेट विश्व कप के इतिहास में पहली बार एशिया की चार पूर्ण सदस्य टीमें क्वार्टर फाइनल में चुनौती पेश करेंगी। लीग चरण के सभी मैच टीम इंडिया ने जीते हैं। 19 मार्च को भारत का मुकाबला बांग्लादेश से होगा। 20 मार्च को पाकिस्तान का सामना आस्ट्रेलिया से होगा। वहीं 21 मार्च को न्यूजीलैंड की भिड़ंत वेस्टइंडीज से होगी। श्रीलंका के विकेट कीपर-बल्लेबाज कुमार संगकारा ने लीग चरण में लगातार चार शतक जड़कर रिकार्ड बनाया। वह ऐसा करिश्मा करने वाले पहले बल्लेबाज हैं। इस विश्व कप में सर्वाधिक रनों के मामले में भी वह नम्बर वन पर चल रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका के एबी डिविलियर्स छह मैचों में 417 रन बनाकर उन्हें चुनौती दे रहे हैं। क्वार्टर फाइनल में गत चैंपियन भारत को एशियाई प्रतिद्वंद्वी बांग्लादेश के रूप में सबसे आसान चुनौती मिली है। कप्तान कूल महेन्द्र सिंह धोनी ने टीम को बांग्लादेश के खिलाफ किसी भी तरह की आत्ममुग्धता के प्रति चेता दिया है क्योंकि इस टीम ने इंग्लैंड को हराकर विश्व कप से बाहर किया है। याद रहे कि बांग्लादेश ने ही 2007 में भारत को भी हराकर विश्व कप के लीग चरण से ही बाहर का रास्ता दिखाने में अहम भूमिका निभाई थी। भारत के पास इसका हिसाब चुकता करने का मौका है। शुक्रवार को चार बार के चैंपियन आस्ट्रेलिया का सामना 1992 के चैंपियन पाकिस्तान से होगा जो रोमांचक मुकाबला हो सकता है। पाक टीम पिछले कुछ मैचों से अपनी लय में आ रही है। अंतिम क्वार्टर फाइनल में सह-मेजबान और इस बार की प्रबल दावेदार न्यूजीलैंड का मुकाबला वेस्टइंडीज से शनिवार को होगा। वेस्टइंडीज नेट रन रेट के आधार पर आयरलैंड को पछाड़ कर अंतिम आठ में जगह बनाने में सफल रहा। लेकिन कैरिबियाई टीम के पास भी ऐसे खिलाड़ी हैं जो पासा पलट सकते हैं। टीम इंडिया के हक में एक यह बात भी जाती है कि उसकी बॉलिंग इस टूर्नामेंट में प्रभावी रही। सभी छह मैचों में अपने प्रतिद्वंद्वी को ऑल आउट करने का श्रेय भारतीय गेंदबाजों को जाता है। बैटिंग तो हमेशा से ही भारत का प्लस प्वाइंट रहा है। टीम इंडिया के सेमीफाइनल तक पहुंचने में हमें तो कोई संदेह नहीं पर टूर्नामेंट अब ऐसे दौर में पहुंच गया है कि अब हारे तो खेल खत्म। हम टीम इंडिया को बैस्ट ऑफ लक देते हुए उम्मीद करते हैं कि धोनी के धुरंधर वर्ल्ड कप को इस बार भी जीत कर लाएंगे।

Tuesday 17 March 2015

फिर उकसाने वाले लखवी की रिहाई

पाकिस्तान सरकार के लचर रवैये के कारण इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने एक बार फिर 26/11 के मास्टर माइंड जकीउर रहमान लखवी को जेल से रिहा करने के आदेश दिए हैं। लखवी मुंबई पर 26/11 हमले का मास्टर माइंड था। उस पर षड्यंत्र रचने और उसे क्रियान्वयन करने का आरोप है। हमले के दौरान लखवी ही सैटेलाइट फोन पर दूसरे आतंकियों को निर्देश दे रहा था। लखवी को जेल से बाहर लाने की कवायद पिछले साल दिसम्बर में शुरू हुई थी। 18 दिसम्बर को मुंबई हमले से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी अदालत ने लखवी को जमानत दे दी थी। लेकिन भारत और अमेरिका के तीखे विरोध के बाद इस्लामाबाद प्रशासन ने एमपीओ कानून के तहत उसे जेल में रखा। तब पाकिस्तान ने एक अफगान नागरिक के अपहरण के पुराने मामले की फाइल खोलकर यह सुनिश्चित किया कि लखवी जेल में ही रहे। जकीउर रहमान लखवी की रिहाई जहां भारत के लिए चिन्ता का विषय है वहीं यह पाकिस्तान सरकार के आतंकवाद के खिलाफ लचर रवैये को दर्शाती है। पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार को इस बात की भी चिन्ता नजर नहीं आती कि अमेरिका सहित दुनिया में उसके इस लचर रवैये पर क्या प्रतिक्रिया होगी? भारत ने लखवी के खिलाफ पाकिस्तान को तमाम सबूत सौंपे हैं जिनके आधार पर उसे अब तक सजा हो जानी चाहिए थी पर पाकिस्तान ने सारे सबूतों को महज कागजों का पुलिंदा बताकर भारत का मजाक बनाया है। इसमें हमें तो अब कोई संदेह नहीं रहा कि पाकिस्तान में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो हर हालत में लखवी को बाहर निकालना चाहते हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि नवाज शरीफ सरकार पूरी तरह पाकिस्तानी सेना व आईएसआई के कब्जे में है और यह नहीं चाहते कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधरें। यह बात नवाज शरीफ सरकार क्यों नहीं समझ रही कि लखवी जैसे आतंकियों को सुरक्षा प्रदान करना न उसके लिए उचित है और न ही शेष दुनिया के लिए। विडम्बना यह है कि लखवी की रिहाई ऐसे समय हुई है जब भारत के विदेश सचिव के हाल ही के पाकिस्तान दौरे के बाद यह उम्मीद बनी थी कि दोनों देशों के बीच सस्पेंड हुई शांति वार्ता फिर से शुरू हो सकती है पर लगता है कि पाकिस्तान भारत के साथ शांति वार्ता करने का इतना इच्छुक नहीं है। पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि अच्छे आतंकवादी और बुरे आतंकवादी जैसा कुछ नहीं होता। इस बात को वैश्विक स्तर पर भी स्वीकार किया जा चुका है। लखवी के मामले को पाकिस्तान सरकार ने जानबूझ कर कमजोर करने का प्रयास किया जिसके फलस्वरूप अदालत ने उसकी रिहाई का आदेश दिया। यह आवश्यक है कि पाकिस्तान इससे अच्छी तरह से अवगत हो कि लखवी को रिहा करने से भारत पर क्या असर होगा, लेकिन उसकी ओर से ऐसी कोई कोशिश नहीं की गई जिससे इस आतंकी की रिहाई के रास्ते बंद हों।

-अनिल नरेन्द्र