Sunday 30 June 2019

चले थे भाजपा को घेरने खुद ही चौपट हो गए

आम चुनावों से पहले तक भविष्य के किंग मेकर नजर आ रहे टीडीपी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू को झटके पर झटके लग रहे हैं। राज्य की सत्ता गंवाने और लोकसभा चुनाव में भारी हार के बाद अब उनकी पार्टी भी टूट गई है। राज्यसभा में उनके छह में से चार सांसद भाजपा में शामिल हो गए हैं। जिन चार सांसदों ने पार्टी छोड़ी है, वे सभी नायडू के भरोसे के थे। जाहिर है कि चंद्रबाबू नायडू के लिए मुश्किलें और भी बढ़ सकती हैं। चंद्रबाबू नायडू ने चुनाव पूर्व विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की थी। वे चुनाव के दौरान भी सरकारी जहाज लेकर कोलकाता और दिल्ली के चक्कर काटते रहे। नायडू चुनाव से पूर्व विपक्ष को साथ खड़ा करने में विफल रहे। कारण कई थे जैसे विपक्ष में कई दल ऐसे थे जो राज्यों में एक-दूसरे के विरोधी थे। उसी दौरान तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर राव भी संघीय मोर्चे की मुहिम चला रहे थे। इधर नायडू विपक्ष को एकजुट कर दिल्ली में भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहे थे तो उधर केसीआर राव ने जगनमोहन रेड्डी को समर्थन देकर नायडू की मुश्किलें उन्हीं के घर में बढ़ा दीं। आंध्रप्रदेश की कई सीटों पर तेलंगाना के मतदाताओं की भी काफी तादाद है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उनकी मुश्किलें खत्म नहीं होने वाली। राज्य में जगनमोहन रेड्डी सरकार लगातार उनके फैसलों की समीक्षा कर रही है और उनके कई अहम निर्णयों को रद्द किया गया है। खबरें तो यहां तक हैं कि कुछ फैसलों को लेकर आने वाले दिनों में नायडू को कठघरे में भी खड़ा किया जा सकता है। अपनी मौजूदा स्थिति के लिए नायडू की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी कम जिम्मेदार नहीं है। आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे को लेकर उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाया और सरकार में शामिल हो गए। लेकिन जब यह दर्जा नहीं मिला तो वह विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में लग गए। चुनाव से पहले कांग्रेस के साथ हो गए जबकि आंध्रप्रदेश में कांग्रेस को राज्य के विभाजन के लिए जिम्मेदार माना जाता है। गलत वक्त पर लिए गए फैसलों के कारण चंद्रबाबू नायडू प्रदेश में ही नहीं पार्टी के भीतर भी अलोकप्रिय हो गए। नायडू हालांकि ऐसी परिस्थितियों से पहले भी दो-चार हो चुके हैं। 2004 और 2009 में भी उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। प्रश्न यह है कि क्या वह फिर से खड़े हो पाएंगे? बहरहाल टीडीपी के चार सांसदों के पाला बदलने से उच्च सदन में विपक्ष को बड़ा झटका लगा है। इस उलटफेर के बावजूद भाजपा और एनडीए बेशक बहुमत से राज्यसभा से दूर हो मगर अहम बिलों को पारित कराने के लिए जरूरी संख्या के बेहद करीब पहुंच गई है। तीन तलाक, नागरिकता संशोधन जैसे अहम बिलों को पारित कराने के लिए भाजपा को बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस जैसे दलों को साधना होगा। उच्च सदन में बहुमत न होने के कारण मोदी-1 सरकार दर्जनभर अहम बिलों को कानूनी अमलीजामा नहीं पहना पाई थी। टीडीपी के कुल छह सांसदों में से दो-तिहाई सदस्य अलग गुट बनाकर भाजपा में शामिल हुए, इसलिए इन पर दलबदल कानून लागू नहीं होगा।

-अनिल नरेन्द्र

बतौर गृहमंत्री अमित शाह का पहला कश्मीर दौरा

बतौर केंद्रीय गृहमंत्री पहली बार जम्मू-कश्मीर के दौरे पर गए अमित शाह का दौरा सफल रहा। अमित शाह दो दिन कश्मीर में रहे। अरसे के बाद यह देखने को मिला कि अमित शाह के कश्मीर दौरे पर न तो अलगाववादियों ने कोई बंद का आह्वान किया, न कोई हड़ताल हुई, न कोई पत्थरबाजी ही हुई। तो क्या यह समझा जाए ]िक अलगाववादियों का नजरिया बदल गया है या उन्हें शाह का इतना खौफ है कि उनके दो दिन प्रवास के दौरान एक भी अप्रिय घटना नहीं हुई? तो क्या यह माना जाए कि अलगाववादियों का नजरिया दोबारा मोदी सरकार आने पर बदल गया है? क्या अलगाववादियों और पत्थरबाजों का यही नजरिया आगे भी बना रहेगा? शायद यह बदलाव पुलवामा अटैक और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद दुनिया में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान की वजह से हो रहा है। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली इस एफएटीएफ से बचने के लिए पाकिस्तान आगे कोई जोखिम फिलहाल कश्मीर में खुले तौर पर लेता नहीं दिख रहा है। हालांकि जैश--मोहम्मद और अन्य आतंकी संगठनों को नए सिरे से मजबूत करने की तैयारी आईएसआई द्वारा की जा रही है। अमित शाह ने यह कहकर अपने इरादे जाहिर कर दिए कि आतंकियों की फंडिंग रोकने और घुसपैठ रोधी तंत्र को मजबूत बनाने के साथ ही आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीरो टालरेंस की नीति पर मोदी सरकार चलेगी। इसके साथ ही उन्होंने अलगाववादियों से जिस तरह वार्ता की संभावनाओं को खारिज किया उससे यह साफ हुआ कि मोदी सरकार जल्दबाजी में कोई कदम उठाने से बचना चाह रही है और उसकी पहली प्राथमिकता घाटी के हालात सुधारने और उन्हें स्थायित्व देने पर है। अमित शाह ने टेरर फंडिंग में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश  दिए। राज्य के शीर्ष अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की जिसमें राज्यपाल सत्यपाल मलिक भी थे, शाह ने अलगाववादियों व आतंकवादियों पर लगाम कसने के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने अमरनाथ यात्रा के संबंध में सुरक्षा प्रबंधों पर भी चर्चा की। अमित शाह ने कहा कि प्रमुख सार्वजनिक स्थलों के नाम शहीद पुलिसकर्मियों के नाम पर होने चाहिए। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बृहस्पतिवार को आतंकवादी हमले में शहीद जम्मू-कश्मीर के पुलिस अधिकारी अरशद अहमद खान के घर का दौरा किया और उनके परिवार को आश्वासन दिया और सरकार उनकी देखभाल करेगी। उन्होंने शहीद की पत्नी को सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र भी सौंपा। शाह बृहस्पतिवार को अधिकारियों के साथ शहर के सिविल लाइंस इलाके के पास खान के बल उद्यान निवास पर पहुंचे और उनके माता-पिता मुश्ताक अहमद खान और महबूबा बेगम, पत्नी, भाई और बच्चों उल्बान (5) और दामिन (18 माह) से मुलाकात की। शाह ने परिजनों को प्रशंसा पत्र भी सौंपा जिसमें खान की शहादत का जिक्र था। निस्संदेह है कि यह उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री के दौरे के समय घाटी में हड़ताल या बंद का आयोजन नहीं किया गया, लेकिन यह भी ठीक ही रहा कि उन्होंने मौजूदा हालात में एक शुरुआत के तौर पर ही देखा और यह साफ किया कि यह मंजिल नहीं है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अमित शाह का पहला कश्मीर दौरा सफल रहा।

Friday 28 June 2019

एंटीगुआ खत्म करेगा मेहुल चोकसी की नागरिकता

देश के सबसे बड़े बैंक घोटाले के आरोपी मेहुल चोकसी पर शिकंजा कसता जा रहा है, उसके बच निकलने के सारे रास्ते धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं। पंजाब नेशनल बैंक से 15 हजार करोड़ रुपए का घोटाला करके कैरिबियाई देश एंटीगुआ में जाकर छिपना और वहां की नागरिकता अपनी दौलत से खरीदने व वहां की नागरिकता पाकर भारतीय जांच एजेंसियों से बच निकलने का जो सपना चोकसी ने पाला था, वह अब टूटता दिख रहा है। उनकी नागरिकता रद्द हो सकती है, इसका अहसास शायद खुद चोकसी को भी हो गया होगा तभी पिछले सप्ताह उन्होंने मुंबई की एक अदालत में अर्जी देकर कहा था कि वह अस्वस्थ हैं और इतनी लंबी यात्रा नहीं कर सकते। हां अगर भारतीय जांच एजेंसियां उनसे कुछ पूछताछ करना चाहती हैं तो वह एंटीगुआ आ जाएं और जो भी पूछना हो पूछें। चोकसी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा भी पूछताछ का सुझाव दिया था। सीबीआई ने उनकी बीमारी को एक बहाना बताया और कहा कि वह भारत आ जाएं उन्हें बाकायदा एक एम्बुलेंस से लाया जाएगा और अस्पताल में उनका पूरा इलाज करवाया जाएगा। एंटीगुआ के प्रधानमंत्री गास्तोन ब्राइन ने एक बयान में कहा है कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद मेहुल चोकसी की नागरिकता खत्म की जाएगी और उन्हें भारत को सौंपा जाएगा। भगोड़े आरोपियों को वापस लाने की दिशा में इसे भारत की कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। हालांकि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि उन्हें मामले में जानकारी नहीं है। ब्राउन ने एंटीगुआ आब्जर्वर से कहा कि हमने भारत को बताया है, मेहुल चोकसी के खिलाफ कानूनी मामले चल रहे हैं। प्रक्रिया पूरा होने पर उसका प्रत्यर्पण कर दिया जाएगा। हम धोखाधड़ी के समर्थक नहीं हैं। एंटीगुआ की छवि घोटालेबाजों की पनाहगाह के तौर पर नहीं बनने देंगे। मेहुल पिछले साल पीएनबी घोटाले के खुलासे से एक दिन पहले चार जनवरी को एंटीगुआ भाग गया था। एंटीगुआ से प्रत्यर्पण संधि न होने से उनकी वापसी में अड़चनें हैं। पर अब रास्ता साफ हो जाएगा। बता दें कि मेहुल चोकसी और नीरव मोदी के मसले पर मोदी सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के दौरान लगातार यह मुद्दा उठाया था। लेकिन अब अगर मेहुल चोकसी की वापसी होती है तो यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की बड़ी सफलता मानी जा सकती है। साथ-साथ इससे अन्य आर्थिक भगोड़ों को भी संदेश जाएगा कि अगर वह समझते हैं कि अपने धन के बल पर भारतीय कानूनी प्रक्रिया से बच सकते हैं तो वह गलतफहमी में हैं। विजय माल्या केस भी उनकी ब्रिटिश अदालतों में लगातार हार से उनके बचने के रास्ते बंद हो रहे हैं। अगर भारतीय एजेंसियों ने अपना दबाव बनाए रखा तो न सिर्प चोकसी बल्कि नीरव मोदी और विजय माल्या का बच पाना मुश्किल हो जाएगा।

-अनिल नरेन्द्र

पहले उर्जित पटेल अब विरल आचार्य

भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता के पुरजोर समर्थक माने जाने वाले डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने पद से इस्तीफा दे दिया है। नब्बे के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद सबसे कम उम्र के डिप्टी गवर्नर बने विरल आचार्य केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के मुखर पैरोकार रहे हैं। आरबीआई के हितों को लेकर कई बार उन्होंने मोदी सरकार के सामने असहज स्थिति पैदा की। उनका मानना था कि आरबीआई की स्वायत्तता आर्थिक प्रगति और वित्तीय स्थिरता के लिए बेहद जरूरी है। कार्यकाल पूरा होने से छह महीने पहले ही पद छोड़ने वाले आचार्य ने पिछले साल अक्तूबर में सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता से छेड़छाड़ के घातक परिणाम हो सकते हैं। इसके बाद केंद्र की ओर से आरबीआई एक्ट की धारा 7 के तहत केंद्रीय बैंक को निर्देश जारी करने की नौबत आ गई। आचार्य का महंगाई को लेकर कड़ा रुख रहा है और कई बार ब्याज दरों में कमी के फैसलों पर उन्होंने असहमति भी दर्ज कराई। आचार्य के पास रिजर्व बैंक में मौद्रिक और शोध इकाई थी। विरल आचार्य का इस्तीफा राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मामला बना है तो अस्वाभाविक नहीं है। हालांकि पद छोड़ने के पीछे उन्हें निजी कारणों का हवाला दिया है। लेकिन जानकार निश्चय ही इसे पिछले कुछ महीनों से घटित घटनाक्रम से जोड़कर देख रहे हैं। आखिर तीन साल के अपने कार्यकाल के समाप्त होने से छह महीने पहले पद छोड़ना सामान्य घटना तो नहीं मानी जा सकती। पिछले सात महीनों में केंद्रीय बैंक के शीर्ष पद से इस्तीफा देने वाले वह दूसरे अधिकारी हैं। सितम्बर 2018 में रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दिया था और तब उनका कार्यकाल करीब नौ महीने बचा था। स्वतंत्र विचार रखने वाले अर्थशास्त्राr आचार्य कई मौकों पर सरकार और वित्त विभाग की आलोचना और केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का मुद्दा उठाकर विवादों में रहे हैं। पिछले साल अक्तूबर में एडी श्राफ सृष्टि व्याख्यानमाला में उन्होंने कहा था कि सरकार की निर्णय लेने के पीछे की सोच सीमित दायरे वाली है और यह राजनीतिक सोच विचार पर आधारित होती है। इस व्याख्यान से आरबीआई और सरकार के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेद खुलकर सामने आ गए थे। मौद्रिक नीति पर अपने सख्त रुख के कारण गवर्नर शशिकांत दास के साथ कई बार असहमति रही। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने टिप्पणी की कि सरकार को सच्चाई का आईना दिखाने वाले विशेषज्ञों की सूची में आचार्य का नाम शामिल हो गया। उन्होंने कहा कि भाजपा कार्यकाल में चार आर्थिक सलाहकार, आरबीआई के दो शीर्ष अधिकारी जा चुके हैं। वैसे यह कहना कठिन है कि सरकार का पक्ष सही रहा है या आचार्य का, क्योंकि सरकार को समाज कल्याण संबंधी नीतियों पर काम करना होता है और रिजर्व बैंक शुद्ध आर्थिक एवं वित्तीय कसौटियों पर उन कदमों का समर्थन या विरोध करता है। दुखद पहलू बहरहाल यह भी है कि सरकार उनका विरोध करने वालों को बर्दाश्त नहीं करती है।

मुख्य न्यायाधीश के स्वागतयोग्य सुझाव

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक महत्वपूर्ण पत्र लिखा है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में 43 लाख से अधिक लंबित मामलों के निपटारे के लिए मुख्य न्यायाधीश ने अपने पत्र में सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ दो संवैधानिक संशोधनों का अनुरोध किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि एक तो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की संख्या में बढ़ोतरी हो जोकि अभी 31 है। दूसरा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष हो। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिए तीसरे पक्ष में संविधान के अनुच्छेद 128 और 224ए के तहत सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के कार्यकाल की पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने की मांग की है। ऐसा करने से वर्षों से लंबित मामलों का निपटारा किया जा सकता है। इस समय सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों का कोई पद खाली नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में अभी 31 न्यायाधीश हैं जबकि कोर्ट में कुल 58669 मामले लंबित हैं। नए मामलों के आने की वजह से यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। जजों की संख्या कम होने से महत्वपूर्ण मामलों पर फैसले लेने के लिए पर्याप्त संख्या में संविधान बैंचों का गठन नहीं हो पा रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने समय के अनुरूप सुझाव दिया है और उसके लिए संवैधानिक रास्ते भी सुझाए हैं। मुख्य न्यायाधीश बिल्कुल सही कह रहे हैं कि न्यायाधीशों के अभाव में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित कानून से संबंधित कई मामलों में संविधान पीठ गठित करना संभव नहीं हो रहा है। वास्तव में हम सब न्यायालयों में लंबित मुकदमों के अंबार की चर्चा तो करते हैं पर इनके निपटारे के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाते। वैसे लंबे समय बाद सर्वोच्च न्यायालय के अनुरोध पर नरेन्द्र मोदी सरकार ने निर्धारित पदों पर नियुक्तियां की हैं यानि इस समय एक भी पद रिक्त नहीं है। किन्तु अब मुख्य न्यायाधीश इनकी संख्या बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। इसी तरह उनका कहना है कि अगर संविधान संशोधन कर उच्च न्यायालयों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष से 65 वर्ष कर दी जाए तो इसका भी असर होगा। 25 उच्च न्यालालयों में न्यायाधीशों के 1079 पद स्वीकृत हैं मगर इनमें 399 रिक्त पड़े हैं। जाहिर है कि यदि इन पदों पर नियुक्तियां हो जाएं और मुख्य न्यायाधीश के सुझाव के अनुरूप उनकी सेवानिवृत्ति की अवधि 62 से 65 वर्ष कर दी जाए तो लंबित मामलों के निपटारे में तेजी लाई जा सकती है। जब सर्वोच्च न्यायालय में जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र 65 वर्ष की होती है तो उच्च न्यायालयों में भी ऐसा क्यों नहीं हो सकता? उम्र ज्यादा होने से उनमें परिपरक्वता आती है और नवोन्मेषी विचारों के अनुसार वे मुकदमों पर काम करते हैं। हमारा भी मानना है कि प्रधानमंत्री को इन सुझावों में जितना संभव हो उसे स्वीकार करने के लिए शीघ्र कदम उठाएं।

-अनिल नरेन्द्र

मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाएं

झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में भीड़ ने तबरेज अंसारी नाम के एक युवक को खंभे से बांधकर पीटा। मोटर साइकिल चोरी के संदेह में पिटाई करते हुए भीड़ ने उसे जय श्रीराम और जय हनुमान के नारे लगाने को मजबूर किया। सुबह पुलिस ने युवक को अस्पताल पहुंचाने के बजाय हवालात में डाल दिया। बेचैनी की शिकायत पर मारपीट के चौथे दिन जब उसे अस्पताल ले जाया गया तो पांचवें दिन उसकी मौत हो गई। मामला सोमवार को संसद में गूंजा तो सरकार ने दो थाना प्रभारियों को सस्पेंड कर दिया। एक डीएसपी के नेतृत्व में जांच के लिए एसआईटी टीम गठित कर दी। अब तक कुल आठ आरोपी गिरफ्तार हो गए हैं। इस घटना की जितनी भी निन्दा की जाए कम है। झारखंड की इस घटना को केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने जघन्य अपराध बताते हुए यह सही ही कहा है कि लोगों को पीटकर नहीं, बल्कि गले लगाकर ही श्रीराम का जयघोष कराया जा सकता है। जिस तरह भीड़ ने तबरेज को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया, ठीक नहीं किया। चोरी के कथित अपराध पर व्यक्ति को अधमरा करना कानून से खिलवाड़ करने जैसा है। और उस पर पुलिस का रवैया देखिए। उन्हें तबरेज को अस्पताल ले जाना चाहिए था या हवालात में उस हालत में फेंकना? तबरेज की हत्या का जिम्मेदार कौन है। यह अराजकता के नग्न प्रदर्शन के अलावा और कुछ नहीं। यह सभी के लिए चिन्ता की बात होनी चाहिए कि भीड़ की Eिहसा के वैसे मामले बढ़ते जा रहे हैं जिनमें कानून व्यवसथा को धत्ता बताया जाता है। हमारे समाज में हिंसा इतनी बढ़ गई है कि अब तो पुलिस, डॉक्टर और अन्य सरकारी, गैर-सरकारी लोग भी भीड़ की हिंसा का शिकार बनने लगे हैं। इस तरह की घटनाएं मॉब लिंचिंग यही बताती हैं कि ऐसा करने वाले तत्वों को न तो पुलिस का डर है, न शासन का और न ही सरकार का। सरकार पर उन्हें संरक्षण देने के आरोप भी आए दिन लगते रहते हैं। कानून अपने हाथ में लेकर इन अराजक तत्वों को ऐसा व्यवहार करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसा व्यवहार देश की शांति व्यवस्था को चुनौती देने के साथ ही देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि को प्रभावित करता है। यह केंद्र और राज्य सरकारों का फर्ज बनता है कि ऐसी भीड़ की हिंसा को हर हालत में रोकें। इन अराजक तत्वों को किसी प्रकार का संरक्षण नहीं मिलना चाहिए। इन्हें यह स्पष्ट बताना होगा कि अगर आप कानून को अपने हाथ में लेंगे तो सरकार सख्त कदम उठाएगी। दुखद पहलू यह भी है कि पुलिस प्रशासन भी इन अराजक तत्वों से हमदर्दी रखता है और नरमी का बर्ताव करता है। क्या पुलिस इस बात का जवाब दे सकती है कि अधमरी हालत में तबरेज को अस्पताल ले जाना चाहिए था या हवालात में डालना चाहिए था? जब हिंसा का शिकार हुआ शख्स अल्पसंख्यक वर्ग का हो तो मामला और चिन्ताजनक बन जाता है। कोई सभ्य समाज ऐसी हरकतों का समर्थन नहीं कर सकता। कसूरवारों को पकड़ा जाए और कानून के मुताबिक सख्त सजा दी जाए।

Thursday 27 June 2019

चार धाम यात्रा में भक्तों की रिकार्ड तोड़ संख्या

इस साल उत्तराखंड के चार धामों और हेमपुंड साहिब में तीर्थ यात्रियों की संख्या रिकार्ड तोड़ रही है। हेमपुंड साहिब समेत उत्तराखंड के चार धामोंöगंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ में 17 लाख 15 हजार 413 तीर्थ यात्री एक महीने में ही पहुंच चुके हैं। यह एक रिकार्ड है। केदारनाथ धाम ने इस बार सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। बीते वर्ष जहां पूरे सीजन में कुल 7,32,241 तीर्थयात्री पहुंचना एक रिकार्ड था। वहीं इस साल महज डेढ़ माह में ही 7,35,032 यात्रियों के दर्शन करने से यह रिकार्ड भी टूट गया। केदारनाथ की यात्रा अब पूरी तरह से बदल गई है। जहां कभी यात्री इस दुर्गम क्षेत्र में आने से भी परहेज करते थे वहीं अब केदारनाथ आने के लिए यात्रियों की होड़ लगी हुई है। पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बार-बार यहां आने और पूरी तरह बदली एवं नए कलेवर में आई केदारपुरी में रिकार्ड तोड़ यात्री आने से यहां के लोगों में भी उत्साह है। यात्रा पर तुलनात्मक नजर डालें तो वर्ष 1988 से 1999 तक करीब एक से डेढ़ लाख यात्री ही पतिवर्ष केदारनाथ धाम के दर्शनों को पहुंचते थे। जबकि वर्ष 2000 से 2005 तक यह संख्या बढ़कर पतिवर्ष लगभग ढाई से तीन लाख हुई। 2006 से यात्रियों की संख्या में इजाफा होने लगा। 2012 में अत्याधिक बर्पबारी के बाद भी पूरे सीजन करीब 5 लाख 73 हजार यात्री दर्शन करने पहुंचे। बाकी धामों का भी यही हाल है। रुद्रपयाग में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि चारधाम यात्रा में तीर्थ यात्रियों की तादाद बढ़ने का पमुख कारण इस बार पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के केदारनाथ और बद्रीनाथ में आना तथा चारों धामों में कपाट खुलने के बाद भी जमकर बर्पबारी होना है। गर्मियों में मैदानी क्षेत्रों में पर्यटक ठंड का आनंद लेने के लिए चारों धामों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उनका कहना है कि पीएम मोदी ने जिस तरह केदारनाथ में ध्यान गुफा में तपस्या और केदारनाथ मंदिर में बढ़े भक्तिभाव से पूजा-अर्चना की, उससे केदारनाथ की यात्रा का जमकर पचार भी हुआ। टिहरी के रहने वाले एक टूरिस्ट गाइड ने कहा कि केन्द्र सरकार और उत्तराखंड सरकार ने दो साल से केदारनाथ में निर्माणाधीन ऑल वेदर रोड का जिस तरह से पचार किया, उससे देश-विदेश में यह संदेश गया कि अब उत्तराखंड के चारों धामों में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है। एक अन्य कारण यह भी है कि अब अशांत कश्मीर घाटी में पर्यटकों का जाना बंद हो गया है। उत्तराखंड पर्यटन विभाग की नोडल अधिकारी का कहना है कि इस बार पर्यटन विभाग ने चारधाम यात्रा को लेकर सोशल मीडिया तथा अन्य माध्यमों से जमकर पचार किया। इस कारण भी तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों की संख्या बढ़ी है। हम उत्तराखंड सरकार, उत्तराखंड पर्यटक विभाग को बधाई देना चाहते हैं। बेहतर सुविधाओं की वजह से भी तीर्थ यात्रियों की संख्या बढ़ रही है। जहां तीर्थ यात्रियों का बढ़ना अच्छा संकेत है वहीं यह भी देखना होगा कि पर्यावरण को नुकसान न हो। पर्यावरण के नुकसान से लोगों को बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी थी।

-अनिल नरेन्द्र

निशाने पर पत्रकार

पिछले कुछ दिनों से पत्रकार बदमाशों के निशाने पर हैं। दिल्ली में बीते 15 दिनों में पत्रकारों पर दो हमले हो चुके हैं। पहला आठ जून को  दक्षिणी fिदल्ली के बारापुला फ्लाई ओवर पर बाइक सवार बदमाशों ने एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल की टीम पर हमला किया था। चैनल कर्मी रात को न्यूज चैनल की टीम वैन में खबर कवरेज करने जा रहे थे। बारापुला एलिवेटिड रोड पर शनिवार आठ जून को रात में बाइक सवार हथियारबंद बदमाशों ने न्यूज चैनल की वैन पर पहले हथियार fिदखाकर गाड़ी रुकवाने की कोशिश की लेकिन जब वैन ड्राइवर ने गाड़ी रोकने के बजाए स्पीड बढ़ाकर बच निकलने की कोशिश की तो बदमाशों ने गाड़ी पर फायरिंग कर दी। शुक है कि किसी को गोली नहीं लगी। आरोप है कि पीसीआर भी काल करने के दो घंटे बाद पहुंची। दूसरी घटना गत शनिवार की है। देश की राजधानी में बदमाश कितने बेखौफ हैं इसकी दूसरी बानगी शनिवार रात को देखने को मिली। न्यू अशोक नगर इलाके में देर रात महिला पत्रकार को ओवर टेक कर कार सवार दो बदमाशों ने उस पर गोली चला दी। गोली पीड़िता मिताली चंदोला (38) के दाहिने हाथ के आरपार हो गई। इससे पहले बदमाशों ने उसकी कार को रोकने के लिए कार पर दो अंडे भी फेंके थे, जब वह नहीं रुकी तो बदमाशों ने उन पर निशाना साधते हुए दो राउंड फायरिंग कर दी। पुलिस ने घायल पत्रकार को पास के अस्पताल में भर्ती कराया। उसकी हालत खतरे से बाहर है। पीड़िता को शक है कि पारिवारिक कारणों की वजह से उस पर हमला किया गया है। मिताली चंदोला ग्रेटर नोएडा के अल्फा-2 अपार्टमेंट में रहती है। वह नोएडा स्थित एक मीfिडया हाउस में काम करती है। पति से विवाद के चलते मिताली आजकल अकेले रहती हैं। उनके दो बच्चे देहरादून में अपनी नानी के पास रहते हैं। शनिवार रात मिताली अपनी हुंडई आई20 कार में मयूर विहार इलाके में पार्टी में गई थीं। रात करीब 12 बजे वह कार से  ग्रेटर नोएडा जा रही थीं, जब उन पर कातिलाना हमला हुआ। इंडियन मीडिया वेलफेयर एसोसिएशन का एक पतिनिधिमंडल दिल्ली में हो रहे पत्रकारों पर पाण घातक हमलों को लेकर दिल्ली के पुलिस कमिश्नर श्री अमूल्य पटनायक से मिला। इस पतिनिधिमंडल में राजीव निशाना, शकील अहमद, विजय शर्मा, सुरेश झा आदि ने मुलाकात कर पुलिस कमिश्नर पटनायक को हाल ही में पत्रकारों पर हुए हमले और अभी तक आरोपियों के न पकड़े जाने को लेकर गहरी चिंता जताई, साथ ही उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर यदि इस पकार हमले होते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब पत्रकारों को अपने ऊपर हो रहे हमलों को लेकर फील्ड में निकलना मुश्किल हो जाएगा। अमूल्य पटनायक ने पत्रकार पतिनिधिमंडल को आश्वासन देते हुए कहा कि पत्रकारों पर हुए हमले दुर्भाग्यपूर्ण हैं और दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों को बारीकी से जांच पर लगाया है, जल्द ही यह बदमाश पुलिस की गिरफ्त में होंगे।

Wednesday 26 June 2019

क्या मायावती की बसपा पर हावी हो रहा है भाई-भतीजावाद?

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने ना-ना करते हुए रविवार को पार्टी के मुख्यालय पर संगठन के देशभर के जिम्मेदार नेताओं व पदाधिकारियों की बैठक में पार्टी को पूरी तरह से परिवार के हवाले कर दिया है। उन्होंने भाई आनंद कुमार को पार्टी का दोबारा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया। बहन जी इस कदम को उठाने के लिए लंबे समय से इंतजार कर रही थीं। वह इंतजार कर रही थीं लोकसभा चुनाव खत्म होने का। वह चुनाव से पहले ऐसा करने से संकोच कर रही थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि लोकसभा चुनाव से पहले ऐसा कदम उठाने से उनके ऊपर भी भाई-भतीजावाद की राजनीति का आरोप लगेगा। मगर अनौपचारिक रूप से दोनों ही पार्टी के कामकाज में काफी सक्रिय थे। बसपा सुप्रीमो ने इस ऐलान के साथ अपने बाद पार्टी में नम्बर दो के साथ नम्बर तीन की पोजीशन भी तय कर दी। बसपा में अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष सबसे ताकतवर माना जाता है। मायावती खुद भी अध्यक्ष बनने से पहले उपाध्यक्ष रही हैं। अब उन्होंने भाई आनंद को दोबारा यह जिम्मेदारी सौंप दी है। आनंद को पहले भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन तब परिवारवाद का आरोप लगने पर उन्हें हटा दिया था। बसपा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बाद सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नेशनल कोऑर्डिनेटर की मानी जाती है। आनंद कुमार मायावती के कार्यक्रमों में अहम भूमिका निभाते थे। इसके साथ ही वह पार्टी के लिए फंड जुटाने का काम करते हैं। वहीं मायावती ने आकाश को अपनी रैलियों में भी जगह दी और मंचों पर साथ बिठाया, राजनीतिक मंचों पर मायावती और आकाश के बीच कम होती दूरी यह संकेत दे रही थी कि मायावती आकाश को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में चुन लेंगी। इसके कारण पर गौर करें तो मायावती की बढ़ती उम्र का एक बड़ा कारण है। इसके साथ ही वह पार्टी के जरूरी मसलों पर बाहरी लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहती हैं। पार्टी के लिए फंड जुटाना भी ऐसा ही एक काम है जिसके लिए वह किसी बाहरी व्यक्ति के भरोसे नहीं रहना चाहती हैं। एक जमाने में उन्होंने राजाराम गौतम को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया था लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया। अब उन्होंने राजाराम को अपना नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया है। इसके साथ ही आकाश को भी यह पद दिया है। कांशीराम ने जब बहुजन समाज पार्टी बनाई थी तो उसकी बुनियाद में संगठन था जिसमें दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक शामिल थे। बाद में इसे एक पार्टी का रूप दिया गया जिसमें 85 प्रतिशत जनता के प्रतिनिधित्व की बात की जाती थी। लेकिन मायावती ने सत्ता के लिए हर तरह के समझौते किए। इस तरह उन्होंने सर्व समाज का नारा दिया और ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ने के लिए सतीश मिश्रा को अपने साथ मिलाया। ऐसे में मायावती सत्ता के लिए समय-समय पर हर संभव गठजोड़ करती रही हैं। इस तरह उनकी पार्टी की छवि प्रभावित हुई और उनकी पार्टी को वोट देने वाला दलित समाज बसपा से दूर होकर भाजपा समेत दूसरे दलों के करीब चला गया। मायावती अब सिर्प अपने रिश्तेदारों को नेता बनाकर रह गई हैं। दलित समाज को कांशीराम की तरह अब बहन जी पर विश्वास नहीं रहा।

-अनिल नरेन्द्र

अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा

लोकसभा चुनाव में हार के बाद महीने भर से सदमे में चल रही कांग्रेस अभी भी मंथन के दौर से गुजर रही है। पार्टी की बेपटरी गाड़ी अध्यक्ष राहुल गांधी के माई पर अटक कर रह गई है। कांग्रेस कार्यसमिति ने 25 जून को सर्वसम्मति से राहुल के इस्तीफा की पेशकश को खारिज कर दिया। इसके बाद से ही उनके पद पर बने रहने या न रहने को लेकर संशय बना हुआ है। लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश कर चुके राहुल अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं। पार्टी उनका सर्वमान्य विकल्प नहीं ढूंढ पा रही है। पार्टी के ज्यादातर नेता राहुल के पद पर बने रहने के हिमायती हैं। दूसरी ओर तमाम राज्य इकाइयां पहले ही उनके पद पर बने रहने का प्रस्ताव पास कर आलाकमान को भेज चुकी हैं। कांग्रेस के नए अध्यक्ष को लेकर पूछने पर जहां यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया, वहीं खुद राहुल ने कहा कि इस बारे में फैसला पार्टी करेगी, इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं होगी। जाहिर है कि वह अपने फैसले पर कायम हैं और पार्टी के नए अध्यक्ष के चुनाव का इंतजार कर रहे हैं। उनकी इस ताजा टिप्पणी के बाद नए अध्यक्ष की ताजपोशी को लेकर चर्चाओं का बाजार और गरम हो गया है। सूत्रों ने बताया कि राहुल गांधी के विकल्प के तौर पर पार्टी के अंदरखाने जिन नामों पर विचार किया जा रहा है उनमें पूर्व रक्षामंत्री एके एंटोनी, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे, रमेश चैनीथला और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम प्रमुख हैं। इनमें गहलोत के नाम की खासतौर पर चर्चा है। पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने के अलावा उन्हें शासन-प्रशासन और संगठन चलाने का भी अच्छा अनुभव रहा है। हालांकि इनमें से किसी भी नाम पर पार्टी में सहमति नहीं बन पा रही है। पार्टी में इस बात पर भी मंथन जारी है कि नया अध्यक्ष उत्तर भारत से बनाया जाए अथवा दक्षिण भारत से। लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण भारत में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के मद्देनजर दक्षिण के किसी नेता को यह जिम्मदारी दे देने की चर्चा है। लेकिन आखिर में बात यहां पर आकर टिकी है कि बेहतर हो कि किसी अन्य के अलावा राहुल गांधी ही अध्यक्ष पद पर बने रहे हैं। दुखद पहलू यह भी है कि कांग्रेस में महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों वाली कोर कमेटी भी परिणाम के बाद भंग की जा चुकी है। अक्तूबर में प्रस्तावित महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड चुनावों के लिए पार्टी की तैयारियां भी ठप पड़ी हैं। पार्टी के महत्वपूर्ण फैसलों के आदेशों में अब कांग्रेस अध्यक्ष की बजाय अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को अनुमोदन की बात लिखी जा रही है। कांग्रेस पार्टी को जल्द अपने आपको दुरुस्त करना होगा। लोकतंत्र में जहां सत्तापक्ष मजबूत होना चाहिए वहीं विपक्ष भी मजबूत होना चाहिए। अगर राहुल अपनी बात पर अड़े हुए हैं तो कांग्रेस पार्टी को जल्द से जल्द अपना अध्यक्ष चुनना चाहिए और विपक्ष की अपनी भूमिका निभानी चाहिए। देश की भी यही मांग है।

Tuesday 25 June 2019

एक देश-एक चुनाव ः दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्प

एक देश-एक चुनाव के विचार को फिलहाल तो सभी दलों का समर्थन नहीं मिल रहा है और न ही इस पर आम सहमति ही बन पा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में देश के लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का प्रस्ताव विपक्ष को रास नहीं आया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बसपा और डीएमके जैसे बड़े विपक्षी दलों के नेता इस बारे में बुधवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक से नदारद रहे। बैठक में 24 दलों के नेता या उनके लिखित प्रस्ताव पहुंचे। इनमें भी ज्यादातर सत्ताधारी एनडीए के घटक दल ही थे। हालांकि प्रधानमंत्री की ओर से 40 दलों को न्यौता दिया गया था। एक देश-एक चुनाव, नया और अच्छा विचार है। इससे खर्च बचेगा। बार-बार आचार संहिता के चक्कर में काम नहीं रुकेगा। सब कुछ सही है, लेकिन न तो इसमें काले धन पर रोक लगेगी और न ही हमारा चुनाव आयोग ऐसा कराने में सक्षम दिखता है। गुजरात में दो राज्यसभा सीटों का चुनाव होना है और चुनाव आयोग इन्हें एक साथ नहीं करवा रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। हाल ही के हमारे सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया को देखिए। लोकसभा चुनाव सात चरणों में और लगभग 38 दिन में हुआ था। जब अकेले लोकसभा चुनाव को इतने दिन लग सकते हैं तो आप खुद ही अंदाजा लगा लें कि लोकसभा और तमाम विधानसभाओं के एक साथ चुनाव में कितने दिन लगेंगे? विधि आयोग के मुताबिक लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ दो चरणों में कराया जा सकता है लेकिन इसके लिए एक कानूनी अड़चन को दूर करना होगा। इसके लिए संविधान के कम से कम दो प्रावधानों में संशोधन करना होगा और इसे सभी राज्यों में पूर्ण बहुमत से पारित कराना होगा। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार यह सुझाव अच्छा है लेकिन अमल में लाना उतना ही मुश्किल बता रहे हैं। कानूनी विशेषज्ञों की राय से सहमति जताते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन कृष्णामूर्ति ने कहा कि एक देश-एक चुनाव का ख्याल लुभावना तो है लेकिन इसको साकार करना मुश्किल होगा। इसके लिए संविधान संशोधन ही एकमात्र रास्ता है। बसपा की मुखिया मायावती ने कहा कि यह सरकार का नया ढकोसला है और सिर्प ध्यान भटकाने के लिए है। बैठक अगर ईवीएम पर होती तो मैं जरूर पहुंचती। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना था कि केंद्र सरकार पहले लोकसभा चुनाव में जनता से किए गए वादे पूरे करे, इसके बाद अन्य मुद्दों में उलझे। कांग्रेस ने कहा है कि अगर सरकार चुनाव सुधारों पर कोई कदम उठाना चाहती है तो वह पहले संसद में चर्चा कराए। कांग्रेस ने भाजपा पर दोहरा मापदंड अपनाने का भी आरोप लगाया। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहाöयह विचार असंवैधानिक और संघीय व्यवस्था के खिलाफ है, यह संसदीय सिस्टम की जगह राष्ट्रपति शासन लाने की कोशिश है। दूसरी ओर सरकार के पक्ष की दलीलों को नकारा भी नहीं जा सकता। अभी हर साल पांच-सात राज्यों में विधानसभा चुनाव होते हैं। अगर लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ हों तो सरकार का चुनाव खर्च एक-चौथाई रह जाएगा। हर साल सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाबलों को अलग-अलग राज्यों में चुनाव के लिए तैनात करना पड़ता है। ऐसा करने से बचा जा सकेगा। वे नियमित काम सही से कर पाएंगे। चुनाव के लिए बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू नहीं करनी पड़ेगी। नीतिगत फैसले लिए जा सकेंगे। कहीं भी विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे। काले धन पर भी रोक लगेगी, क्योंकि चुनाव के दौरान काले धन का इस्तेमाल खुलेआम देखा गया है। हमें लगता है कि हाल की परिस्थितियों में एक देश-एक चुनाव संभव नहीं लगता। संभव बनाया भी जाता है तो कुछ सालों बाद ही ऐसी स्थिति बनेगी। इस मुद्दे पर अभी आगे गंभीरता से विचार करना होगा। विपक्ष की आपत्तियों को समझना होगा और आम सहमति बनानी होगी।

-अनिल नरेन्द्र

तलाक-तलाक-तलाक?

17वीं लोकसभा के पहले ही सत्र में कामकाज के पहले ही दिन सरकार ने तीन तलाक (तलाक--बिद्दत) बिल नए सिरे से लोकसभा में पेश कर दिया। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बिल पेश करते हुए कहा कि पीड़ित महिलाएं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी न्याय की गुहार लगा रही हैं? देश में तीन तलाक के 543 मुकदमे 2017 में ही दर्ज हुए। 239 मामले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आए हैं। पिछली सरकार की यह बिल पास कराने की दो कोशिशें राज्यसभा में नाकाम हो चुकी हैं। हालांकि सरकार सितम्बर 2018 तथा  नौ फरवरी 2019 में इसे अध्यादेश के जरिये लागू कर चुकी है। यह कानून बनने पर मुस्लिम महिलाओं को एक साथ तीन तलाक कहकर रिश्ता खत्म करना अपराध की श्रेणी में आ जाएगा। पति के लिए तीन साल सजा का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि यह बिल नारी के सम्मान के लिए है, किसी धर्म के लिए नहीं। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को संविधान विरोधी करार दिया। उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की हमदर्दी सिर्प मुस्लिम महिलाओं के साथ क्यों है? सरकार ने सबरीमाला मामले में केरल की हिन्दू महिलाओं में हमदर्दी क्यों नहीं की? ओवैसी ने कहा कि अगर किसी गैर-मुस्लिम पर केस डाला जाए तो उसे एक साल की सजा और मुसलमान को तीन साल की सजा, यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के जरिये सरकार मुस्लिम महिलाओं का हित नहीं बल्कि उन पर बोझ डाल रही है। सरकार को उसे वापस लेना चाहिए। इस मुद्दे पर कांग्रेस अपने पुराने रुख पर कायम है। पार्टी का कहना है कि वह तीन तलाक का समर्थन नहीं कर रही है पर यह विधेयक संविधान के खिलाफ है, इसलिए वह इसका विरोध कर रही है। शशि थरूर ने कहा कि इस विधेयक में सिविल और क्रिमिनल कानून को मिला दिया गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार की नजर में तलाक देकर पत्नी छोड़ देना गुनाह है तो यह सिर्प मुस्लिम समुदाय तक ही सीमित क्यों? यह कानून सभी पर लागू होना चाहिए। सरकार इस विधेयक के जरिये मुस्लिम महिलाओं को फायदा नहीं पहुंचा रही है, बल्कि सिर्प मुसलमान पुरुषों को ही सजा दे रही है। उन्होंने आगे कहा कि तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट गैर-कानूनी घोषित कर चुका है, तो सरकार सजा किस बात की दे रही है? ओवैसी समेत कुछ सदस्यों के विरोध के चलते बिल पर मत-विभाजन हुआ जिसमें 186 पक्ष में वोट पड़े और 74 विपक्ष में। हमें लगता है कि तीन तलाक पर व्यापक समर्थन है पर उसके वर्तमान स्वरूप पर एतराज है। खासकर पति को सजा के प्रावधान से। जाहिर है कि अगर पति तीन साल के लिए जेल चला जाएगा तो पीछे से परिवार की परवरिश कैसे होगी? सरकार को कूल दिमाग से विधेयक में जरूरी संशोधन करने चाहिए ताकि यह बिल पास हो सके।

Saturday 22 June 2019

मानसून की धीमी रफ्तार से बढ़ती समस्याएं

हमारे देश की कृषि और पानी मानसून यानि कि बारिश के इर्दगिर्द घूमता है। बारिश अच्छी होने से बहुत सी समस्याएं हल हो जाती हैं। अच्छी मानसून से देश की अर्थव्यवस्था को पंख लगते हैं तो इसमें कमी कई तरह के संकट पैदा कर देती है। मानसून की शुरुआत में देरी और इसकी धीमी गति से जहां हमारी कृषि में संकट पैदा कर रहा है वहीं पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। भारत में सबसे ज्यादा बारिश जून से सितम्बर में होती है। यह सालाना होने वाली कुल बारिश का 70 प्रतिशत होता है। इस बार मानसून की देरी के कारण बारिश कम होने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। इस बार तो पिछले 12 साल में सबसे धीमी चाल से आगे बढ़ रहा है मानसून। केरल में जिस मानसून को जून के पहले हफ्ते में  पहुंचना था, वह करीब एक हफ्ते की देरी से पहुंचा। यहां तक कि जून के महीने में बारिश भी औसत से 44 प्रतिशत कम हुई है। नतीजतन फसल चौपट होने की कगार पर है। अगर खाद्यान्न उत्पादन में कमी होगी तो अर्थव्यवस्था के डगमगाने का खतरा बढ़ जाता है। कुल मिलाकर मानसून की बेहद सुस्त रफ्तार ने किसानों, सरकार और जनता सभी के माथों पर चिन्ता की लकीर खींच दी है। कम बारिश मतलब भीषण गर्मी और सूखे की आशंका। 14 जून तक किसानों ने 8.22 मिलियन हैक्टेयर में खरीफ की फसल लगाई। यह नौ प्रतिशत कम है पिछले साल के आंकड़े से। इसकी वजह मानसून की धीमी गति है। खरीफ फसलें मानसून पर ही निर्भर हैं। बारिश तीसरे वर्ष भी सामान्य से नीचे औसतन 93 प्रतिशत रह सकती है। पिछले दो वर्ष पैदावार से कृषि वस्तुओं की कीमतों में गिरावट आई थी। कुछ महीने पहले तक अधिकांश कृषि जिन्सों के खुले बाजार मूल्य उनके संबंधित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम थी। हालांकि स्थिति अब केवल थोड़ी बेहतर है। सब्जियों की कीमतें भी मानसून पर निर्भर होती है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 27 जून तक मानसून पहुंचेगा। मौसम विभाग ने बताया कि कई दिनों से ठिठका मानसून सक्रिय हो गया है। लेकिन उत्तर भारत राज्यों में पहुंचने में अभी हफ्तेभर का समय लग सकता है। मौसम विभाग ने बताया कि इसके बाद मानसून पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान की ओर बढ़ेगा। दिल्ली-एनसीआर में जुलाई के पहले हफ्ते में मानसून के पहुंचने के आसार हैं। मौसम विभाग ने बताया कि पिछले 24 घंटों के दौरान मध्य महाराष्ट्र, भीतरी कर्नाटक से लेकर कोलकाता तक मानसून ने दस्तक दी है। देश के कई हिस्से सूखे की चपेट में हैं, दक्षिण भारत के कई शहरों में पानी की किल्लत हो गई है जबकि ज्यादातर जलाशयों में 10 प्रतिशत से भी कम पानी का भंडार बचा है। यहां जिम्मेदारी सीधे-सीधे सरकार पर आ जाती है। फिलहाल जो हालात हैं, उसमें अगर सरकारी तंत्र सक्रिय और सतर्प नहीं हुआ तो न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि महंगाई, राजस्व में कमी आदि दिक्कतों से देश को दो-चार होना पड़ेगा। हालत की गंभीरता को समझते हुए सरकार को चाहिए कि तुरन्त और द्रुत गति से राहत के उपाय तलाशे। यह भी चिन्तनीय है कि आजादी के 70 साल बाद भी हम मानसून पर खेती और पानी की निर्भरता को कम नहीं कर सके।

-अनिल नरेन्द्र

अमेरिकी ड्रोन गिराकर ईरान ने जंग को न्यौता दिया है

अमेरिका बनाम ईरान निहायत खतरनाक स्थिति बनी हुई है। ईरान ने गुरुवार सुबह अमेरिका का एक 1260 करोड़ रुपए का सबसे शक्तिशाली जासूसी ड्रोन को अपने क्षेत्र में बताकर एक मिसाइल से गिरा दिया। हालांकि अमेरिका की दलील है कि यह ड्रोन ईरान के क्षेत्र में नहीं, अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र में था। बेशक इसे गिराकर ईरान ने एक तरह से अमेरिका को चुनौती देते हुए उकसाने वाली हरकत की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि ईरान ने बहुत बड़ी गलती कर दी है। हालांकि ईरानी सेना के कमांडर हुसैन सलामी ने दावा किया  कि अमेरिकी ड्रोन ईरान की हवाई सीमा की रेड लाइन पार कर चुका था। इसीलिए उसे हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल से गिरा दिया। गिराए गए अमेरिकी ड्रोन ट्राइटन ने यू-2 जासूसी विमान की जगह ली है। यह 56 हजार फुट की ऊंचाई पर 30 घंटे तक 600 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तर से उड़ सकता है। यह 50 फुट लंबा है और इसके पंख की लंबाई 130 फुट है। इसे सिर्प रडार गाइडिड मिसाइल से गिराया जा सकता है। ईरान के पास रूस की एस-300 मिसाइल सिस्टम है, जिसने इस ड्रोन को मार गिराया। ड्रोन गिराने की घटना ऐसे समय में हुई है जब मीडिया रिपोर्ट्स में आशंका जताई गई है कि अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु युद्ध छिड़ सकता है। इसे देखते हुए रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका को चेताया है कि वह हमला करने की गलती न करे। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने बृहस्पतिवार को ड्रोन गिराए जाने को लेकर ईरान को खुली चुनौती दे डाली। ट्रंप ने ट्वीट कर कहाöईरान ने बहुत बड़ी गलती कर दी है। ट्रंप की इस कम अक्षरों वाली चेतावनी को बड़ी कार्रवाई का इशारा माना जा रहा है। ट्रंप के सख्त लहजे से समझा जा सकता है कि अमेरिका ईरान के खिलाफ कुछ बड़ा कदम उठा सकता है। वहीं पेंटागन ने दावा किया है कि ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में ड्रोन गिराया। अमेरिका द्वारा ईरान को धमकी देने के बाद पहले से अधिक युद्ध का खतरा अब और बढ़ गया है। ऐसे में दुनिया के कई देश अमेरिका के साथ और विरोध में आ गए हैं। ईरान की तरफदारी कर रहे रूस ने चेतावनी दी है कि ईरान के खिलाफ अमेरिका ने हमला किया तो भारी तबाही मचेगी। वहीं सऊदी अरब ने अमेरिका के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि ईरान ने गल्फ में गंभीर स्थिति पैदा कर दी है। सऊदी ने गल्फ के हालात को बिगाड़ने के लिए सीधे तौर पर ईरान के आक्रामक रवैये को जिम्मेदार ठहराया है। इस समय मध्य पूर्व में विस्फोटक स्थिति बनी हुई है। इसमें कोई शक नहीं है कि ईरान ने अमेरिका के ड्रोन को गिराकर आक्रामक व खतरनाक रुख अख्तियार किया है। फिलहाल अमेरिका शांत है और उसने ईरान की इस कार्रवाई का कोई जवाब नहीं दिया है। पर राष्ट्रपति ट्रंप को जानने वाले कहते हैं कि वह  चुप बैठने वालों में से नहीं हैं। हो सकता है कि अमेरिका  क्या रिस्पांस देना है इस पर गंभीरता से विचार कर रहा हो। अगर अमेरिका ने कोई सख्त कदम उठाया तो खुला युद्ध हो सकता है, जिसमें बहुत तबाही मचेगी।

Friday 21 June 2019

आर्थिक सुस्ती व बढ़ती बेरोजगारी मोदी की बड़ी चुनौती

मोदी सरकार-2 के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। इनमें प्रमुख हैं रोजगार की समस्या और औद्योगिक उत्पादन बढ़ाना है। वैसे तो निर्यात बढ़ाना और कमजोर मानसून की आशंका से कृषि क्षेत्र को तो मजबूत रखना शामिल ही है। सरकार को अब तेजी से काम करना होगा। बीते तीन महीने चुनावी माहौल और आचार संहिता की वजह से कई काम रुके हैं। देश में 2017-18 में  बेरोजगारी दर कुल उपलब्ध कार्यबल का 6.1 प्रतिशत रही है। यह पिछले 45 साल में सर्वाधिक रही है। आम चुनाव से ठीक पहले बेरोजगारी से जुड़े आंकड़ों पर आधारित यह रिपोर्ट लीक हो गई थी और अब सरकार के द्वारा जारी आंकड़ों की पुष्टि भी हो गई है। नौकरी नहीं मिलने की वजह से अगर पढ़े-लिखे नौजवानों को खुदकुशी जैसे घातक कदम उठाने को मजबूर होना पड़े तो यह सरकार और समाज दोनों के लिए गंभीर चिन्ता का विषय है। कोई हफ्ता ऐसा नहीं गुजरता जब काम नहीं मिलने या नौकरी चली जाने की वजह से नौजवानों के जानें देने की खबर देखने-सुनने को मिलती है। चिन्ताजनक बात तो यह है कि बड़ी संख्या में हजारों ऐसे नौजवान आज नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए लाखों रुपए लगाए हैं। चाहे वह इंजीनियर हों, चाहे डॉक्टर हों। दिल्ली में ही एक बीटेक डिग्रीधारी इंजीनियर ने पुल से छलांग लगाकर इसलिए जान दे दी कि उसे नौकरी नहीं मिल रही थी। कुछ महीने पहले राजस्थान के अलवर जिले में चार नौजवानों ने ट्रेन के सामने कूद कर सामूहिक रूप से खुदकुशी कर ली थी। इस घटना ने बेरोजगारों की पीड़ा सामने ला दी। इस तरह की घटनाएं बता रही हैं कि हमारी सरकारें रोजगार मुहैया कराने के मोर्चे पर एकदम नाकाम साबित हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद्भार संभालते ही प्रथम बजट से पहले वित्त और अन्य मंत्रालयों के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक की। इस दौरान सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने और रोजगार सृजन को ध्यान में रखते हुए सरकार के 100]िदन के एजेंडे को अंतिम रूप देने पर जोर रहा। प्रधानमंत्री द्वारा दो उच्चस्तरीय मंत्रिमंडल समितियों का गठन यह बताता है कि आर्थिक मामलों में सरकार का मिशन मोड में लाने की कोशिश हो रही है। एक पांच सदस्यीय समिति आर्थिक मोर्चे का अध्ययन करके उसके अनुसार नीतियां तय करेगी तो दूसरी 11 सदस्यीय समिति रोजगार और कौशल विकास का अध्ययन कर रिपोर्ट पेश करेगी। साफ है कि इन दोनों समितियों का उद्देश्य आर्थिक विकास को गति देने, निवेश का माहौल बेहतर करने के साथ काम करने योग्य आबादी को कौशल प्रशिक्षण द्वारा सक्षम बनाने, उनके लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने और कुल मिलाकर देश की अर्थव्यवस्था को सभी दिशाओं में गतिमान करना है। देश की प्रमुख आर्थिक चुनौतियों से प्रधानमंत्री वाकिफ हैं। विश्व के सर्वाधिक तेजी से विकसित होने वाले देश का स्थान बनाए रखना निश्चय ही इस समय मोदी सरकार की प्रमुख चुनौतियों में है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के समस्त मूलाधार मजबूत हैं। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गठित समितियां इसे तीव्र गति देने का रास्ता बनाने वाली साबित होंगी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का जो नारा दिया था उसे पूरा करने का समय आ गया है।

-अनिल नरेन्द्र

मुजफ्फरपुर के आईसीयू में टीवी चैनल

मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार से मासूमों की मौत का सिलसिला जारी है। बुधवार को एसकेएमसीएच में इलाज के दौरान पांच बच्चों ने दम तोड़ दिया। वहीं मोतिहारी में भी पांच बच्चों की मौत हो गई। मुजफ्फरपुर में 30 बच्चे और अस्पताल में भर्ती हुए हैं। दिमागी बुखार से बच्चों की मौत का आंकड़ा 156 तक पहुंच गया है। करीब 101 बच्चों का इलाज पीआईसीयू में चल रहा है। शहर के दोनों अस्पतालों में हर घंटे चीख-पुकार मच रही है। कुपोषण और भूख के मारे बच्चे जिस तरह इंसेफेलाइटिस नामक बीमारी के शिकार होकर मरते चले जा रहे हैं वह सचमुच में डराने वाला है। मीडिया ने इस बेहद दुखद घटना को जिस तरह से प्रस्तुत किया है वह भी कम विचलित करने वाली नहीं है। खासतौर पर इन न्यूज चैनलों की भूमिका तो सवालों के घेरे में है। कहा जा रहा है कि उन्होंने इस त्रासदी की कवरेज में न्यूनतम संवेदनशीलता का भी परिचय दिया है। बहुत से टीवी पत्रकारों ने तो पत्रकारीय नैतिकता और स्थापित मानदंडों की परवाह भी नहीं की। वे बारंबार लक्ष्मण रेखा लांघते रहे। न तो उन्हें मरीजों से हमदर्दी थी और न ही उनकी निजता के प्रति कोई सम्मान भाव। और तो और उन्होंने अपने पेशे की विश्वसनीयता की भी परवाह नहीं की। न्यूज चैनलों के पत्रकार अचानक पैदा हुई मिशनरी भावना से प्रेरित होकर घटना की कवरेज करने कूद पड़े। अच्छी बात है कि उन्होंने इस घटना को इस लायक समझा। यह भी सही है कि मीडिया कवरेज के कारण स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार और केंद्र को तुरन्त सक्रिय होना पड़ा। यह सबको मालूम है कि अस्पताल के आईसीयू में प्रवेश के कुछ नियम होते हैं। आप जूते पहनकर अपने कैमरा टीम के साथ आईसीयू में घुसकर डॉक्टरों व नर्सों से यूं सवाल-जवाब नहीं कर सकते जैसा कुछ चैनलों ने किया है। अगर इस दौरान कोई बच्चा इसलिए मर जाता क्योंकि आप डॉक्टरों-नर्सों से उस समय सवाल-जवाब कर रहे थे तो उसका जिम्मेदार कौन होता? अगर एक ऐंकर ने यह गलती की तो क्या यह जरूरी था कि दूसरे ऐंकर भी इस गलती को दोहराएं? दरअसल इसे उन्होंने लोकप्रियता और सफलता का फार्मूला मान लिया था। उन्हें तो साबित करना था कि वे सबसे तेज, काबिल और दुस्साहसी हैं। इसलिए उन्हें वहां मौजूद हर कर्मचारी, नर्स या डॉक्टर को कसूरवार ठहराना था। लिहाजा वे उन पर टूट पड़े, भले ही सुविधाओं की कमी या बदइंतजामी के लिए वे जिम्मेदार हों या न हों। क्योंकि टीवी पत्रकार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन की नाकामी पर अंगुली उठाने से डरते थे, उन्हें कठघरे में खड़ा करने से कतराते थे इसलिए डॉक्टर और नर्स उनके लिए सॉफ्ट टारगेट बन गए। वे उन्हीं पर पिल पड़े, उन्हें खलनायक साबित करने लगे, यहां तक कि उनके काम में बाधा तक डालने लगे। सच तो यह है कि कुछ न्यूज चैनलों ने मुजफ्फरपुर कांड को अपने लिए एक इंवेट बना लिया। एक दुधारू मीडिया इंवेंट जिसमें अपनी छवि सुधारने का उपक्रम था और टीआरपी दुहने का फार्मूला भी। टीवी कवरेज में रिपोर्टिंग कम नजर आई और शोर, उत्तेजना ज्यादा। सनसनी उसका सबसे बड़ा तत्व थी। अगर रिपोर्टर की जगह ऐंकर ने ले ली थी तो इसका मतलब यह भी था कि वे रिपोर्टिंग नहीं शो कर रहे थे। शो को हिट करने के लिए जो भी मसाला चाहिए होता है, ऐंकर वही तैयार कर रहे थे, रिपोर्टिंग नहीं। चैनलों में रिपोर्टिंग की पहले ही हत्या हो चुकी थी। इसलिए घटना के पहले उसमें कोई रिपोर्ट नजर नहीं आती। वे नहीं बताते कि मुजफ्फरपुर में कुपोषित बच्चों की संख्या और हालत अफ्रीका के सबसे ज्यादा कुपोषित देशों से भी बदतर क्यों है? उन्होंने 15 साल से सरकार पर काबिज नीतीश कुमार सरकार के नकारेपन की बखियां क्यों नहीं उधेड़ीं? उन्होंने सवाल नहीं किया कि प्रशासन इतना सुस्त और लापरवाह आखिर क्यों बना रहा जबकि हर साल इस तरह की मौतें होती हैं? क्या उन्हें यह नहीं पूछना चाहिए था कि राज्य में जन स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत इस तरह क्यों चरमरा गई? स्वास्थ्य बजट में एकमुश्त कटौती क्यों की गई? पूछना चाहिए था, मगर पूछा नहीं क्योंकि ये सत्ताधारियों के लिए असुविधाजनक होता। आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना की तारीफ में घंटों बहस टीवी चैनल करवा सकते हैं मगर यह नहीं पूछे कि ऐसे मौकों पर उसकी उपयोगिता क्या है?

भ्रष्ट, कामचोर बाबुओं की अब खैर नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में स्पष्ट कर दिया कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलेगी। इसका सबूत हमें तब मिला जब उनकी सरकार ने वित्त मंत्रालय के बारह भ्रष्ट और दागदार छवि वाले आयकर अधिकारियों को फंडामेंटल रूल्स के नियम 56(जे) के तहत जबरन रिटायर कर दिया। यह कदम प्रशंसनीय तो है ही, इससे सरकारी क्षेत्रों में व्यापक भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करते रहने की धारण ध्वस्त हुई है। ये सभी अधिकारी आयकर विभाग में चीफ कमिश्नर, प्रिन्सिपल कमिश्नर्स और कमिश्नर जैसे पदों पर तैनात थे। दुखद पहलू यह भी है कि इनमें से कई अफसरों पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार, अवैध और बेहिसाब सम्पत्ति अर्जित करने के अलावा यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप थे। संदेश साफ है। मोदी सरकार में निकम्मे और कामचोर सरकारी बाबुओं की अब खैर नहीं है। इन अफसरों के खिलाफ उगाही करना, रिश्वत लेना, अपने पद और अधिकारियों का दुरुपयोग करने जैसे गंभीर आरोप थे। जबकि एक अधिकारी को अपनी अयोग्यता के कारण जाना पड़ा। अब सरकारी बाबुओं के कामकाज पर गहरी नजर रखी जाएगी। वह दिन गए कि सरकारी पद पर बैठे ये अधिकारी मौज-मस्ती काट सकें। हालांकि इससे पहले 2017 में भी सरकार ने कुछ भ्रष्ट और निकम्मे अधिकारियों को जबरन रिटायर किया था, लेकिन भ्रष्टाचार और कदाचार में फंसे इतने सारे अधिकारियों के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई का यह पहला ही मामला है। यूं तो संदिग्ध अधिकारियों को अनिवार्य रिटायरमेंट दिए जाने का नियम दशकों पहले से ही प्रभावी है, पर इतनी बड़ी कार्रवाई पहली बार हुई है। उम्मीद करते हैं कि ऐसे अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई आगे भी होती रहेगी। या तो ये सरकारी बाबू सुधर जाएं नहीं तो पद पर रहना मुश्किल हो सकता है। यह किसी से छिपा नहीं कि आम नागरिक इन सरकारी बाबुओं की काहिले के कारण कितने त्रस्त हैं। कोई सा भी सरकारी महकमा हो, चाहे वह जन्म-मरण का प्रमाण-पत्र देने वाला बाबू हो, चाहे वह बिजली-पानी के दफ्तर में बैठा बाबू हो उनके पास आने वाले नागरिकों को घूस दिए बिना कोई काम नहीं होता। सरकारी क्षेत्र के बारे में दुर्भाग्य से यह धारणा बन गई है कि खासकर रसूखदार पदों पर भ्रष्टाचार और अधिकारों के दुरुपयोग को रोक पाने की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है। अभी तक भ्रष्ट सरकारी बाबुओं के खिलाफ ज्यादातर रूटीन विभागीय कार्रवाई होती है और उनकी नौकरी कमोबेश बनी रहती है। वर्षों तक मुकदमा, कार्रवाई चलती रहती है जिससे सरकारी समय और धन दोनों की बर्बादी होती है। जबरन रिटायर किए गए ये अधिकारी बची हुई नौकरी के वेतन और सुविधाओं के लाभ से तो वंचित होंगे ही, उससे भी बड़ी बात यह है कि अपनी दागदार छवि से वे जिन्दगीभर बाहर नहीं निकल पाएंगे। यह सच है कि सत्य के रास्ते पर चलना कठिन है पर देश के लिए यह करना जरूरी है। दुखद पहलू यह भी है कि हमारे समाज और व्यवस्था में भ्रष्टाचार इतनी गहरी जड़ें जमा चुका है कि इसे जड़ से दूर करना लगभग असंभव है, हां इस पर कंट्रोल तो किया जाना ही चाहिए। सरकार के इस कदम पर प्रधानमंत्री को बधाई।
-अनिल नरेन्द्र

ओम बिड़ला का नाम लेकर मोदी-शाह ने फिर चौंकाया

मोदी-शाह की जोड़ी ने एक बार फिर सबको चौंकाया है। लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए कई नाम चर्चा में चल रहे थे लेकिन कोटा (राजस्थान) लोकसभा सीट से लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए ओम बिड़ला का नाम प्रस्तावित करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ संकेत दिया कि अब विभिन्न स्तरों पर अगली पीढ़ी ही अग्रिम मोर्चे पर नजर आएगी। 56 वर्षीय बिड़ला का नाम आगे करने की नई सोच व नई पीढ़ी को आगे करने का भी संकेत माना जा सकता है। भाजपा की रणनीतिक टीम के एक सदस्य ने कहा कि मोदी युग में चयन, मनोनयन के लिए एक ही शर्त हैöउपयोगिता और उत्पादकता। ओम बिड़ला ने पर्दे के पीछे कई अहम भूमिकाएं निभाई हैं। वे पार्टी के क्राइसिस मैनेजरों की टीम में शामिल रहे हैं। पार्टी के लिए अहम चुनावों में पर्दे के पीछे प्रबंधन का दायित्व उन्हें मिलता रहा है। राष्ट्रपति चुनाव की पूरी प्रक्रिया उनके घर से ही संचालित की गई। उपराष्ट्रपति चुनाव में भी उनको अहम दायित्व दिया गया था। उन्हें कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में समन्वयक टीम में शामिल किया गया। लोकसभा में वे पार्टी के व्हिप भी रहे हैं। बिड़ला को जानने वालों का कहना है कि उनके स्वभाव में तो नरमी है लेकिन एक्शन में आक्रामकता है। वे जोखिम लेने से परहेज नहीं करते। बड़ी जिम्मेदारी के पीछे उनके इस किरदार की भी अहम भूमिका रही है। राजस्थान लंबे अरसे के बाद भाजपा की केंद्रीय सियासत का पॉवर सेंटर बना है। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में जसवंत सिंह के पास रक्षा, वित्त और विदेश मंत्रालय था। इसी दौर में वसुंधरा राजे केंद्र में मंत्री रहीं और फिर राजस्थान की सीएम बनीं। भैरो सिंह शेखावत राजस्थान के सीएम से उपराष्ट्रपति बने। 2014 में जब मोदी भाजपा में नए नेता के रूप में उभरे तो चौतरफा चौंकाने वाले निर्णय देखने को मिले और इसमें बड़े परिवर्तन सत्ता और संगठन में हुए। अब बदले माहौल में संघ और संगठन से जुड़े नेता सत्ता में नई भागीदारी के साथ उभरे हैं। इसमें गजेन्द्र सिंह शेखावत को कैबिनेट मंत्री बनाकर मोदी ने ड्रीम प्रोजेक्ट जल शक्ति का जिम्मा सौंपा है। संघ और संगठन से जुड़े ओम बिड़ला को लोकसभा स्पीकर बनाया गया है। आमतौर पर माना जाता है कि संसद के निचले सदन यानि लोकसभा को चलाने के लिए काफी अनुभवी अध्यक्ष की जरूरत होती है। इस अहम जिम्मेदारी को निभाने के लिए ऐसे राजनेता की दरकार होती है जो विधाई कार्यों, नियमों और कानूनों में सिद्धहस्त होता है। कोई नेता इसमें तभी पारंगत माना जाता है जब वह कई बार संसद के किसी सदन का सदस्य बन चुका हो। 17वीं लोकसभा में राजस्थान के कोटे से सांसद ओम बिड़ला नए अध्यक्ष बन गए हैं। अब तक वे सिर्प दो बार सदस्य रहे हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि जब कोई कम संसदीय अनुभव वाला व्यक्ति इस पद पर बैठाया गया हो। इससे पहले कई बार एक या दो बार लोकसभा सांसद स्पीकर बनाए जा चुके हैं। श्री ओम बिड़ला सुमित्रा महाजन जैसी अनुभवी स्पीकर का आसन ग्रहण कर रहे हैं। हम उन्हें इस पद पर चुने जाने की बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह सदन को सुचारु रूप से चलाएंगे।

Thursday 20 June 2019

अवैध हथियारों की उपलब्धि दिल्ली पुलिस के लिए चुनौती है

दिल्ली में पिछले दिनों गोलीबारी में इजाफा हुआ है जो सबके लिए चिन्ता का विषय है। देश की राजधानी में खुलेआम बदमाश गोली चला रहे हैं और तो और अब यह तत्व पुलिस पर भी गोली चलाने से नहीं डरते। इन हालिया घटनाओं पर दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक का कहना है कि अवैध हथियारों के कारखाने शहर के नजदीक आ गए हैं जिससे अपराधियों के लिए हथियार खरीदना आसान हो गया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा जब्त किए गए हथियारों की संख्या पिछले दो साल में दोगुनी हो गई है। पटनायक ने कहा कि पुलिस ने 2016 में 947 हथियार जब्त किए जिनकी संख्या 2017 में 48.89 प्रतिशत बढ़कर 1,410 हो गई। वहीं 2018 में 1,950 हथियार जब्त किए गए। पुलिस ने इस साल 31 मई तक 1,169 हथियार जब्त किए हैं जबकि 2018 और 2017 में इसी अवधि के दौरान जब्त हथियारों की संख्या क्रमश 842 और 517 थी। दिल्ली के शीर्ष पुलिस अधिकारी ने कहा कि दिल्ली में बाहर से हथियार लाए जा रहे हैं और ये गलत हाथों में पड़ रहे हैं। अपराधियों के लिए पड़ोसी राज्यों में जाकर हथियारों तक पहुंच अपेक्षाकृत आसान हो गई है। इसलिए यह चिन्ता का विषय है। इस साल द्वारका मोड़ पर गोलीबारी जैसी हालिया कुछ घटनाओं ने शहर को हिलाकर रख दिया। द्वारका मोड़ पर हथियार लिए कुछ युवकों ने व्यस्त सड़क पर अंधाधुंध फायरिंग की थी। शहर में गत बृहस्पतिवार और शुक्रवार की दरम्यानी रात गोलीबारी की चार घटनाएं हुईं जिनमें पांच लोग मारे गए। इन घटनाओं के चलते दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल और गृह मंत्रालय से राष्ट्रीय राजधानी में कानून व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा करने का आग्रह किया। पटनायक ने कहा कि अपराधों में हथियारों के इस्तेमाल में कमी आई है। 2016 में हथियारों के इस्तेमाल के 957 मामलों की तुलना में 2017 में यह संख्या घटकर 851 और 2018 में 812 रह गई। वर्ष 2017 में 31 मई तक 383 मामलों में हथियारों का इस्तेमाल हुआ था। वर्ष 2018 में इस अवधि में ऐसे मामलों की संख्या 354 और 2018 में इस अवधि में 334 रही। अमूल्य पटनायक ने कहा कि दिल्ली पुलिस के सामने चुनौती यह है कि अवैध हथियार कारखाने राजधानी के नजदीक स्थानांरित हो चुके हैं और अब ये मध्यप्रदेश या बिहार जैसे पारंपरिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये कारखाने (अवैध) कुछ नजदीक के क्षेत्रों में स्थानांरित हो चुके हैं। पहले हथियार मध्यप्रदेश जैसे दूरदराज के क्षेत्रों से खरीदे जाते थे। अब कारखाने बुलंदशहर, मेरठ, बरेली जैसे इलाकों में स्थानांतरित हो चुके हैं। इस तरह हथियारों तक पहुंच (अपराधियों के लिए) आसान हो गई है और हमारे लिए एक चुनौती है तथा हम इस पर काम कर रहे हैं। हथियारों तक अपराधियों की पहुंच आसान होने से दिल्ली की कानून व्यवस्था पर सीधा असर पड़ रहा है। अब तो बात-बात पर गोलियां चल जाती हैं। दिल्ली की स्थिति इस मामले में विस्फोटक हो रही है। इन बिगड़ती परिस्थितियों में दिल्ली पुलिस के लिए कानून व्यवस्था कंट्रोल में रखना भारी चुनौती जरूर है।

-अनिल नरेन्द्र

न पक्ष, न विपक्ष, केवल निष्पक्ष

17वीं लोकसभा के आगाज पर चर्चित और अभिभावक का आभास दिलाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, एचडी देवेगौड़ा की कमी खली तो कुछ ऐसे चेहरे फिर से नजर आए जो सदन में अपने तर्कों से लोहा मनवा लेते थे। 265 नए चेहरे सदन की ताजगी का अहसास जरूर करा रहे हैं। नवगठित 17वीं लोकसभा के प्रथम सत्र के पहले दिन सोमवार को सदन में भारत की संस्कृति दिखी। पूरे संसद में उत्सव जैसा माहौल था क्योंकि विभिन्न दलों के नवनिर्वाचित सदस्य रंगबिरंगी परिधान, पारंपरिक शॉल और पगड़ियां पहन सदन में शपथ लेने आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कुर्ता-पायजामा और जैकेट वाले अपने सामान्य परिधान में आए थे। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी, गिरिराज सिंह और जेके रेड्डी भगवा वस्त्र पहनकर सत्र में शामिल हुए। कुछ सांसद मैथिली पोशाक में आए तो कुछ राज्य की संस्कृति की एक पहचान माने जाने वाला असमी गमछा ओढ़ रखे थे। वाईएसआर कांग्रेस के सदस्यों ने उत्तरीय डाल रखी थी जिस पर पार्टी मुखिया वाईएस जगनरेड्डी की तस्वीर थी।। सदन के नेता होने के कारण सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ली। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में साफ कर दिया कि लोकसभा के भीतर सत्ता पक्ष संख्या बल में भले ही भारी हो लेकिन विपक्ष की आवाज को नजरंदाज नहीं किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने विपक्ष की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रजातंत्र में पक्ष-विपक्ष से ज्यादा महत्व निष्पक्ष का होता है। सरकार विपक्ष के साथ मिलकर निष्पक्ष ढंग से काम करेगी। विपक्ष संख्या की चिन्ता न करे, आपका एक-एक शब्द मूल्यवान है। संख्या बल भूलकर विपक्षी सांसद देश सेवा में सरकार का सहयोग करें। प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि विपक्ष सक्रियता से बोलेंगे और सदन की कार्यवाही में भागीदारी करेंगे। उन्होंने सांसदों से कहा कि वे लोग सकारात्मक विचारों के साथ जनता की आवाज उठाने का काम करते रहेंगे। नए साथी जब जुड़ते हैं तो नया उमंग, उत्साह, नए सपने जुड़ते हैं। भारत के लोकतंत्र की विशेषता और ताकत का अनुभव हम हर चुनाव में करते हैं। इस बार खास यह रहा कि आजादी के बाद सबसे ज्यादा महिला प्रतिनिधियों को चुना गया और सबसे अधिक मतदान हुआ। कई दशकों बाद एक सरकार को पूर्ण बहुमत के साथ और पहले से अधिक सीटों के साथ जनता ने सेवा का मौका दिया है। मोदी ने कहा कि जब हम संसद में आते हैं तो हमें पक्ष और विपक्ष को भूल जाना चाहिए और हमें निष्पक्ष भावना के साथ मुद्दों के बारे में सोचना चाहिए और देश के व्यापक हित में काम करना चाहिए। हम प्रधानमंत्री के भाषण का स्वागत करते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान जो कटुता पैदा हुई थी उस पर मरहम लगाने की प्रधानमंत्री कोशिश कर रहे हैं और यह संदेश दे रहे हैं कि चुनाव में जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाओ और मिलकर जनता के मुद्दों को उठाओ। इस बार बड़ी संख्या में नए युवा चेहरे आए हैं जो अपने साथ नई उम्मीदें, नए जोश लाएंगे। देखना यह है कि आगामी दिनों में प्रधानमंत्री व सत्तारूढ़ दल विपक्ष को कितनी इज्जत देता है? और कटुता और बदले की भावना से काम नहीं करता।

Wednesday 19 June 2019

भारत की पाक पर बादशाहत कायम

इन दिनों इंग्लैंड और वेल्स में क्रिकेट का वर्ल्ड कप टूर्नामेंट चल रहा है। सभी क्रिकेटप्रेमियों की नजरें रविवार 16 जून को लंदन के ओल्ड ट्रेफोर्ड क्रिकेट ग्राउंड में गड़ी हुई थीं। कारण था भारत-पाकिस्तान मैच। यह मैच सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था। वर्ल्ड कप हम जीतें या न जीतें पर पाकिस्तान से जीतना जरूरी था और हुआ भी ऐसा है। मैच में भारत ने पहले बैटिंग करते हुए 336/5 का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया। रोहित शर्मा ने शानदार अंडर प्रैशर 140 रन बनाए। ओपनिंग में उनका साथ दिया लोकेश राहुल ने। शिखर धवन के इंजर होने से यह डर लग रहा था कि पाकिस्तान के तेज गेंदबाजों के सामने रोहित के साथ कौन ओपनिंग करेगा? पर राहुल चुनौती पर खरे उतरे और उन्होंने 57 रन बनाकर भारत को एक मजबूत शुरुआत दी। कप्तान विराट कोहली जब 77 रन पर खेल रहे थे तब उन्हें लगा कि तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर का बाउंसर उनके बल्ले से लगकर विकेटकीपर सरफराज अहमद के पास पहुंचा है। पाकिस्तान ने अपील की लेकिन एम्पायर मारियास इरासमुस ने अंगुली नहीं उठाई। कोहली ने एम्पायर की तरफ देखा तक नहीं और वह क्रीज छोड़कर चले गए। रिप्ले से हालांकि साफ हो गया कि कोहली ने गलती की क्योंकि अल्ट्रा ऐज में प्रणाली में स्पष्ट नजर आ रहा था कि गेंद और बल्ले का सम्पर्प नहीं हुआ। कोहली को बाद में पता चला तो वह भारतीय पैवेलियन में अपने बल्ले को झटक कर देख रहे थे जिससे हल्की आवाज आ रही थी। संभवत वह इसी आवाज से वह भ्रमित हो गए थे। बाद में महेंद्र सिंह धोनी ने भी उनके बल्ले की इस कमी को दिखाया। कोहली ने जल्दबाजी की उन्हें एम्पायर के फैसले का इंतजार करना चाहिए था। अगर पाकिस्तान डीआरएस भी लेता तो पता चल जाता कि बॉल का बैट से कोई सम्पर्प नहीं हुआ। पाकिस्तानी कप्तान सरफराज अहमद ने मैच में कई गलतियां कीं। पाकिस्तान को इकलौता विश्वकप दिलाने वाले कप्तान और इस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने रविवार को टॉस से पहले सरफराज से साफ कहा था कि आपको टॉस जीतना है और पहले बल्लेबाजी करनी चाहिए। लेकिन पाकिस्तानी कप्तान सरफराज ने यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान दूसरी पारी में चेस नहीं कर सकता फिर भी पहले गेंदबाजी का फैसला किया। आधी हार तो इस फैसले से ही हो गई थी बाकी हमारे गेंदबाजों ने पूरी कर दी। किस्मत ने भी हमारा साथ दिया। मैच के दौरान भारत को तब झटका लगा जब सीनियर गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार की मांसपेशियों में खिंचाव आ गया। वह 2.4 ओवर के बाद मैदान छोड़कर चले गए। उनकी जगह विजय शंकर आए और उन्होंने पहली बॉल पर ही ओपनर इमाम उल हक को चलता किया और ओपनर जोड़ी तोड़ दी। बाकी कसर कुलदीप व हार्दिक पांड्या ने पूरी कर दी। मैच में इतना रोमांच था कि जिसने मिस किया वह पछता रहा होगा। भारत और किसी से जीतता या नहीं पर पाकिस्तान को हराना बहुत जरूरी था। एक तरह से मानों हमने वर्ल्ड कप जीत लिया हो। टीम इंडिया बहुत अच्छा खेल रही है और कप जीतने की प्रबल दावेदार है।

-अनिल नरेन्द्र

हर घंटे एक मां की गोद सूनी हो रही है

बिहार के मुजफ्फरपुर व इसके आसपास के जिलों में महामारी का रूप ले चुके दिमागी बुखार (एईएस) यानि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से जिसे वहां चमकी बुखार भी कहा जा रहा है, लगभग 100 बच्चों की मृत्यु सिर्प मर्मांतक ही नहीं है, बल्कि यह चिकित्सा और उससे जुड़ी ढांचागत सुविधाओं के प्रति सरकार की प्राथमिकता पर भी अत्यंत दुखद टिप्पणी है। बिहार में पिछले 10 दिनों से फैला यह दिमागी बुखार ऐसा फैला है कि बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। मौतों का यह आंकड़ा तो उन बच्चों का है जो अस्पतालों में भर्ती थे और इलाज के दौरान जिन्होंने दम तोड़ दिया। चिन्ता की बात तो यह है कि पिछले 10 दिनों के भीतर डॉक्टर यह भी पता नहीं लगा पाए हैं कि आखिर इस बुखार का कारण क्या है? राज्य के करीब 12 जिले इस बुखार की चपेट में हैं। मुजफ्फरपुर के अस्पतालों में 250 से ज्यादा बच्चे भर्ती हैं। ज्यादातर पीड़ित बच्चे ग्रामीण इलाकों के हैं। राज्य में बच्चों की मौतों का सिलसिला कई दिनों से चल रहा है लेकिन बिहार सरकार कई दिनों बाद हरकत में आई और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री शुक्रवार को पहली बार मुजफ्फरपुर पहुंचे। यह बिहार सरकार की संवेदनहीनता को बताने के लिए काफी है। जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और बिहार सरकार के स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पहुंचे तो उनके सामने ही दो बच्चों की मौत हो गई। बच्चों की मौत से गुस्साए लोगों ने मंत्रियों के सामने ही हंगामा किया। लोगों का कहना था कि अस्पताल में हर रोज कोई न कोई मंत्री आता है, पर इलाज के नाम पर कोई सुविधा नहीं मिल रही है। पिछले कई सालों से इसी मौसम में उत्तर बिहार में दिमागी बुखार का प्रकोप  देखा जा रहा है, इसके बावजूद न तो इसके कारण का अभी तक ठीक से पता चल सका है और न ही इससे निपटने के लिए ढांचागत सुविधाएं बढ़ाई गई हैं। कुछ विशेषज्ञ दिमागी बुखार का कारण मुजफ्फरपुर और उसके आसपास की लीची में व्याप्त विषैला रसायन को बता रहे है, जिस कारण खाली पेट लीची खाने वाले गरीब-कुपोषित बच्चे इसके शिकार बन रहे हैं, जबकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक चिलचिलाती गर्मी और नमी तथा बारिश के न होने से शरीर में अचानक शुगर की कमी से बच्चों की मौत हो रही है। मुजफ्फरपुर के अधिकतर अस्पतालों में आईसीयू, दवाओं व वैंटिलेटर जैसी आवश्यक सुविधाओं का अभाव है। यही नहीं, पर्याप्त मात्रा में न तो डॉक्टर उपलब्ध हैं, न ही नर्सें व अन्य मेडिकल जरूरी स्टाफ। केंद्र सरकार के निर्देशों के बावजूद विगत पांच सालों में 100 बैड का विशेष एईएस वार्ड ही बन गया है। इस कारण चार अलग-अलग वार्डों में बच्चों का इलाज चल रहा है। सवाल है कि सरकारी अस्पताल इतने सुविधाविहीन क्यों हैं, जहां जरूरत के मुताबिक न बिस्तर हैं, न आईसीयू, न पर्याप्त विशेषज्ञ डॉक्टर और न सिर्प स्टाफ? बिहार में 1977 में पहली बार इस बीमारी का पता चला था। तब से लेकर अब तक एक लाख से ज्यादा बच्चों की जान जा चुकी है और सबसे दुखद पहलू यह है कि यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।

Tuesday 18 June 2019

विदेशों में बसे भारतीयों को जोड़ने का काम कर रहा है क्रिकेट

फोर्ब्स पत्रिका ने सबसे ज्यादा कमाई करने वाले दुनिया के टॉप-100 खिलाड़ियों की सूची जारी की है। बड़े हर्ष की बात है कि इस सूची में हमारे विराट कोहली भी लगातार तीसरे साल इकलौते क्रिकेटर शामिल हैं। विराट कोहली 2017 में 141 करोड़ रुपए की सम्पत्ति के साथ 89वें स्थान पर और 2018 में 166 करोड़ रुपए की कमाई के साथ 83वें नम्बर पर हैं। जून 2018 से जून 2019 तक उनकी कमाई करीब सात करोड़ बढ़कर 173.3 करोड़ पहुंच गई। सबसे ज्यादा इस सूची में अमेरिकी हैं। 35 खिलाड़ी बॉस्केटबॉल के हैं, जबकि अमेरिकी फुटबॉल के 19, बेसबॉल के 15, फुटबॉल के 11 हैं, टेनिस और गोल्फ के 5-5 खिलाड़ी हैं। दुनिया में नम्बर वन के खिलाड़ी हैं। फुटबॉल के अर्जेंटीना के लियोनल मैंसी उनकी सालाना कमाई 882 करोड़ है। क्रिकेट और खासकर भारतीय क्रिकेट के चाहने वाले दुनियाभर में हैं। दरअसल विदेशों में बसे भारतीयों को जोड़ने का काम कर रहा है क्रिकेट वर्ल्ड कप के मैच देखने के लिए इंग्लैंड में माहौल एक त्यौहार की तरह है। भला इसे कैसे मिस किया जा सकता है। इंग्लैंड पहुंचे मुंबई के अमंग नायक बताते हैं कि वर्ल्ड कप तो एक त्यौहार की तरह है। हम लोग हमेशा इसके लिए पैसे बचाने की योजना बनाते रहते हैं। चार साल पहले हम आस्ट्रेलिया गए थे और अब ब्रिटेन आए हैं, क्रिकेट के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं। अमंग ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और अमेरिका में रहता है। मैं 25 साल पहले अमेरिका आया था। इस दौरान कई चीजें बदल गईं, लेकिन क्रिकेट के लिए हमारी दीवानगी नहीं बदली। यह हमेशा हमें भारत के साथ जोड़े रखता है। इसी तरह विवेक भी मूल रूप से तमिल हैं। लेकिन दो दशक से सिंगापुर में रह रहे हैं। इनके पिता सुदर्शन 25 साल पहले सिंगापुर आए थे, जिसके बाद इनका पूरा परिवार यहीं आकर बस गया। विवेक का सात सदस्यों वाला परिवार ब्रिटेन आया है। विवेक बताते हैं कि हम पूरा टूर्नामेंट देखना चाहते थे लेकिन सिंगापुर में हमारी एक कंपनी है जिसके कारण हमें 10-15 दिनों के अंदर ही वापस जाना होगा। पैसे की इतनी दिक्कत नहीं है पर कंपनी और बच्चों का स्कूल भी जरूरी है। विवेक का परिवार दो साल पहले से ही वर्ल्ड कप देखने के लिए पैसा जुटा रहा था। उनके पिता सुदर्शन बताते हैं कि हम जब सिंगापुर आए थे तो क्रिकेट को अपने साथ ही ले आए थे। पहले मैं गावस्कर और द्रविड़ का बड़ा फैन था और अब एमएस धोनी का। मैंने अपना सारा जीवन ]िक्रकेट के साथ काटा। अब खुशी है कि बेटे और पोते भी क्रिकेट में उतनी ही रुचि रखते हैं। इंग्लैंड में चल रहे वर्ल्ड कप में मौसम ने तबाही मचा रखी है। कई मैच बारिश के कारण रद्द हो चुके हैं। पर बारिश के चलते क्रिकेट दीवानों में जुनून कम नहीं हुआ है। दुनिया के कोने-कोने से दर्शक अपनी टीम का मनोबल बढ़ाने इंग्लैंड पहुंच चुके हैं। सारे मैदान खचाखच भरे हुए होते हैं जो आमतौर पर ऐसे नहीं होते। ऐसा है क्रिकेट का जुनून।
-अनिल नरेन्द्र


हड़ताल पर भगवान, अत्यंत निराशाजनक स्थिति

पश्चिम बंगाल के कोलकाता मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टरों से मारपीट के बाद शुरू हुई डॉक्टरों की हड़ताल की गूंज शुक्रवार को देशभर में पहुंच गई। एनआरएस मेडिकल कॉलेज में दो डॉक्टरों के साथ जिस तरह से एक मरीज के परिजनों ने मारपीट की थी, पश्चिम बंगाल की सरकार को तत्काल सक्रिय हो जाना चाहिए था। अफसोस, दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने और डॉक्टरों को समझने व समझाने की बजाय पश्चिम बंगाल की सरकार ने उन्हें धमकाने का रास्ता अख्तियार कर लिया। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ कह दिया कि चार घंटे में ड्यूटी पर लौट आओ, वरना कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इससे बात और बिगड़ गई। डॉक्टर धरने पर बैठ गए और अब यह विरोध दिल्ली व अन्य नगरों में पहुंच गया है। दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), एलएनजेपी और सफदरजंग जैसे बड़े अस्पतालों में मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ा। कई मरीजों के ऑपरेशन नहीं हुए तो कई मरीजों को बिना इलाज के ही अस्पतालों से लौटना पड़ा। राजधानी के बड़े सरकारी अस्पतालों में सिर्प दिल्ली के मरीज ही नहीं होते, यहां देश के कोने-कोने से मरीज आते हैं। कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टरों के साथ की गई मारपीट कतई उचित नहीं है। लेकिन उसके विरोध में दिल्ली के अस्पतालों में की गई हड़ताल को भी जायज नहीं ठहराया जा सकता। हड़ताल के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत असर पड़ा है। खबर है कि अकेले पश्चिम बंगाल में चिकित्सा के अभाव में 20 के करीब मरीज जान गंवा चुके हैं। दो डॉक्टरों से मारपीट के खिलाफ बंगाल से लेकर दिल्ली तक पहुंची हड़ताल के बाद ममता बनर्जी कुछ सक्रिय नजर आ रही हैं। शुक्रवार रात को सरकार की ओर से हड़ताली डॉक्टरों से बातचीत का प्रयास किया गया था। लेकिन डॉक्टर इस बता पर अड़े रहे कि सीएम एनआरएस मेडिकल कॉलेज आकर उनकी समस्याओं को सुनें। दिल्ली के अस्पतालों में भी अकसर डॉक्टरों के साथ मारपीट की घटनाएं सामने आती रहती हैं। डॉक्टरों के साथ मारपीट की घटनाएं अत्यंत निन्दनीय हैं। ऐसी प्रत्येक घटना में उन पर हमला करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही अस्पतालों में डॉक्टरों की सुरक्षा हर हाल में सुनिश्चित होनी चाहिए। अस्पताल प्रशासन को उनकी सुरक्षा की मांग पर तत्काल गौर करना चाहिए, ताकि वे बेखौफ होकर मरीजों का उपचार कर सकें। देश में डॉक्टरों के प्रति लगातार बढ़ रहे अविश्वास को रोकने और डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर कड़ा कानून लागू करने की जरूरत है। डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार चिंतित है और विभिन्न राज्यों की सरकारों से विचार करने के बाद डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून ला सकती है जिसके तहत डॉक्टरों से मारपीट या हमले की घटना संगीन अपराध की श्रेणी में आ सकता है। दोषियों को कम से कम 12 वर्ष की सजा का प्रावधाना हो सकता है। डॉक्टरों को भी यह देखना चाहिए कि वे हड़ताल जैसे कड़े कदमों से बचें, क्योंकि यह कई मरीजों के लिए जानलेवा भी हो सकता है। आम जनता डॉक्टरों को भगवान मानती है और उन पर भरोसा करती है। इसलिए डॉक्टरों को अपनी बात रखने या अपने लिए सुरक्षा की मांग को लेकर ऐसा तरीका अपनाना चाहिए जिससे मरीजों को किसी तरह की कोई परेशानी न होने पाए।

Sunday 16 June 2019

उत्तराखंड में हाथियों और बाघों के बीच चल रही जंग

यह शायद आपने पहले कभी नहीं सुना होगा कि हाथियों की और शेरों की आपस में जबरदस्त लड़ाई छिड़ गई है। पर यह सत्य है। उत्तराखंड स्थित कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में शेरों और हाथियों के बीच संघर्ष में अब तक 21 जंगली हाथी मारे जा चुके हैं। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की ओर से कराए गए अध्ययन में यह जानकारी निकल कर सामने आई है। अध्ययन बताता है कि बीते पांच सालों में नौ बाघों और छह तेंदुओं की मौत भी संघर्ष के चलते हुई है लेकिन यह मौतें हाथियों के साथ संघर्ष के चलते नहीं हुई हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जिम कॉर्बेट पार्प में बाघ हाथियों को अपना शिकार आखिर क्यों बना रहे हैं? कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में आखिरी गिनती के मुताबिक फिलहाल 200 से ज्यादा बाघ और 1000 से ज्यादा हाथी मौजूद हैं। बाघों और हाथियों के बीच संघर्ष की बात करें तो इन दोनों जानवरों के बीच संघर्ष काफी दुर्लभ माना जाता है। लेकिन इस अध्ययन में सामने आया है कि बीते पांच सालों में संघर्ष की वजह से मरे 21 में से 13 हाथियों की मौत के लिए बाघ जिम्मेदार थे। इसके साथ ही एक नया पहलू सामने आया है कि मरने वाले हाथियों में से ज्यादातर की उम्र कम पाई गई। रिपोर्ट बताती है कि इस अध्ययन में एक बेहद ही चौंकाने वाली बात सामने आई है। 21 में 13 हाथियों की मौत बाघों के हमले की वजह से हुई और इनमें से ज्यादातर हाथियों की उम्र काफी कम पाई गई। इस घटना की एक वजह यह हो सकती है कि बाघों को हाथियों के मारने में दूसरे जानवरों जैसे सांभर, चीतल को मारने से कम मेहनत लगती है और इसके बदले में मांस भी कहीं ज्यादा होता है। हालांकि बाघ और हाथियों के बीच संघर्ष से जुड़े इस पहलू पर विस्तार से अध्ययन किए जाने की जरूरत है। जिम कॉर्बेट पार्प के निदेशक संजीव चतुर्वेदी कहते हैं कि इस अध्ययन में सामने आया है कि बाघ-हाथियों के संघर्ष में मरने वाले हाथियों के मृत शरीर में से एक से ज्यादा बाघों ने मांस खाया। हाथी को मारना बाघों के लिए भी आसान नहीं होता। हमले में एक से ज्यादा बाघ ही हाथी पर भारी पड़ सकते हैं। इसके अलावा हाथियों के बीच आपसी संघर्ष में मारे जाने वाले हाथियों में मृत शरीरों में से भी एक से ज्यादा वयस्क बाघों के मांस खाने की जानकारी प्राप्त हुई है। चतुर्वेदी कहते हैं कि टाइगर कॉर्बेट रिजर्व में स्थिति बेहद खास है क्योंकि यहां बाघों और हाथियों की संख्या बहुत अच्छी है। कान्हा और रणथंभौर में हाथी बिल्कुल नहीं हैं। वहीं राजाजी नेशनल पार्प में बाघों की संख्या बेहद सीमित है। जबकि हमारे यहां हुई पिछली गणना में बाघों की संख्या 215 और हाथियों की संख्या एक हजार से ज्यादा थी और जिसमें अब और बढ़ोतरी हुई है। वन्य जीवों की संरक्षण के लिहाज से यह एक अच्छी संख्या है। टाइगर बचाओ अभियान को यहां अच्छा रिस्पांस मिला है। आने वाले दिनों में होने वाले अध्ययनों में जो जानकारी सामने आएगी वो उत्तराखंड में वन्य जीवों के बीच संघर्ष को लेकर एक नई समझ को विकसित करने में मददगार साबित होगी। क्योंकि उत्तराखंड एक ओर मानव-तेंदुआ संघर्ष की समस्या से जूझ रहा है, वहीं वन्य जीवों के बीच नए तरीके के संघर्ष सामने आने से राज्य के वन्य जीवन के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं।
-अनिल नरेन्द्र


भारत की ऊंची उड़ान, अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चीफ ने ऐलान किया है कि भारत अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाएगा। यह देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। अगर ऐसा हुआ तो दुनिया में तीसरा स्पेस स्टेशन भारत का होगा। अभी तक अंतरिक्ष में दो ही स्पेस स्टेशन हैं। पहलाöअमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय देशों ने मिलकर बनाया है। इसका नाम इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) है। दूसराöस्पेस स्टेशन चीन का है, जोकि अस्थायी है। यानि कुछ वर्षों में यह स्पेस स्टेशन काम करना बंद कर देगा। इसका नाम तियांगोंग-2 है, जिसे चीन ने 2016 में लांच किया था। स्पेस स्टेशन धरती से करीब 400 किलोमीटर (स्पेस के बाहरी हिस्से में) उपर होता है। साथ ही धरती के चक्कर लगाता रहता है। भारत ने इस प्रोजेक्ट के लिए 2030 तक की तारीख तय की है। 20 टन के स्पेस स्टेशन के जरिये भारत माइक्रोग्रैविटी से जुड़े प्रयोग कर पाएगा। इस स्पेस स्टेशन को बनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि भारत के अंतरिक्ष यात्री 15-20 दिन अंतरिक्ष में गुजार सकें। इसरो ने बताया कि भारत इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में किसी अन्य देश की मदद नहीं लेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपनी अंतरिक्ष क्षमता को विश्व में स्थापित कर दिया है, इससे तो इंकार नहीं किया जा सकता। आखिर एक साथ 100 से ज्यादा उपग्रहों को प्रक्षेपित करना और वह भी अमेरिका, चीन जैसे देशों से काफी कम खर्च और समय में साधारण उपलब्धि नहीं है। भारत के अंतरिक्ष मामले में ट्रेक रिकॉर्ड को देखते हुए भारत अब अंतरिक्ष के बारे में जो बोलता है, उसे विश्व समुदाय गंभीरता से लेता है। भारत की तवज्जो फिलहाल गगनयान मिशन पर है।  गगनयान पूरा होने के बाद अंतरिक्ष स्टेशन पर फोकस किया जाएगा। अभी तक तीन देशों के अलावा दूसरे देश अंतरिक्ष में इंटरनेशनल स्पेस सेंटर का इस्तेमाल करते हैं। वास्तव में अंतरिक्ष स्टेशन परियोजना गगनयान मिशन का ही विस्तार है। आखिर गगनयान ह्यूमन स्पेस मिशन ही तो है। उन्हें लांच होने के बाद हमें गगनयान प्रोग्राम को बनाए रखना है तो अंतरिक्ष स्टेशन चाहिए। सरकार ने गगनयान मिशन के लिए 10 हजार करोड़ रुपए का बजट जारी कर दिया है। गगनयान यानि 2022 में मानव सहित यान को अंतरिक्ष में भेजने से पहले दो मानवरहित यान अंतरिक्ष में भेजेंगे। इस तरह इसरो का ध्यान चंद्रमा पर दूसरे मिशन चंद्रयान-2 पर है। चंद्रयान-2, 15 जुलाई को उड़ान भरेगा और चांद के दक्षिणी पोल के पास लैंड करने की कोशिश करेगा। चंद्रयान-2 पूर्व में मिशन चंद्रयान-1 का एडवांस्ड वर्जन है। चंद्रयान-1 को 10 साल पहले लांच किया गया था। 15 जुलाई को लांच होने वाले मिशन चंद्रयान-2 के साथ ही भारत की नजर अब वीनस (शुक्र) और सूर्य तक है। अभी तक सूरज के पास केवल अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा पहुंचा है। पिछले साल नासा ने पार्पर सोलर प्रोबयान को लांच किया था, जोकि 61 लाख किलोमीटर की दूरी से अगले सात साल में सूरज के 24 चक्कर लगाएगा। अब तक कोई यान सूरज के इतने करीब नहीं पहुंचा। मोदी सरकार ने इसरो को आश्वस्त किया है कि इन मिशनों के लिए जितना धन चाहिए, मिलेगा। बस लक्ष्य पाने के लिए काम करते रहें।

Saturday 15 June 2019

पानी की किल्लत खूनखराबे, लाठी-डंडे तक पहुंच गई है

आजादी के सात दशक बाद भी देश के 82 प्रतिशत गांव व शहर पानी के लिए तरस रहे हैं। हालत यह है कि आज भी हमारे गांव पानी के लिए पारंपरिक स्रोतों पर ही निर्भर हैं। ऐसा नहीं कि देश के हर गांव-शहर में पानी पहुंचाने के लिए कभी योजनाएं नहीं बनीं। चर्चाएं चलती रहीं, योजनाएं भी बनती रहीं, इस मद के लिए धन का आवंटन भी होता रहा, लेकिन जो काम होना था वह नहीं हुआöइन योजनाओं पर ईमानदारी से अमल। लोगों को पानी मिलने लगे यह किसी भी सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। दूरदराज के गांवों का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश की राजधानी में पानी के लिए खूनखराबे तक नौबत पहुंच गई है। ताजा मामला वसंत पुंज साउथ इलाके का है। जहां रात के समय दिल्ली जल बोर्ड के टैंकर से पानी लेने के लिए दो पक्षों में जमकर लाठी-डंडे और लात-घूसे चले। इस घटना में दोनों पक्षों के छह लोग जख्मी हो गए। मंगलवार शाम सांसद विजय गोयल और भाजपा कार्यकर्ताओं ने पानी की समस्याओं पर दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ को घेरते हुए पानी की किल्लत, पानी की बर्बादी, प्रदूषित जलापूर्ति आदि समस्याओं पर लिखित जवाब मांगा। इस पर बोर्ड के सीईओ निखिल कुमार ने नेताओं से समस्या और संबंधित क्षेत्र की जानकारी मांग ली। दोनों पक्ष अड़े रहे तो विवाद इतना गहरा गया कि तड़के तीन बजे तक दफ्तर में हंगामा चलता रहा। इस दौरान सीईओ को बाहर जाने से रोकने की कोशिश की गई तो भाजपा कार्यकर्ताओं को भी दफ्तर से बाहर निकाला गया। मंगलवार शाम से ही दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप चल रहा था। अधिकारियों की तरफ से जवाब नहीं मिला तो भाजपाइयों ने कार्यालय के बाहर हंगामा शुरू कर दिया। भाजपा नेताओं ने सीईओ को बंधक बना  लिया। इसके बाद पुलिस को बुलाया गया। काफी मशक्कत के बाद निखिल कुमार को दफ्तर से बाहर निकालने में पुलिस सफल हुई। भीषण गर्मी के कारण दिल्ली में बिजली-पानी के संकट को लेकर दिल्ली की राजनीति गरमा गई है। इस मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को घेर रही हैं। बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के आवास पर बैठक की। कांग्रेस ने दिल्ली वालों के लिए छह माह तक का बिल माफ करने की मांग की है। वहीं मंगलवार देर रात जल बोर्ड मुख्यालय पर पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता विजय गोयल ने आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को घेरा। आरोप-प्रत्यारोप के इस  दौर में दिल्लीवासी प्यासे रहने पर मजबूर हो रहे हैं। जहां पानी आ भी रहा है वहां इस पानी की गुणवत्ता इतनी खराब है कि उलटा इसे पीने से लोग बीमार हो रहे हैं। मानसून में भी देर हो गई है। आगामी दिन दिल्लीवासियों के लिए दोनों क्षेत्रों में चाहे बिजली हो, चाहे पानी हो मुश्किल रहेगी। उम्मीद करें कि जल्दी बारिश हो ताकि दोनों क्षेत्रों पर थोड़ी राहत मिले। गर्मी का सितम अलग है।

-अनिल नरेन्द्र

आगरा कचहरी परिसर में ही हत्या कर डाली

अपराधियों के घुटने तोड़ने के  जिस संकल्प के साथ योगी आदित्यनाथ सरकार ने सत्ता संभाली थी, वह बीच राह यानि बीच राह लगभग ढाई साल बाद ही लड़खड़ाती नजर आ रही है। आए दिन वह भी दिनदहाड़े मर्डर हो रहे हैं। ताजा घटना ताज नगरी के दीवानी परिसर में उत्तर प्रदेश बार काउंसिल अध्यक्ष दरवेश यादव की गोली मारकर हत्या करने की है। दरवेश (37) को बुधवार को गोली मार दी गई। दरअसल बुधवार दोपहर करीब तीन बजे उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के अध्यक्ष दरवेश सिंह यादव और अधिवक्ता मनीष शर्मा के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया। आगरा के एडीजे अजय आनंद ने बताया कि विवाद इतना बढ़ गया कि अधिवक्ता मनीष शर्मा ने दरवेश यादव को लगातार तीन गोलियां मारीं। गोली चलने से दीवानी परिसर में अफरातफरी मच गई। इसके  बाद मनीष शर्मा ने खुद को भी गोली मार ली। पुलिस ने दोनों को दिल्ली गेट स्थित पुष्पांजलि अस्पताल में भर्ती कराया। वारदात दीवानी कचहरी में वकील अरविन्द मिश्रा के चैंबर में दोपहर तीन बजे के करीब हुई। दरवेश को तीन गोलियां लगीं, एक गोली दरवेश के भतीजे मनोज को भी मारी, पर वह बच गया। दरवेज के भतीजे सनी यादव ने मनीष के खिलाफ रिपोर्ट में आरोप लगाया कि उसने दरवेश का चैंबर, पैसा और जेवरात हड़प लिए। मनीष की पत्नी वंदना कई दिनों से हत्या की धमकी दे रही थी। बुधवार को कचहरी में दरवेश का स्वागत समारोह था। मनीष के नहीं आने पर कुछ अधिवक्ताओं ने फोन करके बुलाया ताकि दोनों गिले-शिकवे भूल जाएं। इसके लिए अरविन्द मिश्रा के चैंबर में भी मीटिंग बुलाई गई थी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मीटिंग में दरवेश और मनीष में कहासुनी हुई। दरवेश के रिश्तेदार मनोज बीच में बोले तो मनीष भड़क गया। उसने पहले से लोड पिस्टल निकालकर मनोज पर फायर कर दिया, पर वह किसी तरह बच गया। इसके बाद तीन गोलियां दरवेश और एक खुद को मारी। दरवेश को अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत बताया। वहीं मनीष को दिल्ली रैफर कर दिया। बता दें कि दो दिन पहले ही दरवेश यादव उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की अध्यक्ष निर्वाचित हुई थीं। उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के इतिहास में वह पहली महिला अध्यक्ष बनी थीं। उत्तर प्रदेश बार काउंसिल का चुनाव रविवार को प्रयागराज में हुआ था। दरवेश सिंह के नाम एक रिकॉर्ड यह भी है कि बार काउंसिल के 24 सदस्यों में वह अकेली महिला हैं। दरवेश सिंह मूल रूप से एटा की रहने वाली हैं। दरवेश को पहले से ही हत्या की आशंका थी। उन्होंने साथी वकीलों से कहा था कि मनीष के इरादे ठीक नहीं हैं, वह धमकी दे रहा है। कभी भी मेरी हत्या कर सकता है। दरवेश ने अपने कुछ रिश्तेदारों को भी इसकी जानकारी दी थी। उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था तार-तार हो गई है। दरवेश की हत्या कचहरी परिसर में हुई है। अगर हमारी अदालतें भी सेफ नहीं हैं तो व्यक्ति कहीं भी सेफ नहीं है। उत्तर प्रदेश की पुलिस कानून-व्यवस्था बनाए रखने में बुरी तरह फेल हुई है। ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार कानून-व्यवस्था पर काबू पाने में फेल हो रही है।

Friday 14 June 2019

गिरना... फिर उठकर भिड़ना मुझे क्रिकेट ने ही सिखाया

टीम इंडिया के फाइटर आलराउंडर युवराज सिंह ने सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का ऐलान कर दिया। भारत की दो विश्व कप जीत (2007 टी-20 और 2011) के महानायक को लोग कैंसर से जंग जीतने वाले एक योद्धा के रूप में भी याद रखेंगे। जिन्दगी में हार न मानने वाले 37 वर्षीय युवराज को 2017 के बाद से भारतीय टीम में मौका नहीं मिला। अब युवी अपनी फाउंडेशन युवीकैन के जरिये कैंसर रोगियों की मदद करेंगे। युवराज ने कहाöएक क्रिकेट के तौर पर सफर शुरू करते वक्त मैंने कभी नहीं सोचा था कि कभी भारत के लिए खेलूंगा। बचपन से ही अपने पिता के नक्शेकदम पर चला और देश के लिए खेलने के उनके सपने का पीछा किया। मेरे लिए 2011 विश्व कप जीतना, मैन ऑफ द सीरीज मिलना अपने सपने की तरह था। युवराज ने कहा कि गिरना... फिर उठकर भिड़ना मुझे ]िक्रकेट ने ही सिखाया है। 17 साल के अपने क्रिकेट जीवन में उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल कीं, वे अपने आपमें एक रिकॉर्ड है। चाहे मैचों की संख्या हो, रनों का आंकड़ा हो या फिर आईपीएल मैच के खिलाड़ी की कीमत हो, युवराज हमेशा एक चैंपियन के रूप मे ही रहे, मैदान में भी और बाहर भी। इस क्रिकेटर ने अपने खेल से क्रिकेटप्रेमियों का दिल ही नहीं जीता, बल्कि कैंसर जैसी भयंकर बीमारी पर विजय पाकर खेल में वापसी करके तमाम लोगों को प्रेरणा देने का काम वापसी ही नहीं की, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट भी खेले। युवराज के मन में शायद 2019 के विश्व कप में खेलने की चाहत रही होगी। लेकिन दो साल पहले वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे सीरीज में वह उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सके और इससे उनकी दावेदारी कमजोर पड़ गई। हम उनके यादगार लम्हों की बात करें तो 2011 का विश्व कप भारत को दिलाने में अहम भूमिका निभाना है। इस विश्व कप के नौ मैचों में उन्होंने एक शतक और चार अर्धशतकों से 362 रन बनाए और 15 विकेट भी अपने नाम किए। इस प्रदर्शन पर उन्हें मैन ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया। कई बार तो वह इतने विस्फोटक अंदाज में गेंदबाजों की ठुकाई करते थे कि वह अपनी सुध-बुध ही खो बैठते थे। इंग्लैंड का स्टुअर्ट ब्राड 2007 के टी-20 विश्व कप को शायद कभी नहीं भूल सकता। युवराज ने उनकी छह बॉलों पर छह छक्के मारे और विश्व रिकॉर्ड बना दिया था। यह सही है कि युवराज ने कहा कि उन्हें विदाई मैच का प्रस्ताव मिला था पर मैं अपने बूते पर ही खेलना चाहता था पर हमें अपने हीरोज का सम्मान करना आना चाहिए। युवराज से पहले सहवाग भी विदाई मैच खेले चले गए। इतना जरूर है कि युवराज के साथ कैरियर में कई बार अनदेखी नहीं की गई होती तो उनके रिकॉर्ड और बेहतर होते। हम युवराज को अपनी दूसरी पारी के लिए शुभ कामना देते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि युवराज का क्रिकेट जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है, बैस्ट ऑफ लक युवराज।

-अनिल नरेन्द्र