देश की आत्मा को झकझोर देने वाले बहुचर्चित वसंत विहार गैंगरेप के एक दोषी
को कोर्ट से भले ही मौत की सजा मिली हो मगर तिहाड़ जेल में बंद दुष्कर्मी मुकेश सिंह
का बीबीसी को दिया इंटरव्यू विवादों में आ गया है। मुकेश सिंह को अपने कर्मों का कोई
पछतावा नहीं है। उलटे उसने इस बर्बर कांड के लिए बहादुर लड़की (निर्भया) को ही जिम्मेदार ठहराया है।
उसने कहा है कि लड़की को अपने साथ दुष्कर्म होने देना चाहिए था, उसका विरोध नहीं करना चाहिए था। बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री में दिल्ली गैंगरेप
मामले के दोषी करार मुकेश का कहना है कि जो महिलाएं रात को बाहर निकलती हैं अगर उनके
साथ छेड़छाड़ होती है तो इसके लिए वे खुद जिम्मेदार हैं। 16 दिसम्बर
2012 को दिल्ली के वसंत विहार इलाके में हुए इस गैंगरेप ने पूरे देश
को हिलाकर रख दिया था। बाद में लड़की को बचाया नहीं जा सका था। इस मामले में छह लोगों
को पकड़ा गया जिसमें से मुख्य आरोपी ने जेल में ही आत्महत्या कर ली थी और एक आरोपी
को नाबालिग होने के चलते तीन साल की सजा हुई। चार को निचली अदालत ने फांसी की सजा दी,
जिसे बाद में हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा। फिलहाल अभी मामला सुप्रीम
कोर्ट में है। अक्तूबर 2013 में ब्रिटिश फिल्मकार लेस्ली उडविन
ने गृह मंत्रालय से तिहाड़ जेल में बंद वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म केस के आरोपियों
का साक्षात्कार लेने के लिए अनुमति मांगी थी। मंत्रालय ने उनका पत्र तिहाड़ की महानिदेशक
विमला मेहरा के पास भेज दिया था। इसके बाद उन्हें साक्षात्कार की अनुमति दे दी गई।
उडविन का कहना है कि यह भारतीय महिलाओं के प्रति भारतीय पुरुषों की प्रवृत्ति को परखने
का प्रयास है और इसमें कुछ भी संवेदनशील नहीं है। निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार
के बाद जिस तरह से उसकी जघन्य हत्या हुई थी, वह एक ऐसा शर्मनाक
कांड है, जिसे समाज को बार-बार याद दिलाना
चाहिए, जब तक समाज में महिलाएं पूरी तरह सुरक्षित नहीं होतीं।
लेकिन इसे याद दिलाने का तरीका वह नहीं जिसे बीबीसी अपना रही है। बीबीसी ने इसके लिए
जो तरीका अपनाया है वह नैतिक रूप से गलत है ही, साथ ही बलात्कारियों
को महिमामंडित करना दिख रहा है। तिहाड़ जेल के अधिकारियों का कहना है कि इंटरव्यू की
इजाजत इस शर्त पर दी गई थी कि इसके प्रसारण से पहले इंटरव्यू जेल अधिकारियों को दिखाया
जाएगा। इतने संवेदनशील मामले में इंटरव्यू की इजाजत क्यों दी गई, किसने दी, बीबीसी ने शर्तों का पालन क्यों नहीं किया।
यह महत्वपूर्ण मगर अलग-अलग मुद्दे हैं। कई और सवाल भी हैं जो
पूछे जाने जरूरी हैं। इस इंटरव्यू को हमारी राय में किसी भी हालत में दिखाना नहीं चाहिए।
इसको दिखाकर बीबीसी क्या हासिल करना चाहता है? बलात्कारी की यह
दलील प्रसारित करना चाहता है कि लड़कियों को रेप करवा लेना चाहिए? या लड़कियां खुद रेप के लिए जिम्मेदार हैं? सवाल तो यह
भी है कि क्या मीडिया को ऐसे जघन्य कांड के आरोपी को अपने बचाव के लिए मंच प्रदान करना चाहिए? इस कार्यक्रम का प्रसारण आठ मार्च को होना है लेकिन बीबीसी जैसे जिम्मेदार,
प्रतिष्ठित चैनल ने कई तरह से इसका प्रचार शुरू कर दिया है। उस प्रचार
से तो यही लगता है कि बीबीसी ने बलात्कारी को अपनी मानसिकता को जायज ठहराने का एक मंच
प्रदान किया है। एक बलात्कारी की मानसिकता कैसी होती है यह समाज शास्त्राrय और मनोवैज्ञानिक अध्ययन का विषय हो सकता है लेकिन यही सोच अगर मीडिया में
परोसी जाए तो यह बलात्कारी का महिमामंडन करने समान है। दुख की बात यह भी है कि मुकेश
जैसी मानसिकता के लोग आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं। शायद इसीलिए रेप केस बढ़ रहे
हैं। सवाल यहां हमारी अदालतों पर भी उठता है। 16 दिसम्बर
2012 को घटी इस जघन्य घटना पर अब तक इन दरिन्दों को फांसी पर नहीं लटकाया
जा सका? अपील दर अपील से फांसी की सजा लटकती जा रही है। बीबीसी
के रवैये से भी दुख हुआ। उसे बलात्कारी का महिमामंडन नहीं करना चाहिए। सनसनी फैलाना
बीबीसी को शोभा नहीं देता। जिन शर्तों पर इंटरव्यू लिया गया था उसका भी पालन नहीं किया
गया। अगर बीबीसी इसका प्रसारण अब भी करता है तो हम मानेंगे कि वह भारत की दुनियाभर
में छवि क गिराना चाहती है और दुनिया को यह बताना चाहती है कि भारत का समाज कैसा है?
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