Friday 4 October 2019

सोशल मीडिया पर अंकुश कैसे लगे?

सोशल मीडिया के बढ़ते दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। इंटरनेट के लिए नहीं, देश को लेकर चिंतित होना चाहिए। फेसबुक की ओर से दाखिल इस याचिका पर जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरूद्ध बोस की पीठ सुनवाई कर रही है। जस्टिस गुप्ता ने कहा, अभी आलम यह है कि सोशल मीडिया के जरिये लोग आधे घंटे में एके-47 राइफल भी खरीद सकते हैं। यहां तक कि वह स्मार्ट फोन त्यागने की सोच रहे हैं। सोशल मीडिया (फेसबुक-व्हाट्सएप) सशक्त माध्यम बन गए हैं और आज के समय में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। इसकी बेशुमार ताकत की वजह से विज्ञान की तरह कुछ लोग इसे वरदान मानते हैं तो कुछ अभिशाप। पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से पूछा था कि क्या वह सोशल मीडिया को आधार से जोड़ने की किसी योजना पर काम कर रही है? इस बार उसने सरकार को इस संबंध में तीन सप्ताह के अंदर सख्त दिशानिर्देश तैयार करने को कहा है। यह बहुत भीषण स्थिति है कि सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, चरित्र हनन, अफवाह और फर्जी खबरों की बाढ़ है। व्हाट्सएप पर बच्चा चोरी की फर्जी सूचनाओं के आधार पर देशभर में लोगों की पिटाई और हत्या तक कर देने की घटनाओं को सोशल मीडिया अंजाम दे देता है, इस अराजकता का एक उदाहरण है। अदालत ने ट्रोलिंग, चरित्र हनन, अफवाह फैलाने और फेक न्यूज जैसे मुद्दों पर गौर करने की नसीहत केंद्र सरकार को दी है। अदालत की टिप्पणी इस मायने में अहम है कि उसने स्पष्ट तौर पर सरकार से कहा है कि नीति बनाते वक्त निजता और देश की संप्रभुता का ध्यान रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, ट्रोलिंग, आतंकवाद, बाल शोषण आदि से जुड़ा मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, चरित्र हनन, झूठ व फर्जी खबरें फैलाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि ऐसा करने वालों की पहचान करने की तकनीक विकसित की जाए। अदालत का कहना था कि कुछ सोशल मीडिया यह पता नहीं लगा पा रही कि किसी मैसेज या ऑनलाइन कंटेट का सोर्स क्या है? सरकार को इसमें दखल देने की जरूरत है। आखिर सरकार यह क्यों नहीं पूछ सकती कि ऐसे आपत्तिजनक कंटेट की शुरुआत किसने की? आप यह कहकर नहीं बच सकते कि ऐसी तकनीक नहीं है। बैंच ने कहा कि सरकार जब इस मामले में गाइडलाइन बनाएं तो लोगों के प्राइवेसी के अधिकार, उनकी प्रतिष्ठा और देश की संप्रभुता का ध्यान रखें। देखना अब यह है कि 22 अक्तूबर को अगली सुनवाई में केंद्र सरकार नीति बनाने की समयसीमा का ऐलान करती है या नहीं? क्या उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार एक ठोस नीति लेकर आएगी या नहीं?

-अनिल नरेन्द्र

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