Saturday 14 March 2015

सबूतों के अभाव के चलते अब्दुल करीम टुंडा बरी

26/11 के हमले के बाद जारी की गई 20 प्रमुख आतंकवादियों की सूची में शामिल रहे अब्दुल करीम टुंडा को अदालत द्वारा आरोप मुक्त करना दिल्ली पुलिस और हमारी अन्य सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक करारा झटका है। आतंकी संगठन लश्कर--तैयबा के बम विशेषज्ञ टुंडा को पटियाला हाउस कोर्ट ने आतंकवादी और विघटनकारी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (टाडा) के एक मामले में बरी कर दिया है। हालांकि उसे अभी जेल में ही रहना पड़ेगा क्योंकि उसके खिलाफ कई मामले अदालत में विचाराधीन हैं। पुलिस की स्पेशल सेल ने 16 अगस्त 2013 को टुंडा को भारत-नेपाल सीमा से गिरफ्तार किया था। पुलिस का कहना था कि उन्होंने लश्कर--तैयबा के बम विशेषज्ञ को पकड़ा है लेकिन जब अदालत में साक्ष्य पेश करने की बारी आई तो जांच एजेंसी के हाथ में मुकदमा चलाने लायक साक्ष्य भी नहीं मिले। पटियाला हाउस स्थित एडिशनल सेशन जज नीना बंसल कृष्ण की अदालत ने पुलिस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि बचाव पक्ष के तर्प अभियोजन पक्ष की दलील पर भारी पड़ गए। ऐसा कोई सबूत ही नहीं है जिसके आधार पर अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ इस मामले में मुकदमा चलाया जा सके। पुलिस के सारे दावे कमजोर पड़ गए, जिसमें पुलिस ने उसे सिलसिलेवार बम धमाके की साजिश का मास्टर माइंड बताया था। दिल्ली पुलिस ने टुंडा के खिलाफ 33 मामले दर्ज किए थे। लेकिन अभी तक उसकी गिरफ्तारी सिर्प चार मामलों में की है। जिनमें से एक में वह आरोप मुक्त हो गया है जबकि तीन मामलों में आरोप पत्र पर बहस पूरी हो चुकी है। फैसला आना बाकी है। हैरत की बात यह है कि टुंडा की गिरफ्तारी के एक साल सात महीने बाद भी पुलिस ने उसे 29 मामलों में गिरफ्तार नहीं किया है। जिस प्रकार टुंडा जैसे खतरनाक आतंकी के खिलाफ भी पुलिस पर्याप्त साक्ष्य पेश नहीं कर सकी वह चिन्ता का विषय है। क्या इसी तरीके से हम आतंकवाद से लड़ेंगे? खानापूर्ति करने के लिए लगता है कि आतंकियों को गिरफ्तार तो कर लेते हैं पर उनके खिलाफ केस सही तरीके से तैयार करने में कोताही बरतते हैं। इसी का नतीजा होता है खूंखार आतंकियों की रिहाई। फिर इससे पुलिस की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है कि वह अपने काम के प्रति कितनी गंभीर है?

-अनिल नरेन्द्र

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