Tuesday 29 October 2019

देवी लाल की दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी एक साथ विधानसभा पहुंची

मई में लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह मोदी मैजिक ने हरियाणा में भाजपा को रिकॉर्ड जीत नसीब करवाई थी, वहीं पांच महीने बाद ही सत्तारूढ़ भाजपा को झटका लगा है। 75 पार का लक्ष्य लेकर चल रही हरियाणा भाजपा 40 का आंकड़ा भी बमुश्किल छू पाई। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, स्मृति ईरानी, हेमा मालिनी, सन्नी देओल, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी जैसे बड़े चेहरों समेत 40 स्टार प्रचारकों ने अपनी ताकत झौंकी थी। बावजूद इसके भाजपा जीत से दूर रही और उसे जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ गठबंधन सरकार बनानी पड़ी। हरियाणा के अंतिम छोर में बसे चौटाला गांव के पांच विधायक 14वीं विधानसभा में पहुंचे हैं। पांचों चौधरी देवी लाल के बेटे रणजीत सिंह रानियां से, पौत्र अभय सिंह ऐलनाबाद, पौत्र वधू नैना चौटाला, वाढड़ा, प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला उचाना और अमित सिहाग डबवाली से विधायक बने हैं। यह प्रदेश और शायद देश का भी पहला परिवार है जिसके चौधरी देवी लाल की दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी एक साथ विधानसभा पहुंची है। भाजपा ने हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) से गठबंधन कर जाटों को एक बार फिर साधने की कोशिश की है। ऐसा करने से जाट समुदाय का भाजपा के प्रति भरोसा फिर लौटेगा और उसे हरियाणा ही नहीं आने वाले दिल्ली चुनाव और अन्य राज्यों में भी इसका लाभ मिल सकता है। बता दें कि गत गुरुवार रात से ही जजपा के साथ एक अलग पैनल खोलकर भाजपा ने बातचीत शुरू कर दी थी। इसे वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर चला रहे थे। अनुराग ठाकुर के दुष्यंत चौटाला से निजी संबंध भी हैं और इन दोनों युवाओं ने कई दौर की बातचीत कर यह स्थिति बना ली थी कि भाजपा और जजपा का गठबंधन लगभग तय हो गया था। सारी बातें तय होने के बाद अहमदाबाद गए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को संदेश भेजा गया। शाह ने दिल्ली आकर दुष्यंत चौटाला के साथ आखिरी दौर की बातचीत की। इस बैठक में एकमात्र मुद्दा उपमुख्यमंत्री का रहा जिस पर भाजपा ने सहमति जता दी। भाजपा वैसे भी गोपाल कांडा से समर्थन लेने से कतराने लगी थी क्योंकि कांडा के खिलाफ विपक्ष को छोड़ खुद भाजपा के अंदर जबरदस्त विरोध होने लगा था। सो उसे लगा कि जजपा से गठबंधन करने में कांडा को परे करने में पार्टी को ज्यादा फायदा है। वैसे हरियाणा की राजनीति में विरोधियों के साथ गठबंधन करके सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की परंपरा राज्य बनने के साथ ही शुरू हो गई थी। राजनीतिक रूप से आपातस्थिति में देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल सरीखे नेताओं ने गठबंधन कर सत्ता हासिल की। मगर यह भी हकीकत है कि हरियाणा को कभी भी गठबंधन की राजनीति रास नहीं आई। 1977 में चौधरी देवी लाल के नेतृत्व में पहली बार यह गठबंधन बना। कुछ समय बाद भजन लाल ने देवी लाल सरकार गिरा दी और 1980 में भजन लाल कांग्रेस में शामिल हो गए और सरकार बना ली। 1987 में देवी लाल ने भाजपा संग गठबंधन सरकार बनाई। उनमें ओम प्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने। भाजपा ने गठबधन तोड़ लिया और सरकार अल्पमत में चली गई। 1996 में बंसी लाल ने हरियाणा विकास पार्टी बनाई और भाजपा के साथ गठबंधन करके सत्ता में आ गए। 1999 में भाजपा ने समर्थन वापस लिया तो बंसी लाल सरकार गिर गई। 2009 में जनहित कांग्रेस और भाजपा का गठबंधन हुआ। वैचारिक मतभेद होने के कारण और 2014 में  जनहित कांग्रेस और बसपा का गठबंधन हुआ। यह भी लंबा नहीं चला। अब हाल में बसपा और इनेलो ने फिर गठबंधन किया। इनेलो और भाजपा का गठबंधन हुआ तो ओम प्रकाश चौटाला भी सत्ता की सीढ़ी चढ़ गए। यह गठबंधन भी लंबे तक नहीं चला। हरियाणा में इनेलो सरकार अल्पमत में आ गई और उसने केंद्र में भाजपा से समर्थन वापस ले लिया। इस बीच हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इनेलो ने बसपा के साथ गठबंधन किया। यह गठबंधन भी लंबा नहीं चल सका। अगर हरियाणा में गठबंधन सरकारों की बात करें तो यह अनुभव अच्छा नहीं रहा है। भाजपा का ट्रेक रिकॉर्ड भी गठबंधन सरकारों का अच्छा नहीं है। उम्मीद करते हैं कि इस बार यह सरकार लंबी चले।

-अनिल नरेन्द्र

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