Friday, 28 June 2019

मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाएं

झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में भीड़ ने तबरेज अंसारी नाम के एक युवक को खंभे से बांधकर पीटा। मोटर साइकिल चोरी के संदेह में पिटाई करते हुए भीड़ ने उसे जय श्रीराम और जय हनुमान के नारे लगाने को मजबूर किया। सुबह पुलिस ने युवक को अस्पताल पहुंचाने के बजाय हवालात में डाल दिया। बेचैनी की शिकायत पर मारपीट के चौथे दिन जब उसे अस्पताल ले जाया गया तो पांचवें दिन उसकी मौत हो गई। मामला सोमवार को संसद में गूंजा तो सरकार ने दो थाना प्रभारियों को सस्पेंड कर दिया। एक डीएसपी के नेतृत्व में जांच के लिए एसआईटी टीम गठित कर दी। अब तक कुल आठ आरोपी गिरफ्तार हो गए हैं। इस घटना की जितनी भी निन्दा की जाए कम है। झारखंड की इस घटना को केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने जघन्य अपराध बताते हुए यह सही ही कहा है कि लोगों को पीटकर नहीं, बल्कि गले लगाकर ही श्रीराम का जयघोष कराया जा सकता है। जिस तरह भीड़ ने तबरेज को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया, ठीक नहीं किया। चोरी के कथित अपराध पर व्यक्ति को अधमरा करना कानून से खिलवाड़ करने जैसा है। और उस पर पुलिस का रवैया देखिए। उन्हें तबरेज को अस्पताल ले जाना चाहिए था या हवालात में उस हालत में फेंकना? तबरेज की हत्या का जिम्मेदार कौन है। यह अराजकता के नग्न प्रदर्शन के अलावा और कुछ नहीं। यह सभी के लिए चिन्ता की बात होनी चाहिए कि भीड़ की Eिहसा के वैसे मामले बढ़ते जा रहे हैं जिनमें कानून व्यवसथा को धत्ता बताया जाता है। हमारे समाज में हिंसा इतनी बढ़ गई है कि अब तो पुलिस, डॉक्टर और अन्य सरकारी, गैर-सरकारी लोग भी भीड़ की हिंसा का शिकार बनने लगे हैं। इस तरह की घटनाएं मॉब लिंचिंग यही बताती हैं कि ऐसा करने वाले तत्वों को न तो पुलिस का डर है, न शासन का और न ही सरकार का। सरकार पर उन्हें संरक्षण देने के आरोप भी आए दिन लगते रहते हैं। कानून अपने हाथ में लेकर इन अराजक तत्वों को ऐसा व्यवहार करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसा व्यवहार देश की शांति व्यवस्था को चुनौती देने के साथ ही देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि को प्रभावित करता है। यह केंद्र और राज्य सरकारों का फर्ज बनता है कि ऐसी भीड़ की हिंसा को हर हालत में रोकें। इन अराजक तत्वों को किसी प्रकार का संरक्षण नहीं मिलना चाहिए। इन्हें यह स्पष्ट बताना होगा कि अगर आप कानून को अपने हाथ में लेंगे तो सरकार सख्त कदम उठाएगी। दुखद पहलू यह भी है कि पुलिस प्रशासन भी इन अराजक तत्वों से हमदर्दी रखता है और नरमी का बर्ताव करता है। क्या पुलिस इस बात का जवाब दे सकती है कि अधमरी हालत में तबरेज को अस्पताल ले जाना चाहिए था या हवालात में डालना चाहिए था? जब हिंसा का शिकार हुआ शख्स अल्पसंख्यक वर्ग का हो तो मामला और चिन्ताजनक बन जाता है। कोई सभ्य समाज ऐसी हरकतों का समर्थन नहीं कर सकता। कसूरवारों को पकड़ा जाए और कानून के मुताबिक सख्त सजा दी जाए।

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