Tuesday 25 June 2019

एक देश-एक चुनाव ः दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्प

एक देश-एक चुनाव के विचार को फिलहाल तो सभी दलों का समर्थन नहीं मिल रहा है और न ही इस पर आम सहमति ही बन पा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में देश के लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का प्रस्ताव विपक्ष को रास नहीं आया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बसपा और डीएमके जैसे बड़े विपक्षी दलों के नेता इस बारे में बुधवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक से नदारद रहे। बैठक में 24 दलों के नेता या उनके लिखित प्रस्ताव पहुंचे। इनमें भी ज्यादातर सत्ताधारी एनडीए के घटक दल ही थे। हालांकि प्रधानमंत्री की ओर से 40 दलों को न्यौता दिया गया था। एक देश-एक चुनाव, नया और अच्छा विचार है। इससे खर्च बचेगा। बार-बार आचार संहिता के चक्कर में काम नहीं रुकेगा। सब कुछ सही है, लेकिन न तो इसमें काले धन पर रोक लगेगी और न ही हमारा चुनाव आयोग ऐसा कराने में सक्षम दिखता है। गुजरात में दो राज्यसभा सीटों का चुनाव होना है और चुनाव आयोग इन्हें एक साथ नहीं करवा रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। हाल ही के हमारे सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया को देखिए। लोकसभा चुनाव सात चरणों में और लगभग 38 दिन में हुआ था। जब अकेले लोकसभा चुनाव को इतने दिन लग सकते हैं तो आप खुद ही अंदाजा लगा लें कि लोकसभा और तमाम विधानसभाओं के एक साथ चुनाव में कितने दिन लगेंगे? विधि आयोग के मुताबिक लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ दो चरणों में कराया जा सकता है लेकिन इसके लिए एक कानूनी अड़चन को दूर करना होगा। इसके लिए संविधान के कम से कम दो प्रावधानों में संशोधन करना होगा और इसे सभी राज्यों में पूर्ण बहुमत से पारित कराना होगा। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार यह सुझाव अच्छा है लेकिन अमल में लाना उतना ही मुश्किल बता रहे हैं। कानूनी विशेषज्ञों की राय से सहमति जताते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन कृष्णामूर्ति ने कहा कि एक देश-एक चुनाव का ख्याल लुभावना तो है लेकिन इसको साकार करना मुश्किल होगा। इसके लिए संविधान संशोधन ही एकमात्र रास्ता है। बसपा की मुखिया मायावती ने कहा कि यह सरकार का नया ढकोसला है और सिर्प ध्यान भटकाने के लिए है। बैठक अगर ईवीएम पर होती तो मैं जरूर पहुंचती। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना था कि केंद्र सरकार पहले लोकसभा चुनाव में जनता से किए गए वादे पूरे करे, इसके बाद अन्य मुद्दों में उलझे। कांग्रेस ने कहा है कि अगर सरकार चुनाव सुधारों पर कोई कदम उठाना चाहती है तो वह पहले संसद में चर्चा कराए। कांग्रेस ने भाजपा पर दोहरा मापदंड अपनाने का भी आरोप लगाया। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहाöयह विचार असंवैधानिक और संघीय व्यवस्था के खिलाफ है, यह संसदीय सिस्टम की जगह राष्ट्रपति शासन लाने की कोशिश है। दूसरी ओर सरकार के पक्ष की दलीलों को नकारा भी नहीं जा सकता। अभी हर साल पांच-सात राज्यों में विधानसभा चुनाव होते हैं। अगर लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ हों तो सरकार का चुनाव खर्च एक-चौथाई रह जाएगा। हर साल सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाबलों को अलग-अलग राज्यों में चुनाव के लिए तैनात करना पड़ता है। ऐसा करने से बचा जा सकेगा। वे नियमित काम सही से कर पाएंगे। चुनाव के लिए बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू नहीं करनी पड़ेगी। नीतिगत फैसले लिए जा सकेंगे। कहीं भी विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे। काले धन पर भी रोक लगेगी, क्योंकि चुनाव के दौरान काले धन का इस्तेमाल खुलेआम देखा गया है। हमें लगता है कि हाल की परिस्थितियों में एक देश-एक चुनाव संभव नहीं लगता। संभव बनाया भी जाता है तो कुछ सालों बाद ही ऐसी स्थिति बनेगी। इस मुद्दे पर अभी आगे गंभीरता से विचार करना होगा। विपक्ष की आपत्तियों को समझना होगा और आम सहमति बनानी होगी।

-अनिल नरेन्द्र

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