Thursday 6 June 2019

टूटने की कगार पर बुआ-बबुआ की दोस्ती

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती के बारे में जाना जाता है कि वह विरोधी रणनीति बनाने में वक्त लेती हैं और फिर दांव चलकर आगे बढ़ जाती हैं। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा की खाली हो रही सभी 11 सीटों के उपचुनाव लड़ने के लिए बहन जी ने तैयारी शुरू कर दी है। सभी 11 सीटों के उपचुनाव लड़ने का ऐलान कर मायावती ने सपा की रणनीति पर पानी फेर दिया है। जब नीति, सोच और वैचारिकता के साझा के बजाय राजनीतिक गठबंधन किए जाते हैं तब उसका यही हश्र होता है, जैसा उत्तर प्रदेश में दिख रहा है, जहां बसपा और सपा के बीच महागठबंधन में दरार पड़ने के संकेत हैं। गठबंधन खत्म होने का औपचारिक ऐलान तो अभी नहीं हुआ है, पर बसपा की समीक्षा बैठक में मायावती ने गठबंधन के प्रयोग की विफलता पर जैसी निराशा और नाखुशी जताई, वह इसका भविष्य बताने के लिए काफी है। मायावती ने लोकसभा चुनाव में करारी हार का ठीकरा समाजवादी पार्टी पर फोड़ते हुए कहा कि उन्हें यादव वोट ही नहीं मिले। मायावती ने कहाöकन्नौज में डिम्पल, बदायूं में धर्मेन्द्र यादव और फिरोजाबाद में अक्षय यादव की हार हमें सोचने पर मजबूर करती है। इनकी हार का हमें बहुत दुख है। साफ है कि इन यादव बाहुल्य सीटों पर भी यादव समाज का वोट सपा को नहीं मिला। ऐसे में यह सोचने की बात है कि सपा का बेस वोट बैंक यदि उससे छिटक गया है तो फिर उनका वोट बसपा को कैसे गया होगा? मायावती ने कहा कि अखिलेश और डिम्पल मुझे बहुत इज्जत देते हैं। हमारे रिश्ते हमेशा के लिए हैं। लेकिन राजनीतिक विवशताएं हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजे उत्तर प्रदेश में जो उभर कर सामने आए हैं, उसमें यह दुख के साथ कहना पड़ा है कि यादव बाहुल्य सीटों पर भी सपा को उनका वोट नहीं मिला। बसपा सुप्रीमो ने सूबे में 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में अकेले लड़ने की जो बात कही है, वह भी चौंकाने वाली इसलिए है क्योंकि बसपा आमतौर पर उपचुनाव नहीं लड़ती। बसपा और सपा के बीच तनातनी की खबरों के बीच भाजपा नेताओं का कहना है कि वह तो पहले ही कह रहे थे कि यह गठबंधन चलने वाला नहीं है। गठबंधन टूटने की भविष्यवाणी प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान ही कर दी थी। एटा और बरेली की 20 अप्रैल की रैली में मोदी ने कहा था कि परिणाम आने के बाद बुआ-बबुआ की दोस्ती टूट जाएगी। सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा कि गठबंधन पर हम बसपा का आधिकारिक रुख सामने आने के बाद ही तय करेंगे कि हमें क्या करना है। जानकारों का मानना है कि भाजपा के लिए यह स्थिति और भी फायदेमंद साबित हो सकती है। जब बसपा और सपा मिलकर भी भाजपा का सामना नहीं कर पाए तो अलग-अलग चलकर सामना कैसे कर पाएंगे? अखिलेश अब सपा के अलग हुए गुटों को मिलाकर अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं पर अखिलेश के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण बात यह है कि उनके कहने के बावजूद सपा के कोर वोटरों ने गठबंधन के उम्मीदवार को वोट नहीं दिया?

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