Tuesday, 3 March 2015

ऐतिहासिक सरकार पर चुनौतियां कम नहीं

जम्मू-कश्मीर में लम्बे इंतजार के बाद अंतत पीडीपी और भाजपा गठबंधन की सरकार बन गई है। इसे ऐतिहासिक पहल भी कहा जा सकता है। इस गठबंधन सरकार के बनने से दो महीने से जारी सियासी अनिश्चितता और अटकलबाजी पर पूर्ण विराम या अर्द्धविराम लग गया। पीडीपी के संरक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद को रविवार को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। वह भाजपा के साथ मिलकर बनाई गई गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। अलगाववाद से सक्रिय राजनीति में आए सज्जाद लोन ने भाजपा कोटे से कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली। सईद के बाद भाजपा के निर्मल सिंह ने शपथ ली। वह राज्य के उपमुख्यमंत्री होंगे। यह पहली बार है जब भाजपा जम्मू-कश्मीर में किसी सरकार का हिस्सा बनी है। यह कहा जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर में दो ध्रुवों की सरकार बनी है। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह को उद्धृत करते हुए कहाöजब विरोधाभास हो तो भी असंभव को संभव बनाने की कला राजनीति है। इससे पहले दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की संभावना पर सईद ने उत्तरी ध्रुव और दक्षिण ध्रुव का मिलना करार दिया था। यह ऐसे दो सियासी दलों का मिलन है जिनका राजनीतिक एजेंडा भी अलग है और विचारधारा भी। फिलहाल तो न केवल सूबे बल्कि पूरे मुल्क के लिए यह बड़ी राहत है कि विचारधारा अलग होने, राजनीतिक एजेंडा अलग होने के बावजूद दोनों पार्टियां गठबंधन के लिए रजामंद हुईं। देर-सबेर यह होना ही था, इसलिए कि जिस तरह का मैनडेट आया है उसमें 87 सीटों वाली विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। पीडीपी को कश्मीर क्षेत्र में 28 और भाजपा को जम्मू क्षेत्र में 25 सीटें मिली थीं। जम्मू-कश्मीर में तीन क्षेत्र हैंöघाटी, जम्मू और लद्दाख। हालांकि खंडित जनादेश के चलते एक राजनीतिक समीकरण यह भी हो सकता था कि पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस एक साथ आ जाते, लेकिन ऐसा जनादेश की मनमानी व्याख्या करके ही हो सकता था। उचित यही था कि पहले और दूसरे नम्बर की पार्टियां ही इकट्ठी होकर सरकार बनाएं। इससे तीनों क्षेत्रों को सरकार में हिस्सेदारी मिल गई है। चूंकि पीडीपी और भाजपा ने मिलजुल कर सरकार बनाने के पहले पूरे दो महीने विचार-विमर्श किया और एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम लेकर भी सामने आए हैं, इसलिए उम्मीद की जाती है कि वह अपने मतभेद भुलाकर जनाकांक्षाओं की पूर्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे। भाजपा ने अनुच्छेद 370 पर जोर न देना मान लिया है तो पीडीपी ने अफस्पा पर अपने सुर को नरम रखा। फिर भी बहुत से सवाल पहले के भी बचते हैं और कुछेक शासन के दौरान भी उभर कर आएंगे। मसलन कश्मीरी पंडितों की वापसी सुनिश्चित करना, सीमा पार से आने वाले शरणार्थियों व उनके पुनर्वास, अलगाववाद व उसकी समर्थक हुर्रियत कांफ्रेंस, आतंकवाद और उसके खिलाफ कार्रवाई की वास्तविक कमान, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के बीच विकास के खाके व संसाधनों के आवंटन आदि को लेकर रस्साकशी की आशंका शायद ही खत्म हो। इसलिए दोनों दलों के नेता सही ही साफ कर रहे हैं कि इसे राजनीतिक साझेदारी नहीं बल्कि शासन का गठबंधन देखना ठीक होगा। देखना यह भी होगा कि पीडीपी अपनी पुरानी हरकतों से इस बार बचती है या नहीं? क्योंकि शपथ लेते ही मुफ्ती का पहला संदेश भाजपा के लिए चिन्ता का सबब बन गया। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने शपथ लेने के तुरन्त बाद प्रेस कांफ्रेंस में चुनाव होने देने के लिए हुर्रियत और पाकिस्तान की कारगुजारी को नजरअंदाज करते हुए उनके प्रति आभार जता दिया जबकि सारी दुनिया जानती है कि इन दोनों ने निष्पक्ष व स्वतंत्र चुनाव रोकने की हर संभव कोशिश की। भाजपा के सरकार में आने से उम्मीद की जाती है कि वह पीडीपी पर नियंत्रण रखेगी। मुफ्ती का यह बयान हर लिहाज से विचित्र और राष्ट्रीय हितों के लिए खतरा बने तत्वों को बल प्रदान करने वाला है। बेशक भाजपा ने इससे अपनी असहमति जताई है लेकिन इससे यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि उसके सामने कैसी-कैसी मुश्किलें पेश आने वाली हैं। दोनों पीडीपी और भाजपा को एक सफल, स्वच्छ और जनता के हितों के लिए काम करने वाली सरकार चलाने की चुनौती है।

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