Friday 28 June 2019

पहले उर्जित पटेल अब विरल आचार्य

भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता के पुरजोर समर्थक माने जाने वाले डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने पद से इस्तीफा दे दिया है। नब्बे के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद सबसे कम उम्र के डिप्टी गवर्नर बने विरल आचार्य केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के मुखर पैरोकार रहे हैं। आरबीआई के हितों को लेकर कई बार उन्होंने मोदी सरकार के सामने असहज स्थिति पैदा की। उनका मानना था कि आरबीआई की स्वायत्तता आर्थिक प्रगति और वित्तीय स्थिरता के लिए बेहद जरूरी है। कार्यकाल पूरा होने से छह महीने पहले ही पद छोड़ने वाले आचार्य ने पिछले साल अक्तूबर में सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता से छेड़छाड़ के घातक परिणाम हो सकते हैं। इसके बाद केंद्र की ओर से आरबीआई एक्ट की धारा 7 के तहत केंद्रीय बैंक को निर्देश जारी करने की नौबत आ गई। आचार्य का महंगाई को लेकर कड़ा रुख रहा है और कई बार ब्याज दरों में कमी के फैसलों पर उन्होंने असहमति भी दर्ज कराई। आचार्य के पास रिजर्व बैंक में मौद्रिक और शोध इकाई थी। विरल आचार्य का इस्तीफा राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मामला बना है तो अस्वाभाविक नहीं है। हालांकि पद छोड़ने के पीछे उन्हें निजी कारणों का हवाला दिया है। लेकिन जानकार निश्चय ही इसे पिछले कुछ महीनों से घटित घटनाक्रम से जोड़कर देख रहे हैं। आखिर तीन साल के अपने कार्यकाल के समाप्त होने से छह महीने पहले पद छोड़ना सामान्य घटना तो नहीं मानी जा सकती। पिछले सात महीनों में केंद्रीय बैंक के शीर्ष पद से इस्तीफा देने वाले वह दूसरे अधिकारी हैं। सितम्बर 2018 में रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दिया था और तब उनका कार्यकाल करीब नौ महीने बचा था। स्वतंत्र विचार रखने वाले अर्थशास्त्राr आचार्य कई मौकों पर सरकार और वित्त विभाग की आलोचना और केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का मुद्दा उठाकर विवादों में रहे हैं। पिछले साल अक्तूबर में एडी श्राफ सृष्टि व्याख्यानमाला में उन्होंने कहा था कि सरकार की निर्णय लेने के पीछे की सोच सीमित दायरे वाली है और यह राजनीतिक सोच विचार पर आधारित होती है। इस व्याख्यान से आरबीआई और सरकार के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेद खुलकर सामने आ गए थे। मौद्रिक नीति पर अपने सख्त रुख के कारण गवर्नर शशिकांत दास के साथ कई बार असहमति रही। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने टिप्पणी की कि सरकार को सच्चाई का आईना दिखाने वाले विशेषज्ञों की सूची में आचार्य का नाम शामिल हो गया। उन्होंने कहा कि भाजपा कार्यकाल में चार आर्थिक सलाहकार, आरबीआई के दो शीर्ष अधिकारी जा चुके हैं। वैसे यह कहना कठिन है कि सरकार का पक्ष सही रहा है या आचार्य का, क्योंकि सरकार को समाज कल्याण संबंधी नीतियों पर काम करना होता है और रिजर्व बैंक शुद्ध आर्थिक एवं वित्तीय कसौटियों पर उन कदमों का समर्थन या विरोध करता है। दुखद पहलू बहरहाल यह भी है कि सरकार उनका विरोध करने वालों को बर्दाश्त नहीं करती है।

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