17वीं लोकसभा के पहले ही सत्र में कामकाज के पहले ही दिन सरकार
ने तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) बिल नए सिरे से लोकसभा में पेश कर दिया। कानून
मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बिल पेश करते हुए कहा कि पीड़ित महिलाएं सुप्रीम कोर्ट के
फैसले के बाद भी न्याय की गुहार लगा रही हैं? देश में तीन तलाक
के 543 मुकदमे 2017 में ही दर्ज हुए।
239 मामले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आए हैं। पिछली सरकार की यह बिल
पास कराने की दो कोशिशें राज्यसभा में नाकाम हो चुकी हैं। हालांकि सरकार सितम्बर
2018 तथा नौ फरवरी 2019 में इसे अध्यादेश के जरिये लागू कर चुकी
है। यह कानून बनने पर मुस्लिम महिलाओं को एक साथ तीन तलाक कहकर रिश्ता खत्म करना अपराध
की श्रेणी में आ जाएगा। पति के लिए तीन साल सजा का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि यह
बिल नारी के सम्मान के लिए है, किसी धर्म के लिए नहीं। एआईएमआईएम
के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को संविधान विरोधी करार दिया। उन्होंने कहा कि
यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। सरकार
की नीयत पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की हमदर्दी सिर्प मुस्लिम महिलाओं
के साथ क्यों है? सरकार ने सबरीमाला मामले में केरल की हिन्दू
महिलाओं में हमदर्दी क्यों नहीं की? ओवैसी ने कहा कि अगर किसी
गैर-मुस्लिम पर केस डाला जाए तो उसे एक साल की सजा और मुसलमान
को तीन साल की सजा, यह अनुच्छेद 14 और
15 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के जरिये सरकार मुस्लिम
महिलाओं का हित नहीं बल्कि उन पर बोझ डाल रही है। सरकार को उसे वापस लेना चाहिए। इस
मुद्दे पर कांग्रेस अपने पुराने रुख पर कायम है। पार्टी का कहना है कि वह तीन तलाक
का समर्थन नहीं कर रही है पर यह विधेयक संविधान के खिलाफ है, इसलिए वह इसका विरोध कर रही है। शशि थरूर ने कहा कि इस विधेयक में सिविल और
क्रिमिनल कानून को मिला दिया गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार की नजर में तलाक
देकर पत्नी छोड़ देना गुनाह है तो यह सिर्प मुस्लिम समुदाय तक ही सीमित क्यों?
यह कानून सभी पर लागू होना चाहिए। सरकार इस विधेयक के जरिये मुस्लिम
महिलाओं को फायदा नहीं पहुंचा रही है, बल्कि सिर्प मुसलमान पुरुषों
को ही सजा दे रही है। उन्होंने आगे कहा कि तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट गैर-कानूनी घोषित कर चुका है, तो सरकार सजा किस बात की दे
रही है? ओवैसी समेत कुछ सदस्यों के विरोध के चलते बिल पर मत-विभाजन हुआ जिसमें 186 पक्ष में वोट पड़े और
74 विपक्ष में। हमें लगता है कि तीन तलाक पर व्यापक समर्थन है पर उसके
वर्तमान स्वरूप पर एतराज है। खासकर पति को सजा के प्रावधान से। जाहिर है कि अगर पति
तीन साल के लिए जेल चला जाएगा तो पीछे से परिवार की परवरिश कैसे होगी? सरकार को कूल दिमाग से विधेयक में जरूरी संशोधन करने चाहिए ताकि यह बिल पास
हो सके।
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