Wednesday, 8 July 2020
हिटलर की तरह चीन भी कई मोर्चे खोलने में लगा है
भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पांच मई से जारी गतिरोध अब भी बरकरार है। हालांकि अब तक भारत-चीन कमांडर स्तर पर तीन दौर की वार्ता सम्पन्न हो चुकी है। यह वार्ता पूर्वी लद्दाख में विभिन्न स्थानों पर चीन के अतिक्रमण पर हटने के तौर-तरीकों को तय करने के उद्देश्य को लेकर आयोजित की गई थी। तीसरे दौर की वार्ता में टकराव वाले स्थानों से सेना घटाने के मुद्दे पर कुछ शर्तें तय की गई थीं। भारत से 14 कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरमिंदर सिंह, जबकि चीन की तरफ से तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट मेजर जनरल लियुलिन शामिल हुए। चीन-भारत के बीच सहमति बनने के बाद भी पैंगोंग त्सो से पीछे नहीं हटा चीन। यही नहीं कई और स्थानों पर उसने अपनी सेनाएं और आगे बढ़ा लीं, पक्के निर्माण करने में लगा हुआ है। उपग्रह की तस्वीरों ने चीन की पोल खोल दी है। तस्वीरों में यह बात भी साफ होती है कि छह जून को बनी सहमति के बाद भी वह एलएसी पर निर्माण करता रहा है। सैटेलाइट कंपनी मैक्सर टेक्नोलॉजी द्वारा जारी तस्वीरों से स्पष्ट है कि चीन द्वारा गलवान घाटी के निकट उस क्षेत्र में लगातार निर्माण किए जा रहे हैं, जिस पर भारत का दावा है। यह निर्माण 22 मई के बाद तेजी से किए गए। इस बीच छह जून को दोनों देशों के बीच पूर्व की स्थिति में लौटने पर सहमति बनी, लेकिन इसके बावजूद गलवान घाटी में चीन का निर्माण जारी रहा। मैक्सर की तरफ से 23 जून को जो तस्वीरें जारी की गई हैं, उनमें गलवान नदी के तट पर बड़े पैमाने पर निर्माण दिखाया गया है जबकि 22 मई में निर्माण शुरू होने के संकेत हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री का कहना है कि यूरोप से फौजें हटाकर एशिया में खासकर भारत के पक्ष में चीन पर अंकुश लगाने के लिए तैनात की जा सकती हैं, अच्छी खबर है। साउथ चाइना समुद्र में पहले ही अमेरिकी बेड़े तैनात हैं। अब देखना यह है कि रूस क्या भूमिका रखता हैöखासकर जब भारत के अधिकांश हथियार रूसी हैं। चीन की विस्तारवादी नीति ने उन दोस्तों को भी नहीं छोड़ा जिन्होंने अमेरिका या भारत का पुराना साथ छोड़ चीन का दामन थामा था। जैसे फिलीपींस व नेपाल। मलेशिया, वियतनाम, इंडोनेशिया व ताइवान पहले से ही इसके शिकार हैं। चीनी नेतृत्व यह भी नहीं समझ पा रहा है कि एक साथ कई मोर्चे खोलना विश्वयुद्ध का आगाज कर सकता है और वह भी तब जब दुनिया कोरोना से जूझ रही हो। बहरहाल आज कोरोना से वैश्विक अस्तित्व का संकट है। इसके दबाव में व्यक्ति, समूह व राष्ट्र गलत फैसले ले रहे हैं। जिस महामारी के छह महीने बाद भी वैक्सीन तो दूर, दवा भी नहीं बन सकी उससे लड़ने की जगह सीमा पर तनाव पैदा करना और वह भी आधा दर्जन मुल्कों के साथ, चीन की दहशत का द्योतक है। कुछ ऐसा ही जैसा हिटलर ने द्वितीय विश्वयुद्ध में कई मोर्चे खोलकर किया था। देखना होगा कि 3500 साल की मानव सभ्यता के इतिहास से आज के मनुष्य ने क्या सबक लिया?
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