Friday 14 June 2019

ट्वीट पर गिरफ्तारी व्यक्ति की आजादी पर डाका

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से संबंधित एक ट्वीट की वजह से गिरफ्तार किए गए पत्रकार प्रशांत कनौजिया की जमानत पर तुरन्त रिहाई का आदेश देकर स्पष्ट किया है कि संविधान में मौलिक अधिकारों के तहत दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता का राज्य उल्लंघन नहीं कर सकता। कनौजिया की गिरफ्तारी के मसले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की है। उससे एक बार फिर स्पष्ट हुआ है कि सरकारें और खासतौर पर उनकी पुलिस को किसी मसले पर कार्रवाई के दौरान किन मानकों का ध्यान रखना चाहिए। गौरतलब है कि हाल में एक पत्रकार प्रशांत कनौजिया ने अपने ट्विटर अकाउंट पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में कुछ टिप्पणी करती हुई एक महिला के वीडियो के साथ-साथ एक निजी टिप्पणी भी कर दी थी। इसे अभद्र और योगी आदित्यनाथ को बदनाम करने वाला बताते हुए इसके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई। इस पर उत्तर प्रदेश की पुलिस ने जिस तरह आनन-फानन में कार्रवाई करते हुए प्रशांत को गिरफ्तार किया, वह अपने आपमें यह बताने के लिए काफी था कि इस मामले में संवैधानिक व्यवस्था या कानून का ख्याल कम किया गया था और धौंस जमाने और पत्रकारों में डर पैदा करना ज्यादा था। अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि उसका यह आदेश पत्रकार द्वारा किए गए ट्वीट की पुष्टि नहीं है, बल्कि उनके खिलाफ कानून के मुताबिक कार्रवाई हो। दरअसल कनौजिया को उत्तर प्रदेश की पुलिस ने दिल्ली से उनके घर से जिस तरह से गिरफ्तार किया था, उससे उसकी नीयत पर सवाल उठ रहे थे। इस मामले में पुलिस ने एक टीवी चैनल के दो पत्रकारों सहित कुछ और लोगों को भी गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय निर्देशों का पालन नहीं करने का यह कोई पहला मामला नहीं है, लेकिन कनौजिया को जिस आरोप में गिरफ्तार किया गया और उनके खिलाफ जिस तरह की धाराएं लगाई गईं, वह राज्य की ताकत के अतिरिक्त दुरुपयोग को ही रेखांकित करता है। सरकारें और राजनेता एक ओर तो संविधान की दुहाई देते नहीं थकते, लेकिन दूसरी ओर नागरिक आजादी को खुद की प्रतिष्ठा से जोड़ते हैं और कानून की धज्जियां उड़ा देते हैं। कर्नाटक पुलिस ने तो मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बेटे के लोकसभा चुनाव में पराजित होने से संबंधित एक खबर प्रकाशित करने पर एक कन्नड़ अखबार के संपादक के खिलाफ बाकायदा एक एफआईआर दर्ज कर दी थी। ममता सरकार ने कुछ वर्ष पहले मुख्यमंत्री का कार्टून सोशल मीडिया में साझा करने वाले एक प्रोफेसर को गिरफ्तार कर लिया था। संवैधानिक नियम-कायदों से बंधे शासन को उसकी गरिमा का ख्याल रखना चाहिए। नेताओं और राजनीतिज्ञों को भी देश की लोकतांत्रिक परंपरा और नागरिक स्वतंत्रता की संवैधानिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए उदार रवैये का परिचय देना चाहिए। कहने की जरूरत नहीं, एक परिपक्व लोकतंत्र में राज्य सत्ता का दुरुपयोग की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। उम्मीद करते हैं कि सरकारें चाहे वह केंद्र की हो या राज्यों की सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नसीहत लेंगे और कानून का पालन करेंगे।

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