Saturday 18 July 2020

महिला कांस्टेबल से दुर्व्यवहार में मंत्री का बेटा गिरफ्तार

गुजरात के सूरत में महिला कांस्टेबल से दुर्व्यवहार के आरोप में मंत्री के बेटे को गिरफ्तार कर लिया। सूरत में कर्फ्यू का उल्लंघन करने के मामले में स्वास्थ्य राज्यमंत्री किशोर कानाणी के पुत्र प्रकाश सहित सात युवकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। पुलिस ने प्रकाश सहित तीन को रविवार को गिरफ्तार किया। इस घटना के बाद सूरत व अन्य शहरों में लोग वी सपोर्ट सुनीता यादव के बैनर लेकर सड़कों पर उतर पड़े। इससे पहले मंत्री ने अपने पुत्र का बचाव करते हुए कहा कि उनके खिलाफ राजनीति के तहत साजिश की जा रही है। उनके मुताबिक वह सौराष्ट्र में मजबूत हैं और आगामी स्थानीय निकाय चुनाव को देखते हुए विरोधी उनको कमजोर करना चाहते हैं। उनके पुत्र ने भी महिला कांस्टेबल पर गाली-गलौज करने व वर्दी का रौब दिखाने का आरोप लगाया था। सोशल मीडिया में वायरल ऑडियो को एडिट कर चलाने का भी उनका आरोप है। कांस्टेबल सुनीता यादव शनिवार को इस्तीफा देने के बाद से भूमिगत है। यह घटना गत आठ जुलाई रात की बताई जा रही है। प्रकाश ने महिला कांस्टेबल की बात अपने मंत्री पिता से भी कराई, लेकिन सुनीता यादव नहीं मानी। सूरत में कोरोना संक्रमित के बढ़ते मामलों के चलते प्रशासन व पुलिस रात्रि कर्फ्यू से लेकर हीरा व टेक्सटाइल बाजार बंद कराने जैसे सख्त कदम उठ रही है। ऐसे में मंत्री के बेटे बिना मास्क घूमते पकड़े गए और दोस्तों को छुड़ाने पहुंच गए। इन युवकों ने महिला कांस्टेबल के साथ दुर्व्यवहार किया। मंत्री के बेटे प्रकाश कानाणी भी एमएलए गुजरात लिखी कार लेकर पहुंचे और कांस्टेबल के साथ कहासुनी हुई। गौरतलब है कि घटना के दौरान सुनीता ने पुलिस निरीक्षक बीएन सागर को इसकी जानकारी दी तो उन्होंने कहा कि उनका काम वहां डायमंड व टेक्सटाइल फैक्ट्री नहीं चलने देने का है। प्वाइंट पर किसी को रोकने का नहीं। सुनीता यादव ने इस पर अपना इस्तीफा दे दिया। -अनिल नरेन्द्र

अगले महीने मिल जाएगी कोरोना वैक्सीन

रूस की जिस यूनिवर्सिटी ने सबसे पहले दावा किया था कि उसने कोरोना वैक्सीन बना ली है। वह अगस्त इसी साल यानि अगले महीने तक मरीजों को वैक्सीन उपलब्ध कराने की तैयारी में है। स्मॉल स्केल पर हुए ह्यूमन ट्रायल में यह वैक्सीन इंसानों के लिए सेफ पाई गई है। मॉस्को की सेचेनोव यूनिवर्सिटी ने 38 वॉलंटियर्स पर क्लिनिकल ट्रायल पूरा किया था। रूस की सेना में भी पैरलल सारे ट्रायल दो महीने में सरकारी गमलेई नेशनल रिसर्च सेंटर में पूरे किए। गमलेई सेंटर के हैड अलेक्जेंडर जिंट्सबर्ग ने बताया कि उन्हें उम्मीद है कि वैक्सीन 12 से 14 अगस्त के बीच सिविल सर्कुलेशन में आ जाएगी। अलेक्जेंडर के मुताबिक प्राइवेट कंपनियां सितम्बर से वैक्सीन का बड़े पैमाने पर प्रॉडक्शन शुरू कर देंगी। गमलेई सेंटर हैड के मुताबिक वैक्सीन ह्यूमन ट्रायल में पूरी तरह सेफ साबित हुई है। अगस्त में जब मरीजों को वैक्सीन दी जाएगी तो यह उसके फेज-3 ट्रायल जैसा होगा क्योंकि जिन्हें डोज मिलेगी, उनकी मॉनिटरिंग की जाएगी। फेज-1 और 2 में आमतौर पर किसी वैक्सीन/दवा की सेफ्टी जांच होती है। इंस्टीट्यूट ने 18 जून से ट्रायल शुरू किया था। नौ वॉलंटियर्स को एक डोज दी गई और दूसरे नौ वॉलंटियर्स के ग्रुप को बूस्टर डोज मिली। किसी वॉलंटियर पर वैक्सीन के साइड इफैक्ट देखने को नहीं मिले और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। सेचेनोव यूनिवर्सिटी में वॉलंटियर्स के दो ग्रुप को अगले हफ्ते डिस्चार्ज किया जाएगा। उन्हें 23 जून को डोज दी गई थी। अब यह सभी 28 दिन तक आइसोलेशन में रहेंगे ताकि किसी और को इंफैक्शन न हो। 18 से 65 साल के इन वॉलंटियरों को छह महीने तक मॉनिटर किया जाएगा। रूस आम जनता को वैक्सीन देने की तैयारी में इसलिए है क्योंकि वह कोरोना वैक्सीन टेस्टिंग की रेस में सबसे आगे निकलना चाहता है। अमेरिका, ब्राजील और भारत के बाद से सबसे ज्यादा केस वहीं पर हैं। रूसी सरकार पहले कह चुकी है कि 50 से ज्यादा अलग-अलग वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। उनके वैज्ञानिकों ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वैक्सीन डेवलप करना राष्ट्रीय सम्मान का सवाल है। अलेक्जेंडर जिंट्सबर्ग का दावा है कि यह वैक्सीन अगले दो साल तक कोरोना से बचाएगी।

विदेशी छात्रों के वीजा पर ट्रंप का यूटर्न

ट्रंप प्रशासन ने हैरानी भरा कदम उठाते हुए अपना वह आदेश वापस ले लिया जिसमें कहा गया था कि भारतीयों समेत हजारों छात्रों को उनके देश वापस भेजा जाएगा। उन छात्रों को वापस भेजा जाना था जिनकी यूनिवर्सिटी कोरोना की वजह से सिर्फ ऑनलाइन क्लास देगी। ट्रंप सरकार को इस फैसले पर यूटर्न लेना पड़ा है। फैसले को देश के 17 राज्यों समेत गूगल, फेसबुक जैसी कई टेक कंपनियों तथा हार्वर्ड व एमआईटी विश्वविद्यालयों ने अदालत में चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि नए दिशानिर्देशों से कई तरह की कानूनी अड़चनें पैदा होंगी। वित्तीय नुकसान भी होगा। अमेरिका की संघीय अदालत के एक जज ने जब इस बारे में पूछा तब ट्रंप प्रशासन ने अपने छह जुलाई के नियम को रद्द करने पर सहमति जताई। देशभर में आक्रोश था और शैक्षणिक संस्थानों ने इसका खुलकर विरोध किया था। अब ट्रंप प्रशासन के उस आदेश को पलटने के बाद छात्रों ने राहत की सांस ली। जज एलिसन बरो (बोस्टन संघीय जिला न्यायाधीश) ने मुकदमे की सुनवाई के दौरान कहाöमुझे सूचित किया गया है कि प्रशासन इस संबंध में पुरानी स्थिति में लौट आएगा। मार्च में लागू की गई नीति को दोबारा लागू कर दिया गया है। विदेशी छात्र ऑनलाइन क्लास लेते हुए भी छात्र वीजा पर अमेरिका रह सकते हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन के मुताबिक 2018-19 के शैक्षणिक वर्ष के लिए अमेरिका में 10 लाख विदेशी छात्र थे। विदेशी छात्रों ने साल 2018 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 44.7 अरब डॉलर का योगदान दिया था। हार्वर्ड के अध्यक्ष लॉरेंस एस बैकॉ ने इसे ऐतिहासिक जीत करार दिया है। उन्होंने कहाöसरकार एक नया निर्देश जारी कर सकती है। हमारी कानूनी दलीलें मजबूत हैं और कोर्ट ने उसे बरकरार रखा है, जो हमें न्यायिक राहत दिलाएगी। यह घोषणा हजारों विदेशी छात्रों के लिए राहत लेकर आई है। इनमें हजारों भारतीय छात्र भी शामिल हैं। सांसद ब्रैड श्नाइडर ने कहा कि यह अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और कॉलेजों के लिए बड़ी जीत है।

Thursday 16 July 2020

ताहिर हुसैन ने दंगाइयों को मानव हथियार बना लिया

आम आदमी पार्टी के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन को जमानत देने से इंकार करते हुए सोमवार को दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या के मामले में जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि ताहिर हुसैन प्रभावशाली व्यक्ति हैं। अदालत ने कहा कि निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन ने कथित तौर पर दंगाइयों का इस्तेमाल मानव हथियार के रूप में किया जो उसके उकसाने पर किसी की भी हत्या कर सकते थे। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा कि हुसैन जैसे ताकतवर लोग जमानत पर छूटने पर मामले में गवाहों को धमका सकते हैं। उन्होंने कहा, इस स्तर पर मुझे लगता है कि इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं कि आवेदक अपराध स्थल पर मौजूद था और एक समुदाय विशेष के दंगाइयों को निर्देशित कर रहा था। उसने अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि मानव हथियार के तौर पर दंगाइयों का इस्तेमाल किया जो उसके उकसाने पर किसी की भी जान ले सकते थे। जज ने कहा, इस मामले में जिन गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं, वे उसी इलाके के निवासी हैं और आवेदक (हुसैन) जैसे ताकतवर लोग उन्हें आसानी से धमका सकते हैं। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि आदेश में जो भी कहा गया है वह इस स्तर पर ऑन रिकार्ड उपलब्ध सामग्रियों के प्रारंभिक विश्लेषण पर आधारित है जिसकी मुकदमे की कसौटी पर परख अभी होनी है। दिल्ली पुलिस ने मामले में अपने आरोप पत्र में आरोप लगाया था कि अंकित शर्मा की हत्या के पीछे गहरी साजिश की गई और ताहिर हुसैन की अगुवाई में भीड़ ने उन्हें ही खासतौर पर निशाना बनाया। मामले में आरोपी ताहिर हुसैन के वकील जावेद अली ने अपने मुवक्किल को जमानत देने की पैरवी करते हुए कहा कि उनके मुवक्किल के अंकित शर्मा की हत्या में शामिल होने को लेकर पुलिस के पास कोई ठोस सुबूत नहीं है। दूसरा पुलिस जानबूझकर गवाहों के बयान दर्ज करने में देरी कर रही है। तीसरा उनका मुवक्किल मौका-ए-वारदात पर मौजूद नहीं था। -अनिल नरेन्द्र

रोम जल रहा है और नीरो चैन की नींद सो रहे हैं

पहले कर्नाटक में सरकार गई, फिर मध्यप्रदेश में। अब राजस्थान सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। छत्तीसगढ़ का किला भी बहुत सुरक्षित नहीं है। आखिर क्या वजह है कि सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस किसी भी राज्य में एक-दो वर्ष से ज्यादा सत्ता में बने रहने में विफल साबित हो रही है? हर जगह उनके अपने विधायकों की बगावत ही उसके लिए संकट का सबब बन रही है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस मे अब कोई संकटमोचक नहीं बना है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया अपने घर तक ही सीमित होकर रह गई हैं। राहुल गांधी सिर्फ ट्विटर पर सक्रीय हैं। कमोबेश यही स्थिति प्रियंका की भी है। इन तीनों के अलावा पार्टी में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो संकट की घड़ी में राह निकाल सके। अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे नेताओं के मुकाबले संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल कहीं जूनियर हैं और उनकी आवाज नक्कार खाने में तूती के समान है। अधिकतर वरिष्ठ नेताओं को पहले ही किनारे लगा दिया गया है। यही वजह है कि एक के बाद एक कांग्रेस के किले ध्वस्त होते जा रहे हैं और गांधी परिवार सिर्फ मूकदर्शक बनने पर विवश है। इसके चलते जहां कांग्रेस कई राज्यों में आई सत्ता खो चुकी है, वहीं दूसरी ओर इनके चलते कई जगह सत्ता में आते-आते रह गई। लेकिन कांग्रेस सबक सीखने को तैयार नहीं है। हालिया तस्वीर राजस्थान की है। जहां कांग्रेस सरकार पर खतरा मंडरा रहा है, अशोक गहलोत की कुर्सी हिलती दिख रही है। शुक्रवार तक कांग्रेस जहां प्रदेश में अस्थिरता के लिए बीजेपी को दोषी ठहरा रही थी, वहीं शनिवार की शाम बीतते-बीतते तस्वीर बदलने लगी और पार्टी का एक धड़ा असंतोष होकर वैसे ही रूठा दिखाई देने लगा, जैसे चार महीने पहले मध्य प्रदेश में तस्वीर सामने आई थी। वहां डिप्टी सीएम व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट नाराज बताए जा रहे हैं। भले ही कांग्रेस अपने यहां अस्थिरता के लिए बीजेपी को दोषी करार देती आई हो, लेकिन सच्चाई यह है कि कांग्रेस का नेतृत्व अपने यहां की वर्चस्व की लड़ाई और गुटबाजी पर काबू पाने में नाकाम दिख रही है। राजस्थान में सीएम और डिप्टी सीएम के बीच आपसी गुटबाजी व मनमुटाव कोई नई चीज नहीं है। पायलट के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद से ही दोनों के बीच पावर की जंग और अपने वर्चस्व की लड़ाई रही है। भले ही असेंबली चुनाव के दौरान ही पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के चलते दोनों नेताओं ने आपसी मतभेद भुलाकर, मिलकर काम करने की बात कही हो, लेकिन हकीकत यही रही कि दोनों के बीच दूरियां कभी कम नहीं हुई। राज्य में होने वाले स्थानीय निकायों के चुनाव के मद्देनजर भी पायलट को लग रहा है कि पार्टी अध्यक्ष होने के बावजूद फैसले कहीं और से हेंगे। वहां पार्टी समझ रही है कि पायलट मेहनती और महत्वाकांक्षी हैं। यह भी अफवाह है कि सारा झगड़ा पायलट को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की मुहिम से शुरू हुआ। रोम जल रहा है और नीरो चैन की नींद सो रहे हैं।

मरने से पहले विकास ने सारे राज उगल दिए

दैनिक जागरण और राष्ट्रीय सहारा में छपी खबर के अनुसार आठ पुलिस कर्मियों के हत्यारे और पांच लाख के ईनामी विकास दुबे को एसटीएफ ने भले ही मुठभेड़ में मार गिराया हो, लेकिन मरने के पूर्व उज्जैन से कानपुर के रास्ते में विकास दुबे ने अपने सहयोगियों के नाम एसटीएफ को बता दिए थे। किससे उसका व्यापारिक संबंध था, कौन अधिकारी उसकी मदद करता था और कौन-कौन नेता उसकी राजनीतिक गलियों में पहुंच बनाते थे। विकास ने उन सभी के नाम एसटीएफ को मरने से पहले बता दिए थे। विकास के एनकाउंटर के बाद उसके मददगारों ने सोचा कि अब तो उनके सारे राज दफन हो गए हैं और विकास की कहानी खत्म हो गई है। पर उन्हें यह मालूम नहीं था कि एसटीएफ ने उसके एनकाउंटर से पहले सारे राज उगलवा लिए थे। एसटीएफ ने उसके बयानों की वीडियोग्राफी कराकर सीडी शासन को सौंप दी है। विकास के पूरे नेटवर्क को नेस्तनाबूद करने को कटिबद्ध शासन के निर्देश पर अब जांच एजेंसियां विकास द्वारा बताए गए लोगों पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है। उल्लेखनीय है कि दुर्दान्त विकास को उज्जैन पुलिस ने 9 जुलाई की सुबह महाकाल मंदिर से गिरफ्तार किया था। विकास को कानपुर शहर लाने के लिए एसटीएफ सीओ तेज बहादुर सिंह के नेतृत्व में एसटीएफ के पचास कमांडो और मामले के विवेचक इंस्पेक्टर नवाब गंज पचौरी पांच पुलिस कर्मियों के साथ उज्जैन गए थे। एसटीएफ और पुलिस विकास को सड़क के रास्ते शहर ला रही थी। कई घंटे के लंबे सफर में एसटीएफ ने विकास दुबे से पूछताछ शुरू की थी। एसटीएफ सूत्रों के मुताबिक विकास से करीब पचास से ज्यादा प्रश्न पूछे गए थे, उसमें कुछ प्रश्न घटना से संबंधित, कुछ उसके साथियों से और कुछ उसके सहयोगियों से संबंधित थे। एसटीएफ सूत्रों के अनुसार विकास ने अपने सहयोगियों में सबसे पहले चार बड़े कारोबारियों के नाम लिए। यह कारोबारी ऊंची पहुंच रखने वाले हैं। विकास की उनके साथ पार्टनरशिप है। विकास जयराम के जरिए होने वाली कमाई को इन चार बड़े कारोबारियों के धंधे में लगाता था। जिसका एक बंधा हिस्सा उसे हर माह कारोबारियों द्वारा पहुंचा दिया जाता था। इसके अलावा यह चारों कारोबारी अन्य मामलों में भी विकास की मदद करते थे। इसके बाद विकास ने पांच उच्च पदें पर तैनात पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से दोस्ती होने की बात बताई। विकास ने बताया कि वह इन अधिकारियों के जरिए उस पर पड़ने वाले पुलिस के दबाव को खत्म कराने, अपने खिलाफ हुई शिकायत को दबाने के साथ ही अपने चेहते लोगों की ट्रांसफर पोस्टिंग का काम भी करता था। उसने कुछ माह पूर्व एक अधिकारी (का नाम भी बताया) के जरिए एक थानेदार और चार चौकी प्रभारियें की तैनाती बताई थी। देखना अब यह है कि विकास दुबे द्वारा लिए गए नामों पर क्या एक्शन होता है? क्या शासन उनके नाम सार्वजनिक करेगा? या मामले को ऐसे हर मामलों की तरह दबा देगा?

Saturday 11 July 2020

अमेरिका का अजीबोगरीब फैसला

कोरोना संकट के बीच अमेरिकी सरकार का एक अजीबोगरीब फैसला समझ नहीं आया। अमेरिका के इमिग्रेशन और कस्टम इनफोर्समेंट डिपार्टमेंट ने आदेश में कहा था कि ऐसे विश्वविद्यालय जहां कोविडकाल में ऑनलाइन क्लास चल रही हैं वहां के विदेशी स्टूडेंट्स को देश छोड़ना होगा। दो तरह के वीजाöनॉन इमिग्रेंट एफ-1 और एच-1 वाले स्टूडेंट्स को अमेरिका में आने की अनुमति नहीं होगी। इनका अगले सेमेस्टर के लिए वीजा जारी नहीं किया जाएगा। बता दें कि अमेरिका में लगभग 30 प्रतिशत यूनिवर्सिटी ऑनलाइन कोर्स चला रही हैं। अमेरिकी सरकार के फैसले के खिलाफ वहां की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ने आवाज उठा दी है। अमेरिका की दो टॉप यूनिवर्सिटी हॉवर्ड और एमआईटी ने इस फैसले पर घोर आपत्ति जताते हुए इस पर दोबारा विचार करने की मांग की है। दोनों यूनिवर्सिटी ने कहा है कि अचानक लिए गए फैसले से वहां रह रहे स्टूडेंट्स को काफी परेशानी हो सकती है और यह स्टूडेंट्स के हित के लिए नहीं है। हॉवर्ड क्रिमसन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दोनों प्रतिष्ठित संस्थानों ने यह नियम बनाने वाले आब्रजन अधिकारियों और गृह सुरक्षा विभाग को कोर्ट में घसीटा है। हॉवर्ड क्रिमसन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दोनों प्रतिष्ठित संस्थानों ने बुधवार को बोस्टन जिला अदालत में दोनों संघीय एजेंसियों के खिलाफ मुकदमा किया। इसमें कहा गया है कि गृह सुरक्षा विभाग और आब्रजन विभाग को सीधे संघीय दिशानिर्देश को लागू करने से रोका जाए जिसमें विदेशी छात्रों को अमेरिका छोड़कर जाने को कहा जा रहा है। कोर्ट से इसके लिए अस्थायी आदेश जारी करने की मांग की। इसमें कहा गया कि निर्णय प्रशासनिक प्रक्रिया कानून का उल्लंघन है। यह इससे होने वाली मुश्किलों की समीक्षा किए बिना ही जारी कर दिया गया। यह किसी सूरत में तर्कसंगत नहीं है। हॉवर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष लारेंस बैको ने कहाöसिर्फ सभी संबद्धों को ई-मेल के जरिये यह आदेश पारित कर दिया गया। इसका न कोई नोटिस दिया गया और न किसी से चर्चा ही की गई। यह लापरवाही में लिया गया फैसला है और लगता है कि आदेश गलत जननीति है। हम इसे गैर-कानूनी मानते हैं। ध्यान रहे, यह विदेशी स्टूडेंट्स कुल अमेरिकी छात्रों का 5.5 प्रतिशत है और साल 2019 में इन्होंने अमेरिकी विश्वविद्यालयों में 41 अरब डॉलर तो सिर्फ फीस भरी थी। यह भी विचित्र है कि वीजा नियमों में ऐसे फेरबदल की खबरें कहीं और से नहीं आ रहीं जबकि कोरोना काल में लगभग सभी देशों के विश्वविद्यालय ऑनलाइन पढ़ाई ही करा रहे हैं। बहरहाल अमेरिकी विश्वविद्यालयों को इस मसले पर पहल करते हुए सरकार से बातचीत करने की कोई राह निकालनी चाहिए, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था का सबसे बड़ा फायदा भी वही ले रहे हैं। वैध तरीके से वहां रहने वाले लोगों के सामने अचानक ही देश से बाहर निकलने के हालात पैदा कर देना किस तरह महामारी से बचाव की लड़ाई है? -अनिल नरेन्द्र

कोरोना के पांच रहस्य छह महीने बाद भी बरकरार

दुनियाभर में छह महीने के अंदर एक करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं तथा पांच लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन कोविड-19 के पांच रहस्यों से वैज्ञानिक आज भी पर्दा नहीं उठा सके हैं। साइंस जर्नल नेचर ने दुनिया के वैज्ञानिकों के हवाले से एक शोध रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें कोविड के पांच तिलिस्मों का जिक्र है। रिपोर्ट कहती है कि जब तक इन पांच सवालों के जवाब नहीं मिलते, महामारी काबू नहीं आ सकती। पहला सवाल यह है कि वायरस के विरुद्ध शरीर की प्रतिक्रिया अलग क्यों है? बीमार और बूढ़ों को छोड़ भी दें तो यह स्पष्ट हो चुका है कि एक उम्र समान शारीरिक क्षमता के दो लोगों को वायरस संक्रमित करे तो दोनों पर प्रभाव अलग-अलग होता है। ऐसा क्या होता है, यह आज भी पता नहीं है। वैज्ञानिकों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने इटली एवं स्पेन के 4000 लोगों के जीनोम का अध्ययन करने के बाद कहा है कि जिन लोगों पर वायरस का गंभीर प्रभाव हुआ, उनमें एक या दो अतिरिक्त जीन हो सकते हैं। दूसरा सवालöसंक्रमित होने के बाद कोरोना के खिलाफ कब तक प्रतिरोधक क्षमता बनी रहेगी। अन्य कोरोना वायरस के मामले में यह कुछ महीनों तक ही पाई गई। इसलिए कोविड-19 के बाद संक्रमितों में उत्पन्न एंटीबॉडीज पर अध्ययन करके यह जानने की कोशिश की जा रही है कि वह कितने समय तक बीमारी से प्रतिरक्षा कर सकते हैं। तीसराöदुनिया के किसी हिस्से में वायरस ज्यादा घातक और किसी हिस्से में कम घातक क्यों है। वायरस में बदलावों को लेकर अध्ययन हुए हैं जो छोटे बदलावों का संकेत तो करते हैं लेकिन वायरस की कार्यप्रणाली कैसे बदल रही है इसका पता नहीं चला। चौथाöदुनिया में टीके के 250 प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिनमें 20 मानव परीक्षण के स्तर पर पहुंचे हैं, लेकिन इन टीकों के पशुओं पर परीक्षणों एवं मानव पर शुरुआती परीक्षणों से यही नतीजा निकलता है कि यह फेफड़ों को संक्रमण से बचाने में कारगर है। निमोनिया नहीं होगा, लेकिन संक्रमण टीके से नहीं रुकेगा। सबसे पहले ऑक्सफोर्ड का टीका आ सकता है, सिर्फ वह फेफड़ों का संक्रमण बचा सकता है। पांचवांöअनुत्तरित सवाल है कि वायरस आखिर आया कहां से? अभी तक यही मानते हैं कि यह चमगादड़ से आया, क्योंकि यह कोरोना वायरस आरएटीजी 13 चमगादड़ से आया। कोविड-19 और आरएटीजी की जीनोम संरचना 96 प्रतिशत मिलती है। लेकिन यह चमगादड़ से सीधे इंसान में पहुंचा है तो वायरस के जीनोम में चार प्रतिशत का अंतर नहीं हो सकता। चार प्रतिशत बदलाव में वक्त लगता है। इसलिए चमगादड़ से यह किसी दूसरे जानवर में गया और वहां से इंसान में आया।

Wednesday 8 July 2020

3 महीने से एक दिन छुट्टी नहीं की, बच्चों से अलग रखा

घर, थाने और कंटेनमेंट जोन। कोरोना के संक्रमण के डर से दिल्ली पुलिस की कांस्टेबल नीलिमा सिंह का न हौंसला कम हुआ, न फर्ज से मुंह मोड़ा। घर पहुंचने पर तीन महीने से अपने बच्चों को भी नजदीक नहीं आने दिया। कोरोना संकट के दौरान थाने में स्टाफ की कमी होने पर भी उन्होंने लंबी ड्यूटी दी। जी हां, कोरोना वॉरियर नीलिमा सिंह अब भी बिना छुट्टी लिए महेंद्रा पार्क थाने में ड्यूटी पर तैनात हैं। थाने में भी संक्रमण आ चुका है। चार-पांच पुलिस कर्मी चपेट में आए। फिर भी वह ड्यूटी पर डटी रहीं। 34 साल की नीलिमा सिंह मूल रूप से यूपी के देवरिया जिले से हैं। पिता मदन सिंह दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल थे। 1999 में होली के दिन सड़क हादसे में उनका निधन हो गया। परिवार बिखर गया। उनकी जगह पर कमान संभाली नीलिमा की मां शीला ने। वह इन दिनों ईओडब्ल्यू सेल में तैनात है। एक भाई और तीन बहनों में नीलिमा अकेली दिल्ली पुलिस में हैं। गांव में पढ़ी-लिखी। बाद में अपने दमखम पर 2006 में दिल्ली पुलिस ज्वाइन की। परिवार में पति के अलावा 10 साल का बेटा आयुष्मान, बिटिया छह साल की अराधना सिंह और बुजुर्ग सास-ससुर हैं। नीलिमा सिंह डीसीपी विजयता आर्य को रोल मॉडल मानती हैं। वह महेंद्रा पार्क थाने में 2017 से तैनात हैं। नीलिमा सिंह बताती हैं कि ड्यूटी के दौरान ऐसा डर कभी नहीं लगा जो कोरोना संक्रमण के दौरान है। खासकर तब, जब हर तरफ कोरोना से मरने और संक्रमित होने के आंकड़े हर रोज न्यूज में देखने को मिले। थाने में पब्लिक डीलिंग के लिए हेल्प डेस्क पर ड्यूटी है। कंप्लेंट, कॉल या कंटेनमेंट जोन में जाने के लिए पब्लिक डीलिंग के साथ अस्पताल आना-जाना रहता है। वह समय काफी डराता था क्योंकि वहां हर तरफ कोरोना संक्रमित दिखाई देते थे। अकसर कोरोना पॉजिटिव लेडी को घर से अस्पताल ले जाने के लिए स्पॉट पर जाना पड़ता है। थाने आने वाले ज्यादातर कंटेनमेंट जोन और उसके आसपास के एरिया से हैं। खुद को सैनेटाइज करती हूं। बच्चे सेफ रहें इसलिए तीन महीने से बच्चों से दूर अपने को रखा है। हम नीलिमा सिंह के जज्बात को सलाम करते हैं। ऐसे पुलिस कर्मियों पर हमें नाज है। -अनिल नरेन्द्र

150 देशों से मौलाना साद की होती थी फंडिंग

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि टूरिस्ट वीजा पर आकर तबलीगी गतिविधियों में हिस्सा लेने वाले विदेशी जमातियों ने वीजा मैनुअल और अन्य कानूनों का उल्लंघन किया है। सरकार ने अलग-अलग आदेश जारी कर 2679 विदेशी जमातियों के वीजा रद्द किए हैं और 2765 को ब्लैकलिस्ट किया है। इनके खिलाफ कुल 205 एफआईआर दर्ज हैं। सरकार ने कहा कि अभी भी कई विदेशी जमाती लापता हैं। 1905 के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया गया है। 227 जमाती लुकआउट नोटिस जारी होने से पहले भारत छोड़ चुके थे। सरकार ने यह भी कहा कि कानून उल्लंघन करने पर विदेशी जमातियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई लंबित है और इसके पूरी होने के बाद उन्हें वापस भेजा जाएगा। वहीं दूसरी ओर निजामुद्दीन स्थित तबलीगी मरकज के मुखिया मौलाना मोहम्मद साद की बेनामी सम्पत्ति दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश तक फैली हुई है। इस सम्पत्ति को साद ने विदेशी फंडिंग से जुटाया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और क्राइम ब्रांच की जांच में इसके सुबूत मिले हैं। यही नहीं, जांच एजेंसियों को यह भी पता चला है कि मौलाना साद को करीब 150 देशों से फंडिंग की जा रही थी। सूत्रों के मुताबिक मरकज मामले के बाद दंगे के आरोपित से भी मौलाना साद के तार जुड़ने पर जांच एजेंसियों ने उनकी पूरी कुंडली खंगाल ली है। इसी कड़ी में ईडी ने साद के खातों की भी जांच की है। इसमें अब तक करीब 10 साल के दस्तावेजों की जांच की गई है। जांच के दौरान यह भी पता किया गया है कि साद को कौन-कौन से देशों से फंडिंग की जा रही थी। सूत्रों के मुताबिक अब तक 150 देशों के नागरिकों के नाम सामने आए हैं, जो धार्मिक आयोजन के नाम पर फंडिंग कर रहे थे। यही वजह है कि साद ने कुछ ही वर्षों में अकूत सम्पत्ति अर्जित कर ली। साद द्वारा जांच एजेंसियों के सवालों के आधे-अधूरे जवाब दिए गए थे। इस पर जांच एजेंसियों ने अपने स्तर पर उसकी पूरी कुंडली खंगालने की योजना बनाई। इसके बाद उससे तमाम लोगों से पूछताछ करने के साथ ही बैंक खातों का पता लगाकर दस्तावेजों को खंगाला गया। जांच एजेंसियों को अब गृह मंत्रालय से उसकी गिरफ्तारी के लिए हरी झंडी मिलने का इंतजार है। गिरफ्तारी के बाद उक्त सम्पत्तियों को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। गृह मंत्रालय की सख्त हिदायत की वजह से ही जांच एजेंसियां मौलाना साद से जुड़े हर मामले में गोपनीयता बरत रही हैं।

हिटलर की तरह चीन भी कई मोर्चे खोलने में लगा है

भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पांच मई से जारी गतिरोध अब भी बरकरार है। हालांकि अब तक भारत-चीन कमांडर स्तर पर तीन दौर की वार्ता सम्पन्न हो चुकी है। यह वार्ता पूर्वी लद्दाख में विभिन्न स्थानों पर चीन के अतिक्रमण पर हटने के तौर-तरीकों को तय करने के उद्देश्य को लेकर आयोजित की गई थी। तीसरे दौर की वार्ता में टकराव वाले स्थानों से सेना घटाने के मुद्दे पर कुछ शर्तें तय की गई थीं। भारत से 14 कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरमिंदर सिंह, जबकि चीन की तरफ से तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट मेजर जनरल लियुलिन शामिल हुए। चीन-भारत के बीच सहमति बनने के बाद भी पैंगोंग त्सो से पीछे नहीं हटा चीन। यही नहीं कई और स्थानों पर उसने अपनी सेनाएं और आगे बढ़ा लीं, पक्के निर्माण करने में लगा हुआ है। उपग्रह की तस्वीरों ने चीन की पोल खोल दी है। तस्वीरों में यह बात भी साफ होती है कि छह जून को बनी सहमति के बाद भी वह एलएसी पर निर्माण करता रहा है। सैटेलाइट कंपनी मैक्सर टेक्नोलॉजी द्वारा जारी तस्वीरों से स्पष्ट है कि चीन द्वारा गलवान घाटी के निकट उस क्षेत्र में लगातार निर्माण किए जा रहे हैं, जिस पर भारत का दावा है। यह निर्माण 22 मई के बाद तेजी से किए गए। इस बीच छह जून को दोनों देशों के बीच पूर्व की स्थिति में लौटने पर सहमति बनी, लेकिन इसके बावजूद गलवान घाटी में चीन का निर्माण जारी रहा। मैक्सर की तरफ से 23 जून को जो तस्वीरें जारी की गई हैं, उनमें गलवान नदी के तट पर बड़े पैमाने पर निर्माण दिखाया गया है जबकि 22 मई में निर्माण शुरू होने के संकेत हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री का कहना है कि यूरोप से फौजें हटाकर एशिया में खासकर भारत के पक्ष में चीन पर अंकुश लगाने के लिए तैनात की जा सकती हैं, अच्छी खबर है। साउथ चाइना समुद्र में पहले ही अमेरिकी बेड़े तैनात हैं। अब देखना यह है कि रूस क्या भूमिका रखता हैöखासकर जब भारत के अधिकांश हथियार रूसी हैं। चीन की विस्तारवादी नीति ने उन दोस्तों को भी नहीं छोड़ा जिन्होंने अमेरिका या भारत का पुराना साथ छोड़ चीन का दामन थामा था। जैसे फिलीपींस व नेपाल। मलेशिया, वियतनाम, इंडोनेशिया व ताइवान पहले से ही इसके शिकार हैं। चीनी नेतृत्व यह भी नहीं समझ पा रहा है कि एक साथ कई मोर्चे खोलना विश्वयुद्ध का आगाज कर सकता है और वह भी तब जब दुनिया कोरोना से जूझ रही हो। बहरहाल आज कोरोना से वैश्विक अस्तित्व का संकट है। इसके दबाव में व्यक्ति, समूह व राष्ट्र गलत फैसले ले रहे हैं। जिस महामारी के छह महीने बाद भी वैक्सीन तो दूर, दवा भी नहीं बन सकी उससे लड़ने की जगह सीमा पर तनाव पैदा करना और वह भी आधा दर्जन मुल्कों के साथ, चीन की दहशत का द्योतक है। कुछ ऐसा ही जैसा हिटलर ने द्वितीय विश्वयुद्ध में कई मोर्चे खोलकर किया था। देखना होगा कि 3500 साल की मानव सभ्यता के इतिहास से आज के मनुष्य ने क्या सबक लिया?

Sunday 5 July 2020

गिलगित-बाल्टिस्तान में होंगे चुनाव

भारत की ओर से पाकिस्तान को यह बार-बार स्पष्ट किए जाने के बावजूद कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के पूरे केंद्र शासित प्रदेश जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान के क्षेत्र भी शामिल हैं और वह देश का अभिन्न हिस्सा है। इसके बावजूद पाकिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान को लेकर नापाक चालें चल रहा है। पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान को लेकर लगातार अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। पाकिस्तान की शीर्ष अदालत के अनुमति देने के बाद सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान में 18 अगस्त को आम चुनाव कराने की घोषणा की है। भारत और पाकिस्तान के बीच इस क्षेत्र को लेकर विवाद है भारत इसे अपना क्षेत्र मानता है। पाकिस्तान की उच्चतम न्यायालय ने सरकार को क्षेत्र में आम चुनाव कराने के लिए 30 अप्रैल को 2018 के प्रशासनिक आदेश में संशोधन करने की अनुमति दे दी थी। राष्ट्रपति भवन के एक बयान के अनुसार राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने गिलगित-बाल्टिस्तान (जीबी) विधानसभा में 18 अगस्त 2020 को आम चुनाव कराने की मंजूरी दे दी। बयान के अनुसार जीबी चुनाव आयोग 24 विधानसभा सीटों पर चुनाव कराएगा। राष्ट्रपति अल्वी ने पिछले महीने एक कार्यवाहक सरकार बनाने और पाकिस्तान के चुनाव अधिनियम 2017 के गिलगित-बाल्टिस्तान में विस्तार के लिए एक आदेश जारी किया था। जीबी विधानभा को उसका कार्यकाल पूरा होने के बाद 21 जून को भंग कर दिया गया था। -अनिल नरेन्द्र

चीन की हांगकांग को निगलने की तैयारी

दुनियाभर के विरोध को दरकिनार करते हुए चीन ने आखिरकार हठधर्मिता और ताकत के साथ हांगकांग में विवादास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू कर दिया। जाहिर है। अब इस कानून की आड़ में चीन हांगकांग के नागरिकों का दमन और तेज करेगा और लोकतंत्र के समर्थकों को सबक सिखाएगा। चीन को हांगकांग में विवादास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने के साथ पहले ही दिन प्रदर्शनकारियों के विरोध का सामना करना पड़ा। कानून में चीनी विरोध प्रदर्शन या तोड़फोड़ पर सख्त सजा का प्रावधान होने के बावजूद प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन किया। इस विरोध को खत्म करने के लिए हांगकांग पुलिस ने वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया। 1997 में ब्रिटेन द्वारा चीन को हांगकांग हैंडओवर करने की वर्षगांठ के मौके पर एक वार्षिक रैली में हजारों प्रदर्शनकारी एकत्रित हुए। उन्हें गिरफ्तार करने के लिए दंगाई पुलिस ने काली मिर्च का प्रे किया और पानी की तेज बौछारें छोड़ी। हांगकांग में नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू करने की अमेरिका ने आलोचना करते हुए अंजाम भुगतने की चेतावनी दी है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने बुधवार को हांगकांग के लोगों के लिए सबसे खराब दिन बताया। जबकि चीन ने अमेरिकी विरोध के विरुद्ध उस पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है। बीजिंग ने कहा कि वह आवश्यक जवाबी उपायों के साथ पूरी तरह तैयार है। उसे नया कानून अंदरूनी मसला बताते हुए बाहरी देशों को दखल देने से रोकने के लिए कहा है, जबकि पोम्पियो ने कहा कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने हांगकांग में क्रूर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करके क्षेत्र की स्वायत्तता व चीन की सबसे बड़ी उपलब्धि में से एक को नष्ट कर दिया है। वहीं ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन न चीन पर संयुक्त घोषणा पत्र के प्रावधानों का स्पष्ट व गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया। इस घोषणा पत्र के जरिये ही ब्रिटेन ने हांगकांग को चीन के हवाले किया था। उन्होंने कहा कि वह हांगकांग के ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज (बीएनए) पासपोर्ट धारकों को अपने यहां स्थायी नागरिकता का प्रस्ताव देंगे। चीन अब तक जिस तरह से ताइवान, शिनजियांग और तिब्बत में आजादी की मांग करने वालों को कुचलता आया है। वही हांगकांग में भी होगा। हालांकि ब्रिटेन ने 1997 में जब हांगकांग को चीन को सौंपा था, तब चीन ने हांगकांग में लोकतंत्र की स्थापना का भरोसा दिया था। क्या तानाशाही, विस्तारवादी प्रकृत्ति वाला राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करके चीन अपने उस भरोसे को पूरा कर रहा है?

लगभग आजीवन राष्ट्रपति

करीब दो दशक से रूस की सत्ता पर काबिज ब्लादिमीर पुतिन ने जनमत संग्रह के जरिये उन संवैधानिक बदलावों पर मुहर लगवा ली है, जिससे और 16 वर्षों तक अपना सत्ता में बने रहने का रास्ता साफ हो गया है। जनमत संग्रह में पुतिन की दावेदारी को समर्थन मिला है। कोरोना संकट और विपक्षी नेताओं के जबरदस्त विरोध के बीच यह जनमत संग्रह सात दिनों तक चला और बुधवार को खत्म हुआ। जनमत संग्रह के आधार पर 84 साल की उम्र तक पुतिन रूस के राष्ट्रपति बने रहेंगे। संविधान संशोधन के जरिये पुतिन का मौजूदा कार्यकाल खत्म होने के बाद दो अतिरिक्त कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति पद मिलेगा। वर्ष 1952 में पैदा हुए पुतिन 2036 में 84 साल के हो जाएंगे। रूस में लेनिन से लेकर येल्तसिन तक कोई भी नेता अपना 80वां जन्मदिन नहीं देख पाया है। 80 साल की उम्र के बाद भी सत्ता में काबिज रहने वाले पुतिन पहले नेता होंगे। पुतिन के कार्यकाल के दौरान रूसी लोगों की जीवन अवधि औसतन 10 साल तक बढ़ी है। इस साल पुतिन 68 के हो जाएंगे और मौजूदा दौर में किसी रूसी व्यक्ति का औसतन जीवन काल माना जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जनमत संग्रह के दौरान कोरोना महामारी की वजह से मतदान प्रक्रिया काफी धीमी रही। चुनाव बूथ पर लोगों की भीड़ ज्यादा नहीं रही। इसलिए मतदान को पूरा होने में एक सप्ताह लगा। संविधान संशोधन कराने के लिए जनमत संग्रह में समर्थन पाने की खातिर पुतिन ने बड़े पैमाने पर अभियान चलाया था। पुतिन ने कहा था कि हम उस देश के लिए मतदान कर रहे हैं, जिसके लिए हम काम करते हैं और जिसे हम अपने बच्चों और पोते-पोतियों को सौंपना चाहते हैं। विपक्षी नेताओं ने जनमत संग्रह को लेकर सवाल उठाए हैं। क्रेमलिन के पूर्व राजनीतिक सलाहकार ग्लैब पाव्लोव्सकी ने कहा कि कोरोना संक्रमण के खतरे के बावजूद राष्ट्रपति ने जनमत संग्रह करवाया है। ऐसे संकट के समय पर जनमत संग्रह करवाकर पुतिन ने एक तरह से अपनी लोकप्रियता को आजमाने की कोशिश की है। ऐसे समय जब कोविड-19 के साथ ही अमेरिकन-चीन और भारत-चीन तनाव चल रहा है, पुतिन की इस जीत के वैश्विक और क्षेत्रीय निहितार्थ भी समझने की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय संबंधों के तकाजे के अनुरूप ही पुतिन को बधाई दी है। बेशक भारत अपने द्विपक्षीय मामलों में किसी तीसरे पक्ष का दखल स्वीकार नहीं करता, मगर रूस से अपने रिश्तों को वह कूटनीतिक रूप से चीन के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है।

Saturday 4 July 2020

जान हथेली पर रखकर बचाया मासूम को

कश्मीर के सोपोर में बुधवार सुबह मस्जिद में छिपकर बैठे आतंकियों ने सीआरपीएफ के दस्ते पर हमला बोल दिया। आतंकवादियों की गोलीबारी के बीच फंसा तीन साल का मासूम। चन्द सेकेंड पहले उसके नाना आतंकियों की गोलियों का शिकार हो गए। निशाने पर थी सेना, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक संयुक्त टीम। जवाबी कार्रवाई के दौरान तीन साल के बच्चे को बचाने की चुनौती थी। लेकिन सेना के जवानों ने जान हथेली पर रखकर मासूम को बचा लिया। जम्मू-कश्मीर के सोपोर में बुधवार हुई इस मुठभेड़ के दौरान खींची गई उस बच्चे की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई रहीं। दिल दहला देने वाली तस्वीरें। सुरक्षा कर्मियों की गश्ती टीम पर हमला करने पहुंचे आतंकवादियों ने सामने पड़े नाती-नाना पर गोलियां बरसाईं। उस व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गई। उनके साथ मौजूद तीन साल का बच्चा अपने नाना के शव के पास बैठा रोता रहा। अबोध बच्चे को शायद यह नहीं पता था कि उनके नाना की जान चली गई है। मासूम बच्चा शव पर बैठे अपने नाना के उठने का इंतजार कर रहा था। लेकिन उसे कहां पता था कि उसके नाना की तो मौत हो चुकी है। इसी दौरान उसने एक जवान को देखा। उसकी मासूमियत से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह कहना चाह रहा है कि मेरे नाना को उठा दो। आनन-फानन में उस जवान और उसके साथियों ने बच्चे को बचाने के लिए मोर्चा संभाला। कई बार जवान के इशारे किए जाने पर बच्चा धीरे-धीरे जवान की ओर बढ़ा। जवान ने उसे गोद में उठा लिया। मुठभेड़ में शामिल सोपोर से पुलिस अधिकारी अजीम खान के मुताबिक मुठभेड़ स्थल पर मस्जिद की ऊपरी मंजिल से गोलीबारी हो रही थी। बच्चे को बचाने के लिए हम लोगों ने सबसे पहले आतंकियों और बच्चे के बीच बख्तरबंद (आर्म्ड कार) लगा दीं ताकि गोलीबारी की जद में बच्चे को आने से बचाया जा सके। इसके बाद हम बच्चे को वहां से निकाल लाए। बच्चा अपने नाना के साथ दूध खरीदने निकला था। बच्चे को उसके घर पहुंचा दिया गया। जम्मू-कश्मीर में सेना को बदनाम करने वालों के लिए यह भी एक उदाहरण है। -अनिल नरेन्द्र

चीनी सरकार के खिलाफ सैनिकों में गुस्सा, विद्रोह की स्थिति

लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के साथ उलझना चीन की कम्युनिस्ट सरकार के लिए बहुत भारी पड़ रहा है। भारत ने जहां उसके खिलाफ आर्थिक मोर्चेबंदी शुरू कर दी है, वहीं उसे अपने देश के लोगों को भी गलवान घाटी की झड़प पर जवाब देते नहीं बन रहा है। सत्तारूढ़ चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) सच्चाई छिपा रही है, जिसमें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के पूर्व दिग्गजों और मौजूदा जवानों के बीच इस कदर नाराजगी बढ़ती जा रही है कि वो कभी भी सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह कर सकते हैं। यह कहना चीन के एक विद्रोही नेता और सीसीपी के एक पूर्व नेता के पुत्र जियानली यांग का है। सिटीजन पॉवर इनिशिएटिव फॉर चाइना नामक संगठन के संस्थापक व अध्यक्ष यांग ने वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित अपने लेख में कहा है कि बीजिंग को डर है कि अगर वह यह मान लेता है कि विरोधी से ज्यादा उसके अपने सैनिक मारे गए थे तो देश में अशांति फैल सकती है और सीसीपी की सत्ता भी दांव पर लग सकती है। यांग ने लिखा हैöसीसीपी की सरकार के लिए पीएलए ने अब तक एक मजबूत स्तम्भ की तरह काम किया है। अगर पीएलए के मौजूदा सैनिकों की भावनाएं आहत होती हैं और वह लाखों दिग्गजों (इनमें पीएलए के वो सदस्य शामिल हैं जो शी से नाराज हैं... जिनमें पीएलए को व्यवसायिक गतिविधियों से अलग करने की शी की मुहिम के विरोधी हैं) के साथ आ जाते हैं तो शी के नेतृत्व को मजबूती के साथ चुनौती दे सकते हैं। उन्होंने आगे लिखा है कि सीसीपी नेतृत्व सरकार के खिलाफ पूर्व सैनिकों की सामूहिक और सशस्त्र कार्रवाई की क्षमता को हल्के में लेने की गलती नहीं कर सकता। दमनात्मक कार्रवाई और नौकरशाही के उपायों के बावजूद सेना के पूर्व दिग्गजों का विरोध बढ़ रहा है। सीसीपी के डर को स्पष्ट करने के लिए यांग गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प का उदाहरण देते हैं। उन्होंने कहा कि चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान से जब पूछा गया कि इस झड़प में कितने सैनिक मारे गए तो उन्होंने साफ कह दिया कि इस बारे में उनके पास कोई जानकारी नहीं है। अगले दिन जब उन्हें भारतीय मीडिया की खबरों का हवाला दिया जिसमें चीन के 40 सैनिकों से ज्यादा के मारे जाने की बात थी तो उन्होंने इसे गलत सूचना करार दे दिया। यांग लिखते हैंöचीन ने यह नहीं माना कि उसके कितने सैनिक मारे गए? जबकि भारत ने अपने सैनिकों के शहीद होने की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की व सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया। गलवान में मारे गए चीनी सैनिकों की मरने वालों की संख्या बताना तो दूर रहा उनके शव भी परिजनों को नहीं लौटाए गए और न ही उनका अंतिम संस्कार हो सका।

कोरोना संक्रमण के घटते मामलों से उम्मीद जगी

कोरोना जांच के हिसाब से पिछले आठ दिनों में संक्रमण दर में लगभग 11 प्रतिशत की कमी आई है। इन आठ दिनों में 23 से 30 जून तक संक्रमण दर लगातार कम हुई है। हालांकि यह कहना जल्दबाजी होगा कि राजधानी दिल्ली में संक्रमण उतार की ओर है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले हमें कम से कम एक सप्ताह इंतजार करना होगा। इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस की विजिटिंग प्रोफेसर शामिका रावी ने ट्विटर पर ग्राफ के जरिये बताया है कि सात दिन में जांच के मुकाबले पॉजिटिव केस का प्रतिशत कम हुआ है। आने वाले एक सप्ताह ऐसा ही रहता है तो राहत मिल सकती है। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बुधवार को कहा कि अब दिल्ली में कोरोना के केस बढ़ने के बजाय घट रहे हैं। राजधानी में 30 जून तक एक लाख केस होने की संभावना जताई गई थी लेकिन आज सिर्फ इस आंकड़े के एक-तिहाई केस ही हैं। इसी तरह 30 जून तक 60 हजार एक्टिव केस होने और अस्पताल में मरीजों को 15 हजार बैड की जरूरत पड़ने की आशंका जताई गई थी। लेकिन आज केवल 25 हजार केस एक्टिव हैं और 5800 बैड की जरूरत पड़ी है। अस्पतालों में मरीजों के बढ़ने की बजाय 450 मरीज कम हो गए हैं। पहले 100 सैंपल की जांच में 31 पॉजिटिव केस मिलते थे, लेकिन अब केवल 13 मिल रहे हैं। कोरोना के प्रतिदिन औसतन 60 से 65 लोगों की मौत हो रही है, जिसे और भी कम करना है। एक माह पहले दिल्ली में 38 प्रतिशत मरीज ठीक हो रहे थे जबकि आज 67 प्रतिशत ठीक हो रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली में कोरोना से मौत कम होने लगी है। एक दिन में 125 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन अब प्रतिदिन 60 से 65 के आसपास मौतें हो रही हैं। केजरीवाल ने कहा कि कुछ एक्सपर्ट लिख रहे हैं कि दिल्ली में पीक आकर जा चुका है। आप लोगों से गुजारिश है कि एक्सपर्ट की तरफ ध्यान न दीजिए। मास्क पहनते रहिए, सोशल डिस्टेंस मेनटेन करें, भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बचें और अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने पर विशेष ध्यान दें।

Friday 3 July 2020

शादी के दूसरे दिन दूल्हे की मौत

समझ नहीं आता कि कुछ लोग कोरोना महामारी की गंभीरता को क्यों नहीं समझते, इस नासमझी की बड़ी भारी कीमत ऐसे लोगों को चुकानी पड़ती है। किस्सा बिहार की राजधानी पटना में एक शादी समारोह का है। पटना से करीब 55 किलोमीटर दूर पालीगंज में हुई शादी स्वास्थ्य विभाग के लिए मुसीबत बन गई। स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक एक व्यक्ति जो गुरुग्राम स्थित एक कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था की शादी थी। मई के आखिरी हफ्ते में शादी के लिए वह घर आया था। 15 जून को उसकी शादी तय थी, लेकिन तिलक के कुछ दिन बाद ही उसमें कोरोना के लक्षण दिखने लगे। इसके बाद वह कुछ दिनों के लिए शादी टालना चाहता था। हालांकि घर वालों ने तेज बुखार के बावजूद उसे पैरासिटामॉल की गोलियां खिलाकर शादी करा दी। शादी के दो दिन बाद ही दूल्हे की मौत हो गई जबकि बारात में शामिल 100 से ज्यादा लोग संक्रमित हो गए। हैरान करने वाली बात यह कि कोरोना के लक्षण दिखने के बावजूद दूल्हे की शादी कराई गई और मौत के बाद बिना जांच कराए उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया। शादी के दो दिन बाद 17 जून को दूल्हे की अचानक तबीयत खराब हो गई। घर वाले उसे पटना एम्स ले जा रहे थे, लेकिन रास्ते में ही मौत हो गई। बिना प्रशासन को सूचित किए जल्दबाजी में उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया। इसके बाद कुछ लोगों ने जिला मजिस्ट्रेट को फोन कर इसकी जानकारी दी। अधिकारियों ने बताया कि कोरोना को फैलने से रोकने के लिए दूल्हे के गांव में विशेष स्वास्थ्य कैंप लगाया गया था। इसमें 364 लोगों की जांच की गई। -अनिल नरेन्द्र

चीन की मुस्लिम आबादी पर सख्त कदम उठाए जा रहे हैं

चीन की सरकार मुस्लिम आबादी पर अंकुश लगाने के अपने अभियान के तहत उइगर और अन्य अल्पसंख्यकों के बीच जन्मदर को घटाने के लिए सख्त से सख्त कदम उठा रही है। इतना ही नहीं, देश के हान बहुसंख्यकों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकारी आंकड़ों और पूर्व में हिरासत शिविरों में रखे गए 30 लोगों और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर यह निष्कर्ष सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार पहले कभी-कभार कोई महिला जबरन गर्भनिरोधक के बारे में बोलती थी, लेकिन यह चलन पहले के मुकाबले ज्यादा बड़े पैमाने पर और सुनियोजित तरीके से शुरू हो चुका है। शिनजियांग के सदर पश्चिमी क्षेत्र में पिछले चार साल से चलाए जा रहे अभियान को कुछ विशेषज्ञ जनसांख्यिकीय नरसंहार करार दे रहे हैं। पड़ताल के दौरान लिए गए साक्षात्कार और आंकड़े बताते हैं कि इस प्रांत में अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को नियमित तौर पर गर्भावस्था जांच कराने के लिए कहा जाता है। इतना ही नहीं, उन्हें कॉपर-टी जैसे अंतर्गर्भाशयी उपकरण (आईयूडी) लगवाने व नसबंदी कराने तथा लाखों महिलाओं को गर्भपात कराने के लिए भी मजबूर किया जाता है। देश में जहां आईयूडी के इस्तेमाल और नसबंदी में गिरावट आई है वहीं शिनजियांग में तेजी से बढ़ रहा है। पड़ताल में पता चला है कि ज्यादा बच्चे होना ही हिरासत शिविरों में लोगों को भेजे जाने की बड़ी वजह है। हिरासत शिविरों में तीन या उससे ज्यादा बच्चों के माता-पिता को उनके परिवार से तब तक अलग रखा जाता है जब तक वह बड़ा जुर्माना नहीं भर देते। मां-बाप को इस बात से डराया जाता है कि ज्यादा बच्चे पैदा होने पर उन्हें हिरासत, शिविरों में भेज दिया जाएगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक शिनजियांग के जिन क्षेत्रों में उइगर आबादी बहुतायत में है वहां 2015 से 2018 के बीच जन्मदर में 60 प्रतिशत गिरावट आई है। पूरे शिनजियांग प्रांत की बात करें तो पिछले साल जन्मदर 24 प्रतिशत घटी है।

चीन को लगा झटका, तीन लाख करोड़ तक घट सकता है व्यापार

चीन से बढ़ते तनाव के बीच भारत सरकार ने सोमवार रात बड़ा कदम उठाते हुए टिकटॉक, यूसी ब्राउजर और शेयरइट जैसे 59 चीनी एप बैन कर दिए। सरकार ने कहा कि इन एप के जरिये यूजर्स की जानकारी हासिल की जा रही है। यह देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने आईटी एक्ट-2009 की धारा 69ए के तहत चीनी एप बैन करने का फैसला किया। सरकार ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत प्रमुख डिजिटल बाजार बन गया है। इसके साथ ही भारतीयों के डेटा की सुरक्षा से जुड़ी चिन्ताएं सामने आती रही हैं। सरकार ने पाया कि चीनी एप देश के लिए खतरा हैं। 59 चीनी एप पर प्रतिबंध लगने के 24 घंटे के अंदर ही चीनी प्रतिक्रिया आ गई। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने भारत में चीनी एप पर रोक के बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहाöचीन द्वारा जारी नोटिस से अत्याधिक चिंतित है और कहा कि भारत सरकार पर अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के वैध और कानूनी अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी है। दरअसल भारत और चीन के बीच चल रहे टकराव में अब इन एप के बंद करने से व सरकार द्वारा हाइवे कांट्रेक्ट इत्यादि खत्म करने के फैसले से घबराहट पैदा हो गई है। चीन सरकार के मुख पत्र माने जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि टकराव की वजह से दोनों देशों के बीच कारोबार 50 प्रतिशत तक यानि करीब तीन लाख करोड़ रुपए तक घट सकता है। ग्लोबल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में चीन के खिलाफ बढ़ रहे रोष के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार में अच्छी-खासी कमी आ सकती है। इस खबर के मुताबिक जब से लद्दाख में विवाद बढ़ा है भारत में राष्ट्रवाद की भावना काफी तेज हो गई है और भारतीय नेता और मीडिया लगातार चीन को निशाना बना रहा हैं। इस कारण इस साल दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में करीब 30 से 50 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। भारत सरकार द्वारा चीनी एप बैन करने के कदम को देर से आया फैसला ही कहा जा सकता है। क्योंकि चीन के खिलाफ इन एप पर रोक लगाने के बारे में पहले भी काफी प्रदर्शन किए गए हैं और दलीलें भी दी गई हैं। मगर यह सब कुछ तब हुआ जब चीन के खिलाफ देशभर में काफी रोष है और सरकार पर भी इस बात को लेकर काफी दबाव है कि उसे चीन के विरुद्ध कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे जनता का गुस्सा कुछ हद तक शांत हो सके। हालांकि सरकार भी यह मानती है कि चीनी एप पर प्रतिबंध लगाने का उसका निर्णय बहुत निर्णायक या मारक नहीं है, इसके बावजूद उसने अगर प्रतिबंध के रास्ते पर अपने कदम बढ़ाए हैं तो यह आगे चलकर देश के हित में ही होगा। इस बात से कोई इंकार नहीं करेगा कि चीन ने इन एप के जरिये काफी सेंधमारी हमारे यहां कर रखी थी। नियमत सरकारी सूचना जारी होने के 24 घंटे के अंदर प्ले स्टोर और एप स्टोर से यह सारे एप हट जाने चाहिए। इन सबके अलावा सरकार को इस बात के लिए भी चौकस रहना होगा कि कहीं यह एप चोर दरवाजे से तो घुसने की कोशिश में नहीं हैं?

Thursday 2 July 2020

कोरोना के साथ ही अब डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया की दस्तक

कोरोना महामारी से तो पहले से ही हम परेशान हैं अब मानसून आने के साथ मलेरिया और चिकनगुनिया का खतरा और बढ़ गया है। मानसून की आहट के साथ ही दिल्ली में डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया का प्रकोप हर साल की तरह इस बार भी देखने को मिल सकता है, जबकि यहां पर पहले से कोविड का संक्रमण फैला हुआ है। डाक्टरें के सामने इन सभी बीमारियों में फर्क करना एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आने वाली है, क्योंकि बुखार आने के पहले-दूसरे दिन में इन बीमारियों में फर्क करना आसान नहीं होगा, खासकर क्लीनिकल स्तर पर मुश्किल होने वाली है। मैक्स के इंटरनल मेडिसिन के डाक्टर रोमेल टिक्कू ने बताया कि डेंगू में फीवर, बदन दर्द और सिर दर्द होता है। खासकर शुरू में यही लक्षण हैं। लेकिन इससे मिलते-जुलते ही चिकनगुनिया और मलेरिया में भी है। इन तीनें के फीवर और कोविड के फीवर में फर्क करना मुश्किल है। मच्छरों से होने वाली बीमारी मे जो वायरस फैलता है, उससे इलाज करने वाले हेल्थ केयर वर्कर को नुकसान नहीं है। लेकिन कोविड के मरीजों से यह दिक्कत है। उसकी पहचान जरूरी है, क्योंकि उसे सबसे अलग और आइसोलेट करके रखना होता है और लाइन ऑफ इंटिमेंट में अलग है। गंगाराम अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन के डाक्टर अतुल गोगिया ने बताया कि मौसमी फीवर के बीच कोविड की पहचान करना तो बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने आने वाली है। इनमें क्लीनिकल स्तर पर फर्क करना आसान नहीं होगा। इंफैक्शन एक्सपर्ट डॉक्टर नरेन्द्र सैनी ने कहा कि फीवर के पहले दिन तो मुश्किल है, लेकिन डेंगू फीवर का पीरियड एक हफ्ते का होता है और यह चौथे या पांचवें दिन पूरी तरह से समझ आ जाता है। उन्होंने बताया कि इसलिए क्लीनिकल स्तर पर डाक्टर को मरीज की हिस्ट्री लेना बहुत जरूरी हो जाएगा, अगर फीवर है और मरीज कंटेनमेंट जोन से आया है तो फिर वह कोविड के सक्रिय मरीज की तरह ही देखा जाना चाहिए। फीवर वाले मरीज की हिस्ट्री का कैंटेक्ट हिस्ट्री, फैमली में कोविड है या नहीं, वह किस एरिया से आया है। वहां पर कोविड का क्या स्टेटस है, इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही इलाज करना होगा। -अनिल नरेन्द्र

कोरोना काल में वर्चुअल रैलियां

कोरोना काल में भाजपा ने वर्तमान परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाते हुए सियासी गतिविधियों को तेज कर दिया है। लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के माहौल में भाजपा डिजिटल प्लेटफार्म पर वर्चुअल संवाद के जरिए लोगों तक पहुंचा रही है। उसकी चुनावी तैयारी भी शुरू हो गई है और संगठनात्मक कार्य भी। भाजपा मुख्यालय में वर्चुअल रैलियों का मंच भी तैयार हो गया है, जिसे उसके बड़े नेता संबोधित कर रहे हैं। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल के पूरे होने पर की जा रही वर्चुअल रैलियों के माध्यम से पार्टी देशभर में पहुंच रही है और डिजिटल प्लेटफार्म के जरिए उसकी जगह भी बना रही है। भाजपा यह मानकर चल रही है कि कोरोना काल लंबा खिंच सकता है और देश की राजनीतिक गतिविधियों को जब तक ठप्प नहीं रखा जा सकता है। सबसे पहले बिहार के विधानसभा चुनाव हैं, उसके बाद उसे पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों की तैयारी करनी है। हर साल कोई न कोई महत्वपूर्ण राज्यों का चुनाव होना है और भाजपा उसके लिए विरोधी दलों को मौका नहीं देना चाहती है। पार्टी के अन्य नेता भी राजनीति के मुताबिक विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में सभाएं कर रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत तमाम बड़े नेताओं को रणनीतिक हिसाब से ही विभिन्न राज्यों में वर्चुअल रैलियों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। किन राज्यों में गठबंधन के साथ आगे बढ़ना है, कहां क्षेत्रीय दलों से मुकाबला करना है और कहां पर कांग्रेस से सीधे संघर्ष करना है? इसे इन रैलियों की तैयारी में खास ध्यान रखा गया है। वर्चुअल रैलियां होने से इन पर मौसम का भी ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। पार्टी की योजना अगले कुछ महीनों में संगठन और राजनीतिक संवाद के लिए डिजिटल प्लेटफार्म पर और ज्यादा सक्रियता को बढ़ाने की है। इस मौके पर फिलहाल उसके तमाम विरोधी दल काफी पीछे हैं। जेपी नड्डा के हाथों में पार्टी कमान जाने के बावजूद गृहमंत्री अमित शाह संगठन स्तर पर सक्रिय हैं और वर्चुअल रैलियों में भी संवाद की मुख्य कमान संभाले हुए हैं।

गिलानी का हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफे का मतलब?

कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देने वाले ऑल पार्टी हुर्रियत कांप्रेंस (गिलानी गुट) के चेयरमैन और कट्टरपंथी 90 वर्षीय सैयद अली शाह गिलानी ने सोमवार को संगठन से पूरी तरह नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया। हुर्रियत कांफ्रेंस शुरू से ही पाकिस्तान एजेंडे पर चलती रही है। पिछले कुछ समय से पाकिस्तान से मतभेदों और संगठन में पूरी तरह दरकिनार होने के बाद fिगलानी ने संगठन से इस्तीफा दे दिया है। पिछले वर्ष अगस्त में जम्मू-कश्मीर में हुए ऐतिहासिक बदलाव के बाद का यह एक अहम घटनाक्रम माना जा सकता है। गिलानी ने हालांकि कहा है कि उनकी विचारधारा में कोई बदलाव नहीं आया है लेकिन यह गौर करने लायक है कि हुर्रियत से रिश्ता खत्म करते हुए उन्होंने पाकिस्तान में बैठे अलगाववादी नेताओं को काफी खरी-खोटी सुनाई और उन पर भाई-भतीजावाद से लेकर भ्रष्टाचार और सत्ता के करीब रहने के आरोप लगाए हैं। इससे यह हकीकत फिर सामने आ गई है कि जम्मू-कश्मीर के अलगावादी नेताओं और आतंकवाद को पाकिस्तान की सरकार और सेना का कैसा संरक्षण मिलता रहा है। वास्तविकता यह है कि एक और जहां कश्मीर की कथित आजादी में संघर्ष के नाम पर जैसा कि खुद गिलानी ने अपने पत्र में लिखा है पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में अलगाववादी नेता, विधायक और मंत्री बनते रहे तो दूसरी ओर भारत के अलगाववादी नेता पाक से मिले संरक्षण से जम्मू-कश्मीर के लोगों का भयादोहन करते रहे। हाल ही में शुरू हुए टेरर फडिंग से जुड़े मामलों की जांच के दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पाया है कि कैसे गिलानी सहित अन्य अलगाववादी नेताओं को पाकिस्तान से फंडिंग होती रही है। कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का अगर यह ड्रामा नहीं है और वह अपने इस्तीफे पर कायम रहते हैं और हुर्रियत से पूरी तरह से नाता तोड़ लेते हैं तो इसका सीधा असर कश्मीर में कथित आजादी पाने का आंदोलन अपनी मौत मर जाएगा क्या? यह सवाल अब कश्मीर में सबसे बड़ा इसलिए है कि सैयद अली शाह गिलानी को ही आजादी पाने का आंदोलन माना जाता था और अब 90 साल की उम्र में उनके द्वारा इस्तीफा दे दिए जाने के बाद यह भी सवाल खड़ा हुआ है। वयोवृद्ध गिलानी जो इस समय सांस, हृदयरोग, किडनी रोग समेत विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं ने एक वीडियो संदेश जारी करके इसका ऐलान किया है। 5 अगस्त, 2019 को भारतीय संसद में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए के विशेष प्रावधानों को हटाने और इस राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बदलने के ऐतिहासिक फैसले ने हुर्रियत सहित सारे अन्य अलगाववादी गुटों की कमर तोड़ कर रख दी है। भारत ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि भारत की संप्रभुता से किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता। भारत सरकार के पास मौका है कि वह जम्मू-कश्मीर के अलगाववाद से जुड़े, भटके युवाओं को वापस लोकतांत्रिक रास्ते पर लाने के लिए प्रेरित करें। गिलानी के इस कदम पर पाकिस्तान और अन्य अलगाववादी गुटों पर क्या असर होता है, आने वाले दिनों में पता चल जाएगा। सतर्कता में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।

Wednesday 1 July 2020

आईएसआई की ताजा हरकत

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के हत्थे चढ़े तीन आतंकियों ने पूछताछ में सनसनीखेज खुलासे किए हैं। पता चला है कि दबोचे गए आरोपियों में से एक लवप्रीत उर्फ लवली समेत पांच नौजवानों को सीमापार में आतंकी ट्रेनिंग के लिए भेजा जाना था। आईएसआई के अब्दुल्ला नाम का एक शख्स हथियार और रकम मुहैया कराने के लिए गिरफ्तार आरोपियों में से ही एक गुरतेज के संपर्क में था। आरोपी गुरतेज ने तो आतंकी ट्रेनिंग के लिए सीमापार जाने वाले नौजवानों को एके-47 मुहैया कराने का दावा किया था। गुरतेज लवप्रीत समेत पांच से अधिक युवाओं के खालिस्तान आंदोलन में शामिल कर उन्हें पाक में प्रशिक्षण दिलाने की तैयारी में था। पाक में आईएसआई ने नौजवानों को 15 दिनों की ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की थी। गुरतेज लॉकडाउन के कारण यहीं उम्दा क्वालिटी के हथियारों को मुहैया करवाने में जुटा था और उसने अपने नेटवर्क के लोगों से बात भी कर ली थी। लेकिन इससे पहले वह पकड़ा गया। गिरफ्तार आरोपियों में दूसरा मोहिंदर पाल केएलएफ के पूर्व भारतीय प्रमुख हरमीत सिंह उर्फ पीएचडी की मृत्यु के बाद संगठन के गुरशरणवीर सिंह के संपर्क में आया था। दोनों ने यूके व अन्य देशों में स्थित खालिस्तानी नेताओं के इशारे पर टारगेट किलिंग की योजना भी बनाई थी। यह टारगेट की पहचान करने और आंदोलन में नए युवाओं को शामिल कर रहे थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण पकड़े गए। गिरफ्तार आरोपी लवप्रीत सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों पर बहुत सक्रिय है और फेसबुक व व्हाट्सएप के माध्यम से भारत और विदेशों में खालिस्तान आंदोलन के अन्य सदस्यों के संपर्क में हैं। इसके लिए उन्होंने खालसा भिंडरावालाजी नाम से एक फेसबुक पेज भी बनाया है। इस पेज पर आरोपी लवप्रीत ने खालिस्तान आंदोलन के समर्थन में पोस्टर, फोटो और गाने साझा किए हैं। आरोपी लवप्रीत के बारे में तो स्पेशल सेल का कहना है कि केएलएफ के कुख्यात आतंकवादी धन्ना सिंह के संपर्क में भी है, जिसकी वर्तमान में लोकेशन यूके में बताई जा रही है। दोनों फेसबुक पेज और व्हाट्सएप के जरिये भी जुड़े थे। धन्ना सिंह ने उसे पाकिस्तान में अपने प्रशिक्षण के दौरान के कई फोटो और वीडियो भेजे हैं। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने समय रहते कोई बड़ा वाकया होने से बचा लिया है। पाकिस्तान अपनी आदत से बाज नहीं आएगा। वह कश्मीर में तो सक्रिय है ही पर पंजाब में भी खालिस्तान के नाम पर एक बार फिर आंदोलन करने के चक्कर में लगा रहता है। पर पुलिस सतर्क है और समय रहते उसके इरादों को नाकाम कर देती है। -अनिल नरेन्द्र

10वीं और 12वीं की परीक्षाएं रद्द

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और आईसीएसई ने कोविड-19 की महामारी के कारण प्रभावित दसवीं और बारहवीं बोर्ड के बचे विषयों से संबंधित परीक्षाएं रद्द करने का फैसला लेकर लाखों बच्चों और उनके अभिभावकों के समक्ष पैदा हुए असमंजस को दूर करने का फैसला स्वागतयोग्य है। अब इन विषयों के अंक आंतरिक मूल्यांकन और पिछली परीक्षाओं के आधार पर तय कर दिए जाएंगे, जो असाधारण परिस्थितियों को देखकर व्यावहारिक ही हैं। कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप के बीच परीक्षा आयोजित कर छात्रों को संक्रमण में डालना कतई उचित नहीं होता। जब राजधानी दिल्ली तथा कोविड-19 से ग्रसित दूसरे स्थानों के शिक्षण संस्थान बंद हैं, तो फिर ऐसे में परीक्षा आयोजित करना तर्कपूर्ण नहीं माना जाएगा। पहले एक जुलाई से 15 जुलाई तक 10वीं एवं 12वीं की परीक्षा की तिथि यह विचार करते हुए तय की गई होगी कि तब तक कोविड का प्रकोप कम हो जाएगा। कम से कम राजधानी दिल्ली तथा मुंबई की स्थिति तो इसका संकेत नहीं दे रही। दिल्ली सरकार कह रही है कि जुलाई तक यहां कोविड-19 के पांच लाख मरीज हो जाएंगे। कोविड के इस प्रचंड प्रकोप के बीच परीक्षा आयोजित करने का जोखिम कोई मोल नहीं ले सकता। इसी तरह केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए पांच जुलाई को निर्धारित केंद्रीय पात्रता परीक्षा को भी रद्द कर दिया है। वैसे भी जब अभिभावकों का एक समूह 10वीं और 12वीं की बची परीक्षाओं को रद्द कराने के लिए उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया था तो फिर सरकार कैसे जोखिम उठा सकती थी। इन अभिभावकों ने अपनी याचिका में तर्क ही यही दिया था कि इसमें छात्र-छात्राओं के जीवन पर खतरा उत्पन्न हो सकता है। बोर्ड की परीक्षा के लिए प्रत्येक छात्र कितनी मेहनत करता है, यह बताने की आवश्यकता नहीं। यहां प्रश्न बच्चे के कैरियर का भी है। कोरोना वायरस के संक्रमण का वक्त कब नीचे आएगा, इसके बारे में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता, जिससे नए शैक्षणिक सत्र को लेकर अनिश्चय पैदा हो गया है। लिहाजा इस दिशा में सरकार का कोई भी कदम यह सुनिश्चित करते हुए उठाना चाहिए कि किसी तरह का असंतुलन न हो। हमें बेहतर परिस्थितियों की उम्मीद करनी चाहिए ताकि सब समयानुसार हो सके।

पीएम केयर्स बनाम राजीव गांधी फाउंडेशन

एक भयंकर युद्ध लद्दाख में चीन और भारत का चल रहा है तो दूसरा युद्ध भारत के अंदर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस में विदेशी चंदे को लेकर छिड़ गया है। एक तरफ भाजपा का पीएम केयर्स फंड है और दूसरी तरफ राजीव गांधी फाउंडेशन को विदेशी चंदे का है। पहले बात करते हैं भाजपा के द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन को आए चंदे की। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी दान मिलने पर 10 सवाल पूछे हैं। चीन की ओर से राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा क्यों दिया गया? 130 करोड़ देशवासी जानना चाहते हैं कि राजीव गांधी फाउंडेशन ने चीन से कितना पैसा हासिल किया? कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के बीच क्या रिश्ता है? दोनों के बीच हस्ताक्षरित और गैर-हस्ताक्षरित क्या है? प्रधानमंत्री राहत कोष से 2005-08 तक राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा क्यों जारी किया गया? यूपीए शासन में कई केंद्रीय मंत्रालयों, सेल, गेल, एसबीआई, अन्य पर राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा देने के लिए क्यों दबाव बनाया गया। तत्कालीन पीएम राहत कोष का ऑडिटर कौन था? भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि ठाकुर वैद्यनाथ एंड अय्यर कंपनी राजीव गांधी फाउंडेशन की ऑडिटर थी। रामेश्वर ठाकुर इसके फाउंडर थे। वह राज्यसभा के सांसद थे और चार राज्यों के राज्यपाल भी रहे। कई दशकों तक उसके ऑडिटर रहे, ऐसा क्यों? देश जानना चाहता है कि ऐसे लोगों को ऑडिटर बनाकर क्या सरकार करना चाह रही थी? राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को दान कैसे दिया गया जो एक परिवार द्वारा नियंत्रित है? मेहुल चोकसी से राजीव गांधी फाउंडेशन में पैसा क्यों लिया गया? मेहुल चोकसी को लोन देने में मदद क्यों की गई? जवाहर लाल नेहरू भवन को अमूल्य जमीन कैसे अलॉट की गई? डॉ. मनमोहन सिंह बताएंगे कि वह राजीव गांधी फाउंडेशन के नाम पर लूट को क्या कहेंगे? चीन से चंदे को लेकर भाजपा के हमलों पर पलटवार करते हुए कांग्रेस ने चीनी कंपनियों से पीएम केयर्स फंड में दान को लेकर सरकार और भाजपा को घेरा है। पार्टी ने पीएम के नौ बार चीन दौरे का हवाला देते हुए उनका चीन से विशेष लगाव होने का आरोप लगाया। साथ ही कांग्रेस ने दावा किया कि बीजिंग से पीएम के विशेष रिश्ते के चलते चीनी कंपनियों ने बड़ी रकम पीएम केयर्स फंड में दी है। चीनी अनुदान पर गरमाई सियासत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोना पॉजिटिव होते हुए भी कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी रविवार को वीडियो कांफ्रेंस के जरिये भाजपा पर जवाबी हमला बोलने उतरे। पीएम केयर्स फंड में चीनी पैसे के तार का जिक्र करते हुए सिंघवी ने कहा कि सरकार और प्रधानमंत्री मोदी ने सिद्ध कर दिया है कि चीन का आघात उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है। चीन ने हमारी कितनी जमीन और पोस्ट ली है यह भी उनके लिए मायने नहीं रखता। उनके लिए दो ही चीजें मायने रखती हैं एक खुद और उनका अपना व्यक्तित्व और दूसरा राजीव गांधी फाउंडेशन। सिंघवी ने कहा कि राजीव गांधी फाउंडेशन को मिलने वाले दान का तो ऑडिट होता है और सब लोगों के सामने है। लेकिन अहम सवाल है कि पीएम केयर्स राहत कोष के रहते कोविड के नाम पर पीएम केयर्स का नया ट्रस्ट क्यों बनाया गया? जिसकी न सीएजी द्वारा ऑडिट का प्रावधान है और न ही इसे आरटीआई में रखा गया है? सिंघवी ने कहा कि पीएम केयर्स फंड में कोई पारदर्शिता नहीं है और यह सत्तारूढ़ पार्टी का फंड बन गया है। इसमें करीब 9600 हजार करोड़ रुपए अब तक आ चुके हैं जिसमें चीन से आई रकम के भी तार जुड़े हैं। इसमें चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से जुड़ी टेलीकॉम कंपनी हुआवे ने सात करोड़, टिक-टॉक ने 30 करोड़, पेटीएम जिसमें चीनी कंपनी की 38 प्रतिशत हिस्सेदारी है ने 100 करोड़ रुपए, जियोमी ने 15 करोड़ और ओप्पो ने एक करोड़ रुपए दिए हैं। कांग्रेस ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) से जुड़े आरोपों को लेकर कई सवाल किए हैं। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि भाजपा को खुद को चुनावी बांड के जरिये मिले चंदे तथा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के साथ अपने संबंधों के बारे में जवाब देना चाहिए। सुरजेवाला ने नड्डा के 10 सवालों के जवाब में 10 सवाल पूछे और यह भी आरोप लगाया कि चीनी घुसैपठ के मुद्दे पर केंद्र सरकार की विफलता से ध्यान हटाने के लिए भाजपा रोजाना कांग्रेस पर आरोप मढ़ रही है। यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि कांग्रेस और देशवासी हमारी मातृभूमि में चीनी घुसपैठ के बारे में सरकार से सवाल करना बंद कर दें।