Wednesday, 30 October 2019

यूपी-बिहार में एनडीए को नुकसान क्यों हुआ?

देश के 16 राज्यों और एक केंद्रीय शासित प्रदेश पुडुचेरी की 51 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में यूपी-बिहार में सत्ताधारी एनडीए को झटका लगा है। यूपी की 11 रिक्त सीटों में भाजपा सात, सपा तीन और अपना दल (सोनेलाल) को एक सीट पर सफलता मिली है। वहीं बिहार में चार सीटों पर लड़ रहे सत्तारूढ़ जदयू को एक सीट से संतोष करना पड़ा है। विपक्षी राजद ने चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें दो पर उसकी जीत हुई है। एक सीट ओवैसी की पार्टी ने जीतकर राज्य में खाता खोल लिया है। यूपी में बसपा को अपनी एक सीट हारने का बड़ा झटका लगा है। भाजपा को एक सीट का नुकसान हुआ है जबकि प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को पिछले चुनावों के मुकाबले दो सीटों का फायदा हुआ है। इन परिणामों ने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को संजीवनी दी है। सपा ने जहां अपनी रामपुर सीट को बचा लिया वहीं भाजपा और बसपा से एक-एक सीट छीनकर तीनों सीटों पर सफलता हासिल की। इतना ही नहीं पार्टी के उम्मीदवार 11 में से चार जगह दूसरे स्थान पर रहे। अगर बसपा और सपा का गठबंधन जारी रहता है तो दोनों को कहीं ज्यादा सीटें मिलतीं और भाजपा को और ज्यादा नुकसान होता। बहन जी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। उत्तर प्रदेश में सत्ता संघर्ष के लिए अकेले चल पड़े अखिलेश यादव की साइकिल बेशक उम्मीदों के ट्रेक पर आ गई है। बिहार में लोकसभा समेत छह सीटों के लिए हुए उपचुनाव का रिजल्ट एनडीए के लिए अगले विधानसभा चुनाव के लिए लाल बत्ती के सामान है। इन छह सीटों पर विपक्ष के लिए खोने को कुछ नहीं था किन्तु एनडीए से सीटें छीनकर विपक्ष ने जता दिया कि अगले विधानसभा चुनाव में युद्ध भीषण होगा। सहानुभूति लहर के कारण समस्तीपुर लोकसभा का उपचुनाव परिणाम ने एनडीए की लाज बचा ली। इस उपचुनाव में हार-जीत में स्थानीय मुद्दे के साथ उम्मीदवार की भूमिका अहम रही। घरौंदा विधानसभा के उपचुनाव में निर्दलीय की जीत ने साबित कर दिया है कि वहां की जनता ने जदयू और राजद दोनों को ठुकरा दिया है। इसी तरह किशनगंज विधानसभा के उपचुनाव में भी किसी स्थापित दल की जीत नहीं हुई है। दोनों भाजपा व राजद के उम्मीदवार पराजित हुए हैं। ओवैसी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज कर पार्टी को बिहार में भी अपना खाता खोलने का अवसर दे दिया है। भाजपा व जदयू दोनों को अहसास हो गया है कि संयुक्त टीम महागठबंधन पर हर समय कहर ढाएगी। दोनों एक-दूसरे को स्वाभाविक दोस्त भी मानते हैं। साथ ही रहने में दोनों को फायदा है। यह परिणाम नीतीश कुमार के लिए खतरे का संकेत दे रहे हैं। सुशासन बाबू का जादू उतरता लगता है। प्रदेश में दोनों दलों के कार्यकर्ता उधेड़बुन में नजर आए। यदि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भाजपा व जदयू के गठजोड़ को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं करता तो छह सीटों के उपचनाव में एनडीए का सूपड़ा भी साफ हो सकता था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जब तक कदम उठाते बिहार में भाजपा व जदयू कार्यकर्ताओं के बीच कुछ अलग संदेश चला गया था। अगर बिहार में जदयू-भाजपा गठबंधन को मुंह की खानी पड़ी है तो उसके लिए वह खुद और सुशासन बाबू जिम्मेदार हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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