Wednesday 11 March 2015

कश्मीर में बुरी फंसी भाजपा ः इधर पुंआ तो उधर खाई

यह तो माना जा रहा था कि विवादास्पद छवि के जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ भाजपा की साझी सरकार कांटों भरी होगी लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि मुफ्ती साहब सत्ता संभालते ही ऐसा कदम उठाएंगे जिससे विवाद पैदा हो जाएगा। भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने के बाद पीडीपी की ओर से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए अलगाववादियों, आतंकियों का शुक्रिया अदा करना और फिर संसद पर हमले में शामिल आतंकी को सजा देने के फैसले का विरोध करना और अब एक कट्टरपंथी नेता को रिहा किया जाना यही बताता है कि इन दोनों दलों के रिश्ते कितनी तेजी से बिगड़ते चले जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के आदेश पर रिहा हुआ अलगाववादी नेता मसरत आलम कश्मीर घाटी में  लोगों को पथराव की घटनाओं के लिए उकसाता रहा है। 2010 में विरोध प्रदर्शन और पथराव की घटनाओं में कथित भूमिका के लिए मसरत को गिरफ्तार किया गया था। इन घटनाओं में 120 से ज्यादा लोग मारे गए थे और हजारों अन्य घायल हुए थे। 10 लाख रुपए का इनाम रखा था राज्य सरकार ने मसरत आलम के सिर पर। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष जुगल किशोर शर्मा ने कहा कि मसरत आलम की रिहाई न्यूनतम साझा कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है जिसके आधार पर राज्य में गठबंधन सरकार चल रही है। हमारी इस फैसले में सहमति नहीं है। वैसे यह पहली बार नहीं है जब पीडीपी अपने फैसलों के कारण सुर्खियों में आई हो बल्कि वर्ष 2002 में जब पीडीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था मुफ्ती ने मुख्यमंत्री पद संभालने के एक हफ्ते के भीतर कई आतंकियों को रिहा किया था और कांग्रेस के लिए परेशानी पैदा की थी और अब एक बार फिर सईद ने वही रणनीति बना भाजपा को परेशान कर दिया है। जम्मू-कश्मीर में भाजपा विधायकों और मंत्रियों ने एक सुर में पीडीपी से गठबंधन तोड़ने की मांग की है। इससे पहले कि दोनों दलों के रिश्तों को और अधिक क्षति पहुंचे और देश की चिन्ता बढ़े भाजपा को पीडीपी के साथ न केवल वार्ता करनी होगी बल्कि कोई सख्त संदेश भी देना होगा। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी और भारत विरोधी अभियान छेड़ने वाले कट्टरपंथी मसरत आलम की रिहाई स्वीकार नहीं की जा सकती। इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि उसने जो पत्थरबाजी अभियान छेड़ा था। उसमें करीब 100 लोगों की मौत हुई थी। अच्छा तो यह होता कि मुफ्ती केंद्र की मोदी सरकार के सहयोग से राज्य का समावेशी विकास करते और पहली वरीयता के रूप में घाटी से पलायन कर चुके साढ़े तीन लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की बात करते लेकिन उनकी प्राथमिकता साफ है। मुफ्ती की कोशिश देशहित को दांव पर लगाने की है ही, खुद भाजपा के लिए चिन्ता और चिन्तन का विषय है। बेहतर हो कि भाजपा यह सुनिश्चित करे कि उन परिस्थियों की जांच-पड़ताल हो जिसमें मसरत आलम को रिहा किया गया। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि मुफ्ती यहीं रुकने वाले नहीं वह और भी अलगाववादियों और आतंकियों को रिहा करने के चक्कर में हैं। भाजपा बुरी फंसी है इधर पुंआ तो उधर खाई।

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