करीब
23 साल पहले दादरी के विधायक महेन्द्र
सिंह भाटी की हत्या के मामले में मंगलवार को देहरादून की सीबीआई अदालत ने यूपी के बाहुबली
और पूर्व सांसद डीपी यादव समेत चार को उम्रकैद की सजा सुनाई। गौरतलब है कि गाजियाबाद
के दादरी इलाके से विधायक रहे महेन्द्र सिंह भाटी की 13 सितम्बर
1992 में दादरी रेलवे कासिंग पर गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।
इस मामले में डीपी यादव सहित कुल सात के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया था जिसमें से
तीन लोगों की मौत हो चुकी है। नोएडा के गांव सरफाबाद में तेजपाल यादव के घर धर्मपाल
यादव का जन्म 25 जुलाई 1950 को हुआ। धर्मपाल
यादव ने शुरुआत में दूध बेचने का काम शुरू किया। 70 के दशक में
धीरे-धीरे वह शराब के धंधे में उतर गए। 80 के दशक में पश्चिमी उत्तर पदेश में गैंगवार शुरू हो चुकी थी। तब डीपी का नाम
भी अपराध की दुनिया में लिया जाने लगा। 1989 में मुलायम सिंह
यादव के साथ जुड़कर डीपी यादव ने राजनीति में अपनी जड़ें जमाईं। धर्मपाल यादव पश्चिमी
उत्तर पदेश के बाहुबली राजनेता हैं और उत्तर पदेश की एक आध ही पार्टी ऐसी रही होगी
जिसमें वह न रहे हों। डी पी यादव का बेटा विकास यादव चर्चित जेसिका लाल और नीतीश कटारा
हत्याकांड में आरोपी रहा है और फिलहाल जेल में है। डीपी यादव और महेन्द्र सिंह भाटी
किसी वक्त में एक साथ थे बल्कि भाटी ने ही यादव को राजनीति में पवेश दिलाया था। सन
1989 में केंद्र में विश्वनाथ पताप सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय
मोर्चा सरकार बनी थी और उस सरकार के गिरने के बाद जनता दल के कुछ टुकड़े हो गए थे,
उसी दौर में भाटी और यादव अलग-अलग पार्टियों में
चले गए थे और दोनों के बीच दुश्मनी हो गई जिसका नतीजा भाटी की हत्या के रूप में सामने
आया। किसी सनसनीखेज अपराध कथा की तरह दिखने वाला यह घटनाकम कोई अनोखा नहीं है,
देश के तमाम हिस्सों में इस तरह की घटनाएं आम हैं। कुछ इलाकों में अपराधीकरण
कम है, कुछ में बहुत ज्यादा। उत्तर पदेश और बिहार में ऐसे नेताओं
की संख्या सैकड़ों में है जो विधायक, सांसद या मंत्रीपद तक पहुंचे
हैं और जिनकी मूल पहचान अपराध से जुड़ी है। ऐसे लोग किसी एक पार्टी से नहीं जुड़ते
और न ही कोई भी पार्टी इनसे अछूती है। अपराधी अपना वर्चस्व बनाए रख सकें इसके लिए यह
पशासन और कानून व्यवस्था को लचर बनाए रखते हैं ताकि अपराधी अपना कारोबार बेखौफ कर सकें।
राजनीति का इतना अपराधिकरण हो चुका है कि पार्टियां भी सिर्फ सीट जीतने के लिए इन बाहुबलियों
का सहारा लेती हैं और सत्ता में आने के बाद यह अपनी कीमत वसूलते हैं। डीपी यादव जैसे
लोग उन तमाम पार्टियों का एक और चेहरा उजागर करते हैं जो लोकतंत्र में आई गिरावट का
सबूत है। दुर्भाग्य यह है कि भारतीय राजनीति की यह कड़वी तस्वीर बदलने की कोई उम्मीद
नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र
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