Tuesday 31 March 2015

यमन पर सउदी हमले से फिर सुलगा मध्य पूर्व एशिया

गृहयुद्ध के कगार पर पहुंच चुके अरब देश यमन में शिया हुदी विद्रोहियों के ठिकानों पर सउदी अरब के नेतृत्व में गत गुरुवार को हवाई हमले शुरू किए गए। राष्ट्रपति आबिद रब्बू मंसूर हादी के देश छोड़कर भागने के बाद यमन में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। सउदी अरब ने देश में शियाओं के समूह हुदी मिलिशिया के विद्रोहियों के बढ़ते असर को रोकने के लिए उनके खिलाफ ताबड़तोड़ हमले से स्थिति और ज्यादा खराब हो गई है। सउदी अरब ने दावा किया है कि उसने पहले ही दिन हुदी विद्रोहियों की वायुसेना को नाकाम कर दिया है। याद रहे कि राजधानी सना और उसके आसपास के इलाकों पर इन विद्रोहियों का कब्जा है। अमेरिका में सउदी अरब के राजदूत आदिल अल जुबैर ने कहा, फिलहाल कार्रवाई विभिन्न लक्ष्यों पर हवाई हमले तक सीमित है लेकिन यमन की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार को बचाने के लिए जो भी करना होगा किया जाएगा। यमन के राष्ट्रपति आबिद रब्बू मंसूर हादी ने सउदी अरब समेत अन्य देशों से मदद की मांग की थी, इसलिए यह सैन्य अभियान शुरू किया गया है। यमन में 2011 की अरब क्रांति के बाद से ही शिया और सुन्नी के बीच संघर्ष चल रहा है। जिसमें सुन्नियों का समर्थन अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे संगठन दे रहे हैं। इस बीच सुन्नी बहुल सउदी अरब के परम्परागत कहे जाने वाले और हुदी मिलिशिया के मुख्य सहयोगी ईरान ने सउदी अरब की निंदा करते हुए आरोप लगाया है कि सउदी के यह हमले अमेरिका के इशारे पर हो रहे हैं। ईरान ने चेतावनी देते हुए कहा है कि सउदी के इस खतरनाक कदम से यमन बिखर और बंट सकता है। हुदी मिलिशिया नियंत्रित टेलीविजन चैनल ने सउदी हवाई हमलों के बाद शहरों की तस्वीरें दिखाई, जिसमें हर ओर लाशों के ढेर और जख्मी लोग नजर आ रहे हैं। यमन में विद्रोहियों के खिलाफ इस लड़ाई में सउदी अरब के सहयोगियों में अब जार्डन भी शामिल हो गया है। खाड़ी देशों के इस गठबंधन में जार्डन के अलावा संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, कुवैत, बहरीन और कतर जैसे 10 से ज्यादा देश शामिल हो गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस गठबंधन को सामरिक और इंटेलीजेंस सपोर्ट देने की घोषणा की है। वहीं ईरान ने यमन में हुदी  मिलिशिया को समर्थन देने की बात कही है। माना जा रहा है कि यमन में सरकार गिराने आए हुदी विद्रोहियों को ईरान का समर्थन है। शिया हाउदी विद्रोहियों की बढ़त के चलते अमेरिकी समर्थक राष्ट्रपति आबिद रब्बू मंजूर हादी को भागना पड़ा है। सउदी अरब के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन के यमन में हमले इस्लामी जगत के लम्बे शिया-सुन्नी जंग में उलझ जाने का अंदेशा पैदा हो गया है। इराक और सीरिया में `खिलाफत' (इस्लामिक स्टेट-आईएस) कायम करने वाले चरमपंथी सुन्नी गुट के खिलाफ लड़ाई में ईरान ने अग्रणी भूमिका ले रखी है। आईएस, हुदी और अलकायदा अपनी कट्टरपंथी विचारधारा के कारण उस पूरे इलाके में हिंसा और आतंकवाद का स्रोत बन गए हैं। सवाल है कि क्या हुदी, आईएस और बाकी चरमपंथी गुटों को परास्त किया जा सकेगा? यह संभवत आसान होता अगर शिया तथा सुन्नी दोनों चरमपंथियों के खिलाफ सउदी अरब और ईरान समेत सभी देशों में मतैक्य जबकि वर्तमान स्थिति में इस्लाम के इन दोनों पंथों के आमने-सामने आ खड़ा होने का वास्तविक भय है। बहरहाल पश्चिम एशिया में भड़की ताजी लड़ाई का असर तेल के बाजार पर भी पड़ता दिख रहा है। सउदी हमले के साथ कच्चे तेल का भाव डेढ़ डॉलर प्रति बैरल चढ़ गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मौजूदा युद्ध चरमपंथ को नष्ट करने का अपना मकसद जल्द हासिल करते हुए यथाशीघ्र खत्म हो। यदि संघर्ष यमन में ही केंद्रित रहता है और फैलता नहीं है तो इसका आर्थिक प्रभाव ज्यादा नहीं होगा, लेकिन हमें महंगे तेल की मार तो झेलनी पड़ सकती ही है।

-अनिल नरेन्द्र

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