Thursday, 6 June 2019

अवैध वसूली, गुंडागर्दी के कारण ममता हारीं

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार व पार्टी पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। एक तरफ उनकी पार्टी में टूट और दूसरी तरफ अमित शाह के केंद्रीय गृहमंत्री बनने से यह खतरा बढ़ गया है। ममता बनर्जी अपने गढ़ को बचाने में लग गई हैं। हालांकि उसका मकसद भाजपा की तरह अपनी विरोधी पार्टी से नेताओं को तोड़ने की नहीं है, लेकिन वह भाजपा की तर्ज पर विधानसभा चुनाव में ममता बनाम कौन? की रणनीति अपनाने की तैयारी में हैं। इसके अलावा राज्य में भाजपा की बड़ी जीत की वजह हिन्दुत्व को मानते हुए जवाब में बंगाली कल्चर को हथियार बनाने की तैयारी में हैं। बेशक राज्य में टीएमसी को नुकसान हुआ है, लेकिन उसकी स्थिति अन्य विपक्षी दलों की तरह नहीं हुई है। यह जरूर है कि राज्य में उसे मिली लोकसभा-विधानसभा सीटों का आंकड़ा कम हुआ है लेकिन ऐसा नहीं है कि टीएमसी का पूरा सूपड़ा साफ हुआ है। ममता दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई हैं। उनका मानना है कि उनकी पार्टी (तृणमूल कांग्रेस) की हार के मुख्य कारण सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, पार्टी के अंदर जनप्रतिनिधियों की निक्रियता और कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही गुंडागर्दी और अवैध वसूली है। पिछले कुछ दिनों से ममता अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और उम्मीदवारों के साथ बैठकर हार के कारणों पर विचार कर रही हैं। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचीं कि पार्टी की हार में 50 प्रतिशत योगदान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का है, 30 प्रतिशत कार्यकर्ताओं की तोलाबाजी (गुंडागर्दी और अवैध वसूली) और 20 प्रतिशत उनकी निक्रियता का। ममता बनर्जी की मुश्किलें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। अभी वह लोकसभा चुनावों में भाजपा की ओर से लगे झटकों से उबर नहीं पाई हैं कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से सारदा घोटाले की जांच तेज करने से कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को हिरासत में लेकर पूछताछ करने के सीबीआई के प्रयासों ने उनके लिए नया सिरदर्द पैदा कर दिया है। फिलहाल राजीव कुमार, जो अब खुफिया विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक हैं और जांच एजेंसी के बीच लुकाछिपी का खेल शुरू हो गया है। राजीव कुमार जहां गिरफ्तारी से बचने के लिए कानूनी सहायता लेने के प्रयास कर रहे हैं वहीं सीबीआई उनके तमाम प्रयासों को फेल कर हिरासत में लेने पर अड़ी है। राजीव कुमार ममता के करीबी रहे हैं और कम से कम सारदा घोटाले के सारे पोल जानते हैं। अगर वह सीबीआई के हत्थे चढ़ गए तो पता नहीं किस-किसकी पोल खुले? अमित शाह के गृहमंत्री बनने से ममता के लिए अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई तेज होने की संभावना है। वैसे तो ममता फाइटर हैं और इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाली हैं पर चारों ओर से उन पर और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस पर काले बादल छा रहे हैं।
-अनिल नरेन्द्र


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