पंजाब
एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव
बैंक (पीएमसी बैंक) घोटाले के कारण भारी
वित्तीय संकट के साथ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के प्रतिबंधों का सामना कर रहे एक और खाताधारक मुरलीधर की शुक्रवार को दिल
का दौरा पड़ने के कारण मौत हो गई। मृतक के परिजनों का कहना है कि डॉक्टर ने मुरलीधर
को हार्ट सर्जरी करने की सलाह दी थी, लेकिन आरबीआई के पाबंदी
के कारण अपने पैसे पीएमसी बैंक से निकाल नहीं पाए। मुरलीधर के बेटे प्रेम धारा ने कहा
कि उनके 83 वर्षीय पिता की मौत उनके घर पर हुई। उन्होंने बताया
कि उनके परिवार के कुल 80 लाख रुपए बैंक में जमा हैं। इससे पहले
इसी बैंक में लाखों रुपए जमा करके फंसे दो और खाताधारकों की 24 घंटे के अंदर हार्ट अटैक से मौत हो गई। यह दोनों ही बैंक से अपना पैसा वापस
पाने के लिए आंदोलन कर रहे थे। बैंक से पैसे निकालने पर लगी पाबंदी की वजह से उनके
परिवार वित्तीय संकट में घिरे थे। 57 वर्षीय संजय गुलाटी अपने
80 साल के पिता के साथ सोमवार को बैंक के खिलाफ प्रदर्शन करके लौटे थे,
तभी घर पर खाना खाते वक्त उन्हें दिल का दौरा पड़ा। अस्पताल ले जाने
पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। संजय के पिता ने बताया कि उनके परिवार के बैंक में
90 लाख रुपए जमा थे। संजय पहले जेट एयरवेज में इंजीनियर थे, लेकिन एयरलाइंस बंद होने से कुछ महीने पहले उनकी नौकरी चली गई थी। संजय की
मौत को 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि मंगलवार को पीएमसी बैंक के
एक अन्य खाताधारक धत्तोमल पंजाबी को दिल का दौरा पड़ा। बैंक में पैसा फंसने से वह भी
वित्तयी संकट में घिरे थे। उधर सुप्रीम कोर्ट ने पीएमसी बैंक से धन निकालने पर आरबीआई
द्वारा निर्धारित की गई सीमा खत्म करने के लिए इस बैंक के खाताधारकों की याचिका पर
शुक्रवार को सुनवाई करने से भी इंकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता
वाली पीठ ने कहा कि हम अनुच्छेद 32 (रिट अधिकार क्षेत्र)
के तहत इस याचिका पर सुनवाई नहीं करना चाहते। पीएमसी बैंक में
4355 करोड़ रुपए के घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद रिजर्व बैंक ने इसके
वित्तीय लेन-देन पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए थे। इन प्रतिबंधों के
तहत बैंक के ग्राहकों को छह महीने की अवधि में इससे 40 हजार रुपए
तक ही निकालने का निर्देश दिया गया। याचिकाकर्ता बेजोन कुमार मिश्रा की ओर से अधिवक्ता
शशांक सुधी ने पीठ से कहा कि पीएमसी के 500 खाताधारकों की ओर
से यह याचिका दायर की गई है जिसमें नकदी निकालने पर आरबीआई की ओर से लगाई रोक को हटाने
का अनुरोध किया गया है। आश्चर्य है कि पीएमसी में पिछले 10 सालों
से घपला जारी था, फिर भी किसी को इसकी भनक नहीं लगी। याद रहे
कि इस घोटाले की जानकारी रिजर्व बैंक को एक व्हिसलव्लोअर के माध्यम से मिली,
जिसके बाद 24 सितम्बर को उसने बैंक को अपने नियंत्रण
में लिया और नकद निकासी की सीमा तय कर दी। पीएमसी के खाताधारकों के पैसे फंसने का मामला
नोटबंदी की मार जैसा तो है पर कुछ मायनों में नोटबंदी की पीड़ा से ज्यादा मारक है।
जिस व्यक्ति की अपने जीवन की पूरी कमाई 90 लाख रुपए हो और वह
दिव्यांग बेटे का इलाज भी न करवा पाए तो उसका सदमे में जाना स्वाभाविक ही है। लेकिन
पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है। इसी तरह पिछले महीने किडनी का ऑपरेशन करवा कर आए एक
मरीज की 50 लाख रुपए की एफडी है, पर इलाज
के लिए पैसे हाथ में नहीं। यह व्यक्ति वित्तमंत्री के सामने गिड़गिड़ाता रहा,
लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा। ऐसे ढेरों किस्से हैं। बड़ी संख्या में
वृद्धों की पेंशन का पैसा जमा है, पर जरूरतभर का पैसा भी हाथ
में नहीं तो कैसे काम चलेगा? एक तरफ सरकार नकदी लेन-देन को हतोत्साहित कर रही है, बैंकों में बचत को जमा
करने के लिए लोगों को प्रेरित कर रही है, डिजिटल लेन-देन को अनिवार्य करने की ओर अग्रसर है, दूसरी ओर बैंकों
में जमा पैसे की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। खाताधारकों का बस कसूर इतना है कि
उन्होंने विश्वास के साथ अपनी जमा पूंजी बैंक में रखवाई थी। घपला कोई करे, भरे कोई। अभी तो कई और बैंक लगभग इसी स्थिति में हैं, पता नहीं कितने बेकसूर खाताधारकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
-अनिल नरेन्द्र
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