Thursday 3 October 2019

बारिश का कहर

बिहार और उत्तर पदेश में बरसात ने जिस तरह का कहर ढाया है। वह किसी बड़ी पाकृतिक आपदा से कम नहीं है। इस साल इतनी बारिश हुई है कि पिछले कई वर्षों का रिकार्ड टूट गया है। बिजली गिरने, बाढ़ में डूबने, दीवार गिरने से लेकर करंट की चपेट में आने की वजह से उत्तर पदेश में 80 और बिहार में करीब 30 लोगों की मौत हो गई और कई शहरों में पानी भर जाने से सड़क और रेल यातायात सहित बाकी जनजीवन ठप होने की स्थिति यह बताने के लिए काफी है कि विकास के नाम पर स्मार्ट सिटी बनाने, अच्छी सड़कों और ऊंची इमारतों का हवाला देने की हकीकत जमीन पर क्या है? बिहार की राजधानी पटना में सड़कों पर 6-7 फुट पानी भरा है। मंत्री-विधायकों समेत 80 पतिशत घरों में पानी घुस चुका है। कोचिंग हब कहे जाने वाले राजेन्द्र नगर इलाके में सोमवार को हॉस्टल में फंसी छात्राओं को रेस्क्यू किया गया। इसी इलाके में बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी रहते हैं जो शुकवार रात से घर में फंसे हुए थे। उन्हें और उनके परिवार को सोमवार सुबह नाव की मदद से निकाला गया। पटना से गुजरने वाली चारों नदियां सोन, गंगा, गंडक और पुनपुन खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। सुशील मोदी के घर में 5 फुट पानी भरा है। बिजली बंद है। शनिवार को इंवर्टर भी बंद हो गया था। दो दिन उन्हें बिना बिजली के काटने पड़े। एनडीआरएफ की टीम ने सुबह 11 बजे सुशील मोदी उनकी पत्नी और उनके भाई के परिवार को नाव में बैठाकर बाहर निकाला। आखिर बरसात की वजह से किसी शहर के डूबने की स्थिति क्यों पैदा हो रही है। पटना में एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि अगर बरसात पूरी तरह रूक भी जाती है तो गलियों-मुहल्लों में जमा पानी कैसे निकलेगा? ऐसी स्थिति में पश्न यह भी उठता है कि सरकार के पास ऐसी स्थिति से निपटने की क्या तैयारी थी और है? न केवल जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, बल्कि धन-जन की भी काफी बर्बादी हुई है। इसके लिए शासन-पशासन की नाकामी को भले ही जिम्मेदार ठहरा कर संतोष कर लिया जाए, लेकिन इसकी जड़ में अनियोजित या बेतरतीब विकास है। आधुनिक भारत में विकास की ऐसी परिभाषा गढ़ी गई कि पकृति के साथ सांमजस्य बिगड़ता गया। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि यह पाकृतिक व पर्यावरण से छेड़छाड़ का ही नतीजा है। हम स्मार्ट सिटी बनाने की बात तो करते हैं पर जो शहर हैं उनमें बुनियादी सुविधाओं का कितना अभाव है, उसी का यह एक उदाहरण है। इसलिए समय की मांग है कि पकृति के साथ सामजंस्य बनाकर विकास को अंजाम दिया जाए। पकृत्ति बार-बार चेतावनी दे रही है, अगर समय रहते नहीं चेते तो इससे भी भयानक स्थिति पैदा हो सकती है। फिलहाल तो पानी उतरने, बरसात रुकने, बाढ़ के पानी कम या खत्म होने का इंतजार कीजिए और उससे पैदा होने वाली बीमारियों जैसी चुनौतियों से निपटने की तैयारी कीजिए।

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