Thursday 2 July 2020

गिलानी का हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफे का मतलब?

कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देने वाले ऑल पार्टी हुर्रियत कांप्रेंस (गिलानी गुट) के चेयरमैन और कट्टरपंथी 90 वर्षीय सैयद अली शाह गिलानी ने सोमवार को संगठन से पूरी तरह नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया। हुर्रियत कांफ्रेंस शुरू से ही पाकिस्तान एजेंडे पर चलती रही है। पिछले कुछ समय से पाकिस्तान से मतभेदों और संगठन में पूरी तरह दरकिनार होने के बाद fिगलानी ने संगठन से इस्तीफा दे दिया है। पिछले वर्ष अगस्त में जम्मू-कश्मीर में हुए ऐतिहासिक बदलाव के बाद का यह एक अहम घटनाक्रम माना जा सकता है। गिलानी ने हालांकि कहा है कि उनकी विचारधारा में कोई बदलाव नहीं आया है लेकिन यह गौर करने लायक है कि हुर्रियत से रिश्ता खत्म करते हुए उन्होंने पाकिस्तान में बैठे अलगाववादी नेताओं को काफी खरी-खोटी सुनाई और उन पर भाई-भतीजावाद से लेकर भ्रष्टाचार और सत्ता के करीब रहने के आरोप लगाए हैं। इससे यह हकीकत फिर सामने आ गई है कि जम्मू-कश्मीर के अलगावादी नेताओं और आतंकवाद को पाकिस्तान की सरकार और सेना का कैसा संरक्षण मिलता रहा है। वास्तविकता यह है कि एक और जहां कश्मीर की कथित आजादी में संघर्ष के नाम पर जैसा कि खुद गिलानी ने अपने पत्र में लिखा है पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में अलगाववादी नेता, विधायक और मंत्री बनते रहे तो दूसरी ओर भारत के अलगाववादी नेता पाक से मिले संरक्षण से जम्मू-कश्मीर के लोगों का भयादोहन करते रहे। हाल ही में शुरू हुए टेरर फडिंग से जुड़े मामलों की जांच के दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पाया है कि कैसे गिलानी सहित अन्य अलगाववादी नेताओं को पाकिस्तान से फंडिंग होती रही है। कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का अगर यह ड्रामा नहीं है और वह अपने इस्तीफे पर कायम रहते हैं और हुर्रियत से पूरी तरह से नाता तोड़ लेते हैं तो इसका सीधा असर कश्मीर में कथित आजादी पाने का आंदोलन अपनी मौत मर जाएगा क्या? यह सवाल अब कश्मीर में सबसे बड़ा इसलिए है कि सैयद अली शाह गिलानी को ही आजादी पाने का आंदोलन माना जाता था और अब 90 साल की उम्र में उनके द्वारा इस्तीफा दे दिए जाने के बाद यह भी सवाल खड़ा हुआ है। वयोवृद्ध गिलानी जो इस समय सांस, हृदयरोग, किडनी रोग समेत विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं ने एक वीडियो संदेश जारी करके इसका ऐलान किया है। 5 अगस्त, 2019 को भारतीय संसद में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए के विशेष प्रावधानों को हटाने और इस राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बदलने के ऐतिहासिक फैसले ने हुर्रियत सहित सारे अन्य अलगाववादी गुटों की कमर तोड़ कर रख दी है। भारत ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि भारत की संप्रभुता से किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता। भारत सरकार के पास मौका है कि वह जम्मू-कश्मीर के अलगाववाद से जुड़े, भटके युवाओं को वापस लोकतांत्रिक रास्ते पर लाने के लिए प्रेरित करें। गिलानी के इस कदम पर पाकिस्तान और अन्य अलगाववादी गुटों पर क्या असर होता है, आने वाले दिनों में पता चल जाएगा। सतर्कता में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।

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