Thursday 31 October 2019

हरियाणा के नतीजे दिल्ली में भाजपा के लिए खतरे की घंटी

महाराष्ट्र और हरियाणा में चली हवा राजधानी दिल्ली की सियासत में हलचल पैदा कर सकती है। खासकर हरियाणा के चुनावी नतीजे अगले साल होने वाले दिल्ली के विधानसभा चुनाव के सियासी मिजाज को भी पभावित कर सकते हैं। बेशक हरियाणा के चुनावी नतीजे भाजपा की रणनीति से तकरीबन उलट सामने आए हैं। यहां पार्टी ने राष्ट्रवाद, कश्मीर के अनुच्छेद 370 समेत अन्य राष्ट्रीय मुद्दों को अपना मुख्य चुनावी हथियार बनाया था। रणनीति में बदलाव नहीं होगा तो यह दिल्ली की राजनीति के लिए एक बार फिर खतरे की घंटी साबित होगी। मालूम हो कि दिल्ली की सत्ता से भाजपा 20 सालों से दूर है। आम आदमी पार्टी (आप) ने बीते चुनाव में हरियाणा में जमकर काम किया था लेकिन इस बार के चुनाव में आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस रणनीति में बदलाव किया है। इस बार आप पार्टी का सीधा लक्ष्य दिल्ली के चुनाव हैं। आम आदमी पार्टी बिजली-पानी, सार्वजनिक परिवहन व मोहल्ला क्लीनिक जैसे मसलों पर चुनावी माहौल तैयार कर रही है, जिसका तोड़ अब तक न तो भाजपा के पास है और न ही कांग्रेस के पास है। आप रणनीतिकार मान रहे हैं कि हरियाणा व महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम से साबित हो गया है कि विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय मसलों पर नहीं लड़ा जाता है। राष्ट्रवाद अनुच्छेद 370 और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा असरदार नहीं रहेंगे। दिल्ली विधानसभा चुनाव भी स्थानीय मुद्दों पर होगा। आप सरकार बीते पांच साल के कामों का जमकर पचार करेगी और इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता कि पिछले पांच सालों में केजरीवाल सरकार ने जनता से सीधे जुड़े मुद्दों पर पभावी ढंग से काम किया है। दूसरी तरफ दिल्ली कांग्रेस का मानना है कि हरियाणा का चुनाव साबित करता है कि लोग मौजूदा सत्ताहीन पार्टी से नाराज हैं। वह विकल्प की तलाश कर रहे हैं। उनको पुराने कांग्रेस शासन खासकर शीला दीक्षित के कार्यकाल की याद आ रही है। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा की तरह दिल्ली में आप ने भी दिल्ली वालों से झूठे वायदे किए हैं। 2015 विधानसभा चुनाव के बाद के चुनावों में कांग्रेस का वोट पतिशत बढ़ा है। हरियाणा के नतीजों से न सिर्प कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह आएगा, बल्कि आम वोटरों को भी कांग्रेस में भरोसा बढ़ेगा। उधर भाजपा हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों को अपनी जीत मान रही है। इसका सीधा असर हरियाणा से सटे इलाकों पर पड़ने की उम्मीद भाजपा को है। इसलिए आम आदमी पार्टी ने राष्ट्र के मुद्दों को छोड़कर स्थानीय मुद्दों पर काम शुरू किया है। वहीं कच्ची कालोनियों को पक्का करने का बड़ा वादा भाजपा का मास्टर कार्ड है। हरियाणा-महाराष्ट्र चुनाव के तत्काल बाद जो हालात सामने आए हैं उससे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का रवैया सख्त रहा है। दिल्ली की स्थिति में भी पार्टी को पुराने नेताओं की नाराजगी को ध्यान में रखना होगा। क्योंकि नए नेताओं को जोड़ने के चक्कर में पार्टी का मूल कैडर छूट रहा है। इस वजह से भाजपा को पुरानी सीटों पर भी लगातार नुकसान हो रहा है। दिल्ली की 25-30 सीटें ऐसी हैं जो जाट, पंजाबी, गुर्जर जैसे समुदाय से संबंधित हैं। इन सीटों के समीकरण सुधारकर ही दिल्ली की सत्ता का रास्ता खुलेगा। इस सबसे साफ है कि 2020 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होगा।

-अनिल नरेन्द्र

हम दुष्यंत नहीं हैं जिसके पिता जेल में हैं

2014 के पहले गठबंधन सरकारों की खींचतान इन दिनों महाराष्ट्र में देखने को मिल रही है। चुनाव परिणाम आने के इतने दिन बाद भी महाराष्ट्र में सरकार नहीं बन सकी। भाजपा और शिवसेना एक-दूसरे पर आरोप-पत्यारोप लगाने में कसर नहीं छोड़ रही। शिवसेना कह रही है कि भारतीय जनता पार्टी को यह लिखित गारंटी देनी होगी कि तय 50-50 फार्मूले के अनुसार सरकार का गठन होगा, यानी ढाई साल भाजपा का मुख्यमंत्री और ढाई साल शिवसेना का। इस पर मंगलवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने दो टूक कहा कि शिवसेना के साथ ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पर कोई बात नहीं हुई थी। उन्हेंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री तो पांच साल के लिए भाजपा का ही बनेगा। इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए। उनके इस बयान के बाद शिवसेना ने तेवर तीखे करते हुए भाजपा के साथ मंगलवार को होने वाली बैठक रद्द कर दी। पार्टी नेता संजय राउत के मुताबिक केन्द्राrय मंत्री पकाश जावड़ेकर और शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं के बीच होने वाली बैठक रद्द हो गई और उद्धव ठाकरे के निर्देश पर बैठक टल गई। उससे पहले संजय राउत ने भाजपा पर तीखा वार करते हुए कहा कि यहां कोई दुष्यंत नहीं है जिसके पिता जेल में हैं। यहां हम धर्म और सत्य की राजनीति करते हैं। 288 सदस्यों की विधानसभा में भाजपा को 105 और शिवसेना को 50 सीटें मिली हैं। शिवसेना ने यहां तक कह दिया है कि अगर तय समझौते के तहत सीएम पद आधा-आधा नहीं मिला तो वह सरकार गठन के दूसरे विकल्प भी तलाश कर सकती है।  यह एनसीपी-कांग्रेस के समर्थन लेने की ओर इशारा था। चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को 54 सीटें और कांग्रेस को 41 सीटें मिली हैं। निर्दलीयों को 30 सीटें मिली हैं। अगर दोनों दलों ने मिलकर शिवसेना को सपोर्ट किया तो उनकी सरकार भी बन सकती है। हालांकि भाजपा को ऐसी कोई संभावना नहीं दिख रही है। शिवसेना का यह रवैया वास्तव में महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम की परिणति है। अगर भारतीय जनता पार्टी की सीटें 135-140 तक पहुंच गई होती तो शिवसेना ऐसी मांग नहीं रख पाती। शिवसेना की सोच है कि भारतीय जनता पार्टी को उनके साथ सरकार बनाना उसकी मजबूरी है। अत इसमें जितना मोलभाव कर सकते हैं कर लेना चाहिए। सूत्रों के अनुसार भाजपा सरकार गठन के लिए शिवसेना को ऑफर देने को तैयार है। इसके तहत भाजपा ने कई तरह के डील का विकल्प दिया है। इसमें एक है देवेन्द्र फडणवीस के बाद नंबर दो पर फुल टर्म डिप्टी सीएम का पद शिवसेना को देना। अगर शिवसेना सीएम पद के लिए अड़ी रही तो इसके लिए भी विकल्प तैयार रखा गया है। जीती सीटों की संख्या के लिहाज से भाजपा पहले चार साल तो अंतिम एक साल शिवसेना को सीएम पद का विकल्प दे सकती हैं। वहीं पिछली बार के मुकाबले कुछ अहम मंत्रालय शिवसेना को दिए जा सकते हैं। लेकिन शिवसेना सीएम पद में बराबरी की हिस्सेदारी लेने पर अड़ी हुई है। शिवसेना सूत्रों के अनुसार अगर आधा-आधा नहीं हुआ तो 3-2 के फार्मूले से कम पर तो बात नहीं होगी। मतलब 3 साल भाजपा और दो साल शिवसेना का सीएम होगा। यह नूराकुश्ती अभी 8-10 दिन चलेगी, जब तक सरकार बनने की अंतिम तय सीमा खत्म होने को नहीं होगी। 

Wednesday 30 October 2019

यूपी-बिहार में एनडीए को नुकसान क्यों हुआ?

देश के 16 राज्यों और एक केंद्रीय शासित प्रदेश पुडुचेरी की 51 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में यूपी-बिहार में सत्ताधारी एनडीए को झटका लगा है। यूपी की 11 रिक्त सीटों में भाजपा सात, सपा तीन और अपना दल (सोनेलाल) को एक सीट पर सफलता मिली है। वहीं बिहार में चार सीटों पर लड़ रहे सत्तारूढ़ जदयू को एक सीट से संतोष करना पड़ा है। विपक्षी राजद ने चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें दो पर उसकी जीत हुई है। एक सीट ओवैसी की पार्टी ने जीतकर राज्य में खाता खोल लिया है। यूपी में बसपा को अपनी एक सीट हारने का बड़ा झटका लगा है। भाजपा को एक सीट का नुकसान हुआ है जबकि प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को पिछले चुनावों के मुकाबले दो सीटों का फायदा हुआ है। इन परिणामों ने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को संजीवनी दी है। सपा ने जहां अपनी रामपुर सीट को बचा लिया वहीं भाजपा और बसपा से एक-एक सीट छीनकर तीनों सीटों पर सफलता हासिल की। इतना ही नहीं पार्टी के उम्मीदवार 11 में से चार जगह दूसरे स्थान पर रहे। अगर बसपा और सपा का गठबंधन जारी रहता है तो दोनों को कहीं ज्यादा सीटें मिलतीं और भाजपा को और ज्यादा नुकसान होता। बहन जी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। उत्तर प्रदेश में सत्ता संघर्ष के लिए अकेले चल पड़े अखिलेश यादव की साइकिल बेशक उम्मीदों के ट्रेक पर आ गई है। बिहार में लोकसभा समेत छह सीटों के लिए हुए उपचुनाव का रिजल्ट एनडीए के लिए अगले विधानसभा चुनाव के लिए लाल बत्ती के सामान है। इन छह सीटों पर विपक्ष के लिए खोने को कुछ नहीं था किन्तु एनडीए से सीटें छीनकर विपक्ष ने जता दिया कि अगले विधानसभा चुनाव में युद्ध भीषण होगा। सहानुभूति लहर के कारण समस्तीपुर लोकसभा का उपचुनाव परिणाम ने एनडीए की लाज बचा ली। इस उपचुनाव में हार-जीत में स्थानीय मुद्दे के साथ उम्मीदवार की भूमिका अहम रही। घरौंदा विधानसभा के उपचुनाव में निर्दलीय की जीत ने साबित कर दिया है कि वहां की जनता ने जदयू और राजद दोनों को ठुकरा दिया है। इसी तरह किशनगंज विधानसभा के उपचुनाव में भी किसी स्थापित दल की जीत नहीं हुई है। दोनों भाजपा व राजद के उम्मीदवार पराजित हुए हैं। ओवैसी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज कर पार्टी को बिहार में भी अपना खाता खोलने का अवसर दे दिया है। भाजपा व जदयू दोनों को अहसास हो गया है कि संयुक्त टीम महागठबंधन पर हर समय कहर ढाएगी। दोनों एक-दूसरे को स्वाभाविक दोस्त भी मानते हैं। साथ ही रहने में दोनों को फायदा है। यह परिणाम नीतीश कुमार के लिए खतरे का संकेत दे रहे हैं। सुशासन बाबू का जादू उतरता लगता है। प्रदेश में दोनों दलों के कार्यकर्ता उधेड़बुन में नजर आए। यदि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भाजपा व जदयू के गठजोड़ को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं करता तो छह सीटों के उपचनाव में एनडीए का सूपड़ा भी साफ हो सकता था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जब तक कदम उठाते बिहार में भाजपा व जदयू कार्यकर्ताओं के बीच कुछ अलग संदेश चला गया था। अगर बिहार में जदयू-भाजपा गठबंधन को मुंह की खानी पड़ी है तो उसके लिए वह खुद और सुशासन बाबू जिम्मेदार हैं।

-अनिल नरेन्द्र

पुराने क्षत्रप ही बन रहे कांग्रेस के संकटमोचक

विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कांग्रेस अभी जीवित है और अगर जोर लगाए तो फिर से खड़ी हो सकती है। बेशक इस बार पार्टी को अपने क्षत्रपों का सहारा लेना पड़ा। त्रिशंकु हरियाणा विधानसभा नतीजों के बाद सत्ता की तराजू भले ही भाजपा के पक्ष में झुक जाए, मगर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा में कांग्रेसी सियासत के तराजू को एक बार फिर मजबूती से पकड़ लिया है। अगर हुड्डा को हाई कमान का थोड़ा पहले समय मिलता तो शायद वह इससे भी बेहतर परिणाम ला सकते थे। हरियाणा के नतीजों के बाद शायद इसलिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सूबे की कमान आखिरी समय में देने की कांग्रेस नेतृत्व की रणनीति पर सवाल उठाए जा रहे हैं। हाई कमान ने काफी मशक्कत के बाद हुड्डा को कमान तब सौंपी जब चुनाव में महीनेभर का भी समय नहीं रह गया था। वैसे यह फैसला भी सोनिया गांधी के दोबारा अध्यक्ष बनने के बाद तब हुआ जब हुड्डा ने कांग्रेस तक छोड़ने की चेतावनी दे डाली। हरियाणा के पड़ोसी राज्य पंजाब में भी 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की कहानी कम दिलचस्प नहीं रही थी। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) के बढ़ते ग्राफ की गूंज के बीच कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने अकाली-भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी की दोहरी चुनौती को धराशायी करते हुए कांग्रेस की जीत का परचम लहराया। पंजाब की चार विधानसभा सीटों पर 21 अक्तूबर को हुए उपचुनाव नतीजों के मुताबिक कैप्टन की ढाई साल की कारगुजारी पर सूबे के वोटरों ने फतेह दर्ज करवाते हुए कांग्रेस के सिर पर लोकतांत्रिक ध्वज एक बार फिर फहरा दिया। जबकि इन्हीं चुनावी नतीजों के मुताबिक कैप्टन के अतिविश्वसनीय कहे जाने वाली सियासी सिपहसालार और कांग्रेस के महासचिव छोटे कैप्टन संदीप संधू लुधियाना के दाखा विधानसभा उपचुनावों में हार का मुंह देखने के लिए मजबूर हुए जबकि शिरोमणि अकाली दल (बादल) के प्रधान और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल की व्यक्तिगत सियासी मजबूत हलका जलालाबाद में पहली बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेसी प्रत्याशी रमिन्द्र आवला ने सेंधमारी कर किला ध्वस्त किया है। कांग्रेस ने चार में से तीन विधानसभा सीटें जीतीं। छत्तीसगढ़ में भी पार्टी के पुराने भरोसेमंद नेता भूपेश बघेल पर दांव लगाना कांग्रेस के लिए फायदेमंद रहा। सूबे में 15 साल बाद पार्टी की सत्ता वापसी ही नहीं हुई बल्कि भाजपा को सूबे में अपनी सबसे करारी पराजय का सामना करना पड़ा। कर्नाटक में बेशक कांग्रेस को पिछले चुनाव में सत्ता गंवानी पड़ी मगर सिद्धरमैया की वजह से पार्टी की राजनीतिक ताकत बरकरार रही। शायद इसीलिए येदियुरप्पा सरकार बनने के बाद सोनिया गांधी ने सूबे के तमाम नेताओं के एतराज को दरकिनार करते हुए सिद्धरमैया को हाल ही में कर्नाटक में विपक्ष का नेता बनाकर एक बार फिर क्षत्रपों पर ही भरोसा करने का संदेश दिया। हुड्डा ने हरियाणा में कमाल दिखाकर पुराने क्षत्रपों के अब भी कांग्रेस के संकटमोचक बने रहने पर रही सही दुविधा को भी खत्म कर दिया है। कांग्रेस ने महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजों का भाजपा की नैतिक हार करार देते हुए कहा कि इस परिणाम ने सत्तारूढ़ पार्टी के झूठे वादों का पर्दाफाश किया है। वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा कि भाजपा ने न सिर्प हरियाणा में बहुमत ही खोया है, बल्कि लोकसभा चुनाव के मुकाबले उसके वोट प्रतिशत में भी 32 प्रतिशत की गिरावट आई है।

Tuesday 29 October 2019

देवी लाल की दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी एक साथ विधानसभा पहुंची

मई में लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह मोदी मैजिक ने हरियाणा में भाजपा को रिकॉर्ड जीत नसीब करवाई थी, वहीं पांच महीने बाद ही सत्तारूढ़ भाजपा को झटका लगा है। 75 पार का लक्ष्य लेकर चल रही हरियाणा भाजपा 40 का आंकड़ा भी बमुश्किल छू पाई। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, स्मृति ईरानी, हेमा मालिनी, सन्नी देओल, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी जैसे बड़े चेहरों समेत 40 स्टार प्रचारकों ने अपनी ताकत झौंकी थी। बावजूद इसके भाजपा जीत से दूर रही और उसे जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ गठबंधन सरकार बनानी पड़ी। हरियाणा के अंतिम छोर में बसे चौटाला गांव के पांच विधायक 14वीं विधानसभा में पहुंचे हैं। पांचों चौधरी देवी लाल के बेटे रणजीत सिंह रानियां से, पौत्र अभय सिंह ऐलनाबाद, पौत्र वधू नैना चौटाला, वाढड़ा, प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला उचाना और अमित सिहाग डबवाली से विधायक बने हैं। यह प्रदेश और शायद देश का भी पहला परिवार है जिसके चौधरी देवी लाल की दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी एक साथ विधानसभा पहुंची है। भाजपा ने हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) से गठबंधन कर जाटों को एक बार फिर साधने की कोशिश की है। ऐसा करने से जाट समुदाय का भाजपा के प्रति भरोसा फिर लौटेगा और उसे हरियाणा ही नहीं आने वाले दिल्ली चुनाव और अन्य राज्यों में भी इसका लाभ मिल सकता है। बता दें कि गत गुरुवार रात से ही जजपा के साथ एक अलग पैनल खोलकर भाजपा ने बातचीत शुरू कर दी थी। इसे वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर चला रहे थे। अनुराग ठाकुर के दुष्यंत चौटाला से निजी संबंध भी हैं और इन दोनों युवाओं ने कई दौर की बातचीत कर यह स्थिति बना ली थी कि भाजपा और जजपा का गठबंधन लगभग तय हो गया था। सारी बातें तय होने के बाद अहमदाबाद गए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को संदेश भेजा गया। शाह ने दिल्ली आकर दुष्यंत चौटाला के साथ आखिरी दौर की बातचीत की। इस बैठक में एकमात्र मुद्दा उपमुख्यमंत्री का रहा जिस पर भाजपा ने सहमति जता दी। भाजपा वैसे भी गोपाल कांडा से समर्थन लेने से कतराने लगी थी क्योंकि कांडा के खिलाफ विपक्ष को छोड़ खुद भाजपा के अंदर जबरदस्त विरोध होने लगा था। सो उसे लगा कि जजपा से गठबंधन करने में कांडा को परे करने में पार्टी को ज्यादा फायदा है। वैसे हरियाणा की राजनीति में विरोधियों के साथ गठबंधन करके सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की परंपरा राज्य बनने के साथ ही शुरू हो गई थी। राजनीतिक रूप से आपातस्थिति में देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल सरीखे नेताओं ने गठबंधन कर सत्ता हासिल की। मगर यह भी हकीकत है कि हरियाणा को कभी भी गठबंधन की राजनीति रास नहीं आई। 1977 में चौधरी देवी लाल के नेतृत्व में पहली बार यह गठबंधन बना। कुछ समय बाद भजन लाल ने देवी लाल सरकार गिरा दी और 1980 में भजन लाल कांग्रेस में शामिल हो गए और सरकार बना ली। 1987 में देवी लाल ने भाजपा संग गठबंधन सरकार बनाई। उनमें ओम प्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने। भाजपा ने गठबधन तोड़ लिया और सरकार अल्पमत में चली गई। 1996 में बंसी लाल ने हरियाणा विकास पार्टी बनाई और भाजपा के साथ गठबंधन करके सत्ता में आ गए। 1999 में भाजपा ने समर्थन वापस लिया तो बंसी लाल सरकार गिर गई। 2009 में जनहित कांग्रेस और भाजपा का गठबंधन हुआ। वैचारिक मतभेद होने के कारण और 2014 में  जनहित कांग्रेस और बसपा का गठबंधन हुआ। यह भी लंबा नहीं चला। अब हाल में बसपा और इनेलो ने फिर गठबंधन किया। इनेलो और भाजपा का गठबंधन हुआ तो ओम प्रकाश चौटाला भी सत्ता की सीढ़ी चढ़ गए। यह गठबंधन भी लंबे तक नहीं चला। हरियाणा में इनेलो सरकार अल्पमत में आ गई और उसने केंद्र में भाजपा से समर्थन वापस ले लिया। इस बीच हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इनेलो ने बसपा के साथ गठबंधन किया। यह गठबंधन भी लंबा नहीं चल सका। अगर हरियाणा में गठबंधन सरकारों की बात करें तो यह अनुभव अच्छा नहीं रहा है। भाजपा का ट्रेक रिकॉर्ड भी गठबंधन सरकारों का अच्छा नहीं है। उम्मीद करते हैं कि इस बार यह सरकार लंबी चले।

-अनिल नरेन्द्र

सरयू तट पर दीपोत्सव का नया इतिहास रच दिया गया

अद्भुत...अकल्पनीय...छोटी दीपावली पर आस्था के दीपों से रामनगरी शनिवार को ऐसी जगमगाई... मानो त्रेता युग लौट आया। पुष्पक विमान से सिया-राम और लखन उतरे। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और  फिजी की डिप्टी स्पीकर वीणा भटनागर ने उनका अभिनंदन किया। राम कथा पार्प में राजा रामचन्द्र का दरबार सजा। मुख्यमंत्री ने महंत नृत्य गोपाल दास के साथ राज्याभिषेक किया। इसके कुछ देर ही बाद सरयू आरती हुई और फिर पावन नगरी अयोध्या में 5.51 लाख दीपक प्रज्जवलित किए गए। रामनगरी में श्रीराम पैड़ी पर देर शाम दीप जलने का कार्यक्रम शुरू हो गया। श्रीराम पैड़ी पर अवध विश्वविद्यालय के छह हजार वालेंटियर दीप जलाने में जुटे रहे। इसके साथ ही पैड़ी पर दीप जलाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम हो गया। अवध विश्वविद्यालय ने अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ते हुए दीपोत्सव में अहम भागीदारी की। अवध विश्वविद्यालय का लक्ष्य चार लाख दीप जलाने का था, लेकिन उसने 4.10 लाख दीपों को जगमगा दिया। पिछली बार 3.21 लाख दीपों का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। इस बार समारोह पर निगाह रख रही गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की टीम ने इसे अद्भुत बताते हुए वर्ल्ड रिकॉर्ड बनने की घोषणा कर दी। दीपावली पर अयोध्या भगवान राम के रंग से रंगी हुई थी। यहां थ्रीडी तकनीक से राम कथा का मंचन हुआ। रामनगरी को राम के रंग में पिरोने के लिए हजारों स्कूली बच्चों ने भगवान राम के जीवन पर आधारित चित्रकारी से अयोध्या को आलौकिक बना दिया। पिछले दो साल से अयोध्या में ऐतिहासिक दीपावली मनाने वाली योगी सरकार ने इस बार रिकॉर्ड बनाया। शाम अयोध्या में एक साथ 5.5 लाख दीये जलाकर योगी सरकार ने अपने ही पिछले रिकॉर्ड को तोड़कर नया इतिहास रचा। इस दीपोत्सव कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पहुंचे। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अयोध्या में मंदिर-मस्जिद मसला गुजरे जमाने की बात है। श्रीराम राज्याभिषेक एवं दीपोत्सव के साथ धार्मिक नगरी को नई पहचान मिल गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कलयुग में त्रेतायुग का दिव्य दर्शन कराकर रामनगरी की आध्यात्मिक पहचान देने का जो प्रयास किया वह रंग लाया। सरयू तट पर दीपोत्सव का नया इतिहास रच दिया गया। रामनगरी को विश्व के पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोई कसर नहीं छोड़ी। मुस्लिम समुदाय के लोग भी इसमें शामिल हुए। बाबरी मस्जिद के मुद्दई इकबाल अंसारी ने धर्मकांटा स्थित आवास पर शोभायात्रा में शामिल श्रीराम दरबार का स्वागत किया। योगी जी ने अयोध्या को नई पहचान देने का जो प्रयास दो साल पहले शुरू किया था वह धार्मिक नगरी के लिए `मील का पत्थर' साबित होने लगे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछली सरकारों पर अयोध्या की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि पहले की सरकारें अयोध्या के नाम से डरती थीं और यहां आना नहीं चाहती थीं। उन्होंने कहा कि अयोध्या में विकास की गंगा बहाने की योजना है। अयोध्या की पहचान दिलानी है। जय श्रीराम।

Sunday 27 October 2019

विधानसभा चुनाव नतीजों से मिले यह अहम संदेश

दो राज्यों हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव परिणाम कम से कम यह तो संकेत देते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अजेय नहीं है और जनता राज्य सरकारों की गलतियों के लिए सजा देने को तैयार है। दूसरा संदेश भी उतना ही स्पष्ट है कि मतदाता अब लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव में अलग-अलग तरीके से स्थितियों को देखता है। हालांकि महाराष्ट्र में शिवसेना के गठबंधन के साथ उसकी सरकार बन गई वहीं हरियाणा विधानसभा में उसे करारी हार मिली है। बेशक ज़ोड़तोड़ से भाजपा सरकार बना रही है पर हकीकत यह है कि राज्य में बहुमत वोट उसके खिलाफ पड़ा है। महज पांच महीने पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने दम पर 300 से अधिक सीटें जीती थीं। लेकिन इन दोनों राज्यों के नतीजे उसके अपने पैमाने पर खरा नहीं उतरते। 288 सीटों वाले महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने इस बार 220 से अधिक सीटें जीतने का दावा किया था, लेकिन उसे पिछली बार की तुलना में करीब 20 सीटें कम मिली हैं। वहीं हरियाणा में भाजपा ने ़75 पार का दावा किया था, लेकिन टारगेट से बहुत दूर रह गई। सच कहा जाए तो यह उसके लिए बहुत बड़ा धक्का है। दोनों राज्यों में लग नहीं रहा था कि कांग्रेस पूरे मन से चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से चुनाव की मोर्चाबंदी की कोई झलक भी नहीं थी। बावजूद इसके हरियाणा में कांग्रेस का प्रदर्शन इतना अच्छा हुआ है तो निश्चित है कि यह भाजपा की प्रदेश सरकार के खिलाफ असंतोष का परिचायक है। मनोहर लाल खट्टर सरकार के ज्यादातर मंत्रियों की पराजय बता रही है कि सरकार को लेकर आम जनता के साथ-साथ पार्टी के अंदर भी असंतोष था। चुनाव में मतदाता जब वोट देते हैं तो वह सिर्प उम्मीदवारों को जिताते या हराते नहीं हैं। वह उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों को स्पष्ट संदेश भी देते हैं। पूरे चुनाव के दौरान और मतदान के बाद तक यह माना जा रहा था कि दोनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी जोरदार ढंग से सत्ता में वापसी करेगी। यहां तक कि मतदान बाद के तमाम सर्वेक्षण (एक को छोड़कर) भी यही कह रहे थे। ऐसे नतीजों पर पहुंचना सबके लिए बहुत आसान भी था। सभी यही संकेत दे रहे थे कि दोनों राज्यों में भाजपा की जबरदस्त वापसी होगी। एक और स्पष्ट संकेत यह भी मिला कि मोदी के करिश्मे पर अकेले अब विधानसभा चुनाव नहीं जीते जा सकते। मोदी मैजिक घटने का यह स्पष्ट संकेत है। विधानसभा चुनावों में और लोकसभा चुनावों में एक बुनियादी फर्प है, वह है अलग-अलग मुद्दे होना। उदाहरण के तौर पर हरियाणा जहां लगभग हर गांव से सैनिक आते हैं में राष्ट्रवाद मुद्दा नहीं चला। राज्य सरकार ने पिछले पांच साल में क्या काम किया है उस पर वोट पड़े हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने महाराष्ट्र व हरियाणा दोनों ही जगह जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को निप्रभावी करने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों को जोरदार तरीके से, जोरशोर से उठाया था। लेकिन नतीजे बताते हैं कि मतदाताओं के लिए आर्थिक मंदी, बेरोजगारी और कृषि क्षेत्र की हताशा जैसे मुद्दे ज्यादा अहम रहे। विपक्ष और खासकर देश की सबसे पुरानी और अभी दो चुनाव पहले तक (यानि 2009 तक) सबसे बड़ी जनाधार वाली पार्टी कांग्रेस के लिए यह नतीजे क्या संदेश देते हैं? क्या वह अपने जनाधार को वापस लाने पर कुछ विचार करेगी और अगर करेगी तो क्या जो संदेश जनता ने दिया है, सही करने का। छिपा संदेश यह भी है कि आने वाले दिनों में युवा आदित्य ठाकरे, दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में शिवसेना और जेजेपी को अपना आधार बढ़ाना होगा, क्योंकि सहयोगी भाजपा अपने ही सहयोगियों का आधार आत्मसात करने में माहिर रही है। मुकाबले में जो राजनीतिक दल हैं वह आज भले ही एकल नेतृत्व वाला हो गया हो, मूल रूप से विचारधारा, कैडर और प्रतिबद्धता वाला दल रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा से मिली करारी हार से हताशा में चले गए विपक्ष को महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों तथा कई राज्यों के उपचुनावों के नतीजों से न केवल संजीवनी मिली है, बल्कि यह संदेश देने में भी सफल रहे हैं कि यदि विपक्षी पूरी तैयारी से चुनाव में उतरे तो भाजपा के किलों को भेद सकते हैं। हरियाणा, महाराष्ट्र और कई राज्यों के उपचुनावों में विपक्ष चुनाव मैदान में तो था, लेकिन आधी-अधूरी तैयारी से। हाल में ही हुए लोकसभा चुनाव की करारी हार के सदमे से विपक्ष पूरी तरह उबर नहीं पाया था। रही-सही कसर चुनाव से पहले कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों में भाजपा की सेंधमारी, सीबीआई, ईडी द्वारा की गई कार्रवाई से पूरी तरह हताशा में धकेल कर नैतिक रूप से बढ़त हासिल कर ली थी। लेकिन चुनाव में जिस तरह के नतीजे आए हैं, वह यह संदेश दे रहे हैं कि स्थानीय स्तर पर लोगों का विश्वास भाजपा से उठ रहा है और उसे ठोस विकल्प की जरूरत महसूस होने लगी है। यदि यह ऐसे आने वाले राज्यों के चुनाव में विपक्ष एकजुट होकर पूरी शिद्दत से चुनाव मैदान में कूदा तो निश्चित रूप से भाजपा को मात दी जा सकती है। नतीजों से हमें कई अहम संदेश मिलते हैं। राष्ट्रवाद और धार्मिक मुद्दे पर हर चुनाव में जीत की गारंटी नहीं हो सकती है। स्थानीय मुद्दों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता और अगर करेंगे तो वह भारी पड़ सकता है, खासकर विधानसभा चुनावों में। मंदी, महंगाई और बेरोजगारी से पैदा निराशा और नाराजगी कहीं न कहीं जनमानस में जगह बना रही है। इन तीनों को झुठलाना गलत साबित हुआ। नतीजों से यह नहीं कहा जा सकता कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है, लेकिन भाजपा शासित राज्य सरकारों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी है। जातिगत गोलबंदी सियासी सूरत बदल सकती है। हरियाणा में जाट बनाम गैर-जाट, महाराष्ट्र में ब्राह्मण बनाम मराठी के बीच खेमेबंदी ने नतीजों को काफी प्रभावित किया है। महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा को हुए नुकसान की कुछ वजहें साफ हैं। स्थानीय मुद्दों के बजाय कश्मीर, राष्ट्रवाद, पाकिस्तान, सुरक्षा आदि मुद्दे उठाए। न तो राज्य सरकार की उपलब्धियों और न ही एंटी इनकंबैंसी फैक्टर पर ध्यान दिया गया। बढ़ते सेल्फ कॉन्फिडेंस ने भी भाजपा को नुकसान पहुंचाया। यह ताजा नतीजे भाजपा को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने की तरफ संकेत दे रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday 26 October 2019

विरोध करने वालों को कैसे खामोश करती है पाक आर्मी-पुलिस

सारी दुनिया में कश्मीर में मानवाधिकारों को लेकर पूरी दुनिया में ढिंढोरा पीटने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कभी अपने देश में वह क्या कर रहे हैं शायद कभी नहीं देखा। आए दिन पाकिस्तान द्वारा निर्दोषों पर जुल्म ढाहने की खबरें आती रहती हैं। चाहे मामला उनकी नापाक करतूत उजागर करने वालों का हो, चाहे आजाद कश्मीर का हो, चाहे बलूचिस्तान का हो, सब जगह पाक सरकार, सेना के कहर ढालने की खबरें आती रहती हैं। कश्मीर में मानवाधिकार का राग अलापने वाला पाकिस्तान मानवाधिकारों की आवाज उठाने वाले अपने नागरिकों का क्या हश्र करता है, इसका एक उदाहरण है गुलालाई इस्माइल। मारे जाने के डर से किसी तरह बचकर अमेरिका पहुंची इस मानवाधिकार कार्यकर्ता के परिवार का पाकिस्तान में जीना दूभर हो चुका है। उन्हें लगातार परेशान किया जा रहा है। पाकिस्तानी सुरक्षा बल के जवान इस्लामाबाद स्थित गुलालाई के घर आ धमके और उनके रिटायर्ड प्रोफेसर पिता से बाहर आने को कहा। जवानों ने गुलालाई के पिता मोहम्मद इस्माइल से कहा कि वे उनसे बात करना चाहते हैं, लेकिन मोहम्मद सुरक्षा बलों की मंशा भांप चुके थे। उन्होंने घर से बाहर निकलने से इंकार कर दिया। मोहम्मद ने बताया कि मैंने उनसे कहा कि आप बिना यूनिफॉर्म के हैं और आपके पास हथियार हैं। मैं बाहर नहीं आऊंगा। पाकिस्तान में मानवाधिकार की आवाज उठाने वालों और उनके परिजनों को प्रताड़ित करने के लिए इस तरह की छापेमारी की घटना आम हो चुकी है। पाकिस्तानी सुरक्षा बल की करतूतों का खुलासा करने वालों को इस तरह से डरा-धमका कर खामोश करने का चलन बढ़ता जा रहा है। गुलालाई इस्माइल के माता-पिता पर टेरेरिज्म फंडिंग के आरोप में मुकदमा चल रहा है। गुलालाई और उनके परिवार पश्तूनों पर पाकिस्तान की सरकार, पुलिस प्रशासन और सेना के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। पश्तूनों का संगठन पीटीएम बॉर्डर एरिया में पाकिस्तानी सेना द्वारा चलाए जा रहे उस अभियान का कड़ा विरोध करता है जिसे पाक आर्मी आतंकवाद के खिलाफ युद्ध बताती है। हालांकि हकीकत में यह अधिकारों की मांग करने वाले पश्तूनों की हत्या करते हैं। गिरफ्तार किए गए कई पश्तून युवा गायब हो चुके हैं। वहीं दुनियाभर में कश्मीर को लेकर घड़ियाली आंसू बहाने वाला पाकिस्तान अपने कब्जे में पीओके में आए दिन जुल्म ढाहने से बाज नहीं आ रहा है। पीओके के मुजफ्फराबाद में मंगलवार को आजादी की मांग को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे दलों की रैली में पुलिस ने जमकर फायरिंग व लाठीचार्ज किया। इस बर्बर कार्रवाई में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई, जबकि 80 से ज्यादा लोग घायल हो गए। खास बात यह है कि उसी मंगलवार को पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर अपने आतंकी कैंप तबाह किए जाने की  बात को झुठलाने की कोशिश में विदेश राजनियकों को खुद ही चुनी जगहों का दौरा कराया। पाकिस्तान ने कुछ देशों के राजनयिकों को मंगलवार को अपने द्वारा तय किए गए स्थानों का दौरा करवाकर नियंत्रण रेखा पर आतंकी कैंप होने की बात नकारने की कोशिश की। हालांकि इस्लामाबाद के झूठ को बेनकाब करते हुए भारतीय उच्चायोग का अफसरों ने इस दौरे का बायकाट किया। पाकिस्तान की तरफ से आतंकियों की घुसपैठ की कोशिश नाकाम करते हुए हाल ही में भारतीय सेना ने सीमापार स्थित तीन आतंकी कैंप तबाह कर दिए थे।

-अनिल नरेन्द्र

सुभाष के आने से कांग्रेसियों का टूटा मनोबल ऊपर उठेगा

लंबी कशमकश के बाद कांग्रेस ने आखिर बुधवार को दिल्ली की कमान अपने पुराने नेता सुभाष चोपड़ा को सौंप दी। यह दूसरा मौका है जब सुभाष चोपड़ा को दिल्ली कांग्रेस की बागडोर सौंपी है। वह इससे पहले वर्ष 1999 से लेकर 2002 तक पार्टी की बागडोर संभाल चुके हैं। मैं समझता हूं कि कांग्रेस हाई कमान ने सही फैसला किया है। सुभाष दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में हैं और इनके नाम पर आम सहमति बन गई। एक समय तो कीर्ति आजाद को कमान सौंपने की बात चल रही थी पर दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के कुछ नेताओं के एतराज पर उनकी ताजपोशी की घोषणा अंतिम समय पर रोक दी गई। लेकिन चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाकर उन्हें एक तरह से आगामी विधानसभा चुनावों में दिल्ली में पार्टी का चेहरा बना दिया है। सुभाष चोपड़ा सबको साथ लेकर चलने वाले नेता हैं। इनके आने से न सिर्प कांग्रेस में गुटबाजी पर ही लगाम लगेगी बल्कि पार्टी नेताओं में जो भगदड़ मची थी उस पर भी लगाम लगेगी। खुद सम्पन्न होने के नाते सुभाष चोपड़ा प्रदेश का खर्चा उठाने में भी पूरी तरह सक्षम हैं। हाल ही में तो नौबत आ गई थी कि दिल्ली कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता दूसरी पार्टी में जाने का अंतिम फैसला कर चुके थे। दिल्ली की कालका जी विधानसभा सीट से तीन बार विधायक रह चुके चोपड़ा दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। सुभाष चोपड़ा पंजाबी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। दिल्ली में पहली बार किसी नेता को दूसरी बार अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सुभाष चोपड़ा को प्रदेश की कमान सौंपकर कांग्रेस ने जहां पंजाबी मतदाताओं को आकर्षित करने की कवायद की है तो कीर्ति आजाद को चुनाव अभियान समिति की जिम्मेदारी देकर पूर्वांचल मतदाताओं पर डोरे डालने की कोशिश है। इस तरह से कांग्रेस आलाकमान ने अपने तरकश से ऐसे दो तीर छोड़े हैं जो दिल्ली की सियासत में अपने पुराने वोट बैंक को पाले में करने का काम करेंगे। दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मिली बागडोर सुभाष चोपड़ा के लिए हालांकि आसान नहीं है। क्योंकि इस समय उन्हें जो कांग्रेस की कमान मिली है वह अपने में हाशिये पर आई पार्टी की है। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती फिलहाल कांग्रेस से आम आदमी पार्टी में हो रहे नेताओं के पलायन को रोकना है। अभी एक दर्जन पूर्व प्रभावी विधायक आप में जाने को तैयार बैठे हैं उनको किसी तरह रोकना होगा। सुभाष चोपड़ा हालांकि पहले भी दिल्ली कांग्रेस की शाही अंदाज में 2002 के निगम चुनाव में भाजपा से जबरदस्त ढंग से सत्ता छीनी थी और 134 में से 108 सीटें जीतकर परचम फहराया था। सुभाष चोपड़ा के लिए सबसे जरूरी है शीला दीक्षित के निधन के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं का टूटा मनोबल को उठाना। क्योंकि शीला जी के निधन के बाद दिल्ली में यह माहौल बन गया है कि कांग्रेस दिल्ली में मुकाबले से बाहर हो चुकी है और इस बार उसका खाता खुलने पर भी संदेह प्रकट किया जा रहा है। हालांकि हाल ही के महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में खासकर हरियाणा के परिणाम कांग्रेस के लिए संजीवनी बनकर आए हैं। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का इससे मनोबल बढ़ा है। चोपड़ा के नजदीकियों का कहना है कि वह पार्टी को गुटबाजी से ऊपर लेकर चलेंगे व टिकटों के मामले में ऐसे लोगों को आगे लाएंगे जिसमें जीत का माद्दा हो। इस मामले में शायद ही भाई-भतीजावाद चले और संभव है कि कांग्रेस दिल्ली में आश्चर्यजनक रूप से वापसी करे। सुभाष जी को बधाई।

Friday 25 October 2019

पाक समर्थन करने के लिए तुर्की और मलेशिया को भारत ने दिया झटका

संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को उठाने और हाल ही में पेरिस में हुई फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक में पाकिस्तान का खुलकर समर्थन चीन, तुर्की और मलेशिया ने किया था। भारत ने दोनों तुर्की और मलेशिया को पाकिस्तान की तरफदारी करने का कड़ा संदेश दिया है। प्रधानमंत्री ने तुर्की के दो दिन के दौरे को रद्द कर दिया है। वह इस महीने के आखिर में वहां जाने वाले थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह तुर्की की पहली आधिकारिक यात्रा होती। भारत इससे पहले मलेशिया से भी पाम ऑयल के आयात में कटौती के संकेत दे चुका है। मलेशिया ने भी संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मद्दा उठाया था और पाकिस्तान का समर्थन किया था। प्रधानमंत्री मोदी एक बड़े निवेश सम्मेलन में शामिल होने के लिए 27 अक्तूबर को सऊदी अरब जा रहे हैं। वहीं से वह दो दिन की यात्रा पर तुर्की जाने वाले थे। प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान व्यापार और रक्षा के क्षेत्र में आपसी सहयोग पर चर्चा होनी थी। लेकिन अब उनकी यात्रा रद्द हो गई है, जो तुर्की के साथ भारत के संबंधों में आई दूरी का संकेत है। हालांकि दोनों देशों के बीच गर्मजोशी वाले संबंध कभी नहीं रहे हैं। पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन द्वारा कश्मीर मुद्दे को उठाने से दोनों देशों में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। एर्दोगन ने न सिर्प कश्मीर मुद्दा उठाया था, बल्कि वहां भारत द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन से लेकर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव तक का जिक्र किया था। उन्होंने कश्मीर के हालात पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी पर भी सवाल उठाए थे। भारत ने इसे गंभीरता से लिया था। वहीं राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित भारतीय आयातकों द्वारा मलेशिया से पाम ऑयल की खरीद रोकने और इंडोनेशिया का रुख करने से मलेशिया की बेचैनी बढ़ गई है और वह भारतीय खरीददारों को रोकने में जुटा है। मलेशिया में इस फैसले से हलचल मचनी स्वाभाविक ही है। दरअसल भारत मलेशिया के पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है। साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि भारत में पाम ऑयल की खरीद के सौदे रुक जाने से मलेशिया में बेचैनी बढ़ गई है क्योंकि भारत सबसे बड़ा आयातक है। मलेशिया पाम ऑयल एसोसिएशन ने वहीं की मीडिया से कहा कि अगर भारत मलेशिया से पाम ऑयल नहीं खरीदता है तो उसे अपनी जरूरतों की पूर्ति इंडोनेशिया से करनी होगी और इंडोनेशिया जो भी दाम मांगेगा उसे भारत को स्वीकार करना होगा। इस पर चतुर्वेदी ने कहा कि हमें किस दर पर इंडोनेशिया से पाम ऑयल खरीदना है तो यह हमारा मसला है। हमारे लिए देश का सवाल पहले है और उसके बाद कारोबारी रिश्ते। गौरतलब है कि कश्मीर मसले को लेकर मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की आलोचना की थी। उन्होंने कश्मीर का मसला उठाते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव लाए जाने के बावजूद भारत ने उस पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में कर लिया। इसके बाद भारतीय आयातक इस महीने से मलेशिया से पाम ऑयल के नए सौदे नहीं कर रहा है। भारत ने दोनों तुर्की और मलेशिया को यह जता दिया है कि उनको भारत का विरोध महंगा पड़ेगा।

-अनिल नरेन्द्र

निर्मला सीतारमण बनाम डॉ. मनमोहन सिंह

केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जोर पकड़ता जा रहा है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिका की प्रतिष्ठित कोलंबिया विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स में भाषण देते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन दोनों की अगुवाई में भारतीय सरकारी बैंकों ने अपना अब तक का सबसे खराब दौर देखा। सीतारमण ने कहा कि आज सरकारी बैंकों को एक नया जीवन देना उनका प्रमुख कर्तव्य है।  हालांकि सीतारमण ने कहा कि वह विद्वान के तौर पर रघुराज राजन का सम्मान करती हैं और उन्हें उस दौर में केंद्रीय बैंक के लिए चुना गया था, जब अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही थी। सीतारमण कोलंबिया विश्वविद्यालय में भारतीय आर्थिक नीतियों पर दीपक और नीरज राज केंद्र द्वारा आयोजित व्याख्यान में बोल रही थीं। वित्तमंत्री ने कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह उस समय प्रधानमंत्री थे और डॉ. राजन इस बात से सहमत होंगे कि डॉ. मनमोहन सिंह का भारत के लिए एक स्पष्ट विजन था। इस बात पर श्रोताओं ने ठहाके भी लगाए। हालांकि निर्मला ने कहा कि मुझे इस बात पर संदेह नहीं है कि राजन जानते थे कि वह क्या कर रहे हैं। लेकिन यह तथ्य है कि सरकारी बैंकों ने सिंह और राजन के दौर में अपना सबसे खराब दौर देखा। केंद्रीय बैंक के प्रमुख के रूप में राजन के कार्यकाल में बैंक कर्जों को लेकर बड़ी समस्याएं सामने आईं। यह रघुराम राजन का कार्यकाल ही था, जब सिर्प नेताओं के फोन कॉल पर कर्ज दे दिए जाते थे और भारत के सरकारी बैंक आज भी उस संकट से निकलने के लिए सरकार की पूंजी पर निर्भर बने हुए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बृहस्पतिवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के आरोपों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि सरकार समस्याओं का समाधान तलाशने की बजाय विपक्षियों पर आरोप लगाने की आदत से मजबूर है। अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए असली दिक्कतों और वजहों का पता लगाना जरूरी है। सरकार की उदासीनता से देश के लोगों की महत्वाकांक्षाएं और भविष्य प्रभावित हो रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि निचली मुद्रास्फीति की सनक से किसानों पर संकट और सरकार की आयात-निर्यात नीति से भी समस्याएं खड़ी हो रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस में जो हुआ वह हुआ, कुछ कमजोरियां रही होंगी, लेकिन इस सरकार को उनसे सीख लेकर अर्थव्यवस्था की समस्याओं से निपटना  चाहिए, आप हर साल यह कहकर नहीं बच सकते कि यह सब यूपीए सरकार की देन है। आप कोई समाधान नहीं निकाल पा रहे हैं। एक समय महाराष्ट्र देश के सबसे ज्यादा निवेशकों को आकर्षित करता था, लेकिन अब यह किसानों की आत्महत्या के मामले में अग्रणी है। पूर्व प्रधानमंत्री बोलेöमेरा मानना है कि 2024 तक भारत को 50 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बनने की कोई उम्मीद नहीं है। वह भी तब जब साल-दर-साल विकास दर गिर रही हो। सुशासन का बहुप्रचारित डंबल रंजन मॉडल फेल हो गया है जिस पर भाजपा ने वोट हासिल किया था। महाराष्ट्र गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। महाराष्ट्र में लगातार चौथे साल विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर गिरी है। पीएमसी बैंक घोटाला एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है।

Thursday 24 October 2019

क्या हरियाणा में त्रिशंकु विधानसभा आ रही है?

हरियाणा में नई सरकार चुनने को लेकर मतदाताओं में ज्यादा जोश नहीं दिखा। 2014 के विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार कम संख्या में मतदाता घरों से निकले। 2019 विधानसभा चुनाव में 64.35 पतिशत मतदान हुआ है। बीते 19 साल में यह सबसे कम मतदान है। वर्ष 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में 69.01 पतिशत वोट पड़े थे। इसके बाद 70 पतिशत से नीचे मतदान पतिशत नहीं रहा। वैसे तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी उम्मीद से कम मतदान हुआ है। यहां 63 पतिशत मतदान हुआ जबकि 2014 के विधानसभा चुनावों में भी महाराष्ट्र में 63.30 पतिशत वोट पड़े थे। वहीं इस साल मई में हुए लोकसभा चुनावों में राज्य में रिकार्ड 64.1 पतिशत वोट पड़े थे। जानकारों के मुताबिक कम मतदान की वजह पक्ष-विपक्ष में जोरदार टक्कर जैसी स्थिति नहीं थी। कहीं-कहीं  ऐसा भी हुआ कि सीटों के बंटवारे से नाराज पक्ष ने वोट नहीं डाले। ठाकरे परिवार की तरफ से पहली बार चुनाव लड़ने वाले आदित्य ठाकरे के चुनाव क्षेत्र वर्ली में वोटिंग का पतिशत महज 44 फीसद रहा। मुंबई में 36 सीटों पर 45.48 पतिशत ही वोटिंग हुई। दोनों ही राज्यों में मतदाता का उत्साह नहीं दिखा। मगर ट्रेंड की बात करें तो 2014 में दोनों राज्यों में 4 पतिशत वोटिंग बढ़ी तो सत्ता बदली, इस बार कम वोटिंग हुई है। यह कम वोटिंग किसके हक में जाएगी? अगर अधिकतर टीवी चैनलों के सर्वेक्षणों पर जाएं तो दोनों ही राज्यों में भाजपा पुन सत्ता में स्पष्ट बहुमत से आ रही है। पर इंडिया टुडे एक्सिस सर्वे ने हरियाणा में दूसरी ही तस्वीर की भविष्यवाणी की है। हरियाणा के लिए कराए गए एग्जिट पोल के पोल ऑफ द  पोल्स में भारतीय जनता पार्टी को 70 और कांग्रेस गठबंधन को 12 सीटें मिलती हुई दिखाई दे रही हैं। वहीं अन्य खाते में 8 सीटें जाने का अनुमान है। सीएनएन न्यूज 18 के एग्जिट पोल में बीजेपी के 75 और कांग्रेस को 10 सीटों का अनुमान जताया गया है। जबकि टाइम्स नाउ ने बीजेपी को 71 और कांग्रेस को 11 सीटें दी हैं।  अन्य के खाते में 8 सीटें जीतने का अनुमान है। एबीपी-सी वोटर के एग्जिट पोल में बीजेपी को 72 और कांग्रेस को 8 सीटें दी गई हैं। महाराष्ट्र के बाद हfिरयाणा को लेकर इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया के सामने आए एग्जिट पोल की माने तो हfिरयाणा में त्रिशंकु सरकार बनती दिख रही है। एग्जिट पोल के अनुसार भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है और बीजेपी को 32 से 44 सीटें मिलने का अनुमान है। हरियाणा में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी है और उसे 30 से 42 सीट मिलने का अनुमान है। अगर इस सर्वे को सही माना जाए तो राज्य में दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी किंग मेकर की भूमिका में होगी। उनकी पार्टी को 6-10 सीट जबकि अन्य पार्टियों को भी 6-10 सीटें मिलने का अनुमान है। यदि एग्जिट पोल के ये नतीजे वास्तविकता में तब्दील हुए तो छोटे दल ही किंगमेकर की भूमिका में होंगे। बता दें कि हरियाणा में कुल 90 सीटें हैं। इस लिहाज से सरकार बनाने के लिए 46 सीटें या उससे ज्यादा  जीतने पर ही बन सकती है। हमें ज्यादा देर पतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। बृहस्पतिवार को ईवीएम खुल जाएंगी और पता चल जाएगा कि हरियाणा में किसकी सरकार बनेगी या त्रिशंकु विधानसभा होगी।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली में हर एक किमी पर मिलेगा मोहल्ला क्लीनिक

दिल्ली में सभी नागरिकों को एक किलोमीटर के दायरे में मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा मिले इससे ज्यादा और अच्छा क्या हो सकता है? आज के जमाने में किसी गरीब आदमी को कोई गंभीर बीमारी हो जाए तो समझो उसे तो वहीं मौत आ जाती है क्योंकि इलाज इतना महंगा हो गया है कि छोटी से छोटी बीमारी के लिए भी लाखों का बिल बन जाता है। किसी भी सरकार का यह फर्ज बनता है कि वह अपने नागरिकों के लिए खासतौर पर निचले तबके के लिए निशुल्क उपचार की सुविधा मुहैया कराए। यह काम आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार बाखूबी कर रही है। इसके लिए सभी को उसकी सराहना करनी चाहिए। मुफ्त स्वास्थ्य  सुविधा की घोषणा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गत शनिवार को तिमारपुर के संगम विहार फ्लाईओवर के पास नव स्थापित मोहल्ला क्लीनिक के साथ 100 मोहल्ला क्लीनिकों के उद्घाटन के दौरान की। उन्होंने कहा कि सभी को बेहतर और मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं देना ही हमारा सपना था। अब ऐसा होने लगा है। इससे लगता है कि आम आदमी पार्टी का राजनीति में आने का मकसद पूरा हो रहा है। केजरीवाल ने दावा किया कि पूरी दुनिया में एक साथ इतने पाथमिक स्वास्थ्य केन्द्र आज तक नहीं खुले, जितने दिल्ली में पांच साल में मोहल्ला क्लीनिक खुले हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि लाखों लोगों को अब स्वास्थ्य सेवाएं अपने मोहल्ले में ही मिलेंगी। इस राजनीति ने लोगों की जिंदगियां बदली हैं। दिल्ली सरकार द्वारा स्थापित 1000 मोहल्ला क्लीनिकों में से 302 मोहल्ला क्लीनिक वर्तमान में चल रहे हैं, जबकि अधिकांश मोहल्ला क्लीनिक पोटा केबिन में चलते हैं। कुछ किराए के परिसर से संचालित हैं। मोहल्ला क्लीनिक 109 आवश्यक दवाओं का वितरण करते हैं। इन क्लीनिकों में 262 जांचों की सुविधा है। मोहल्ला क्लीनिक के अधिकांश हिस्से में स्वास्थ्य स्लेट (टेबलेट) एक चिकित्सा उपकरण है जो 33 आम चिकित्सा परीक्षण करता है। इसकी कीमत लगभग 60,000 रुपए है। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतेन्द्र जैन ने बताया कि मोहल्ला क्लीनिक की वजह से  सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में लोगों का विश्वास बड़ा है। मोहल्ला क्लीनिक पर पतिदिन 40,000 से ज्यादा लोग इलाज करा रहे हैं। दिल्ली  में पतिदिन ओपीडी जाने वालों की कुल संख्या का 20 पतिशत है। मोहल्ला क्लीनिक में अब तक 1.69 करोड़ लोगों ने ओपीडी की सेवा ली है। 16 लाख लोग टेस्ट करा चुके हैं। इसमें 75 पतिशत लोग ऐसे हैं जिन्होंने पहली बार सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल किया है। इससे जहां गरीब आदमी को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लुटने से बचाया जा रहा है, वहीं इन छोलाझाप डाक्टरों पर जाने को मजबूर गरीबों को बचाने का भी काम हो रहा है। जैन ने बताया कि अगले ढाई महीने में करीब 200 और मोहल्ला क्लीनिक खोलने की तैयारी है। इसके बाद दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक की संख्या 500 के पार हो जाएगी। जैन ने बताया कि अब 40 वर्ग मीटर जमीन पर एक शौचालय वाली जगह पर मोहल्ला क्लीनिक खोलने की इजाजत दे दी जाएगी। पहले 60 वर्ग मीटर व दो शौचालय  वाली जमीन पर ही मोहल्ला क्लीनिक खोलने की इजाजत मिलती थी। बेशक दिल्ली सरकार ने जनकल्याण योजनाओं को इस चुनावी वर्ष में तेज कर दिया है पर इससे उनको क्षेत्र से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए हम सराहना करते हैं।

Wednesday 23 October 2019

राम निवास गोयल को सजा सुनाने पर सियासत

दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष राम निवास गोयल को अदालत द्वारा एक केस में छह महीने की सजा सुनाई गई है। मामला कुछ ऐसा है। विधानसभा अध्यक्ष गोयल व उनके बेटे को 2015 में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक घर में घुसने और मारपीट करने के आरोप में एसीएम एम समर विशाल ने गोयल, उनके पुत्र सुमित, हितेश खन्ना, अतुल गुप्ता और बलबीर सिंह को छह माह कैद और एक-एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। सुमित गोयल को मारपीट की धारा में भी एक महीने की कैद व एक हजार रुपए जुर्माने की सजा हुई है। फैसले को चुनौती देने के लिए अदालत ने 10-10 हजार रुपए के निजी मुचलके पर दोषियों को एक महीने की जमानत दे दी। विधानसभा अध्यक्ष को अदालत से सजा सुनाए जाने के बाद दिल्ली की सियासत गरमा गई है। राम निवास गोयल का कहना है कि वह कानून की मर्यादा में रहकर ही काम करेंगे। दूसरी तरफ भाजपा व कांग्रेस ने संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को सजा सुनाए जाने के मामले में आप व दिल्ली सरकार पर हमला बोल दिया है। आरोप है कि आप के मुखिया दागदार नेताओं को संरक्षण दे रहे हैं। अदालत का फैसला आने के बाद आप के दिल्ली प्रदेश संयोजक गोपाल राय ने दो टूक शब्दों में विधानसभा अध्यक्ष से इस्तीफा लेने से साफ इंकार कर दिया। बकौल गोपाल राय, कानून अपना काम कर रहा है। पार्टी हर संभव कानूनी तरीके को आजमाएगी। निचली अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दी जाएगी। पार्टी इसे कोई बड़ा मामला नहीं मान रही है। दूसरी तरफ पार्टी का यह भी कहना है कि पूरा मामला राजनीतिक है। भाजपा से जुड़े एक व्यक्ति ने केस किया है। कानून में भी छह महीने की सजा होने पर संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति का इस्तीफा लेने का प्रावधान नहीं है। वह भी तब जब जमानत मिल गई हो। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोठिया का कहना है कि भ्रष्टाचार से लड़ने का वादा कर वोट बटोरने वाली पार्टी की सच्चाई सामने आने लगी है। पांच साल सत्ता में रहने के बाद ही इसके नेता भ्रष्टाचार व अपराध में डूब गए हैं। इनके विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार, यौन शोषण, फर्जी डिग्री, हिंसा समेत दूसरे सभी आपराधिक मामले सामने आते रहे हैं। आने वाले चुनाव में जनता इसका जवाब देगी। वहीं दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने गोयल को छह महीने की सजा मिलने पर तंज कसा है। तिवारी का आरोप है कि आप के दागदार नेताओं को मुख्यमंत्री व आप मुखिया अरविन्द केजरीवाल का खुला संरक्षण है। अब आप नेताओं के आपराधिक चेहरे जनता के सामने आने लगे हैं। अभी तक पार्टी के दर्जनों विधायक व मंत्रियों पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। मनोज तिवारी ने चेतावनी दी कि आने वाले विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता ऐसे नेताओं को माफ नहीं करेगी। आप नेताओं को उनकी करनी की सजा चुनाव में मिल जाएगी। बेशक राम निवास गोयल को मारपीट के मुकदमे में छह महीने की सजा हो चुकी है लेकिन कई विशेषज्ञों का कहना है कि उनकी कुर्सी या पद को कोई खतरा नहीं है। कानूनी तौर पर उन्हें पद से नहीं हटाया जा सकता। संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि सजा के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है और वह सुचारू रूप से कामकाज चला सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

चार साल में भारतीय सेना की तीसरी डेडली स्ट्राइक

पाकिस्तानी सेना ने आतंकियों की घुसपैठ कराने के इरादे से जब तंगधार सेक्टर जो कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में है अंधाधुंध फायरिंग करके हमारे दो जवानों को शहीद कर दिया तो उन्हें शायद ही इस बात का अंदाजा रहा होगा कि भारत की ओर से ऐसा मुंहतोड़ जवाब मिलेगा। भारतीय सेना ने करीब दो घंटे में ही तंगधार में शहीद अपने दो जवानों की शहादत का बदला ले लिया। सेना ने पाक के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में ताबड़तोड़ गोले बरसा तीन आतंकी कैंपों को तबाह कर दिया। चौथे कैंप को भी नुकसान पहुंचा है। सेना की इस जवाबी कार्रवाई में बड़ी संख्या में आतंकियों के साथ पाकिस्तन के छह से 10 फौजी भी मारे गए। इस साल 26 फरवरी को पीओके बालाकोट में भारतीय वायुसेना की एयर स्ट्राइक के बाद यह सेना की पहली बड़ी कार्रवाई है। सेना ने यह कार्रवाई तब की जब भारतीय सेना को एलओसी पर चार लांचिंग पैडों के बारे में खुफिया जानकारी मिली थी, पाकिस्तान इन कैंपों में मौजूद आतंकियों को भारत में घुसपैठ कराने की तैयारी में था। सूत्रों ने बताया कि कैंपों में 40-50 आतंकी मौजूद थे। पाक सेना उन्हें सुरक्षा और राशन-पानी मुहैया करा रही थी। बता दें कि पीओके में 200-300 आतंकी सक्रिय हैं। पाक के दुस्साहस की जवाबी कार्रवाई में भारत ने 77बी बोफोर्स और स्वदेशी निर्मित बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल किया। कारगिल में भी भारत ने इन्हीं 77बी बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल किया था और पाकिस्तान को धूल चटाई थी। बोफोर्स 40 किलोमीटर दूर तय लक्ष्य को ध्वस्त कर सकती है। यह एक मिनट में दो फायर कर सकती है और लगातार दो घंटे तक गोलाबारी कर सकती है। तोपों का इस्तेमाल इसलिए किया गया क्योंकि आर्टिलरी गन से आतंकी ठिकानों पर सटीक निशाना लगाया जा सकता है। दुश्मन के इलाके में बिना गए कार्रवाई हो सकती है। जरूरत के हिसाब से रेंज का इस्तेमाल होता है। पीओके में एलओसी के पार लांचिंग पैड काफी नजदीक हैं। कुछ पैड तो सिर्प 500 मीटर की दूरी पर हैं। सेना से जुड़े सूत्रों ने यह साफ किया कि सेना की यह कार्रवाई सर्जिकल स्ट्राइक जैसी नहीं है। यह पाक फौज को सख्त संदेश देने की कोशिश है। गौरतलब है कि पाकिस्तानी सेना लगातार संघर्षविराम का उल्लंघन कर रही है। उरी, बारामूला और तंगधार आदि इलाकों में वह लगातार गोलीबारी कर रही थी। भारतीय सेना लगातार चेतावनी देती रही है कि पाकिस्तानी सेना उसे उकसाने का प्रयास न करे। उसकी हरकतों का सख्त जवाब दिया जाएगा, मगर वह इसे समझने को तैयार नहीं। पिछले एक साल में पाकिस्तानी सेना ने जितनी बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया, उतना शायद ही कभी हुआ होगा। पाकिस्तान की समस्या यह है कि वहां कोई एक निजाम नहीं है। वहां की सरकार अपने ढंग से काम करना चाहती है, मगर उस पर सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का शिकंजा रहता है। सेना अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए और कश्मीर मुद्दा ज्वलंत रखने के लिए अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। उसकी बौखलाहट इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि अनुच्छेद 370 हटने के बाद उन्हें पूरी दुनिया में कहीं भी समर्थन नहीं मिला। आए दिन वह परमाणु हमले, युद्ध की धमकी देता है जबकि वह जानता है कि भारतीय सेना के सामने वह टिक नहीं सकता। इसीलिए अपनी प्रॉक्सी वार के लिए यह भाड़े के सैनिकों का इस्तेमाल करता है। लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

Tuesday 22 October 2019

बैंक में अपना पैसा रखना ही गुनाह हो गया

पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (पीएमसी बैंक) घोटाले के कारण भारी वित्तीय संकट के साथ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के प्रतिबंधों का सामना कर रहे एक और खाताधारक मुरलीधर की शुक्रवार को दिल का दौरा पड़ने के कारण मौत हो गई। मृतक के परिजनों का कहना है कि डॉक्टर ने मुरलीधर को हार्ट सर्जरी करने की सलाह दी थी, लेकिन आरबीआई के पाबंदी के कारण अपने पैसे पीएमसी बैंक से निकाल नहीं पाए। मुरलीधर के बेटे प्रेम धारा ने कहा कि उनके 83 वर्षीय पिता की मौत उनके घर पर हुई। उन्होंने बताया कि उनके परिवार के कुल 80 लाख रुपए बैंक में जमा हैं। इससे पहले इसी बैंक में लाखों रुपए जमा करके फंसे दो और खाताधारकों की 24 घंटे के अंदर हार्ट अटैक से मौत हो गई। यह दोनों ही बैंक से अपना पैसा वापस पाने के लिए आंदोलन कर रहे थे। बैंक से पैसे निकालने पर लगी पाबंदी की वजह से उनके परिवार वित्तीय संकट में घिरे थे। 57 वर्षीय संजय गुलाटी अपने 80 साल के पिता के साथ सोमवार को बैंक के खिलाफ प्रदर्शन करके लौटे थे, तभी घर पर खाना खाते वक्त उन्हें दिल का दौरा पड़ा। अस्पताल ले जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। संजय के पिता ने बताया कि उनके परिवार के बैंक में 90 लाख रुपए जमा थे। संजय पहले जेट एयरवेज में इंजीनियर थे, लेकिन एयरलाइंस बंद होने से कुछ महीने पहले उनकी नौकरी चली गई थी। संजय की मौत को 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि मंगलवार को पीएमसी बैंक के एक अन्य खाताधारक धत्तोमल पंजाबी को दिल का दौरा पड़ा। बैंक में पैसा फंसने से वह भी वित्तयी संकट में घिरे थे। उधर सुप्रीम कोर्ट ने पीएमसी बैंक से धन निकालने पर आरबीआई द्वारा निर्धारित की गई सीमा खत्म करने के लिए इस बैंक के खाताधारकों की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करने से भी इंकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हम अनुच्छेद 32 (रिट अधिकार क्षेत्र) के तहत इस याचिका पर सुनवाई नहीं करना चाहते। पीएमसी बैंक में 4355 करोड़ रुपए के घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद रिजर्व बैंक ने इसके वित्तीय लेन-देन पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए थे। इन प्रतिबंधों के तहत बैंक के ग्राहकों को छह महीने की अवधि में इससे 40 हजार रुपए तक ही निकालने का निर्देश दिया गया। याचिकाकर्ता बेजोन कुमार मिश्रा की ओर से अधिवक्ता शशांक सुधी ने पीठ से कहा कि पीएमसी के 500 खाताधारकों की ओर से यह याचिका दायर की गई है जिसमें नकदी निकालने पर आरबीआई की ओर से लगाई रोक को हटाने का अनुरोध किया गया है। आश्चर्य है कि पीएमसी में पिछले 10 सालों से घपला जारी था, फिर भी किसी को इसकी भनक नहीं लगी। याद रहे कि इस घोटाले की जानकारी रिजर्व बैंक को एक व्हिसलव्लोअर के माध्यम से मिली, जिसके बाद 24 सितम्बर को उसने बैंक को अपने नियंत्रण में लिया और नकद निकासी की सीमा तय कर दी। पीएमसी के खाताधारकों के पैसे फंसने का मामला नोटबंदी की मार जैसा तो है पर कुछ मायनों में नोटबंदी की पीड़ा से ज्यादा मारक है। जिस व्यक्ति की अपने जीवन की पूरी कमाई 90 लाख रुपए हो और वह दिव्यांग बेटे का इलाज भी न करवा पाए तो उसका सदमे में जाना स्वाभाविक ही है। लेकिन पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है। इसी तरह पिछले महीने किडनी का ऑपरेशन करवा कर आए एक मरीज की 50 लाख रुपए की एफडी है, पर इलाज के लिए पैसे हाथ में नहीं। यह व्यक्ति वित्तमंत्री के सामने गिड़गिड़ाता रहा, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा। ऐसे ढेरों किस्से हैं। बड़ी संख्या में वृद्धों की पेंशन का पैसा जमा है, पर जरूरतभर का पैसा भी हाथ में नहीं तो कैसे काम चलेगा? एक तरफ सरकार नकदी लेन-देन को हतोत्साहित कर रही है, बैंकों में बचत को जमा करने के लिए लोगों को प्रेरित कर रही है, डिजिटल लेन-देन को अनिवार्य करने की ओर अग्रसर है, दूसरी ओर बैंकों में जमा पैसे की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। खाताधारकों का बस कसूर इतना है कि उन्होंने विश्वास के साथ अपनी जमा पूंजी बैंक में रखवाई थी। घपला कोई करे, भरे कोई। अभी तो कई और बैंक लगभग इसी स्थिति में हैं, पता नहीं कितने बेकसूर खाताधारकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

-अनिल नरेन्द्र

लखनऊ में हिन्दू नेता की दिनदहाड़े हत्या

लखनऊ में शुक्रवार को घनी आबादी वाले नाका हिंडोला इलाके में हिन्दू समाज पार्टी नेता कमलेश तिवारी की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई। इस हत्या से हड़कंप मचना स्वाभाविक ही था। कमलेश तिवारी के ऑफिस में ही इस हत्या को अंजाम दिया गया। बताया जा रहा है कि बदमाशों ने कमलेश से उनके घर में ही बने ऑफिस में मुलाकात की और उनके साथ चाय भी पी। बदमाश भगवा कपड़े पहने थे और मिठाई के डिब्बे में पिस्टल व चाकू छिपाकर लाए थे। चाय के बाद उन्होंने पहले तो कमलेश तिवारी का गला काटा और फिर गोली मारी। तिवारी अपने को हिन्दू महासभा का नेता बताते थे। वारदात के बाद हिन्दुवादी संगठनों के कार्यकर्ता भड़क उठे। सैकड़ों लोग सड़क पर उतरे और अमीनाबाद बाजार बंद कर दिया। दुकानों में तोड़फोड़ भी की। सीसीटीवी कैमरों में दिखे दो संदिग्ध व एक महिला की जानकारी जुटाई जा रही है। कमलेश आतंकी संगठन आईएस के निशाने पर भी थे। 2015 में पैगंबर मोहम्मद साहब पर अभद्र टिप्पणी करने के मामले में कमलेश रासुका के तहत जेल में रहे। कमलेश की पत्नी किरण की शिकायत पर इस मामले में मुफ्ती नईम काजमी और अनवारुल हक तथा एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। किरण का आरोप है कि काजमी और हक ने 2016 में कमलेश का सिर कलम करने पर क्रमश 57 लाख और डेढ़ करोड़ रुपए का इनाम घोषित किया था। इन्हीं लोगों ने साजिश कर उनके पति की हत्या कराई है। कमलेश हत्याकांड में संदिग्धों की धरपकड़ तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने बिजनौर से मौलाना अनवारुल हक की गिरफ्तारी से इंकार किया है। वहीं सूरत से भी तीन संदिग्धों को दबोचा गया है। पर किसी से छिपा नहीं था कि कमलेश तिवारी को जान का खतरा था। पर बावजूद इसके उनकी सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया। सिर्प एक पुलिस वाला उनकी सुरक्षा पर लगाया गया था और वो भी हत्या के समय मौजूद नहीं था। आतंकी संगठन आईएस ने खुलेआम उन्हें मारने की धमकी भी दी थी। यह खुलासा गुजरात एटीएस द्वारा अक्तूबर 2017 को सूरत में गिरफ्तार किए गए संदिग्ध उवैद अहमद मिर्जा और मोहम्मद कासिम से पूछताछ से हुआ था। 20 अप्रैल 2018 को गुजरात एटीएस द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट के मुताबिक उवैद ने अपने दो साथियों को कमलेश तिवारी के विवादित बयान वाला वीडियो दिखाते हुए कहा था कि हम लोगों ने इसकी हत्या करनी है। उत्तर प्रदेश पुलिस और खुफिया एजेंसियों को शक है कि हत्या का गुजरात आतंकी कनेक्शन भी हो सकता है। उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था का बुरा हाल है, ऐसा लगता है कि कोई वालीवारिस नहीं है उत्तर प्रदेश का। हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सख्त टिप्पणी भी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम उत्तर प्रदेश सरकार से तंग आ चुके हैं। ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश में जंगलराज है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि अधिकतर मामलों में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकीलों के पास संबंधित अथॉरिटी का कोई उचित निर्देश नहीं होता। बुलंदशहर के सैकड़ों वर्ष पुराने एक मंदिर से जुड़े प्रबंधन के मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने यह टिप्पणी की। पीठ ने दुखी होकर कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य सरकार चाहती ही नहीं कि वहां कानून-व्यवस्था हो। पीठ ने कहा कि लगता है कि वहां जंगलराज है। हम उत्तर प्रदेश सरकार से परेशान हो गए हैं। कमलेश तिवारी का शव सीतापुर के महमूदाबाद स्थित उनके पैतृक गांव में शुक्रवार को पहुंचा। परिवार वालों ने साफ किया था कि जब तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनसे मिलने नहीं आएंगे तब तक वे अंतिम संस्कार नहीं करेंगे। वहीं कमलेश तिवारी की पत्नी किरण ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर मुख्यमंत्री नहीं आते हैं तो वह खुद आत्मदाह कर लेंगी।

Sunday 20 October 2019

2019 में चार बाक्सरों की रिंग में मौत हो चुकी है

आमतौर पर खेलों में किसी की जान नहीं जाती, गंभीर चोट लग सकती है पर जानलेवा नहीं होती। पर बाक्सिंग एक ऐसा खेल है जिसमें जान भी जा सकती है। अमेरिका के शिकांगो शहर में पैट्रिक डे नामक बॉक्सर की चार्ल्स कॉनवेल के खिलाफ फाइट हुई थी। इस फाइट में पैट्रिक डे फाइट के दौरान बुरी तरह घायल हुए थे। पैट्रिक के सिर पर बहुत जोरदार बाक्स पड़ा था। उन्हें रिंग से स्ट्रेचर पर ले जाना पड़ा था। चार दिन इलाज चला, लेकिन चोट इतनी गंभीर थी कि उन्हें बचाया नहीं जा सका। पैट्रिक की गत शनिवार रात को शिकांगो विनट्रस्ट एरिना में चार्ल्स कॉनवेल के खिलाफ फाइट हुई थी। फाइट में पैट्रिक ने अच्छी शुरुआत की लेकिन चार्ल्स के कुछ पंच के बाद वे असहज दिखने लगे। पैट्रिक दो बार गिरे भी लेकिन उन्होंने फाइट जारी रखी। आखिर बार चार्ल्स के नॉकआउट पंच के बाद पैट्रिक रिंग में ही गिर गए। वे उठ नहीं पाए तो फौरन स्ट्रेचर बुलाकर उन्हें ले जाया गया। अस्पताल ले जाने पर पता चला कि पैट्रिक के सिर पर गंभीर चोट आई है और वे कोमा में चले गए हैं। बुधवार तक शिकांगो में ही उनका इलाज चला और बुधवार रात को ही उन्होंने दम तोड़ दिया। फाइट के पमोटर लुई डी बेला ने कहा पैट्रिक ने चार दिन तक गंभीर चोट से लड़ने का गजब का साहस दिखाया। वे एक चैंपियन थे। बुधवार रात को अपने परिवार और बाक्सिंग टीम के बीच उन्होंने आखिरी सांस ली। पैट्रिक के खिलाफ फाइट में उतरे कॉनवेल भी इस हादसे से सदमे में हैं। वे बाक्सिंग छोड़ने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया में लिखा ः मैं कभी नहीं चाहता था कि मेरी किसी फाइट में ऐसा कुछ हो। कोई नहीं चाहता कि ऐसा कुछ हो। काश! मैं समय को कुछ पीछे ले जा पाता। मेरे दिमाग में पूरे दिन बस यही फाइट चल रही है। मैं उससे बाहर नहीं आ पा रहा हूं। मुझे नहीं लगता कि अब मैं बाक्सिंग रिंग में उतर पाऊंगा या उतरना चाहूंगा। पैट्रिक डे की मौत से ही बाक्सिंग नियम और बाक्सरों की सुरक्षा को लेकर दोबारा बहस शुरू हो गई है। 2019 में अब तक चार पोफेशनल बाक्सरों की रिंग में हादसे से मौत हो चुकी है। डे से पहले रूस के मैक्सिम, डाडाशेव, अर्जेंटिना के हूगो अल्पेड सैंटिलन और बुल्गारिया के बोरिस स्टैनचावे की फाइट में लगी चोट से मौत हो चुकी हैं।

-अनिल नरेन्द्र

क्या दो हजार के नोट बंद हो रहे हैं?

व्हाट्सएप पर 2000 रुपए के नोट बंद होने की अफवाह पिछले कई दिनों से फैल रही है। मैसेज में लिखा है कि रिजर्व बैंक 2000 के नोट वापस ले रहा है, आप 50,000 रुपए तक के नोट बदल सकते हैं। ये तो झूठा मैसेज था, लेकिन वास्तव में देशभर में अचानक 2000 रुपए के नोट की कमी हो गई है। आम आदमी के मन में 2000 के नोट को लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं। मामले की पड़ताल में पता चला है कि वर्ष 2016-17 के मुकाबले वर्ष 2018-19 में दो हजार रुपए के नोटों की मांग में 98.6 फीसदी की कमी आई है। विभिन्न बैंक ग्राहकों की मांग के अनुसार आरबीआई से नोटों की मांग करते हैं। आरबीआई के मुताबिक 2016-17 के मुकाबले 2018-19 में दो हजार के नकली नोट की संख्या में 3300 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले डिपार्टमेंट ऑफ इक्नौमिक एनालिसिस एंड पॉलिसी ने भी सिफारिश की थी कि दो हजार के नोट बंद कर देना चाहिए। अब इनकी पिटिंग में कमी की जा रही है। इसलिए विभिन्न बैंकों के एटीएम में दो हजार के नोट कम मिल रहे हैं। हालांकि इसका असर यह है कि अब एटीएम जल्दी खाली हो रहे हैं। एचडीएफसी बैंक के एक अधिकारी ने बताया कि उनके एटीएम में पहले करीब 8 लाख रुपए एक बार में आते थे, लेकिन अब छोटे नोट के कारण 6 लाख ही आ पाते हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को नोट न छापने का कोई आदेश नहीं दिया है। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि फिलहाल सरकार 2000 के नोट चलन के बाहर करने या उन्हें बंद करने की तैयारी में बिलकुल नहीं है और न ही इसकी जगह वो कोई नए नोट शुरू करने वाली है। आरबीआई के एक अधिकारी ने बताया कि अब 2000 रुपए के नए नोट पिंट करने में कमी कर दी गई है। इसलिए बाजार में 2000 रुपए के नोट की कमी है। बैंकों और लोगों द्वारा भी इनकी मांग घटी है। उन्होंने कहा कि हमने अपनी जरूरत के 2000 के नोट पिंट कर लिए हैं लेकिन अब हम नए नोट नहीं छाप रहे हैं। आम आदमी को अब इतने बड़े नोट की जरूरत नहीं है। इसकी जरूरत नोट बंदी के समय थी। उस वक्त बाजार में बड़े नोट चाहिए थे। अब 2000 रुपए के नोट से काला धन जमा होने की आशंका है। सो जनता निश्चिंत रहे कि सरकार 2000 रुपए का नोट बंद करने नहीं जा रही है।

निर्मला सीतारमण को उनके पति ने ही अर्थव्यवस्था पर घेरा

आर्थिक मंदी पर विपक्ष और आर्थिक विशेषज्ञों के आरोपों से इंकार करने वाली मोदी सरकार को अब घर में आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है। अर्थशास्त्राr और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के पति पराकला पभाकर ने कहा कि सरकार की मंदी की वास्तविकता को नकार रही है। उसे कांग्रेस के आर्थिक मॉडल पर अर्थव्यवस्था की हालत सुधारनी चाहिए। एक अखबार में कॉलम लिखकर पभाकर ने मंदी के मुद्दे पर चिंता जताई और कहा कि सरकार आंखें बंद कर इस समस्या से छुटकारा पाना चाहती है। उन्होंने कहा कि जब एक के बाद एक सेक्टर मंदी की चुनौतियों से जूझ रहे हैं, तो भाजपा सरकार को यह समझ नहीं आ रहा कि सुस्ती की वजह क्या है? इससे निपटने के सरकार के तरीकों को भी पराकला पभाकर ने गलत बताया। कहा, मोदी सरकार के पास देश की अर्थव्यवस्था के लिए स्पष्ट विचार बनाने की कोई इच्छा ही नहीं है और वह अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए कोई रोडमैप पेश करने में नाकाम रही है। उधर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जवाब में कहा कि सरकार ने कई कल्याणकारी और बड़े बदलाव वाले कदम उठाए हैं। पभाकर ने भाजपा के नेहरू मॉडल की आलोचना पर लिखा, यह चिंताजनक है कि सरकार की आर्थिक विचारधारा और इसकी अतिरिक्त महज नेहरू मॉडल की आलोचना तक सीमित है, जो महज राजनीतिक हो सकती है। इसे कभी अर्थव्यवस्था की आलोचना के तौर पर नहीं देखा जा सकता। उन्होंने सुझाव दिया कि पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह सरकार की आर्थिक नीतियों से सबक लें और इसी पर चलकर अर्थव्यवस्था को उबारा जा सकता है। पभाकर की आलोचना को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जमकर मोदी सरकार की आलोचना की। राहुल गांधी ने कहा कि जीएसटी और नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था चौपट कर दी है। अगर यही हाल रहा तो कुछ महीने में भारत की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाएगी। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने नूंह (मेवात) जिले के आईटीआई मरोड़ा की जनसभा से हरियाणा में चुनावी दौरे की शुरुआत करते हुए कहा कि पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काले धन को वापस लाने की बात कर नोटबंदी कर दी। देश की जनता को लाइन में खड़ा कर दिया। किसान, युवा, बेरोजगार, महिला सब लाइन में खड़े थे, लेकिन कुछ लोग एक दिन भी लाइन में नहीं दिखाई दिए। इसके बाद सरकार ने जीएसटी लागू कर देश के छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ दी। उनका व्यापार चौपट हो गया। जीएसटी और नोटबंदी से सिर्प 10-15 उद्योगपति घरों को लाभ पहुंचाया गया था। बेरोजगारी पर केन्द्र को घेरते हुए राहुल बोले, हरियाणा में मारुति, टाटा जैसे उद्योग बंद हो चुके हैं। करोड़ों युवाओं का रोजगार छिन चुका है और नरेन्द्र मोदी मन की बात करते हैं, लेकिन हम काम की बात करते हैं। भाजपा और आरएसएस पर बड़ा हमला करते हुए राहुल ने कहा कि भाजपा जाति-धर्म के आधार पर, अमीर और करीब से, हिंदू को मुसलमान से लड़ाने का काम करती है। दोनों देश की जनता को आपस में लड़ाने का काम कर रही है। सरकार और उनके मंत्री बेशक पराकला पभाकर की आलोचना को यह कहकर टाल दें कि वह कांग्रेसी विचारधारा के हैं, पर इससे हकीकत बदलने वाली नहीं है।

Thursday 17 October 2019

हमें तोड़ने की कोई कोशिश हुई तो वो हड्डी-पसली तोड़ देगा

भारत से नेपाल दौरे पर पहुंचे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रविवार को कठोर चेतावनी देते हुए बड़े कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि चीन को तोड़ने की कोई शिकायत हुई तो वो हड्डी-पसली तोड़ देगा। नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के साथ वार्ता के दौरान शी जिनपिंग ने यह बात कही। शी जिनपिंग ने साथ ही यह भी कहा कि ऐसी कोशिश करने वालों का साथ देने वाली बाहरी ताकतों को भी चीनी लोग चकनाचूर कर देंगे। शी जिनपिंग की इस चेतावनी का क्या मतलब निकाला जाए? वह किसकी ओर इशारा कर रहे थे? एक जवाब तो यह लगता है कि बेशक उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन माना जा सकता है कि इस बयान के जरिये उन्होंने भारत की तरफ इशारा किया है, जिसने सर्वोच्च तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को यहां शरण दे रखी है और तिब्बत की निर्वासित सरकार को मान्यता दे रखी है। नेपाल में तिब्बत की आजादी के समर्थन में कुछ तिब्बती एक्टिविस्ट राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दौरे का विरोध कर रहे थे। इन प्रदर्शनकारियों पर नेपाल सरकार ने कड़ी कार्रवाई की है। शी जिनEिपग के इस बयान को इससे भी जोड़कर देखा जा रहा है। इसके साथ ही हांगकांग में पिछले चार महीनों से जारी विरोध प्रदर्शन से भी जिनपिंग के बयान को जोड़ा जा सकता है। रविवार को हांगकांग में कई शांतिपूर्ण रैलियां निकाली गईं और इस दौरान पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़पें भी हुईं। इस विरोध प्रदर्शन में पुलिस, ट्रांसपोर्ट स्टेशन और चीन समर्थित दुकानों को भी भारी नुकसान पहुंचा है। प्रदर्शनकारियों की रैलियों के कारण हांगकांग मेट्रो के 27 स्टेशन बंद रहे। पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए हल्के बल का प्रयोग किया गया लेकिन टीवी फुटेज में दिख रहा है कि वीकेंड पर खरीददारी करने लोग भगदड़ में फंसे हुए थे। शापिंग सेंटर पर कई लोग जख्मी भी हुए। साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट से शी चिंहोग नाम के एक एकेडेमिक ने कहाöहांगकांग की वर्तमान स्थिति काफी गंभीर है। यह चेतावनी अमेरिका और उन सभी के लिए जिनपिंग ने दी है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हांगकांग में जारी अतिवादियों की हिंसा के पक्ष में खडे हैं। राष्ट्रपति जिनपिंग ने न केवल चीन का रुख साफ करने का प्रयास किया है बल्कि अमेरिका को भी चेतावनी है कि वो चीन के आंतरिक मामलों से दूर रहे। हाल ही में रिपब्लिक पार्टी के सीनेटर टेड कूज ने हांगकांग में चीन के रुख की आलोचना की थी और चीन को क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा बताया था। जिनपिंग वार्ता में दोनों देशों के बीच अच्छी सहमति बनी। चीन नेपाल में कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर काम करेगा। दोनों देशों के साझा बयान में कहा गया हैöनेपाल और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंध अब नए दौर में पहुंच गए हैं। नेपाल ने चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड का भी समर्थन किया। हालांकि भारत इस परियोजना के खिलाफ है। साझा बयान में नेपाल और चीन को रणनीतिक पार्टनर बताया गया है। चीन और नेपाल के बीच कुल 20 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि उनका देश एक चीन नीति के पक्ष में है। ताइवान को नेपाल चीन का अटूट हिस्सा मानता है और तिब्बत समस्या में भी चीन का आंतरिक मामला होने का समर्थन करता है।

-अनिल नरेन्द्र

अयोध्या विवाद ः मुकदमे के सात प्रमुख मुद्दे और उन पर दी गईं दलीलें

अयोध्या विवाद पर 40 दिन चली सुनवाई के दौरान हिन्दू और मुस्लिम पक्ष ने दमदार दलीलें दीं। हिन्दू पक्ष ने पुराण से लेकर एएसआई और मान्यताओं पर जोरदार दलीलें दीं। मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान हिन्दू पक्ष ने कहा कि वर्ष 1526 में मंदिर ढहाकर मस्जिद बनाई गई थी। ऐसा करके बाबर ने खुद को सभी नियम-कानून से ऊपर रख लिया। उसके कृत्य को कानून नहीं बताया जा सकता। बाबर की ऐतिहासिक गलती को सुधारने का वक्त आ गया है। सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के बारे में हमने वरिष्ठ वकीलों की मदद से उन सात प्रमुख मुद्दों को चुना है, जो सबसे ज्यादा फोकस में रहे। इन पर दोनों पक्षों द्वारा सबसे जोरदार दलीलें दी गईं। आइए जानते हैं कि यह प्रमुख मुद्दे कौन से हैं और इस पर दोनों पक्षों की तरफ से कौन-सी, क्या दलीलें दी गईं। हिन्दू पक्षöरामलल्ला विराजमान ने कहा 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर मंदिर था, जिसकी जगह बाबर ने मस्जिद बनवाई। 85 खंभे उन पर चित्रकारी और एएसआई की रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है। भले ही मस्जिद बन गई पर मालिकाना हक हिन्दुओं का रहा। निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि विवादित स्थल पर हम शुरू से शेबेट (देवता के सेवक) रहे हैं। मालिकाना हक हमारा है। सुन्नी वक्फ बोर्डöमस्जिद 400 साल से थी। ब्रिटिश ग्रांट भी देते थे। अंग्रेजों ने केवल पूजा का हक दिया था। जमीन पर कौन काबिजöहिन्दू पक्षöवर्ष 1934 के बाद इस स्थल पर मुसलमानों ने नमाज बंद कर दी थी, मगर हिन्दुओं ने पूजा जारी रखी। हिन्दू वर्ष 1800 के पहले से लगातार पूजा कर रहे हैं। निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि मुस्लिम पक्षकारों ने भी माना है कि हम वर्ष 1855 से शेबेट की भूमिका में हैं। मुस्लिम पक्षकारöहमें नमाज से जबरन रोका। वर्ष 1934 के बाद नियमित नमाज बंद हो गई। गवाहों ने पुष्टि की है कि जब नमाज की कोशिश की तो जेल में डाल दिया गया। भले ही नमाज बंद हुई हो, लेकिन कब्जा हमारा रहा। राम का सही जन्म स्थानöहिन्दू पक्ष, मस्जिद के केंद्रीय गुबंद के नीचे वाला स्थान ही भगवान राम का सही जन्म स्थान है। वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह जो दावा कर रहे हैं, वो इस तथ्य पर आधारित है कि पुजारी ने कहा कि उन्हें भगवान राम ने सपने में आकर उक्त जगह की जानकारी दी। ऐसे दावे को माना नहीं जा सकता। विवादित जगह के समीप जन्म स्थान के नाम से एक मंदिर है, कुछ लोग इसे राम का जन्म स्थान मानते हैं। वहीं कुछ लोग राम चबूतरा को भगवान का जन्म स्थान बताते हैं। तो दावा सही कैसे? एएसआई रिपोर्ट का दावा। हिन्दू पक्षöविवादित स्थल पर खुदाई के बाद एएसआई रिपोर्ट में स्पष्ट है कि वहां मिले अवशेष और खंभे किसी मंदिर के हैं यानि वहां पहले मंदिर था। कुरान के अनुसार मस्जिद पर किसी भी प्रकार के चित्र की मनाही होती है। मुस्लिम पक्षöवह रिपोर्ट महज विशेषज्ञों के विचार हैं। खुदाई के समय एएसआई भाजपा के एक मंत्री के इशारे पर काम कर रही थी। कई ऐसी मस्जिदें हैं, जिन पर फूल-पत्तियां बनी हैं। विवादित स्थल पर मिले अवशेष ईदगाह के तो हो सकते हैं, मगर मंदिर के नहीं। मंदिर की जगह मस्जिद कैसे मुद्दे पर हिन्दू पक्षकारöबाबरी मस्जिद निर्माण के लिए मंदिर मुगल शासक बाबर ने तुड़वाया था या औरंगजेब ने, इसका सबूत या दस्तावेज ही नहीं है। असल में विवादित ढांचा मंदिर था, जिसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया था। वहां मस्जिद का नए सिरे से निर्माण हुआ ही नहीं था। मुस्लिम पक्षकारöविवादित जगह पर कोई मंदिर नहीं था। वर्ष 1527 में बाबर के कहने पर उसके कमांडर मीर बाकी ने एक सपाट जमीन पर मस्जिद का निर्माण कराया था। इसका जिक्र कई इस्लामिक किताबों में है। न्यायिक व्यक्ति हैं या नहीं? हिन्दू पक्षöराम और उनकी जन्म भूमि आस्था का केंद्र है। लोग इसे भगवान की तरह पूजते हैं। इसलिए रामलल्ला न्यायिक व्यक्ति हैं। मुस्लिम पक्षöविवादित जगह को न्यायिक व्यक्ति नहीं माना जा सकता। कोर्ट ऐसा करती है तो फिर मस्जिद भी न्यायिक व्यक्ति है। अयोध्या में 55-56 मस्जिदें हैं, जहां मुस्लिम नमाज अदा कर सकते हैं, लेकिन हिन्दू भगवान राम का जन्म स्थान नहीं बदल सकते। इस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कहा कि परासरन बताएंगे कि अयोध्या में कितने मंदिर हैं? परासरन ने कहाöबड़ी संख्या में मंदिर होना जन्म स्थान की महत्ता दर्शाता है। जनसंख्या का अनुपात भी देखना चाहिए। वहीं कोर्ट ने परासरन से सीमा के समान के कानून, प्रतिकूल कब्जे के सिद्धांत सहित तमाम विधिक मामलों पर सवाल उठाते हुए पूछा कि 2.77 एकड़ विवादित जमीन से मुस्लिमों का कब्जा कैसे हटाया जाए? बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस गोगोई ने बहस की डेडलाइन तय कर दी। चीफ जस्टिस ने कहा कि अब कोई बीच में टोका-टाकी नहीं करेगा, बहस आज शाम ही पांच बजे खत्म होगी।

अगर फिल्में करोड़ों का कारोबार कर रही हैं तो देश में मंदी कैसे है?

केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हाल ही में एक चौंकाने वाला बयान दिया। रविशंकर प्रसाद ने शनिवार को तीन फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर एक दिन में हुई 120 करोड़ रुपए की कमाई का उदाहरण देते हुए कहा कि कहां है मंदी? प्रसाद ने शनिवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था में सुस्ती को पूरी तरह खारिज किया। उन्होंने अर्थव्यवस्था में सुस्ती से इंकार करते हुए कहा कि मेरा फिल्मों से लगाव है। फिल्में बड़ा कारोबार कर रही हैं। दो अक्तूबर को तीन फिल्में रिलीज हुई हैं। फिल्म उद्योग के विशेषज्ञ ने कहा है कि नेशनल हॉलीडे के दिन इन तीन फिल्मों ने 120 करोड़ रुपए का कारोबार किया है। अब जब देश की इकोनॉमी थोड़ी साउंड है तभी तो 120 करोड़ रुपए का रिटर्न एक दिन में आ रहा है। यह तथ्यात्मक रूप से सही है। मुंबई फिल्मों की राजधानी है और मैंने वहीं यह बात कही थी। हमें अपनी फिल्म इंडस्ट्री पर बहुत गर्व है जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। टैक्स कलैक्शन में भी इस उद्योग का बड़ा योगदान है। रविशंकर प्रसाद ने शनिवार को कहा था कि एनएसओ (नेशनल सैंपल सर्वे)ऑफिस के बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े पूरी तरह गलत हैं। मुंबई में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि अगर फिल्में करोड़ों का कारोबार कर रही हैं तो फिर देश में मंदी कैसे है? हमारा सवाल है कि क्या फिल्मों के धंधे से पता चल सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल है? सोशल मीडिया पर रविशंकर प्रसाद के इस बयान पर भी खासी प्रतिक्रिया देखी गई। उनके इस बयान पर चुटले और मीमंस भी बने। द लारंग लामा नाम के एक ट्विटर यूजर ने लिखा, सर कोमल नहाटा को वित्तमंत्री बना देते हैं। क्या कहते हैं? सोल ऑफ इंडिया नाम के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है। आज यह लोग बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों का हवाला दे रहे हैं। कल बोलेंगे थियेटर के बाहर ब्लैक करना भी रोजगार है, पक्का बोलेंगे। एक अन्य यूजर ने लिखा है, ई गोला पर अब नहीं रहना। इस साल फरवरी में एनएसओ के लीक आंकड़ों के अनुसार साल 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत थी जो पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा थी। यह आंकड़े बाहर आने पर सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। हाल के दिनों में बेरोजगारी और आर्थिक सुस्ती के सवालों को लेकर सरकार को कड़े सवाल झेलने पड़े हैं। कुछ समय पहले वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि भारतीय युवा गाड़ियां खरीदने की बजाय ओला-उबर से जाना पसंद करते हैं इसलिए ऑटो सेक्टर में गिरावट आई है। वित्तमंत्री के इस बयान पर भी काफी आलोचना हुई थी। रविशंकर प्रसाद ने इस आर्थिक मंदी से जुड़े अपने बयान पर विवाद उठने के बाद रविवार को उसे वापस ले लिया। प्रसाद ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार लोगों की संवेदनाओं का हमेशा ख्याल रखती है। उन्होंने कहा कि उनके बयान के एक हिस्से को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। एक संवेदनशील इंसान होने के नाते वह अपना वक्तव्य वापस ले रहे हैं।
-अनिल नरेन्द्र

अभिजीत बनर्जी को नोबेल प्राइज

भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो और माइकल केमर को 2019 का अर्थशास्त्र का नोबेल प्राइज दिया जाएगा। अभिजीत पश्चिम बंगाल के हैं। मुंबई में जन्मे और दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में एमए करने के बाद 1983 में अमेरिका गए। अभिजीत दूसरे भारतवंशी हैं, जिन्हें अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिलेगा। इससे पहले 1998 में अमर्त्य सेन को भी यही सम्मान मिला था। कलकत्ता यूनिवर्सिटी से बीएससी और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से अर्थशास्त्र में एमए करने के बाद अभिजीत ने हार्वर्ड से पीएचडी की थी और अभी मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से संबद्ध हैं, तो डुफ्लो भी एमआईटी से ही जुड़ी हुई हैं और केयर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्राr हैं। उनके अध्ययन के आधार पर ही भारत में गरीब दिव्यांग बच्चों की स्कूली शिक्षा की व्यवस्था को बेहतर बनाया गया जिससे करीब 50 लाख बच्चे लाभान्वित हुए। नोबेल कमेटी ने कहाöअभिजीत के शोध का ही परिणाम है कि भारत के लाखों बच्चों को स्कूलों में अतिरिक्त कक्षाओं (रेमेडिमल क्लास) का लाभ मिला। खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी बनर्जी को यह कहकर बधाई दी है कि उनके बनाए मॉडल से प्रेरित होकर ही उनकी सरकार ने राजधानी के स्कूलों की दशा बदल दी। 58 साल के अभिजीत ने गरीबी हटाने पर शोध किए हैं। उनकी किताब पुअर इकोनॉमिक्स को गोल्डमैन सक्सेस बिजनेस बुक ऑफ द ईयर का खिताब मिला था। वह मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर भी असहमति जता चुके हैं। अभिजीत ने कहा था कि नोटबंदी के कारण होने वाली पीड़ा अनुमान से ज्यादा हो सकती है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की नम्रता काला के साथ संयुक्त तौर पर लिखे गए पेपर में उन्होंने कहा था कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान असंगठित क्षेत्र को होगा, जहां भारतीय श्रमिक 85 प्रतिशत या उससे ज्यादा हिस्सा रोजगार पाता है। अभिजीत की लिखी बातें सही साबित हुई हैं। मोरक्को जैसे दर्जनभर देशों ने उनके सिद्धांतों को लागू किया, जिसके अच्छे नतीजे आए। इसी कामयाबी के लिए उन्हें नोबेल से नवाजा जा रहा है। नोबेल कमेटी ने वैश्विक गरीबी को खत्म करने से संबंधित इन अर्थशास्त्रियों के प्रयोगात्मक दृष्टिकोण को खासतौर से रेखांकित किया है। वास्तव में बनर्जी और उनके साथ पुरस्कार प्राप्त करने वाले अर्थशास्त्रियों के काम के महत्व को इससे समझा जा सकता है कि उनके दृष्टिकोण का अनुसरण करते हुए अनेक देशों ने गरीबी की चुनौती से निपटने के लिए आमजन से जुड़े शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसे बुनियादी सवालों पर काम करना शुरू किया तो उसके सार्थक नतीजे सामने आए। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को हर साल न्याय योजना के तहत 72 हजार रुपए देने का वादा किया था। इस योजना का शुरुआती खाका कई अर्थशास्त्रियों की मदद से बनाने के बाद राहुल गांधी ने अभिजीत से राय ली थी। अभिजीत ने इसमें तब्दीलियां कराईं। अभिजीत ने कहा था कि बेसिक मिनिमम इनकम से लोगों के पास पैसा आएगा तो गरीबी तो हटेगी ही, देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। हालांकि भारत में 2005-06 से लेकर 2015-16 के दौरान एक दशक में 27 करोड़ लोगों को भीषण गरीबी से निकाला है मगर विश्व बैंक के मुताबिक अभी भी 22 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। हम अभिजीत को बधाई देते हैं। उन्होंने एक बार फिर भारत का सिर ऊंचा किया है।

Wednesday 16 October 2019

ड्रोन की नई समस्या का फिलहाल हमारे पास कोई तोड़ नहीं है

पिछले महीने पंजाब में ड्रोन के जरिये करीब 10 हथियार गिराए जाने की घटना के पीछे पाकिस्तान और नॉन-स्टेट एक्टर नहीं बल्कि पाक सेना और आईएसआई जैसे स्टेट एक्टरों का हाथ है। खुफिया विभाग ने इस संबंध में शुरुआती जांच रिपोर्ट गृह मंत्रालय को सौंप दी है। रिपोर्ट में यह सवाल भी खड़ा किया गया है कि सीमा पार से भेजे गए ड्रोन हरकत को भारतीय वायु सेना और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) आखिर क्यों नहीं पकड़ पाई? नेशनल टेक्निकल रिसर्च आर्गेनाइजेशन (एनटीआरओ) ने शुरुआती जांच में उस फ्रीक्वेंसी का भी पता लगाया है जिससे इन ड्रोनों को पाक स्थित बेस स्टेशन से संचालित किया जा रहा था। गृह मंत्रालय ने नेशनल इनवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) का इन स्टेट एक्टरों की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी है। जांच के मुताबिक यह ड्रोन चीन निर्मित हैं। पाकिस्तानी रेंजर ऐसी चीनी तकनीक का खूब इस्तेमाल करते हैं। गृह मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक पिछले करीब डेढ़ महीने में सीमा पार से ड्रोन भेजे जाने की आठ घटनाओं का पता चला है। इनके जरिये करीब 10 एके-47 और हैंड ग्रेनेड गिराए गए। इसका इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में उपद्रव मचाने के लिए होना था। बीएसएफ ने गृह मंत्रालय से अपनी सफाई में कहा है कि उसके पास हवा में किसी हरकत का पता लगाने की कोई तकनीक नहीं है। ड्रोन अकसर रात में भेजे जा रहे हैं। लिहाजा उसे खुली आंखों से भी नहीं देखा जा सकता है। उधर वायुसेना ने भी ड्रोन को राडार के जरिये पकड़ने में अपनी असमर्थता जताई है। मंत्रालय ने सभी सुरक्षा संस्थाओं को इस नई समस्या के समाधान के लिए उपाय सुझाने को कहा है। आतंकी हमले के इनपुट के बाद से पठानकोट रेड अलर्ट पर है। बृहस्पतिवार को पंजाब और हिमाचल पुलिस ने दोनों राज्यों को पंजाब पर स्थित डमटाल की पहाड़ियों के जंगल में सर्च ऑपरेशन चलाया। पंजाब की ओर से पठानकोट सिटी डीएसपी रजिन्दर मन्हास और हिमाचल प्रदेश से नूरपुर डीएसपी डॉ. साहिल अरोड़ा के नेतृत्व में पुलिस और कमांडो टीम ने जंगल के चप्पे-चप्पे का तलाशी अभियान शुरू कर रखा है। ड्रोन की इस नई समस्या का हमें जल्द कोई तोड़ ढूंढना पड़ेगा। पाकिस्तान ने चीन की मदद से यह हथियार-गोला बारूद गिराने का नया तरीका ढूंढा है जिसमें उनका कोई सैनिक भी हताहत नहीं होता। वैसे आजकल तो ड्रोन इतने खतरनाक बन चुके हैं कि वह चुने हुए टारगेट पर सटीक बमबारी करने में भी सक्षम हैं।

-अनिल नरेन्द्र

...और अब भारतीय रेल का निजीकरण

यह अत्यंत दुखद है कि मोदी सरकार ने अब भारतीय रेलवे को भी बेचने की ओर पहला कदम उठा लिया है। सरकार ने रेलवे के निजीकरण की दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया है। इसके लिए सरकार ने 150 ट्रेनों और 50 रेलवे स्टेशनों को निजी ऑपरेटरों को सौंपने के लिए अधिकार प्राप्त समूह का गठन किया है। यह समूह इसके लिए एक ब्लूप्रिंट तैयार करेगा। अधिकार प्राप्त समूह में नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अमिताभ कांत के चेयरमैन जबकि रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष विनोद कुमार यादव, सचिव आर्थिक मामले (वित्त मंत्रालय), सचिव शहरी विकास मंत्रालय और रेलवे के वित्त आयुक्त को बतौर सदस्य बनाया गया है। तमाम आपत्तियों के बावजूद सरकार ने आखिरकार रेलवे के निजीकरण की प्रक्रिया तेज कर दी है। दरअसल यह इकलौता क्षेत्र है, जहां निजीकरण शायद लोकप्रिय कदम माना जाए। सरकारें बार-बार इसका खंडन करती रही हैं। मौजूदा एनडीए सरकार और प्रधानमंत्री खुद भी रेलवे के निजीकरण की बात का खंडन कर चुके हैं। हाल ही में संसद के बजट सत्र में भी 12 जुलाई को रेलमंत्री पीयूष गोयल ने विपक्ष के इस आरोप का जोरदार खंडन किया था कि सरकार रेलवे का निजीकरण करने जा रही है। रेलवे के निजीकरण, छंटनी व तमाम तरह के उपक्रमों को बंद किए जाने का रेल कर्मचारियों ने विरोध किया है। रेलमंत्री पीयूष गोयल के साथ नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे मेंस (एनएफआईआर) के साथ हुई बैठक में रेलवे मेंस के पदाधिकारियों ने पुरजोर तरीके से यह मसला उठाया। फेडरेशन के महामंत्री राघवैया ने रेलमंत्री को एक ज्ञापन भी दिया जिसमें रेल मंत्रालय के प्रस्तावों, कर्मचारी उन्नयन, कुछ श्रेणियों के मामले में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन की मांग की। फेडरेशन के मीडिया सचिव एनएस मलिक ने बताया कि महामंत्री ने रेल मंत्रालय के मनमाने फैसले पर अपनी चिन्ता जाहिर की। उन्होंने कहा कि रेलवे के कर्मचारी विरोधी नीतियों का यह आलम है कि गाड़ियों को निजी ऑपरेटरों को सौंपा जा रहा है। उत्पादन इकाइयों का निगमीकरण किया जा रहा है व रेलवे गतिविधियों की आउटसोर्सिंग व निजीकरण किया जा रहा है। कार्यशालाओं व प्रिंटिंग प्रेसों को बंद करने के फैसले इसमें शामिल हैं। डॉ. राघवैया ने कहा कि रेलवे और रेल कर्मचारियों के हितों में अंतिम विचार करने के मकसद से ऐसे प्रस्तावों पर  पहले कर्मचारियों से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। राघवैया ने रेलमंत्री से यह भी कहा कि स्वस्थ औद्योगिक संबंधों के संरक्षण के लिए ऐसे सभी प्रस्तावों पर पूर्व परामर्श होना आवश्यक है। रेलवे न सिर्प देश में सबसे ज्यादा नौकरियां मुहैया कराता रहा है, बल्कि वह आम आदमी के परिवहन का साधन भी है। इसलिए इन्हें बाकी उद्योग-धंधों से अलग नजरिये से देखा जाता रहा है। लेकिन 2014 में आई एनडीए सरकार ने जब रेलवे बजट पेश करने का रिवाज खत्म किया और उसे आम बजट का महज छोटा-सा हिस्सा बना दिया तो आशंकाएं उभरने लगीं कि सरकार रेलवे के निजीकरण करने के बारे में सोच रही है। अपने दूसरे कार्यकाल में सरकार ने आखिर अपने प्रचंड बहुमत के सहारे यह कदम उठाने का फैसला किया। सरकार का दावा है कि रेलवे की दशा सुधारने के लिए भारी निवेश की दरकार है, जो निजी-सरकारी साझेदारी (पीपीपी) से ही आ सकती है। हालांकि अभी करीब 150 ट्रेनों और 50 रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने की ही प्रक्रिया है। दावा यह भी है कि इससे रेल सुधरेगी और प्रतिस्पर्धा से किराये कम होंगे। अब देखना है कि यह कितना सच होता है?

Tuesday 15 October 2019

विधायक सेंगर दुष्कर्म पीड़िता के हादसे में हत्या का आरोपी नहीं

केंद्रीय जांच ब्यूरो यानि सीबीआई ने उन्नाव सड़क हादसे में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और कुछ अन्य अभियुक्तों के खिलाफ शुक्रवार को अदालत में चार्जशीट पेश कर दी। चार्जशीट में इसे हत्या की कोशिश या षड्यंत्र का मामला नहीं बल्कि महज एक हादसा बताया गया है। रायबरेली में 28 जुलाई को हुए पीड़िता की कार हादसे में उसकी चाची और मौसी की मौत हो गई थी, जबकि वह और उसका वकील गंभीर रूप से घायल हो गए थे। सीबीआई ने 30 जुलाई को इस मामले में सेंगर, उसके भाई मनोज कुमार सेंगर, यूपी के मंत्री रणवेंद्र प्रताप सिंह के दामाद अरुण सिंह व सात अन्य के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश और धमकी देने का मुकदमा दर्ज किया था। अधिकारियों ने बताया कि जांच एजेंसी ने लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत में शाम को पहली चार्जशीट दाखिल की। इसमें पीड़िता की कार में टक्कर मारने वाले ट्रक ड्राइवर आशीष कुमार पाल को आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत लापरवाही से मौत के लिए जिम्मेदार होने और सार्वजनिक रास्ते पर खतरनाक ढंग से ड्राइविंग का आरोपी बनाया गया है। उसे आपराधिक साजिश का आरोपी नहीं बनाया है। पीड़ित लड़की की मां ने मीडिया से बातचीत में सीधे तौर पर इस सड़क हादसे को षड्यंत्र बताया था और इसके पीछे विधायक कुलदीप सेंगर का हाथ होने का आरोप लगाया था। साल 2017 में कुलदीप सिंह सेंगर के गांव की एक लड़की ने उन पर बलात्कार का आरोप लगाया था। लड़की ने पुलिस पर शिकायत दर्ज न करने का आरोप लगाते हुए लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के बाहर आत्महत्या की कोशिश की थी। उसके अगले दिन  ही लड़की के पिता की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत हो गई। पीड़ित पक्ष ने आरोप लगाया कि ऐसा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के इशारे पर हुआ। यह मामला सुर्खियों में आने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप किया जिसके बाद राज्य सरकार ने इसकी जांच सीबीआई से कराने के निर्देश दिए। पिछले महीने ही पीड़िता को दिल्ली के एम्स से छुट्टी मिली लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित लड़की की दिल्ली में ही रहने की व्यवस्था करने का सरकार को निर्देश दिए। उन्नाव रेप केस बॉलीवुड क्राइम फिल्म जैसी ही है कहानी। 17 जुलाई को एक लड़की विधायक के घर नौकरी के लिए बात करने जाती है और फिर कुछ समय बाद बताती है कि विधायक के घर उसका रेप किया गया। इसके बाद गायब हो जाती है, उसके पिता की पुलिस हिरासत में मौत हो जाती है, उसकी चाची की मौत हो जाती है और वो अपनी इस लड़ाई को लड़ते-लड़ते अपनी जिंदगी के लिए भी जंग लड़ रही है। पढ़ने में यह कोई क्राइम ड्राला बॉलीवुड सिनेमा की क्रिप्ट लगती है लेकिन यह साल 2017 से शुरू हुई उन्नाव रेप पीड़ित की असल जिंदगी की कहानी है। इस बेहद कूर अपराध के शुरू होने से लेकर अब तक की कहानी आपको झकझोर कर रख देगी। जिस ट्रक से एक्सीडेंट हुआ उसका नम्बर छिपाया गया था। लड़की को सुरक्षा के लिए कुल नौ सुरक्षा कर्मी दिए गए थे लेकिन घटना के वक्त उसके साथ एक भी सुरक्षाकर्मी नहीं था। पीड़िता के परिवार का आरोप है कि विधायक के लोग उन्हें केस वापस लेने की लगातार धमकी दे रहे थे और यह एक्सीडेंट प्रायोजित किया गया है। लड़की के परिवार ने यूपी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी पर मामले को दबाने का प्रयास भी बताया है।

-अनिल नरेन्द्र