Friday 21 June 2019

भ्रष्ट, कामचोर बाबुओं की अब खैर नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में स्पष्ट कर दिया कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलेगी। इसका सबूत हमें तब मिला जब उनकी सरकार ने वित्त मंत्रालय के बारह भ्रष्ट और दागदार छवि वाले आयकर अधिकारियों को फंडामेंटल रूल्स के नियम 56(जे) के तहत जबरन रिटायर कर दिया। यह कदम प्रशंसनीय तो है ही, इससे सरकारी क्षेत्रों में व्यापक भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करते रहने की धारण ध्वस्त हुई है। ये सभी अधिकारी आयकर विभाग में चीफ कमिश्नर, प्रिन्सिपल कमिश्नर्स और कमिश्नर जैसे पदों पर तैनात थे। दुखद पहलू यह भी है कि इनमें से कई अफसरों पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार, अवैध और बेहिसाब सम्पत्ति अर्जित करने के अलावा यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप थे। संदेश साफ है। मोदी सरकार में निकम्मे और कामचोर सरकारी बाबुओं की अब खैर नहीं है। इन अफसरों के खिलाफ उगाही करना, रिश्वत लेना, अपने पद और अधिकारियों का दुरुपयोग करने जैसे गंभीर आरोप थे। जबकि एक अधिकारी को अपनी अयोग्यता के कारण जाना पड़ा। अब सरकारी बाबुओं के कामकाज पर गहरी नजर रखी जाएगी। वह दिन गए कि सरकारी पद पर बैठे ये अधिकारी मौज-मस्ती काट सकें। हालांकि इससे पहले 2017 में भी सरकार ने कुछ भ्रष्ट और निकम्मे अधिकारियों को जबरन रिटायर किया था, लेकिन भ्रष्टाचार और कदाचार में फंसे इतने सारे अधिकारियों के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई का यह पहला ही मामला है। यूं तो संदिग्ध अधिकारियों को अनिवार्य रिटायरमेंट दिए जाने का नियम दशकों पहले से ही प्रभावी है, पर इतनी बड़ी कार्रवाई पहली बार हुई है। उम्मीद करते हैं कि ऐसे अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई आगे भी होती रहेगी। या तो ये सरकारी बाबू सुधर जाएं नहीं तो पद पर रहना मुश्किल हो सकता है। यह किसी से छिपा नहीं कि आम नागरिक इन सरकारी बाबुओं की काहिले के कारण कितने त्रस्त हैं। कोई सा भी सरकारी महकमा हो, चाहे वह जन्म-मरण का प्रमाण-पत्र देने वाला बाबू हो, चाहे वह बिजली-पानी के दफ्तर में बैठा बाबू हो उनके पास आने वाले नागरिकों को घूस दिए बिना कोई काम नहीं होता। सरकारी क्षेत्र के बारे में दुर्भाग्य से यह धारणा बन गई है कि खासकर रसूखदार पदों पर भ्रष्टाचार और अधिकारों के दुरुपयोग को रोक पाने की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है। अभी तक भ्रष्ट सरकारी बाबुओं के खिलाफ ज्यादातर रूटीन विभागीय कार्रवाई होती है और उनकी नौकरी कमोबेश बनी रहती है। वर्षों तक मुकदमा, कार्रवाई चलती रहती है जिससे सरकारी समय और धन दोनों की बर्बादी होती है। जबरन रिटायर किए गए ये अधिकारी बची हुई नौकरी के वेतन और सुविधाओं के लाभ से तो वंचित होंगे ही, उससे भी बड़ी बात यह है कि अपनी दागदार छवि से वे जिन्दगीभर बाहर नहीं निकल पाएंगे। यह सच है कि सत्य के रास्ते पर चलना कठिन है पर देश के लिए यह करना जरूरी है। दुखद पहलू यह भी है कि हमारे समाज और व्यवस्था में भ्रष्टाचार इतनी गहरी जड़ें जमा चुका है कि इसे जड़ से दूर करना लगभग असंभव है, हां इस पर कंट्रोल तो किया जाना ही चाहिए। सरकार के इस कदम पर प्रधानमंत्री को बधाई।
-अनिल नरेन्द्र

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