राज्यों के सांगठनिक ढांचे में बदलाव की शुरुआत के साथ
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की नई पार्टी करीब-करीब तय है। इस क्रम में कांग्रेस अब
बहुसंख्यक विरोधी अपनी छवि को सुधारने में जुटेगी। दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी
ने कांग्रेस इकाइयों से पार्टी को उभारने के लिए और फिर से जीत के रास्ते तलाशने के
लिए सुझाव मांगे थे। इसी राय-मशविरे में कई प्रदेश कांग्रेस इकाइयों
के यह विचार सामने आए कि पार्टी अल्पसंख्यकों की पैरोकार बनकर सामने आ रही है जबकि
बहुसंख्यक विरोधी छवि
से पार्टी को नुकसान हो रहा है। गुजरात इकाई की ओर से यह विचार भी सामने आया है कि
पार्टी गोधरा कांड के बाद उपजे गुजरात दंगों के पीड़ितों के दर्द पर मरहम लगाती सामने
आई, जबकि गोधरा कांड के विरोध में पार्टी की ओर से कभी आवाज बुलंद
नहीं की गई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटोनी ने कांग्रेस की हार के कारणों में
पार्टी का जरूरत से ज्यादा अल्पसंख्यक प्रेम माना है। पार्टी के एक राष्ट्रीय महासचिव
के मुताबिक इस सन्दर्भ में एंटनी और जनार्दन द्विवेदी दोनों चाहते थे कि पार्टी मध्य
वर्ग की तरफ बढ़े। बहुसंख्यकों में पार्टी के बन रहे मानस में संतुलन बिठाए एवं हिन्दुत्व
को लेकर सामंजस्य बिठाए। उधर राहुल गांधी के अचानक छुट्टी पर चले जाने से पार्टी में
उठे विवादों के बीच केरल कांग्रेस के एक नेता के बयान ने पार्टी में एक नया बखेड़ा
खड़ा कर दिया है। केरल कांग्रेस के उपाध्यक्ष और राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले
वीडी सतीशन ने गुरुवार को आरोप लगाया कि पार्टी में सीनियर नेताओं का एक बड़ा धड़ा
राहुल की छवि को खराब करने के लिए पर्दे के पीछे खेल कर रहा है। राहुल गांधी को ईमानदार
और गंभीर राजनेता बताते हुए सतीशन ने कहा कि कांग्रेस जब सत्ता में थी तो उन्होंने
कभी भी भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया। यही वजह है कि उन नेताओं के निशाने पर आ
गए, जिनके करप्शन भरे कामों और खराब आर्थिक नीतियों की वजह से
लोकसभा चुनाव में यूपीए को हार का मुंह देखना पड़ा। सतीशन ने कहा कि पार्टी के सीनियर
नेताओं का एक धड़ा जो लच्छेदार अंग्रेजी बोलता है और अपने इगो के लिए जाना जाता है, चुनावों
में हार के लिए जिम्मेदार है और अब वह पूरे सीन से भागने की कोशिश कर रहा है। सतीशन
ने इस पर भी सवाल किया कि जब भाजपा और आरएसएस सोशल मीडिया और दूसरे मंचों के जरिये
राहुल को घेरते हैं तो आखिर कुछ नेताओं (एके एंटोनी और दिग्विजय
सिंह) को छोड़कर सारे सीनियर नेता चुप्पी क्यों साध लेते हैं?
अब तक अपनी जीत के लिए नेहरू-गांधी परिवार पर ही
आश्रित रही कांग्रेस को अब नई जमीनी हकीकत से उसके ही कार्यकर्ताओं द्वारा रूबरू करवाने
की रिपोर्ट आई है। पार्टी के जिला स्तर तक के कार्यकर्ताओं में बहुमत का मानना है कि कांग्रेस को
अब सिर्प नेहरू-गांधी परिवार के वारिसों के भरोसे ही जनता का
समर्थन हासिल नहीं होगा। इसके लिए पार्टी को राज्यों और जिलों में भी अपने जुझारू नेताओं
को आगे लाकर तैयार करना होगा और केंद्र की भाजपा सरकार की विफलताओं को सड़क से संसद
तक पुरजोर तरीके से उठाना होगा। जिला स्तर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं की यह राय पिछले
दिनों पार्टी नेतृत्व द्वारा देश के करीब 450 जिलों के कार्यकर्ताओं
के बीच कराई गई रायशुमारी से निकलकर आई है। यह जानकारी देने वाले 10 जनपथ के करीबी एक पार्टी नेता का कहना है कि इसके बाद पार्टी नेतृत्व ने तय
किया है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी
और प्रियंका (अगर वह राजनीति में सक्रिय होती हैं तो)
के चेहरों के साथ-साथ अब राज्यों और जिलों में
अपना नेतृत्व विकसित करके भाजपा का मुकाबला करेगी। राहुल युग में प्रवेश कर रही कांग्रेस
की यही भावी रणनीति होगी। हाल ही में दिल्ली, महाराष्ट्र,
मुंबई, गुजरात, जम्मू-कश्मीर और तेलंगाना में युवा चेहरों को पार्टी की कमान सौंपना पार्टी नेतृत्व
की इसी रणनीति का संकेत है। जिलों में कराई गई रायशुमारी में सिर्प 12 फीसदी कार्यकर्ताओं ने कहा कि लोग सिर्प नेहरू-गांधी
परिवार के वारिसों के नाम पर वोट देंगे, जबकि 88 फीसदी की राय है कि पार्टी को भविष्य में वोट लेने के लिए अन्य मुद्दों पर
ध्यान केंद्रित करना होगा।
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