Friday, 28 June 2019

मुख्य न्यायाधीश के स्वागतयोग्य सुझाव

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक महत्वपूर्ण पत्र लिखा है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में 43 लाख से अधिक लंबित मामलों के निपटारे के लिए मुख्य न्यायाधीश ने अपने पत्र में सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ दो संवैधानिक संशोधनों का अनुरोध किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि एक तो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की संख्या में बढ़ोतरी हो जोकि अभी 31 है। दूसरा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष हो। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिए तीसरे पक्ष में संविधान के अनुच्छेद 128 और 224ए के तहत सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के कार्यकाल की पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने की मांग की है। ऐसा करने से वर्षों से लंबित मामलों का निपटारा किया जा सकता है। इस समय सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों का कोई पद खाली नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में अभी 31 न्यायाधीश हैं जबकि कोर्ट में कुल 58669 मामले लंबित हैं। नए मामलों के आने की वजह से यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। जजों की संख्या कम होने से महत्वपूर्ण मामलों पर फैसले लेने के लिए पर्याप्त संख्या में संविधान बैंचों का गठन नहीं हो पा रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने समय के अनुरूप सुझाव दिया है और उसके लिए संवैधानिक रास्ते भी सुझाए हैं। मुख्य न्यायाधीश बिल्कुल सही कह रहे हैं कि न्यायाधीशों के अभाव में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित कानून से संबंधित कई मामलों में संविधान पीठ गठित करना संभव नहीं हो रहा है। वास्तव में हम सब न्यायालयों में लंबित मुकदमों के अंबार की चर्चा तो करते हैं पर इनके निपटारे के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाते। वैसे लंबे समय बाद सर्वोच्च न्यायालय के अनुरोध पर नरेन्द्र मोदी सरकार ने निर्धारित पदों पर नियुक्तियां की हैं यानि इस समय एक भी पद रिक्त नहीं है। किन्तु अब मुख्य न्यायाधीश इनकी संख्या बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। इसी तरह उनका कहना है कि अगर संविधान संशोधन कर उच्च न्यायालयों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष से 65 वर्ष कर दी जाए तो इसका भी असर होगा। 25 उच्च न्यालालयों में न्यायाधीशों के 1079 पद स्वीकृत हैं मगर इनमें 399 रिक्त पड़े हैं। जाहिर है कि यदि इन पदों पर नियुक्तियां हो जाएं और मुख्य न्यायाधीश के सुझाव के अनुरूप उनकी सेवानिवृत्ति की अवधि 62 से 65 वर्ष कर दी जाए तो लंबित मामलों के निपटारे में तेजी लाई जा सकती है। जब सर्वोच्च न्यायालय में जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र 65 वर्ष की होती है तो उच्च न्यायालयों में भी ऐसा क्यों नहीं हो सकता? उम्र ज्यादा होने से उनमें परिपरक्वता आती है और नवोन्मेषी विचारों के अनुसार वे मुकदमों पर काम करते हैं। हमारा भी मानना है कि प्रधानमंत्री को इन सुझावों में जितना संभव हो उसे स्वीकार करने के लिए शीघ्र कदम उठाएं।

-अनिल नरेन्द्र

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