Wednesday 26 June 2019

क्या मायावती की बसपा पर हावी हो रहा है भाई-भतीजावाद?

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने ना-ना करते हुए रविवार को पार्टी के मुख्यालय पर संगठन के देशभर के जिम्मेदार नेताओं व पदाधिकारियों की बैठक में पार्टी को पूरी तरह से परिवार के हवाले कर दिया है। उन्होंने भाई आनंद कुमार को पार्टी का दोबारा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया। बहन जी इस कदम को उठाने के लिए लंबे समय से इंतजार कर रही थीं। वह इंतजार कर रही थीं लोकसभा चुनाव खत्म होने का। वह चुनाव से पहले ऐसा करने से संकोच कर रही थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि लोकसभा चुनाव से पहले ऐसा कदम उठाने से उनके ऊपर भी भाई-भतीजावाद की राजनीति का आरोप लगेगा। मगर अनौपचारिक रूप से दोनों ही पार्टी के कामकाज में काफी सक्रिय थे। बसपा सुप्रीमो ने इस ऐलान के साथ अपने बाद पार्टी में नम्बर दो के साथ नम्बर तीन की पोजीशन भी तय कर दी। बसपा में अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष सबसे ताकतवर माना जाता है। मायावती खुद भी अध्यक्ष बनने से पहले उपाध्यक्ष रही हैं। अब उन्होंने भाई आनंद को दोबारा यह जिम्मेदारी सौंप दी है। आनंद को पहले भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन तब परिवारवाद का आरोप लगने पर उन्हें हटा दिया था। बसपा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बाद सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नेशनल कोऑर्डिनेटर की मानी जाती है। आनंद कुमार मायावती के कार्यक्रमों में अहम भूमिका निभाते थे। इसके साथ ही वह पार्टी के लिए फंड जुटाने का काम करते हैं। वहीं मायावती ने आकाश को अपनी रैलियों में भी जगह दी और मंचों पर साथ बिठाया, राजनीतिक मंचों पर मायावती और आकाश के बीच कम होती दूरी यह संकेत दे रही थी कि मायावती आकाश को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में चुन लेंगी। इसके कारण पर गौर करें तो मायावती की बढ़ती उम्र का एक बड़ा कारण है। इसके साथ ही वह पार्टी के जरूरी मसलों पर बाहरी लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहती हैं। पार्टी के लिए फंड जुटाना भी ऐसा ही एक काम है जिसके लिए वह किसी बाहरी व्यक्ति के भरोसे नहीं रहना चाहती हैं। एक जमाने में उन्होंने राजाराम गौतम को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया था लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया। अब उन्होंने राजाराम को अपना नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया है। इसके साथ ही आकाश को भी यह पद दिया है। कांशीराम ने जब बहुजन समाज पार्टी बनाई थी तो उसकी बुनियाद में संगठन था जिसमें दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक शामिल थे। बाद में इसे एक पार्टी का रूप दिया गया जिसमें 85 प्रतिशत जनता के प्रतिनिधित्व की बात की जाती थी। लेकिन मायावती ने सत्ता के लिए हर तरह के समझौते किए। इस तरह उन्होंने सर्व समाज का नारा दिया और ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ने के लिए सतीश मिश्रा को अपने साथ मिलाया। ऐसे में मायावती सत्ता के लिए समय-समय पर हर संभव गठजोड़ करती रही हैं। इस तरह उनकी पार्टी की छवि प्रभावित हुई और उनकी पार्टी को वोट देने वाला दलित समाज बसपा से दूर होकर भाजपा समेत दूसरे दलों के करीब चला गया। मायावती अब सिर्प अपने रिश्तेदारों को नेता बनाकर रह गई हैं। दलित समाज को कांशीराम की तरह अब बहन जी पर विश्वास नहीं रहा।

-अनिल नरेन्द्र

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