Friday, 11 October 2019

मोदी को खुला पत्र लिखने वालों पर राजद्रोह का आरोप?

देश में मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री को लिखे गए खुले पत्र को लेकर बिहार के मुजफ्फरपुर में 49 कलाकारों-बुद्धिजीवियों पर एक अदालत ने राजद्रोह का केस दर्ज किया है। इसकी जानकारी पुलिस ने दी है। जिला पुलिस अधिकारियों के अनुसार यह मामला स्थानीय कोर्ट के आदेश पर सदर पुलिस थाने में दर्ज किया गया है। अधिवक्ता एसके ओझा ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में एक याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई के बाद इन सेलिबेटियों पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश जारी किया है। उन्होंने याचिका में करीब 50 सेलिबेटियों के नाम आरोपी के तौर पर शामिल किए हैं, जिनमें उनके द्वारा कथित तौर पर देश की छवि को धूमिल करने और प्रधानमंत्री के प्रभावशाली प्रदर्शन को कमजोर करने की बात कही गई है। इसके साथ ही याचिका में उनके द्वारा अलगाववादी प्रवृत्तियों का समर्थन करने की बात भी कही गई है। 23 जुलाई को लिखे गए इस पत्र में इन लोगों ने मांग की कि ऐसे मामलों में जल्द से जल्द और सख्त सजा का प्रावधान किया जाए। अभिनेत्री कोंकण सेन, निर्देशक मणिरत्नम, अपर्णा सेन, श्याम बेनेगल, रामचंद्र गुप्ता और अन्य 45 सेलिब्रेटियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। इन कलाकारों और बुद्धिजीवियों के खिलाफ केस दर्ज होना भारतीय लोकतंत्र पर एक बड़ा धब्बा है। अधिकार और स्वतंत्रता को लेकर अकसर पूरी दुनिया में भारतीय जनतंत्र की मिसाल दी जाती है। भीड़ की हिंसा पर चिंता जताने वालों को इस तरह पहली नजर में आरोपी मान लेना एक लोकतांत्रिक समाज के रूप में हमारी छवि को भारी नुकसान पहुंचाएगा। भीड़ द्वारा निर्दोषों की हत्या के खिलाफ आवाज उठाना कहां से राजद्रोह का मामला बनता है? भीड़ की हिंसा पर चिंता जताने वालों को इस तरह पहली नजर में आरोपी मान लेना एक जनतांत्रिक समाज के रूप में भारत की छवि को भारी नुकसान पहुंचाएगा। प्रश्न किया जाएगा कि आखिर भारत का कैसा लोकतंत्र है, जिसमें किसी ज्वलंत समस्या की ओर ध्यान खींचना भी जुर्म समझा जाता है? सवाल यह भी उठता है कि नागरिकों को देश के मुखिया से सीधा संवाद कर सकें क्या इतनी भी हक नहीं है। जब इन कलाकारों-बुद्धिजीवियों ने इस ओर पीएम का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की क्या यह बेहतर नहीं होता कि सरकार इसको गंभीरता से लेते हुए उन्हें बताती कि इस विषय पर वह अपनी सक्रियता बताती। यह बताती कि वह इस समस्या से निपटने के लिए सक्रिय है। अगस्त में दायर इस याचिका पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद बीते गुरुवार को जो प्राथमिकी दर्ज हुई है जिसमें पत्र लिखने वालों पर राजद्रोह, उपद्रव और शांति भंग करने के इरादे से धार्मिक भावनाओं को आहत करने संबंधी धाराएं लगाई गई हैं। जब इस पर बवाल हुआ तो बिहार सरकार ने सफाई दी कि उसका इससे कोई लेना-देना नहीं है। सवाल याचिका दायर होने पर नहीं, स्थानीय अदालत द्वारा स्वीकार कर लेने पर है कि क्या ऐसा करते हुए भारत के संविधान के तकाजों को ध्यान में रखा गया है? इसको दुरुस्त करने के लिए अब शीर्ष न्यायपालिका को ही आगे आकर कुछ करना होगा।

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