Thursday 19 March 2015

बेमौसम बारिश ने तोड़ी किसानों की कमर

मार्च महीने में चौथी बार बारिश वह भी भारी ने किसानों की कमर तोड़ दी है। इस महीने में बारिश ने न केवल सौ साल का रिकार्ड ध्वस्त किया है बल्कि किसानों की रही-सही उम्मीदें भी धो डालीं। भारत गांवों का देश है यह मुहावरा अभी पुराना नहीं हुआ है। अनुमान है कि देश की तकरीबन 68 फीसदी आबादी गावों में ही निवास करती है जो खेती में लगी हुई है और इसी पर निर्भर है। पश्चिम विक्षोभ के कारण मार्च महीने में चौथी बार बेमौसम बारिश के साथ तेज हवाओं के झोंके ने बारिश के बावजूद कुछ इलाकों में समूची गेहूं की फसल को तबाह कर दिया है। गेहूं के साथ सरसों, आलू, मटर और सब्जियों को नुकसान पहुंचा है। हालत का अदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते 11 मार्च तक देश भर में औसत से 237 फीसदी अधिक बारिश हुई है। करीब 1015 फीसदी की मार हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली के किसानों को झेलनी पड़ी है जबकि पूवी और पश्चिम उत्तर पदेश में औसत से 640-646 पतिशत अधिक बारिश हो चुकी है। कृषि विशेषक्षों का मानना है कि बेमौसम बारिश से जहां किसान बेहाल होंगे वहीं इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को जेबें ढीली कर उठाना पड़ेगा। आलू और प्याज की फसल को नुकसान होने के भारी अंदेशे से इनकी कीमतों में तेजी का अनुमान है। गमी के मौसम के पमुख फल आम के बौर के झड़ने और टूटकर गिरने से गंभीर क्षति हुई है। रबी फसलों के शानदार पदर्शन की उम्मीद लगाई जा रही थी लेकिन मार्च की पाकृतिक आपदा ने किसानों की मंशा पर पानी फेर दिया है। संसद में पिछले सप्ताह ही कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने 50 लाख हेक्टेयर रबी फसलों के नुकसान के तथ्य को स्वीकार कर लिया था। लेकिन बारिश और तेज हवाओं का झोंका चालू सप्ताह में भी जारी है। खेतों में खड़ी फसलें बेकार हुई ही हैं, काट कर रखी कृषि-उपजों की भारी पैमाने पर बर्बादी हुई है। किसानों के लिए यह आफत इतनी बड़ी है कि अलग-अलग क्षेत्रों से अन्नदाताओं द्वारा आत्महत्या करने की खबरें लगातार आ रही हैं। रविवार को हुई बारिश से फसल खराब होते देख आगरा के मालपुरा के किसान पेम सिंह और खंदौली के किसान राजेंद्र सिंह फाकरे की सदमे से मौत हो गई। इनके अलावा मैनपुरी के बरनाहल के किसान रोहन सिंह और मध्य पदेश के खंडवा में भी एक किसान की हृदयगति रुकने से मौत की सूचना है। बारिश से राजस्थान में 12 लोगों की मौत हुई है जबकि यूपी में पांच और उत्तराखंड में दो लोगों की जान चली गई। जुबानी मरहम सदमाग्रस्त किसानों के लिए काफी नहीं होगा। जरूरी है कि युद्ध स्तर पर ऐसे इंतजाम किए जाएं ताकि फसल बर्बाद होने से टूट चुकी किसानों की कमर सीधी हो सके। एक तरफ उनकी जाया हो चुकी लागत की भरपाई जरूरी है तो दूसरी तरफ यह भी आवश्यक है कि उनके भरण-पोषण का मुकम्मल इंतजाम हो। तात्कालिक राहत देने के साथ-साथ इस बात का पबंध किया जाना चाहिए कि ऐसी आपदाओं के समय किसानों को बीमा के जरिए पभावी सुरक्षा छतरी उपलब्ध कराई जाए। उपभोक्ताओं का भी ध्यान रखना होगा।

-अनिल नरेंद्र

No comments:

Post a Comment