Wednesday 30 September 2015

सीबीआई की कार्रवाई पर एतराज नहीं, समय पर है

हमारी राय में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के घर सीबीआई का उनकी लड़की की शादी के दिन छापा मारना सही नहीं है। छापा मारने की कार्रवाई अपनी जगह है पर जिस दिन उनकी लड़की की शादी हो रही हो उसी दिन छापे की तारीख मिले समझ से बाहर है। इट इज डेफीनेटली इन बैड टेस्ट। सीबीआई ने वीरभद्र सिंह के शिमला स्थित सरकारी घर और 12 अन्य स्थानों पर शनिवार को छापे मारे। पिछले दो दशक में हिमाचल के किसी भी राजनेता के खिलाफ  यह छापेमारी सबसे बड़ी थी। कथित आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में यह छापे मारे गए। प्रारंभिक जांच से खुलासा हुआ है कि वीरभद्र ने 2009-2012 (यूपीए शासनकाल) के दौरान पद पर रहते हुए कथित तौर पर 6.03 करोड़ रुपए अपने और अपने परिजनों के सदस्यों के नाम से अर्जित किए जो उनके आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक है। ऐसा कहना है देव प्रीत सिंह का जो सीबीआई के प्रवक्ता हैं। जब सीबीआई के डीआईजी के नेतृत्व में 25 अफसरों और कर्मचारियों की टीम होली लॉज पहुंची तो उस समय मुख्यमंत्री अपनी बेटी की शादी समारोह में संकट मोचन मंदिर जाने की तैयारी कर रहे थे। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह होली लॉज में बेटी की शादी पर आए रिश्तेदारों और बारातियों को लंच करवा रहे थे। इसी दौरान उन्होंने सीबीआई के लोगों से कहा कि यू आर इन्वाइटेड गेस्ट, लेकिन बेटी की शादी है आप भी लंच कर लो। हालांकि सीबीआई की टीम ने लंच करने से इंकार कर दिया। अपने आवास पर छापा पड़ने के एक दिन बाद वीरभद्र सिंह ने रविवार को कहा कि उनके पास छिपाने को कुछ नहीं है। मैंने शादी समारोह के लिए घर के दरवाजे सीबीआई के लिए खोल दिए तथा उनसे कहा कि वे जो कुछ भी चाहते हैं, तलाश कर लें क्योंकि मेरे पास छिपाने को कुछ नहीं है। अपने पद पर मौजूद किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ एक अभूतपूर्व कार्रवाई करते हुए सीबीआई ने शिमला में सिंह के आधिकारिक आवास पर और 12 अन्य स्थानों पर छापा मारा। पिछले दो दशक में प्रदेश के किसी बड़े राजनेता पर सीबीआई की यह दूसरी बड़ी छापेमारी है। 19 साल पहले मंडी में सीबीआई ने तत्कालीन केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम के खिलाफ कार्रवाई करते हुए छापा मारा था। हिमाचल सरकार के पांच मंत्रियों ने शनिवार को शिमला में पत्रकार वार्ता में मुख्यमंत्री के पक्ष में खड़ा होने का दावा किया। इन मंत्रियों ने वीरभद्र सिंह के आवास पर सीबीआई व ईडी के छापों के समय पर सवाल खड़ा करते हुए आरोप लगाया कि केंद्र सरकार वीरभद्र सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने इसे प्रजातंत्र की हत्या करार देते हुए इसे अघोषित आपातकाल करार दिया। हमें सीबीआई की कार्रवाई पर एतराज नहीं, कार्रवाई के समय पर है।

-अनिल नरेन्द्र

बिहार विधानसभा चुनाव ः भाजपा टिकट दो करोड़ में?

बिहार के भाजपा सांसद आरके सिंह ने बिहार चुनाव के ऐन मौके पर टिकट बंटवारे को लेकर अपनी ही पार्टी को कठघरे में खड़ा कर दिया है। आरा से पूर्व सांसद और पूर्व गृह सचिव आरके सिंह ने अपनी ही पार्टी पर पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप लगाया है। उन्होंने शनिवार को कहा कि पार्टी के मौजूदा स्वच्छ छवि के विधायकों और वास्तविक कार्यकर्ताओं को नकार कर अपराधियों को टिकट बेचा गया। सिंह ने सवाल किया कि अपराधियों को टिकट देने से भाजपा और लालू प्रसाद यादव में क्या फर्प रह गया है, जिन पर पार्टी जंगल राज को लेकर निशाना साध रही है। शनिवार को भाजपा सांसद आरके सिंह के पैसे लेकर टिकट देने संबंधी आरोप के बाद पार्टी अभी डैमेज कंट्रोल में ही जुटी थी कि रविवार को सीवान के रघुनाथपुर से विधायक विक्रम पुंवर ने पार्टी पर बाहुबली मो. शहाबुद्दीन के शूटर को दो करोड़ रुपए में टिकट बेचने का आरोप लगाकर भूचाल ला दिया। दरअसल विक्रम पुंवर को इस बार चुनाव लड़ने के लिए पार्टी ने टिकट नहीं दिया। उनकी जगह मनोज सिंह को टिकट दिया गया है। विक्रम ने कहा कि जिस मनोज को टिकट दिया गया है वह माफिया है। आरके सिंह ने भी पुंवर के आरोप को सही बताया। विक्रम पुंवर ने कहा कि मनोज सिंह उनकी हत्या करवा सकता है। विक्रम ने पीएम मोदी को भी नहीं बख्शा। कहा कि नरेंद्र मोदी का नारा लगाना महंगा पड़ा। भाजपा ने आरके सिंह के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि हर चुनाव में टिकट बंटवारे के बाद इस तरह के आरोप लगते हैं। जो भी ऐसे आरोप  लगाते हैं उन्हें पूरे तथ्यों के साथ बात रखनी चाहिए। राजनाथ सिंह ने कहा कि भाजपा में सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए निष्पक्ष तरीके से टिकट वितरण किया गया है। आरके सिंह और विक्रम पुंवर के बयानों से विपक्षी पार्टियों को घर बैठे मुद्दा मिल गया है। बिहार चुनाव में पार्टी की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी जद (यू) ने इस मौके पर न चूकते हुए आरोप लगाया कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह किसी भी तरीके से चुनाव जीतना चाहते हैं। आरके सिंह ने कार्यकर्ताओं की ही भावना व्यक्त की है। भाजपा ने न सिर्प टिकटों को बेचा है बल्कि बाहुबलियों को भी थोक भाव में उम्मीदवार बनाया है। वहीं तीसरे मोर्चे में शामिल पप्पू यादव ने कहा कि मुझे छोड़कर सबकी दुकान खुली है। हर पार्टी पैसा लेकर अपराधियों को टिकट दे रही है। भाजपा की सहयोगी लोजपा ने भी आरके सिंह के इस बयान से सहमति जताई है कि खराब छवि के लोगों को टिकट नहीं मिलना चाहिए। लोजपा नेता चिराग पासवान ने कहा कि वह भाजपा सांसद की इस चिन्ता से सहमति रखते हैं कि आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को टिकट नहीं मिलना चाहिए और ऐसे लोगों को राजनीति में घुसने से रोका जाना चाहिए। आरके सिंह और विक्रम पुंवर के आरोपों में कितनी सच्चाई है यह तो वही जाने या भाजपा जाने पर इस प्रकार के प्रचार से पार्टी को नुकसान पहुंचता है। पार्टी विद ए डिफरेंस को ऐसे हथकंडे नहीं अपनाने चाहिए। यह बैठे-बिठाए विपक्ष को सियासी तीर प्रदान करता है। एक तरफ तो प्रधानमंत्री अमेरिका में धूम मचा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ महज चुनाव जीतने के लिए पार्टी अपराधियों और माफियों को टिकट बांट रही है?

Tuesday 29 September 2015

अभागे साइकिल चालक मजदूरी करने वाले नरेन को न्याय मिलेगा?

बात 16 सितम्बर शनिवार रात करीबन 9.45 की है। सुदर्शन चैनल पर एक  डिबेट में हिस्सा लेने के बाद मैं घर लौट रहा था। पुराने किले के सामने जहां बोटिंग होती है एक ऑरेंज रंग की कलस्टर बस खड़ी थी और बहुत भीड़ इकट्ठी थी। हमने देखा कि बस के नीचे साइकिल फंसी हुई है। मेरे साथ मेरा ड्राइवर राजेश था। हमने गाड़ी साइड पर खड़ी की और राजेश ने उतरकर पूछा कि क्या हुआ? तब उसने देखा कि शराब के नशे में एक आदमी को भीड़ ने घेर रखा था। वह उस बस संख्या डीएल1पीसी5782 का ड्राइवर था जो नशे में धुत्त था। पता चला कि शराब के नशे में एक युवक जो साइकिल पर आईटीओ तिलक मार्ग स्थित हनुमान प्रतिमा के सामने डब्ल्यू प्वाइंट से गुजर रहा था तभी आईटीओ से नो सर्विस लिखी यह कलस्टर बस के ड्राइवर ने शराब के नशे में धुत्त होकर इस 24 वर्षीय नरेन को साइकिल समेत ऐसी टक्कर मारी कि नरेन और उसकी साइकिल बस के नीचे आ गई। बस ड्राइवर शराब के नशे में इतना धुत्त था कि उसे यह भी पता नहीं चला कि नरेन का शव बस की टक्कर के बाद कुछ दूर तक घसीटता रहा और साइकिल तो बस में उलझकर पुराना किला स्थित बोट क्लब तक पहुंच गई। हादसा करने के बाद वह चालक बस को भगाता चला गया जब वह पुराने किले के पास पहुंचा तो पीछा करते हुए ऑटो चालक व जनता ने उसे जबरन रोका। नरेन का शव तो किसी तरह बस के नीचे से निकल गया पर साइकिल फंसी रही। नई दिल्ली के थाना तिलक मार्ग के अंतर्गत 24 वर्षीय नरेन अपनी ताई के यहां रहता था और सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी करता था और 16 सितम्बर की रात वह अपनी ड्यूटी खत्म कर घर लौट रहा था। तिलक मार्ग थाने ने ड्राइवर के खिलाफ आईपीसी की धारा 279, 304() के तहत मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। ड्राइवर की पहचान थाना बाबरी, जिला शामली, उत्तर प्रदेश के रूपेन्द्र के रूप में हुई है। इस मामले में सबसे हैरतअंगेज बात यह है कि इतना बड़ा हादसा होने के बावजूद न तो किसी समाचार पत्र में और न ही किसी टीवी चैनल में इस हादसे के बारे में एक शब्द या रिपोर्ट दिखाई गई है। इससे पता चलता है कि एक गरीब मजदूर की हत्या और हमारे मीडिया के लिए कोई महत्व नहीं रखती। अगर इस अभागे नरेन की जगह कोई बड़ा नामी आदमी होता तो आप हादसे की कवरेज को देखते। हम नरेन को न्याय दिलाने के लिए वचनबद्ध हैं और हर स्तर पर उसको हक दिलाने के लिए तत्पर हैं। उसे पर्याप्त मुआवजा मिलना चाहिए। गत दिनों दिल्ली के एक मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) ने टक्कर मारने वाले ट्रक की बीमाकर्ता कंपनी नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को निर्देश  दिया है कि 2008 में सड़क दुर्घटना में मारे गए दिल्ली निवासी गोविंद राय अरोड़ा के परिवार के सदस्यों को 5,00,248 (पांच लाख दो सौ अड़तालीस) रुपए अदा किया जाए। एमएसीटी की पीठासीन अधिकारी बरखा गुप्ता ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं दिखाई दिया कि मृतक अपना स्कूटर तेजी से या लापरवाहीपूर्ण तरीके से चला रहा था या कथित दुर्घटना मृतक की गलती की वजह से हुई थी और इसके बजाय ऑन रिकार्ड यह दिखाई दिया कि ट्रक चालक लापरवाही से ट्रक चला रहा था और उसकी वजह से दुर्घटना हुई जिसमें पीड़ित की मृत्यु हो गई। शराब पीकर वाहन चलाने वालों के खिलाफ दिल्ली ट्रैफिक पुलिस समय-समय पर अभियान भी चलाती रहती है, लेकिन लगता है कि वाहन चालकों को इसका भी कोई भय नहीं है। जहां पिछले पूरे साल में शराब पीकर वाहन चालकों के खिलाफ 18,645 लोगों का चालान किया गया था वहीं इस साल अब तक 17,992 मामलों में चालान काटा जा चुका है। शराब पीकर वाहन चलाने वालों की बढ़ती संख्या की मुख्य वजह इसके लिए ज्यादा सख्त सजा का नहीं होना भी है। ऐसे चालकों को पता है कि वे जुर्माने और कुछ महीने की सजा के बाद आसानी से छूट जाएंगे। ऐसे में उन्हें पुलिस का कोई भय नहीं रहता। पुलिस भी ऐसे हादसों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेती। जब तक पुलिस और कानून ऐसे मामलों में सख्ती नहीं करते नरेन जैसे गरीब-मजदूर बसों, ट्रकों के नीचे पिसते रहेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

सपा और भाजपा में दंगा कराने की होड़ थी ः जस्टिस सहाय

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 2013 में दंगों की जांच करने वाली जस्टिस विष्णु सहाय ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल राम नाइक को सौंप दी है। विष्णु सहाय आयोग ने उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी और केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को जनमत के कठघरे में ला खड़ा किया है। हालांकि आयोग के निष्कर्षों के बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ अभी तो नहीं बताया जा सकता लेकिन मीडिया को मिली जानकारियों से संकेत जरूर मिलता है कि आयोग ने भाजपा और सपा के कुछ नेताओं को हिंसा भड़काने का दोषी पाया है। रिपोर्ट तैयार करने के लिए आयोग पर किसी का राजनीतिक दबाव नहीं था। पूरी रिपोर्ट अदालत की प्रक्रिया की तरह तथ्यों की बारीकी से पड़ताल करने के बाद ही बनाई गई है। मुजफ्फरनगर दंगों की जांच के लिए गठित आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति विष्णु सहाय ने गत सप्ताह यह बात कही। उन्होंने कहा कि वह बाल ठाकरे से लेकर मायावती तक के मुकदमों की सुनवाई कर चुके हैं। लिहाजा किसी तरह के दबाव में आने का सवाल ही नहीं उठता। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गत शुक्रवार जयपुर में अखिल भारतीय युवा महासभा के दो दिवसीय सम्मेलन के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा कि जस्टिस विष्णु सहाय कमीशन की रिपोर्ट सरकार को मिली है और सरकार अब इसे विधानसभा में पेश करेगी। गौरतलब है कि 2013 में इन दंगों को रोकने में नाकामी को लेकर सपा सरकार आलोचनाओं के केंद्र में आई है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने दंगा पीड़ितों के पुनर्वास के मामले में अखिलेश यादव सरकार को फटकार लगाई थी, लेकिन अब सपा को अधिक कठिन प्रश्नों के उत्तर देने होंगे। सहाय आयोग का गठन अखिलेश सरकार ने ही किया था। उसे अगर दंगे के पीछे कुछ सपा नेताओं के भी हाथ होने के सबूत मिले हैं, तो इससे पार्टी के लिए अपना बचाव करना बेहद मुश्किल हो सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले हुए इन दंगों के बाद यूपी में भाजपा और उसके सहयोगियों ने 80 में से 73 सीटों पर कब्जा जमाया। जस्टिस सहाय का कहना है कि यदि दंगे न होते तो सियासी तस्वीर बदल सकती थी। सोशल मीडिया में एक वीडियो बड़े व व्यापक तौर पर फैला। वह भी दंगों का बड़ा कारण था। यह जानते हुए कि वीडियो बाहर का है, उसे जानबूझ कर फैलाया गया। खास समुदाय के लोगों के घरों और आसपास की दीवारों पर रातभर भड़काऊ नारे क्यों लिखे जा रहे थे? अफवाह फैलाई गई कि पाकिस्तान के खास आतंकी छिपे हैं। इस आधार पर बहुसंख्यक समुदाय को गोलबंद किया गया। 27 अगस्त 2013 को कवाल गांव में लड़की से एक युवक ने छेड़खानी की थी। इस पर लड़की के दो भाइयों ने उसकी हत्या कर दी थी। जवाब में मारे गए व्यक्ति के भाइयों ने हत्या करने वाले लड़की के दोनों भाइयों को मार दिया। मलिक बिरादरी की खाप ने सात सितम्बर को महापंचायत बुलाई। आयोजन में भाग लेने वालों पर हुए हमलों और जवाबी कार्रवाई के बाद फुल स्केल पर दंगे भड़क गए और 65 लोग मारे गए। सैकड़ों अल्पसंख्यक अपने घर छोड़ने पर मजबूर हुए और कैंपों में रहने लगे। मुजफ्फरनगर में इससे पहले कभी भी दंगा नहीं हुआ था। 1947 के विभाजन के समय पर भी यह क्षेत्र दंगा मुक्त था। उत्तर प्रदेश में दंगों ने नए रिकार्ड तोड़े हैं। आखिरी रिपोर्ट तक 130 से ऊपर दंगे हो चुके हैं। सपा सरकार के ताकतवार मंत्री आजम खान भी इस मामले में कठघरे में थे। उन पर लड़की के भाइयों की हत्या में शामिल आरोपियों को थाने से छुड़वाने का आरोप है। यह रिपोर्ट जारी करने में देर हुई तो अटकलों का बाजार गर्म होगा, इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार को इसे सार्वजनिक करने में तनिक भी देर नहीं करनी चाहिए। अगर इसमें सचमुच वही निष्कर्ष है जैसी खबरें आई है तो दोनों भाजपा और सपा को विश्वसनीय स्पष्टीकरण पेश करना चाहिए। उनसे अपेक्षा रहेगी कि जिन नेताओं की इन दंगों में भूमिका संदेह के घेरे में आई है उन पर सख्त कार्रवाई होगी। प्रशासनिक कमियों पर भी विशेष ध्यान होना चाहिए। सपा सरकार की साख दांव पर है।

Sunday 27 September 2015

फिर विवादों में घिरी राहुल गांधी की विदेश यात्रा

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के विदेश दौरों और विवादों का चोली-दामन जैसा साथ हो गया है। असल में पिछली बार जब राहुल 56 दिनों की छुट्टी पर गए थे तब पार्टी की चुप्पी के कारण विवाद हुआ था, इसलिए इस बार राहुल के विदेशी दौरे पर अटकल शुरू होते ही कांग्रेस ने बुधवार को औपचारिक बयान जारी कर कहा कि राहुल अमेरिका में कोलराडो के एस्पेन में एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने गए हैं जिसका आयोजन जाने-माने पत्रकार चार्ली रोज करते हैं। भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा ने अमेरिकी वेबसाइट `अमेरिकन बाजार' के हवाले से कहा कि एस्पेन आइडियाज फेस्टिवल का आयोजन 25 जून से चार जुलाई के बीच हो चुका है। ऐसे में कांग्रेस उस आयोजन का नाम लेकर देश को भ्रमित कर रही है। एक और वेबसाइट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इस वेबसाइट ने आयोजकों से बात की तो पता चला कि 2005 से अब तक हर साल होने वाले वीकेंड विद चार्ली कांफ्रेंस में कभी राहुल नाम के शख्स ने हिस्सा नहीं लिया। भाजपा जहां राहुल की अमेरिका यात्रा को बिहार चुनाव से जोड़कर सहयोगियों के दबाव में दिया गया देश निकाला बता रही है वहीं कांग्रेस को नित नए तथ्यों और तर्कों के साथ सफाई और बचाव में आना पड़ रहा है। बिहार में कांग्रेस लालू और नीतीश कुमार के गठबंधन की भागीदारी है। इस नाते राहुल गांधी की सार्वजनिक जरूरत इस समय बिहार में होनी चाहिए। उनके दल को सीटें भी उसकी जमीनी हकीकत व हैसियत से ज्यादा मिली हैं। लेकिन इन उम्मीदवारों को जिताने की चिन्ता छोड़कर राहुल अमेरिका चले गए हैं और ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब सियासी मजबूरियों को दरकिनार करते हुए राहुल समय पर खिसक गए हों। इसी तरह संसद के बेहद महत्वपूर्ण सत्र को छोड़कर वह 56 दिनों के लिए एकांतवास पर चले गए थे। राहुल की ताजा विदेश यात्रा के जो कारण उनकी पार्टी बता रही है उनमें कोई सच्चाई नहीं लगती जैसा कि भाजपा ने साबित कर दिया है फिर भला राहुल चुनाव छोड़कर क्यों विदेश यात्रा पर गए हुए हैं। उनकी यही अगंभीरता शायद उनके नेतृत्व को जमने नहीं देती और इस दलील को बल मिलता है कि शायद बिहार में उनके महागठबंधन के साथी नहीं चाहते कि राहुल प्रचार करने बिहार आएं। चम्पारण में उनकी प्रथम और प्रभावशाली रैली का मंच साझा करने से जिस तरह लालू और नीतीश ने किनारा किया था उससे भी यह बात पुख्ता होती है कि राहुल के पराजय चुनावी रिकार्ड से सहयोगी भी सहमे हुए हैं और उन्हीं के दबाव में राहुल अमेरिका गए हैं। वैसे यह मामला सिर्प कांग्रेस पार्टी के विचारकों का है, राहुल जो चाहें वह करें पर अगर राहुल को आगे चलकर कांग्रेस का नेतृत्व संभालना है तो ऐसी हरकतें नहीं चलेंगी। वैसे भी कांग्रेस पार्टी धरातल पर है और अगर खुद पार्टी के उपाध्यक्ष चुनौतियों से ऐसे भागेंगे तो हो चुका पार्टी का भला।

-अनिल नरेन्द्र

पहली बार हज हादसे से शुरू हुआ और हादसे से खत्म हुआ

ये दिन दुनियाभर के मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र दिनों में से हैं। इन दिनों लाखों की तादाद में दुनियाभर से मुसलमान हज करने के लिए सऊदी अरब स्थित पवित्र मक्का जाते हैं। वह वहां इस उम्मीद से जाते हैं कि उनकी जीवनभर की आस पूरी हो पर जब इनमें से कुछ के लिए यह जीवन की आखिरी यात्रा बन जाए तो शेष परिवार वालों के दुख को हम समझ सकते हैं। कुछ के साथ ऐसा ही हुआ। पवित्र मक्का मस्जिद के नजदीक हुई भीषण भगदड़ ने बकरीद की खुशियों को मातम व गम में बदल दिया। मक्का के करीब मीना में हज यात्रा के अंतिम दिन बृहस्पतिवार को मची भगदड़ में कम से कम 717 लोगों की मौत हो गई। यह आंकड़े प्रारंभिक हैं और यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है। निसंदेह हज यात्रा के दौरान पिछले 25 साल में हुए हादसे में सबसे बड़ा हादसा बन सकता है। शैतान को पत्थर मारने की जगह जमारात के करीब एक चौराहे पर एक साथ दो तरफ से भारी संख्या में जायरीनों के आने से गली में भगदड़ मच गई। इस साल डेढ़ लाख भारतीयों समेत दुनियाभर से 20 लाख से अधिक जायरीन हज यात्रा के लिए मक्का पहुंचे हैं। पहली बार हज के दौरान दो बड़े हादसे हो गए। हज शुरू होने से ठीक पहले 11 सितम्बर को मक्का की ग्रैड मौस्क के केन गिरने से 115 लोगों की मौत हो गई और अब हज के आखिरी दिन इस भगदड़ में सैकड़ों जायरीन अल्लाह को प्यारे हो गए। 1990 से लेकर 2006 तक सात हादसे हो चुके हैं जिनमें कुल 2460 जायरीनों की मौत हो चुकी है। अपने 90 नागरिकों की मौत पर खफा ईरान ने हादसे के लिए सऊदी अरब को सीधा जिम्मेदार ठहराया है। ईरान के हज संगठन के प्रमुख सैयद ओहदी ने कहा कि बिना किसी ज्ञात कारणों के शैतान को पत्थर मारने की सांकेतिक जगह के नजदीक दो रास्तों को बंद कर दिया गया। इसी वजह से यह दर्दनाक हादसा हुआ। लगता है कि उपर वाला सऊदी अरब पर कहर ढा रहा है। भूलना नहीं चाहिए कि इस हादसे से कुछ दिन पहले मक्का में ही एक केन के गिरने की वजह से 100 से अधिक लोग मारे गए थे। निश्चय ही छोटी जगह पर लाखों की संख्या में आए हाजियों की व्यवस्था करना आसान बात नहीं है। इस वर्ष ही करीब 20 लाख हज यात्री मक्का पहुंचे हैं मगर कहीं कुछ खामियां तो जरूर रह गई होंगी, जिसकी वजह से भगदड़ को रोका नहीं जा सका। निश्चय ही दुनियाभर में प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान को काफी हद तक नियंत्रित करने का तंत्र विकसित कर लिया गया है मगर धार्मिक स्थलों पर होने वाले मानवजनित हादसों पर नियंत्रण करने का कोई तंत्र अब तक विकसित नहीं हो सका है। दुनिया की सारी प्राचीन धार्मिक यात्राएं और रस्में तब बनी थीं जब दुनिया बिल्कुल अलग थी। पिछले तकरीबन 100 साल में दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ी है। अब तीर्थस्थलों और धार्मिक स्थानों के प्रबंधन की चुनौतियां भी बढ़ गई हैं। तीर्थ यात्राएं, आस्था, खुशी और शांति के लिए होती हैं इन्हें त्रासदियों में बदलने से बचने की सभी को कोशिश करनी चाहिए।

Saturday 26 September 2015

64 फाइलों से नेताजी के अंतिम दिनों का आधा सच सामने आता है

जब से पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से जुड़ी 64 फाइलें सार्वजनिक की हैं, तभी से हर दिन कुछ न कुछ खुलासे हो रहे हैं। नेताजी के परिवार सहित नेताजी के प्रेमी इन फाइलों को पढ़ रहे हैं और समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर नेताजी के अंतिम वर्ष कैसे और कहां गुजरे और उनका अंत कैसे हुआ? दैनिक भास्कर के प्रतिनिधि ने नेताजी के पोते चन्द्रकुमार बोस से इन विषयों पर चर्चा की। उनका कहना है कि इन 64 फाइलों से दो बातें तो साफ हो गई हैं ः पहलीöनेताजी की मौत प्लेन कैश में नहीं हुई, दूसरीöनेताजी के परिवार के हर सदस्य की उच्च स्तर पर जासूसी हुई। चन्द्रकुमार बोस का कहना है कि अब तक हमने जितनी भी फाइलें पढ़ी हैं उनसे एक साफ संकेत तो मिला है कि नेताजी की मौत 1945 विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। हालांकि कई ऐसे सच तब सामने आएंगे जब बाकी की 150-160 फाइलें सार्वजनिक होंगी। ये फाइलें केंद्र सरकार के पास हैं। फाइलों से यह पता चलता है कि भारत सरकार ने नेताजी के परिवार की 24 घंटे जासूसी करवाई थी। देश ही नहीं, विदेश में भी। पिता अमियोनाथ 1957 में नेताजी से जुड़े सबूत लेने जापान गए तो वहां भी उनके पीछे भारत सरकार ने अपने कई एजेंट लगा दिए थे। चन्द्रकुमार बोस आगे कहते हैं कि पंडित नेहरू से हुई गलती के लिए सोनिया गांधी या राहुल को तो सूली पर नहीं चढ़ाया जा सकता न? उन्हें तो पहल करनी चाहिए। कहना चाहिए कि हां, हमारे पूर्वजों से गलती हुई। उन्हें राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए। अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती तो यह साजिश है। जिसको आप सपोर्ट कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी उस साजिश में उनका साथ दे रही है। बोस ने कहा कि हमें तीन सबूत मिले हैं या यूं कहें कि तथ्य मिले हैं जो बताते हैं कि नेताजी जीवित थे ः  पहलाöएयर कैश की थ्यौरी झूठी थी। असली वह था जो जस्टिस मुखर्जी कमीशन ने कहा था। 2005 में मुखर्जी कमीशन ने कहा था कि कोई एयर कैश नहीं हुआ था। जो अस्थियां जापान के रेकोंजी मंदिर में रखी हैं वह जापानी सैनिक इजिरो ओकिस की हैं। जिसकी मौत सामान्य तौर पर हुई थी। इसे नेताजी की अस्थियां बताया जा रहा था, दूसराöमेरे पिता अमियोनाथ बोस को लिखा एक पत्र मिला है। पांच मार्च 1948 के लिखे इस पत्र से साबित होता है कि 1948-49 तक नेताजी जीवित थे। चाउ सियांग क्वांग वो इंफोर्मेशन एवं ब्राडकास्टिंग मिनिस्ट्री नई दिल्ली के ऑफिसर थे। वो सरकारी अधिकारी थे। वो अमियोनाथ बोस को लिखते हैं कि उन्हें सबूत मिले हैं कि वह नेताजी नैनचिंग में थे। तीसराöएक स्विस पत्रकार लिली एबेग जिसे नेताजी की मौत से कोई फर्प नहीं पड़ना था, उसने शरतचन्द्र बोस को एक पत्र लिखा था। शरतचन्द्र बोस नेताजी के बड़े भाई थे। नौ दिसम्बर 1949 को लिखी इस चिट्ठी में बताया गया है कि जापानी इंटेलीजेंस सोर्स ने यह कंफर्म किया है कि नेताजी 1949 में जिन्दा थे। नेताजी का आधा सच सामने आया है। पूरा सच बाकी फाइलों में दबा है।

-अनिल नरेन्द्र

नेपाल का संविधान भारत को मंजूर नहीं, क्या दबाव रंग लाएगा?

सात प्रांतों के मॉडल वाला नया नेपाली संविधान भारत को मंजूर नहीं है। भारत ने नेपाल को साफ शब्दों में कहा है कि उसका नया संविधान न समावेशी है और न ही उस पर सहमति है। इसमें मधेसियों और तराई के क्षेत्र की नेपाली जनता को उसके अधिकारों से वंचित रखा गया है। भारत ने नेपाल सरकार को सात अनुच्छेदों में संशोधन का सुझाव दिया है। इससे आंदोलन कर रहे दक्षिण नेपाल के मधेसी और जनजातीय समुदाय के लोगों को संबल मिलेगा। संविधान तैयार करना किसी भी देश का अपना अधिकार है और नेपाल ने भी यही किया है। लेकिन क्या नेपाल ने अपने देश की लगभग आधी आबादी यानि मधेसियों को संविधान में पूरा प्रश्रय दिया है? अगर नेपाल के संविधान के कुछ हिस्सों को देखें तो यह साफ हो जाता है कि इसके कई प्रावधान मधेसियों को वहां दोयम दर्जे का नागरिक बना देंगे। यही वजह है कि पिछले दो हफ्तों से तराई के मधेसी बहुल हिस्सों के लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इस वजह से जो हिंसा फैली है उसमें 40 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। जानकारों के मुताबिक नेपाल के पांच विवादित जिलोंöकांचीपुर, केइलाली, सुनसरी, झापा और मोरांग को इसके पड़ोसी जिलों में मिलाने का रास्ता तैयार किया गया है। इन पांच जिलों में पहाड़ी लोगों की संख्या ज्यादा है और इन्हें पड़ोस के उन जिलों से मिलाने की तैयारी है जहां मधेसियों की संख्या ज्यादा है। मधेसी और जनजातीय समुदाय के लोग लगातार नए संविधान में प्रतिनिधित्व के मसले को लेकर विरोध जाहिर कर रहे थे। संविधान सभा के 69 सदस्यों ने संविधान निर्माण प्रक्रिया का बहिष्कार किया था। दरअसल पहले वहां के संविधान में प्रावधान था कि निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण आबादी, भौगोलिक स्थिति, विशेष लक्षणों के अनुसार होगा और मधेसियों के मामले में यह जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर होगा। लेकिन नए संविधान में एक तरह से मधेसी लोगों को बाहरी के तौर पर माना गया है। इसमें कहा गया है कि प्रमुख संवैधानिक पदों पर वही लोग होंगे जो नेपाल के मूल  निवासी हैं। इसी तरह मधेसी लोगों को राजनीति में प्रतिनिधित्व को भी संकुचित कर दिया गया है। सोनौली के नागरिकों से मधेसी मोर्चा के नेताओं ने मदद की गुहार लगाई है। नेताओं ने कहा कि उन्हें भारत में शरण चाहिए। ऐसे वक्त भारत उनकी मदद करे। मंगलवार की देर शाम सोनौली के रामजानकी मंदिर में नेपाल के मधेसी नेताओं ने संवाददाताओं से बातचीत में बताया कि नेपाल प्रशासन मधेसियों का दमन कर रहा है। भारत-नेपाल संबंधों की दुहाई देते हुए नेताओं ने कहा कि भारत-नेपाल सीमा पर मधेसी रहते हैं, इसलिए आज तक भारत से कोई विवाद नहीं हुआ। हम झंडा-डंडा लेकर आंदोलन कर रहे हैं और रूपनदेही प्रशासन हमें हमारे घर में घुसकर डरा-धमका रहा है। भारत ने नेपाल पर अपने संविधान में सभी नागरिकों को बराबर का प्रतिनिधित्व देने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। सवाल यह है कि क्या यह दबाव काम आएगा? क्या नेपाल अपनी संप्रभुता और तटस्थता को ऊपर रखते हुए अपनी जनता, राजनीति और दुनिया के सामने कैसे पेश आएगा, यह  बड़ा सवाल है। दूसरा सवाल यह  कि इस स्थिति का फायदा चीन या पाकिस्तान, जिनका नेपाल में खासा दबाव है क्या नेपाल सरकार को पुन विचार और संशोधन करने का विरोध करेंगे? यह सब अहम इसलिए और ज्यादा हैं कि नेपाल में लागू हुए संविधान का समर्थन संविधान सभा के करीब 80 प्रतिशत सदस्यों ने किया है। यह चिन्ता केवल भारत को ही नहीं सभी लोकतांत्रिक देशों को होनी ही चाहिए कि वहां के नागरिकों को समान अधिकार, सुरक्षा दी जाए और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक न माना जाए।

Friday 25 September 2015

बिहार चुनाव ः विकास पर हावी होता जातीय व सामाजिक समीकरण

ऐसा इस बार भी बिहार विधानसभा चुनाव में नहीं लगता कि विकास जातीय व सामाजिक समीकरण पर हावी होगा। विकास की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी के टिकट बंटवारे से तो कम से कम यही लगता है कि अंतत उसे भी परिवारवाद और जातीय जोड़तोड़ के सामने झुकना पड़ा है। बिहारी सियासी जमीन की जातीय हकीकत को विकास के नाम पर तोड़ने का जोखिम भाजपा ने कतई नहीं उठाया है। विरोधी महागठबंधन में मजबूत यादव-मुस्लिम समीकरण को देखते हुए भाजपा ने भी इस बार दलित-महादलित समीकरण बनाने के साथ यादवों में भी सेंध लगाने की कोशिश की है। भाजपा ने अब तक 160 में से 153 सीटों के उम्मीदवारों की घोषणा की है। पार्टी के आकलन के मुताबिक इसमें 30 राजपूत, 22 यादव, 19 वैश्य, 18 भूमिहार, 14 ब्राह्मण, छह कुशवाहा, तीन कायस्थ, तीन कुर्मी, दो मुसलमानों के साथ 21 अनुसूचित जाति व एक अनुसूचित जनजाति का उम्मीदवार शामिल है। पार्टी ने अतिपिछड़ा वर्ग से उम्मीदवार बनाए हैंöइसमें दांगी, चंद्रवंशी, निषाद, नौनिया, धानुक, कामत व गंगोरा समुदाय के उम्मीदवार शामिल हैं। यह पहला मौका है जबकि भाजपा ने इतनी बड़ी संख्या में यादव उम्मीदवार उतारे हैं। पार्टी का दावा है कि ये उम्मीदवार लालू यादव के वोट बैंक में सेंध लगाने में सक्षम होंगे। पार्टी अपने दो सहयोगियों राम विलास पासवान व जीतन राम मांझी के साथ महादलित कार्ड खेलने जा रही है। उपेन्द्र कुशवाहा गैर-यादव पिछड़ा वर्ग में एनडीए की मदद करेंगे ही। पार्टी के भीतर बड़े नताओं की नाराजगी न रहे, इसलिए उनके नाते-रिश्तेदारों को भी जगह दी गई है। सांसद सीपी ठाकुर व अश्विनी चौबे के साथ पार्टी के कई नेताओं के बेटे और अन्य रिश्तेदारों को चुनावी दंगल में उतारा गया है। पाटलीपुत्र की लड़ाई में भाजपा अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग पूरी शिद्दत के साथ करने पर कुछ हद तक मजबूर है। कांटे की इस लड़ाई में भाजपा अपना हुकम का इक्का यानि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भरपूर इस्तेमाल करेगी। भाजपा या राजग के चुनाव अभियान केंद्र में तो नरेंद्र मोदी पहले ही हैं। अब पांच चरणों के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हर तरफ नमो-नमो ही होगा। संभवत दो अक्तूबर से हर दूसरे दिन वह बिहार में किसी न किसी विधानसभा क्षेत्र में चुनावी जनसभा को संबोधित करेंगे। यह  लगभग तय हो चुका है कि वह 20-22 रैलियां करेंगे। भाजपा में शुरू से यह रणनीति तय थी कि बिहार विधानसभा चुनाव किसी मुख्यमंत्री के चेहरे को आगे किए बिना मोदी के नाम पर ही लड़ा जाएगा। चुनाव घोषणा से पूर्व जिस तरह मोदी की क्षेत्रीय रैलियों में उत्साह दिखा था उसके बाद बिहार भाजपा ने मोदी से ज्यादा समय की मांग की थी। बताते हैं कि मोदी ने बिहार चुनाव के महत्व को आंकते हुए हामी भर दी। सूत्रों के अनुसार दो अक्तूबर को पहली रैली कर सकते हैं। दूरगामी प्रभाव छोड़ने वाले बिहार चुनाव पर न केवल भाजपा का बल्कि मोदी का सियासी भविष्य भी कुछ हद तक टिका हुआ है। ताजा सर्वेक्षणों के अनुसार कांटे की इस टक्कर में फिलहाल नीतीश-लालू गठबंधन हावी है। भाजपा को उम्मीद है कि जातीय समीकरण के मुताबिक टिकटों के बंटवारे के साथ नरेंद्र मोदी की रैलियां भाजपा के पक्ष में निर्णायक साबित होंगी। दरअसल भाजपा को लग रहा है कि बिहार में नरेंद्र मोदी ही सबसे बड़े फैक्टर हैं। पाटलीपुत्र की जंग को हर हालत में जीतने का बीड़ा प्रधानमंत्री अपने कंधों पर उठाने को तैयार हो गए हैं। इसीलिए लोकसभा चुनाव के बाद मोदी का किसी भी राज्य के चुनाव में यह अब तक का सबसे सघन प्रचार अभियान होगा।
-अनिल नरेन्द्र


दिल्ली में गवर्नेंस की समस्या है ः सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

जिस दिन से श्री अरविंद केजरीवाल ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद संभाला है तभी से केंद्र से, उपराज्यपाल के सिवाय टकराव के और कुछ नहीं किया। हर बात में विवाद पैदा करना, बेकार के प्रशासनिक विवादों में उलझे रहना, प्रधानमंत्री को कोसना बस यही सब कुछ किया है। शायद तमाम उम्र आंदोलनकारी रहे हैं उन्हें केवल यही रास्ता रास आता है। नतीजा यह हो रहा है कि दिल्ली की जनता का आम आदमी पार्टी से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है। इसके कई संकेत भी मिले हैं। सबसे ताजा संकेत दिल्ली विश्वविद्यालय संघ के चुनाव थे। रोज-रोज नए-नए विवाद पैदा करने से माननीय सुप्रीम कोर्ट भी तंग आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच चल रही खींचतान पर सख्त टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोनों के बीच चल रहे टकराव से वह भलीभांति अवगत है। दिल्ली में शासन व्यवस्था को लेकर कोर्ट ने कहा कि उसे केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव के कारण यहां के लोगों को पेश आ रही गवर्नेंस की समस्या का पता है। हम जानते हैं कि दिल्ली की जनता गवर्नेंस की समस्या का सामना कर रही है। साथ ही उसने इस मामले में दखल देने से इंकार करते हुए कहा कि समय आने पर जनता उनके कामकाज को देखकर अपना फैसला सुनाएगी। न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति गोपाल गौड़ा की पीठ ने कहा कि हम जानते हैं कि दिल्ली में शासन और प्रशासन को लेकर समस्या है और कई मसलों को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सहमति नहीं बन पाई। अखबारों में इससे संबंधित खबरें भरी पड़ी हैं। लिहाजा जरूरी है कि दोनों सरकारें आमने-सामने बैठकर बातचीत करें। पीठ ने कहा कि अगर शासन को लेकर कमी है तो आम जनता समय आने पर उनके कामकाज को देखते हुए अपना फैसला सुनाएगी। कोर्ट ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा। याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ के समक्ष कहा कि दिल्ली में शासन व्यवस्था सही नहीं है। इस कारण लोगों को कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। याचिका में कोर्ट से अपील की गई कि केंद्र और दिल्ली सरकार को यह निर्देश दिया जाए कि वे अपना काम इस तरह से करें कि लोगों को कोई समस्या न हो। दोनों संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह नहीं कर रही हैं। लोग डेंगू से मर रहे हैं और दोनों सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह सख्त टिप्पणी अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार की कारगुजारी को सही बयान करती है। आए दिन उपराज्यपाल या गृह मंत्रालय से उलझने के सिवाय इस सरकार ने और किया क्या है? अगर गृह मंत्रालय या उपराज्यपाल इतने ही अड़ंगेबाज थे तो श्रीमती शीला दीक्षित ने 15 साल इतना अच्छा प्रशासन कैसे चलाया? उनके समय में भी एनडीए सरकार थी पर शीला जी तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से मिलकर अपने सब काम करवा लेती थीं। उनकी नीयत काम कराने की थी, फिजूल विवाद पैदा करने की नहीं थी। उम्मीद करते हैं कि केजरीवाल अपने रवैये को बदलेंगे और अपने शासन को सुचारू रूप से दिल्ली की जनता की भलाई की ओर लगाएंगे। इन विवादों से कुछ हासिल होने वाला नहीं।

Thursday 24 September 2015

डायन और काला जादू का खौफ अंधविश्वास या हकीकत?

आए दिन यह खबर सुनने को मिलती है कि फलाने गांव में एक महिला को मार दिया क्योंकि गांव वाले समझते थे कि वह एक डायन है और काला जादू करती है। काला जादू केवल भारत में ही नहीं दुनिया के कई मुल्कों में किए जाने की रिपोर्ट है। लगभग हर धर्म में भी इसका किसी न किसी रूप में जिक है। भारत में इसे तांत्रिक विधि भी कहा जाता है। तांत्रिक बड़ी संख्या में हमारे देश में मौजूद हैं। तुरंत परिणाम की चाह चाहे गरीब हो या अमीर हो इन तांत्रिकों की ओर खींचती है। बलि की भी खबरें आती रहती हैं। 2014 में भारत के 13 राज्यों में डायन ठहराकर करीब 160 हत्याएं की गईं। इनमें से 32 मामले अकेले ओडिसा के हैं और यह आंकड़े सरकारी हैं। हाल के वर्षें में यह संख्या तेजी से बढ़ी है। साल 2000 से अब तक 2300 लोग, जिनमें ज्यादातर संख्या महिलाओं की है, ऐसे मामलों में मारे गए हैं। अगस्त में ही झारखंड के एक गांव में 5 महिलाओं को उनके घर से घसीटते हुए बाहर लाया गया और डायन बता कर सामूहिक हत्या कर दी गई। उस मामले से अब तक 27 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। गांव की पंचायतें तथाकथित डायनों को मारने से लेकर उनका बलात्कार करने, सामूहिक पताड़ना दिए जाने और विष्ठा खाने जैसी सजा सुनाते हैं। गनिता जब जंगल में जान बचाने के लिए छुपा हुआ था तब उसे अपने परिवार की चीखें सुनाई दे रही थीं। वे कुछ घंटे उसकी जिंदगी के सबसे डरावने और लंबे घंटे थे। गनिता ने पूरी रात जंगल के अंधेरे में गुजारी। अगली सुबह पास के एक गांव के निवासी ने उसे खोजा और गनिता को पुलिस के हवाले किया। पुलिस अधिकारी ने बताया कि उक्त मामले में 10 लोगों को अब तक गिरफ्तार कर लिया है। गनिता को पुलिस की जांच में कोई दिलचस्पी नहीं है। बिना किसी स्कूली शिक्षा और परिवार के गनिता का भविष्य अंधेरे में दिखता है। बिप्लव मिश्रा जो कि एक स्थानीय एनजीओ के पोजेक्ट डायरेक्टर हैं को गनिता के देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई है। उनका कहना है कि अब गनिता कभी भी न तो पहले जैसी जिंदगी जी सकेगा और न ही कभी वापस लौट कर अपने गांव जा सकेगा। गनिता जानता है कि एक साल बाद 18 साल का हो जाने पर उसे क्या करना है। उसने बताया कि मैं काम करना शुरू करूंगा और मैं और मेरा भाई यहां से दूर किसी जगह पर जाकर रहने लगेंगे। 17 साल के गनिता मुंडा की हालत में सुधार तो है लेकिन आज भी उसे अपने परिवार की चीखें सुनाई देती हैं। गनिता के परिवार को डायन करार देकर मार डाला गया था। बीती जुलाई कुछ लोगों के एक समूह ने घर में घुसकर गनिता के परिवार पर हमला कर दिया था। हादसे में उसके माता-पिता और 4 भाई-बहन मारे गए। गांव वालों के मुताबिक गनिता की मां एक डायन थी। स्थानीय बच्चों में हो रही एक बीमारी का इल्जाम गनिता की मां पर लगाकर पूरे परिवार की हत्या करने की कोशिश की गई। यह हमला अपनी तरह का अकेला मामला नहीं है। हर साल भारत के ग्रामीण अंचलों में ऐसे कई मामले सामने आते हैं। अंधविश्वास और अज्ञानता के कारण हो रहे ऐसे वाकयो को रोकने के लिए स्थानीय पशासन की नाकामी चिंताजनक है। गनिता ने बताया कि वे मेरी मां पर छोटे बच्चों के ऊपर काला जादू करने का इल्जाम लगा रहे थे। ओडिशा में पिछले साल एक कानून पारित भी किया गया जिसमें डायन पथा के कारण हो रही मौतों को रोकने और इस मामले में हो रहे अपराध को कम करने की बात कही गई है। अन्य राज्यों में भी इस तरह के कानून हैं। असम में पिछले महीने ही एक नया कानून लागू किया गया जिसमें किसी को डायन कहने पर जेल की सजा और जुर्माने का पावधान है। सिर्फ कानून बनाने से समस्या का हल शायद ही हो। अंधविश्वास से निपटने के लिए बेहतर शिक्षा और जागरुकता की जरूरत है। धार्मिक गुरुओं को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। ग्रामीण आंचल में बेहतर शिक्षा से जागरुकता बढ़ेगी, उसका भी असर होगा।

...और ये जंग इस्लाम की रक्षा में जेहादी लड़ रहे हैं?

पाकिस्तान के लिए आतंकियों के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान जर्ब--अज्ब काफी महंगा साबित हो रहा है। पेशावर में 11 हजार सैनिक तो सिर्फ स्कूलों की हिफाजत में लगे हैं। याद रहे कि पेशावर में ही एक आमी स्कूल पर 16 सितम्बर 2014 को आतंकवादियों ने सात घंटे में 134 छात्रों सहित 150 लोगों की हत्या कर दी थी। पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक डार ने हाल ही में कहा था कि तालिबान के खिलाफ अभियान पर करीब 82.62 अरब पाकिस्तानी रुपए खर्च होंगे। तो सिर्फ बेघर लोगों को बसाने पर ही लगभग 83.62 अरब पाकिस्तानी रुपए खर्च हो जाएंगे। ऐसे में पाकिस्तान ने अमेरिका से मदद 15 फीसदी बढ़ाने की गुजारिश की है। अमेरिका पिछले 12 सालों में पाकिस्तान को 28 अरब डालर (करीब 2,922 अरब पाकिस्तानी रुपए) की मदद दे चुका है। गत सप्ताह पाकिस्तान के सबसे अशांत शहर पेशावर स्थित पाक वायु सेना के एयरबेस पर तालिबानी आतंकियों ने जबरदस्त हमला किया। इस मामले में एक कैप्टन समेत 29 लोगों की मौत होने की खबर है। एयरबेस के अलावा दहशतगर्दें ने वहां की एक मस्जिद को भी निशाना बनाया। सेना ने भी जवाबी कार्रवाई में सभी 13 दहशतगर्दें को मार गिराया। बता दें कि आमी स्कूल के हमले के बाद यह दूसरा बड़ा हमला था। तहरीक--तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के पवक्ता मोहम्मद खुरासानी ने ईमेल के जरिए बताया कि हमारी आत्मघाती इकाई ने यह हमला किया है। वहीं पाकिस्तानी सेना के पवक्ता मेजर जनरल असीम बाजवा ने ट्वीट किया, आतंकी अलग-अलग गुट बनाकर एयरफोर्स कैंप में घुसे थे। उन्होंने कैंप के भीतर मस्जिद में नमाज अदा कर रहे 16 लोगों को मार डाला। जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बलों ने सभी 13 आतंकियों को मार गिराया। यह हमला पाकिस्तान के सैनिक ठिकानों में हुए बड़े आतंकी हमलों में से एक है। आधुनिक हथियारों से लैस आतंकियों के समूह ने पहले सुरक्षा चौकी पर हमला बोला। उसके बाद एयरबेस में घुस गए और जमकर गोलीबारी शुरू कर दी। पाकिस्तान के किसी सैन्य पतिष्ठान में हुए इस बड़े हमले में विस्फोटक से भरे जैकेट पहने और हाथ से चलाए जाने वाले ग्रेनेड, मोर्टार, एके-47 राइफलों से लैस थे। खुरासानी ने तो दावा किया कि आतंकियों ने करीब 80 सुरक्षाकर्मियों को घेर लिया जिनमें से 50 तो मारे गए लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई। पाकिस्तान के पधानमंत्री नवाज शरीफ ने हमले की निंदा करते हुए कहा कि आतंकवादियों का देश से सफाया कर दिया जाएगा। पेशावर में घमासान युद्ध हो रहा है। शहर के दो बड़े अस्पतालों में आपात स्थिति घोषित कर दी गई है। रुक-रुक कर फायरिंग की आवाजें देर रात तक सुनी गईं। शहर में तनाव बना हुआ है और हर जगह सुरक्षा बल तैनात हैं। बड़े दुख से पूछना पड़ता है कि इस्लाम की रक्षा के लिए यह कैसी जंग है, जेहाद है जिसमें स्कूल के मासूम बच्चों को, मस्जिद में नमाज अदा कर रहे मुसलमानों को गोलियों से भून दिया जाता है?

-अनिल नरेंद्र

Wednesday 23 September 2015

बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार की झलकियां

बिहार में विधानसभा चुनाव प्रचार धीरे-धीरे चरम पर पहुंच रहा है। बेहतरी के लिए उतरी भाजपा के सामने चुनौतियों का पहाड़ है तो नीतीश-लालू गठबंधन के सामने भी मुसीबतें कम नहीं हैं। दोनों गठबंधनों में जमकर बगावत हो रही है। दोनों की सिरदर्दी बढ़ाने के लिए सपा में छह दलों ने तीसरा मोर्चा खोल दिया है। उधर एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी अपनी ही हांक रहे हैं। एक ओर जहां कांग्रेस, भाजपा समेत दूसरे महागठबंधन के जरिये विधानसभा चुनाव की वैतरणी पार करने में जुटे हैं। बहुजन समाज पार्टी बगैर किसी गठबंधन के अकेले अपने बूते पर चुनाव लड़ रही है। लोकसभा चुनाव के बाद से अच्छे नतीजों की बाट जोह रही पार्टी को बिहार में बेहतर नतीजों की उम्मीद है। परिवारों में बगावत चरम पर है। राजनीति में रिश्तों की गहमागहमी इस बार नए आयाम गढ़ने की तैयारी में है। बिहार चुनाव में महागठबंधन टूटने के बाद सपा की वहां सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारियों के बीच पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के पौत्र तेज प्रताप यादव ने कहा है कि यदि पार्टी की इजाजत हुई तो वह वहां जाएंगे और जरूरत पड़ी तो ससुर लालू प्रसाद यादव के खिलाफ भी प्रचार करने से संकोच नहीं करेंगे। इसी वर्ष फरवरी में लालू की पुत्री राजलक्ष्मी से उनकी शादी हुई है। सियासत में हमने अकसर देखा है कि रिश्तेदारी का भी महत्व खत्म हो जाता है। लोजपा में टिकट बंटवारे को लेकर राम विलास पासवान के कुनबे में गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। भाई-भतीजा और भांजे की पत्नी को टिकट देने के बाद अब पासवान के दो दामाद पार्टी की टिकट के लिए घमासान मचा रहे हैं। पासवान के बड़े दामाद व दलित सेना के प्रदेशाध्यक्ष अनिल कुमार साधु ने तो यहां तक धमकी दी है कि अगर उन्हें टिकट नहीं मिला तो उनके नेतृत्व में दलित सेना बिहार की विधानसभा की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करेगी। उधर ओवैसी जिसे भाजपा का एजेंट महागठबंधन बता रहा है, ने नीतीश-लालू महागठबंधन पर करारा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि इस धर्मनिरपेक्ष गठबंधन में दम नहीं है। साथ ही भाजपा के साथ किसी गुप्त समझौते से इंकार किया है। ऑल इंडिया मजलिस--इत्तेहाद-उल-मुसलमीन के अध्यक्ष ओवैसी ने कहा कि उनकी पार्टी बिहार के सीमांचल क्षेत्र में चुनाव जीतने को लेकर गंभीर है। राजद अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने राज्य विधानसभा चुनाव में राजग की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किए जाने पर भाजपा पर तंज कसते हुए उसे बिना सिर वाला चिकन करार दिया है। भाजपा बिना सिर वाले चिकन की तरह भाग रही है। केंद्र सरकार के विदेशी निवेश मॉडल के पहिये के नीचे किसान, गरीब, मजदूर, दलित कुचले जा रहे हैं। बिहार चुनाव प्रचार धीरे-धीरे क्लाइमैक्स पर पहुंच रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

हिंसा के बीच नेपाल बना धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य

आखिरकार सात सालों की जद्दोजहद के बाद नेपाल को अपना नया धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्रात्मक संविधान मिल गया है। नेपाल में रविवार को नया संविधान लागू हो गया। रविवार का दिन नेपाल के लिए यादगार जरूर रहेगा क्योंकि इसी दिन इस देश ने वह संविधान लागू किया, जिसका इंतजार उसे दशकों से था। यह नेपाल का पहला संविधान है जिसे संविधान सभा यानि चुने हुए प्रतिनिधियों ने तैयार किया है। संविधान निर्माण में हालांकि विवाद, गतिरोध और विलंब काफी हुआ, लेकिन इस संविधान ने दुनिया के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र को धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र में बदल दिया और इसमें संघवाद को भी शामिल किया गया है तो यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। आखिर लोकतंत्र में ही वह आवाज है जिसमें सभी को अभिव्यक्ति की आजादी मिलती है। संविधान लागू होने के साथ ही नेपाल में हुई नई सुबह का स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि इसको बनाने में काफी मेहनत व मशक्कत करनी पड़ी। जनमत संग्रह में संविधान में नेपाल को घोषित तौर पर हिन्दू राष्ट्र बनाने की वकालत की गई थी लेकिन नेताओं और प्रमुख दलों ने उसकी अनदेखी कर धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की घोषणा कर दी। इसका भारी विरोध हो रहा है। भारत से सटे इलाकों के मधेशियों को लगता है कि उनके साथ न्याय नहीं किया गया है। उनकी अलग प्रदेश बनाने की मांग को अनसुना कर दिया गया। साथ ही दक्षिणी नेपाल में रहने वाले थारू जनजातियों की मांगों की भी अनदेखी की गई। बहुदलीय लोकतंत्र में इस समय मधेशियों की आवाज काफी मजबूत है। इस मजबूत आवाज को दबाकर नेपाल सबके साथ न्याय कैसे कर सकता है और सबका विकास कैसे पूरा करेगा यह चुनौती सामने है। अब तक हिंसा में 40 लोगों की मौत हो चुकी है। हिंसा की लपटें उम्मीद की जाती है कि निकट भविष्य में शांत हो जाएंगी। पड़ोसी के नाते अगर नेपाल अशांत रहता है तो इसका असर तो हम पर भी पड़ेगा। संविधान में नेपाली को राष्ट्र भाषा बनाया गया है और गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है। राज्यों को अपनी भाषा चुनने की स्वायत्तता दी गई है। साथ ही कमजोर वर्गों को आरक्षण के साथ ही विशेष रियायत का प्रावधान स्वागत योग्य कदम है। नेपाल राजनीतिक रूप से एक अस्थिर देश है जिसमें पड़ोसी चीन का काफी दखल है। पाकिस्तान भी नेपाल में दखलंदाजी करता रहता है। वहीं आईएसआई की मौजूदगी भी है। नेपाल का यह घटनाक्रम भारत के लिए चिंतित करने वाला इसलिए भी है कि विरोध प्रदर्शन जिन इलाकों में हो रहे हैं, वे भारत से सटे हुए इलाके हैं। नए संविधान के जरिये नेपाल को विकास की नई इबारत लिखने का जो अवसर मिला है, उसे वह आंदोलनों और अस्थिरता के जरिये गंवा न दे, इसका ध्यान रखना होगा। नेपाल की जनता को बहुत-बहुत बधाई।

Tuesday 22 September 2015

पाकिस्तान दुनिया का सबसे खतरनाक देश है

द इंटरनेशनल फैडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट का कहना है कि साल 2014 में न्यूज मीडिया के लिए पाकिस्तान दुनिया का सबसे खतरनाक देश रहा। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक साल 2008 से 2014 के बीच पाकिस्तान में 34 पत्रकार मारे गए। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस आश्वासन के बावजूद कि पत्रकारों को भरपूर सुरक्षा दी जाएगी, उन पर हमले जारी हैं। गत दिनों पाकिस्तान के मीडिया कर्मियों पर बढ़ते हमलों के  बीच बंदूकधारियों ने पाकिस्तान के एक प्रमुख पत्रकार की उनके घर के बाहर हत्या कर दी। जियो न्यूज और सभा टीवी समेत विभिन्न समाचार चैनलों से जुड़े रहे 42 साल के आफताब आलम बुधवार, नौ सितम्बर को अपने बच्चों को घर छोड़कर शहर के नॉर्थ सैक्टर सी (कराची) इलाके में अपनी कार से जा रहे थे तभी मोटर साइकिल सवार दो बंदूकधारियों ने उन्हें निशाना बनाया। आलम के सिर, गर्दन और सीने में कई गोलियां लगीं। उन्हें तुरन्त अब्बासी शहीद अस्पताल ले जाया गया जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सुनीर शेख ने कहा कि यह लक्ष्य बनाकर हत्या करने का मामला प्रतीत होता है। इसी सप्ताह एक दिन के भीतर पत्रकारों व मीडिया कर्मियों पर तीन अलग-अलग हमले हुए जिनमें दो मारे गए और दो बुरी तरह जख्मी हुए। कराची में जियो न्यूज की वैन पर हुए हमले में एक सैटेलाइट इंजीनियर मारा गया जबकि वैन चालक बुरी तरह घायल हो गया। इस वाकया के चन्द घंटों के भीतर उसी शहर में जियो न्यूज के ही पत्रकार आफताब आलम की हत्या कर दी गई। उधर पेशावर में पीटीवी से जुड़े पत्रकार को एक अज्ञात बंदूकधारी ने उड़ा दिया। साल 2008 में जब से पाकिस्तान में लोकतंत्र की पुनर्बहाली हुई है, पाकिस्तानी मीडिया ने फौज और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के मानवाधिकार उल्लंघन के कारनामों का साहसिक खुलासा किया है। इसका खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ा है। जियो न्यूज ने जब यह खुलासा किया कि उसके स्टार एंकर हामिद मीर पर 2014 में हुए कातिलाना हमले के पीछे आईएसआई का हाथ था, तो अधिकारियों ने जियो न्यूज को बंद करने तक की धमकी दे दी। पाकिस्तानी तालिबान जैसे आतंकी समूहों के निशाने पर भी पत्रकार हैं। अनेक पाकिस्तानी पत्रकार यह कबूल करते हैं कि नौकरी से निकाले जाने और मारे जाने के भय से वह काफी काट-छांट कर खबर लिखते हैं। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वादा किया है कि कराची को अपराधियों और आतंकी समूहों से आजाद कराने का काम चल रहा है और अगले दो साल के भीतर यह शहर सुरक्षित हो जाएगा। शरीफ इससे बेहतर कर सकते हैं। दो साल का वक्त एक लंबा इंतजार है और केवल आतंकी ही प्रेस की आजादी के लिए खतरा नहीं हैं। जब तक पत्रकारों को धमकाने वाले फौजी अफसर, आईएसआई व अन्य एजेंसियों की जिम्मेदारी तय नहीं होती तब तक नवाज शरीफ के वादे का कोई मतलब नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

फाइलें तो खुल गईं पर नेताजी की मौत की गुत्थी नहीं सुलझी

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करने में बेशक ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने एक साहसी कदम उठाया है पर उसके मकसद पर अटकलें लगनी स्वाभाविक ही हैं। इस कदम के पीछे मकसद क्या सचमुच नेताजी से जुड़ा रहस्य खासकर उनके अंतिम दिनों से जुड़े रहस्यों से परदा हटेगा या यह ममता की एक सियासी चाल है, क्योंकि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए सिर्प छह माह शेष हैं? 12,744 पेजों वाली 64 फाइलें कोलकाता के पुलिस म्यूजियम में रखे जाने के बाद इस कदम को ममता ने ऐतिहासिक बताया। इन फाइलों से यह संकेत तो मिलता है कि वह शायद 1945 के बाद भी जीवित थे, लेकिन इनमें नेताजी के आखिरी दिनों के बारे में या उनकी मौत के बारे में कोई बात नहीं है। ऐसे में आज भी उनकी मौत की गुत्थी अनसुलझी है। इससे अब यह सवाल उठने लगा है कि कहीं यह फाइलें `खोदा पहाड़ निकली चूहिया' वाली कहावत तो नहीं चरितार्थ कर रही हैं। कायदे से आजादी के बाद ही सुभाष चन्द्र बोस से जुड़ी गोपनीय जानकारियां सार्वजनिक हो जानी चाहिए थीं। लेकिन ऐसा न करके प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नेताजी के सन्दर्भ में ब्रिटिशकालीन नीति को कायम रखा। उनका तर्प था कि नेताजी का सच सामने आने से कई देशों से हमारे रिश्ते खराब होंगे। इसी से यह धारणा बनी कि नेहरू जी के नेताजी के साथ रिश्ते सहज नहीं थे और वह उनसे जुड़ा सच नहीं बताना चाहते थे। यह इसलिए भी कहना पड़ता है कि 1945 में ताइवान में हुई वायुयान दुर्घटना में सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु की सूचना पर देश ने  न सिर्प पूरी तरह यकीन नहीं किया बल्कि आजादी के दौर के वह इकलौते व्यक्तित्व थे, जिनके वेश बदलकर लौटने के बारे में अनेकानेक कहानियां समय-समय पर सामने आईं, जिनकी सत्यता भी हालांकि कभी प्रमाणित नहीं हो पाई। नेताजी का सच जानने के लिए तीन प्रयास भी हुए। उनमें से मुखर्जी आयोग का निष्कर्ष था कि  उनकी मौत 1945 में विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा है कि इन फाइलों को पढ़ने से ऐसा लगता है कि सुभाष चन्द्र बोस 1945 के बाद भी जीवित थे। उनका निधन कब और कैसे हुआ? क्या उनकी मौत किसी साजिश का हिस्सा थी? क्या उन्होंने भारत में ही गुमनाम रहकर जीवन बिताया। क्या तत्कालीन शासकों ने नेताजी की उपेक्षा की और वे उनके परिजनों से संशकित थे, इन सवालों का जवाब हमें इन फाइलों से नहीं मिल पाया है? संभव है कि ऐसे सभी सवालों का सही जवाब शायद केंद्र सरकार के पास मौजूद फाइलों से मिले। ममता बनर्जी ने अब बॉल केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है। ममता ने कहाöहमने एक शुरुआत की है। लोगों को सच्चाई मालूम होनी चाहिए। केंद्र को भी अपने पास मौजूद नेताजी से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करना चाहिए। उन्होंने केंद्र पर सवाल दागते हुए कहाöअगर आप कुछ छिपा नहीं रहे हैं तो उन फाइलों को सार्वजनिक क्यों नहीं करते? ममता ने कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक है। हमारी सरकार ने नेताजी से संबंधित सभी फाइलों को सार्वजनिक कर दिया है। वाम मोर्चा सरकार ने अपने 34 वर्षों के शासनकाल में यह नहीं किया। ममता को अब सत्ता में चार वर्ष से ज्यादा हो गया है और उससे पहले 34 साल ज्योति बसु की वाम मोर्चा सरकार रही, इस दौरान इसकी जांच क्यों नहीं हुई, इसका भी तो जवाब जनता को चाहिए? सबसे अहम मुद्दा है नेताजी का सच। देश इसे जानना चाहता है। अत केंद्र को भी तमाम दूसरी चिन्ताएं दरकिनार कर उसके पास मौजूद सभी फाइलों पर से गोपनीयता का आवरण हटा देना चाहिए। अपने इस दांव से ममता ने जहां भाजपा के सियासी एजेंडे को अपने नाम कर लिया है। वहीं मोदी सरकार पर केंद्र के पास पड़ी नेताजी से जुड़ी 130 फाइलों को सार्वजनिक करने का सियासी दबाव बढ़ गया है। नेताजी के प्रति तत्कालीन और उसके बाद के शासकों का रुख-रवैया देश, काल और परिस्थितियों के हिसाब से शायद उपयुक्त हो सकता था, लेकिन अब इसका कोई मतलब नहीं कि इस या उस बहाने सच्चाई पर परदा पड़ा रहे। राजनीतिक दल और आम जनता की परिपक्वता पर कोई संदेह अब नहीं होना चाहिए।

Sunday 20 September 2015

...और अब भ्रष्टाचार के आरोप में दो न्यायाधीश गिरफ्तार

भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि कोई-सा ऐसा क्षेत्र नहीं बचा जो इसकी चपेट में न आ गया हो। चाहे वह न्यायपालिका हो और चाहे वह अफसरशाही हो। पहले बात करते हैं निचली न्यायपालिका की। गुजरात में निचली न्यायपालिका के दो न्यायाधीशों को गुजरात हाई कोर्ट के सतर्पता प्रकोष्ठ ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया है। इन दोनों को साल 2014 में वापी अदालत में पदस्थापना के दौरान मामलों का निपटारा करने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में गत सप्ताह निलंबित कर दिया गया था। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी रैंक के दोनों जजों एडी आचार्य और पीडी इनामदार को वलसाड़ की एक अदालत ने शुक्रवार को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। यह दोनों अनुकूल आदेश सुनने के लिए धन के लेन-देन पर चर्चा करते हुए कथित तौर पर कैमरे में कैद किए गए थे। हाई कोर्ट की सतर्पता पीठ ने वापी के वकील जगत पटेल की शिकायत पर मामले की जांच शुरू की थी। हाई कोर्ट में पटेल ने आरोप लगाया था कि यह दोनों न्यायाधीश भ्रष्टाचार में शामिल हैं। पटेल की शिकायत के अनुसार दोनों न्यायाधीशों के अदालत कक्ष में गुप्त कैमरे लगाए गए थे जिसमें फरवरी से अप्रैल 2014 के तीन महीने तक उनकी गतिविधि रिकार्ड कर ली। रिकार्डिंग में उन्हें फोन पर वकीलों से और लोगों से अनुकूल आदेश सुनाने के लिए पैसे के लेन-देन पर चर्चा करते सुना गया। दोनों को तब निलंबित किया गया जब सतर्कता प्रकोष्ठ ने 10 अन्य के साथ उनके खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की। इन लोगों में एक स्टेनोग्रॉफर और एक क्लर्प और आठ वकील शामिल हैं। जिन्होंने रिश्वत के जरिये कृपादृष्टि हासिल की। उधर राजस्थान के जयपुर में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने अब तक का सबसे बड़ा रिश्वत कांड का खुलासा करते हुए बुधवार उदयपुर में खान विभाग के एक एडीजीएम को ढाई करोड़ की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया है। एसीबी ने उनके साथ दो और बिचौलियों को भी गिरफ्तार किया। इनके घरों से नोटों से भरे बैग मिले हैं, जिनके बारे में तीनों से पूछताछ की जा रही है। इस बीच ताजा घटनाक्रम में एसीबी ने खनन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक सिंघवी के घर छापा मारकर उन्हें हिरासत में ले लिया। अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई में उदयपुर स्थित खान विभाग के दफ्तर से ही विभाग के एडीजीएम पंकज गहलोत को ढाई करोड़ की रिश्वत लेते पकड़ा है। हर जगह-हर विभाग में भ्रष्ट अफसर इसलिए बचे रहते हैं क्योंकि जिस सिस्टम को उनके खिलाफ सक्रिय होना चाहिए वह खुद भी ऐसी गतिविधियों में संलिप्त होते हैं। जब पूरे का पूरा सिस्टम ही करप्ट हो तो देश में भ्रष्टाचार कैसे रुकेगा? चाहे वह कुछ जज हों, नौकरशाह हों, राजनेता तो हैं ही।

-अनिल नरेन्द्र

गुलाम कश्मीर में चीनी निर्मित सुरंगों का उद्घाटन

पाकिस्तान का आज तमाम दुनिया में दोस्त नम्बर वन है चीन। चीन भी पाकिस्तान को स्वाभाविक भाई कहता है। पाक अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तान ने हजारों वर्ग मील चीन को बेच दिया है। आज की तारीख में पीओके में 5000 से ज्यादा चीनी सैनिक काम कर रहे हैं और तैनात हैं। इधर भारत-पाक सीमा पर पाक लगातार फायरिंग कर रहा है और युद्धविराम का उल्लंघन कर रहा है तो उधर लद्दाख क्षेत्र में घुस रहा है। क्या यह महज इत्तेफाक है या दोनों भाइयों की सोची-समझी साजिश? गुलाम कश्मीर के गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र में पाकिस्तान ने चीन के सहयोग से पांच सुरंगों का निर्माण किया है। करीब 275 करोड़ डॉलर की लागत से बनी इन पांच सुरंगों को पाकिस्तान-चीन मैत्री योजना का नाम दिया गया है। इन सुरंगों के जरिये पाकिस्तान गिलगिट-बाल्टिस्तान के रास्ते चीन से सामरिक सड़क मार्ग से जुड़ गया है। पांचों सुरंगों की लंबाई सात किलोमीटर है जो 24 किलोमीटर लंबी कारकोरम राजमार्ग परियोजना का हिस्सा है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सोमवार को पाक को चीन से जोड़ने वाली इन पांच सुरंगों का उद्घाटन किया। इन सुरंगों को चीन के सहयोग से तीन साल में तैयार किया गया है। इनके जरिये पाकिस्तान के उत्तर में स्थित कारकोरम राजमार्ग के करीब गिलगिट बाल्टिस्तान इलाके के हुंडा वैली स्थित एबटाबाद झील से आवाजाही बहाल हो सकेगी। इसको 46 अरब डॉलर की लागत वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना से जोड़ा जाएगा। रेडियो पाकिस्तान के मुताबिक इन सुरंगों का निर्माण 24 किलोमीटर लंबे कारकोरम राजमार्ग का हिस्सा है, जिसमें दो बड़े और 78 छोटे पुल भी शामिल हैं। इन सुरंगों का निर्माण नेशनल हाइवे अथॉरिटी ने माइना रोड एंड ब्रिज कारपोरेशन के सहयोग से किया है। इसके जरिये पाकिस्तान और चीन के बीच सड़क मार्ग से सम्पर्प भी बहाल हो जाएगा। केकेएच को 46 बिलियन डॉलर की लागत से तैयार होने वाले महत्वाकांक्षी पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारे से भी जोड़ने की योजना है। भारत गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता है और यहां किसी भी तरह के निर्माण या गतिविधि का विरोध करता रहा है। भारत के लिए इन महत्वपूर्ण क्षेत्र में चीन की मौजूदगी खतरा पैदा करती है। इससे भारत को दोहरी मार है। एक तो पाकिस्तान शेर हो जाता है और दूसरा चीन कभी भी हमें धमका सकता है। भारत ने अभी तक पीओके क्षेत्र के बारे में कोई ठोस रणनीति तैयार नहीं की है। इसका ही नतीजा है कि अब वहां चीन भी घुस गया है। हमारी सिरदर्दी और बढ़ गई है।

Saturday 19 September 2015

Arrest in India of first woman IS agent?

Muslims should follow Abu Bakr al-Baghdadi, the IS (Islamic States) chief as their role model. Forcibly convert non-Muslims into Islam you’ll be given place in the heaven i.e. Allah will bless you with an entry in Jannah. Such type of fire-breathing sermons are posted on the Facebook wall of Afshan Jabeen working for Islamic State (IS) arrested some days ago. The first Indian woman Afshan Jabeen working for dreaded terrorist outfit IS deeply rooted in Iraq and Syria has been arrested from Hyderabad after being deported from UAE to India. Afshan Jabeen alias Nichole Joseph who used to recruit online for IS was deported to India from UAE last Thursday alongwith her husband and three daughters. Her husband has been identified as Devendra Batra alias Mustafa. The woman was arrested by the Hyderabad police at Rajiv Gandhi Airport soon after reaching India.

The IS connection of this woman was detected in January when a young technocrat Salman Moinuddin informed about it after being arrested at Hyderabad Airport while leaving for Dubai. Aged around 30-35 years Salman Moinuddin told the police that a woman named Nicky Joseph claiming to be a British citizen met him online and told Salman that she loves him. During the interrogation he also told the police that the woman wanted to flee to Syria with him so that Salman could be recruited into IS. Though Salman is married and a post graduate in science and has worked earlier for IS. Jabeen was living in Dubai but as soon as Indian agencies found proofs against her they immediately contacted UAE authorities and got her deported to India. Interrogation of Afshan Jabeen is continuing.

UAE has deported four more Indians after deporting of Afshan Jabeen. Investigation from Afshan Jabeen working for IS are continuing. Though it was not fully disclosed whether 37 year old Afshan Jabeen alias Nicky Joseph was in direct contact with IS leaders or not. It has been disclosed in the interrogation that in the year 2014 an incident occurred in Gaza in which many Muslims died. Afshan Jabeen became an orthodox Muslim after the incident. She formed four groups on Facebook.  Afshan began to spit fire on the social media and started a campaign to forcibly convert non-Muslims into Islam. She also wrote on her wall that whosoever converts a non-Muslims into Islam in the name of Jehad will be given place in Jannah by Allah. IS threats in India are increasing and if our government and security agencies are not alert it may result in a disaster.  Many supporters of I.S like Afshan Jabeen are also present within India. Some outfits like SIMI also have soft corner for IS.

Of late IS has been engaged in the campaign of engaging Indian Muslims living in the Gulf countries. Concerned over negligible response from world’s second largest Muslim populated India, IS leaders are luring Indians living in counties like United Arab Emirates (UAE), Saudi Arabia, Kuwait and Yemen in the name of strengthening Islam. UAE decided to deport four more Indians lured by such delusion after deporting Afshan Jabeen. At first sight UAE has started pushing its dirt to India. According to MHA sources these four Muslim youths reached here on Tuesday belong to Kozhikode and Thiruvananthapuram in Kerala. Sources revealed that four more youths have been identified in Dubai having attraction for IS.  In fact these eight youths were in contact with a north Indian and a Bangladeshi present in Syria. An agency official watching the worldwide activities of IS told that after being declared non-Islamic by the Indian Muftis and Ulemas, IS leaders are giving more attention towards Muslim Indians living abroad for 10 to 15 years. In an attempt to counter the declaration of Ulemas regarding IS being non-Islamic likely to be included in the speech of Prime Minister Narendra Modi. He is scheduled to visit US in the last week of this month.

Sources said that in IS huge recruitments is also on in Europe. Thus it has become a matter of concern and tension in various European countries. India will have to combat IS at its own. US president has announced that he will not deploy his army for any ground battle with IS. If India assumes that the US will help it in combating IS it will be befooling oneself.  Asad government in Syria no matter how worse it may be, today is in the best position to put a check on IS on the ground level. Other gulf countries like Saudi Arabia etc. do not have enough courage or strength to combat IS. One thing is beyond comprehension i.e. Iran’s attitude over the whole issue. Being a Shia country why doesn’t it openly help Syria’s Asad (Shia) government? IS has become a threat for India. India should realize this as soon as possible.

-        Anil Narendra

 

स्मार्ट गांव तो अवश्य बनाओ पर पहले सूखे से तो निपटो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ग्रामीण इलाकों में सड़कें और रेलवे विस्तार के साथ स्मार्ट गांव बनाने की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं को मूर्त रूप देने की तैयारी की है जिसका तहेदिल से हम स्वागत करते हैं पर देश के अन्नदाता किसान की आज भी जिन्दगी, समृद्धि, खुशहाली बारिश पर आधारित है और इस दिशा में सरकार से ज्यादा उसे मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है। मानसून की दगाबाजी ने कमोबेश देश के आधे हिस्से का जो बुरा हाल किया है उसे देखते हुए हमारी राय में आज पहली जरूरत गांवों के अस्तित्व को बचाने की दिखती है। मानसून की हालांकि अभी विदाई की औपचारिक घोषणा तो नहीं हुई है लेकिन अब तक के रिकॉर्ड से पता चलता है कि लगातार दूसरे वर्ष देश को सूखे से जूझना होगा। इस समय देश का 44 फीसदी हिस्सा बारिश की कमी से जूझ रहा है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे खेती बाहुल्य राज्य सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार पूरे देश में अभी तक सामान्य से 16 फीसदी कम वर्षा हुई है। आईएमडी की मानें तो सोमवार तक देश के महज छह फीसदी हिस्से में सामान्य से अधिक बरसात दर्ज की गई है। वहीं 50 फीसदी इलाके में सामान्य बारिश हुई है। सबसे नाजुक स्थिति उत्तर प्रदेश की है। प्रदेश के पूर्वी हिस्से में करीब 42 फीसदी और पश्चिमी हिस्से में 44 फीसदी कम बारिश हुई है। महाराष्ट्र में मराठवाड़ा के तीन जिले भीषण सूखे की चपेट में हैं। इस साल जनवरी से अब तक बीड़, उस्मानाबाद और लातूर के 400 से ज्यादा किसान मौत को गले लगा चुके हैं। सूखाग्रस्त जिलों में बारिश नहीं होने के कारण खरीफ की फसल पूरी तरह से चौपट हो चुकी है। कम बारिश होना और सूखा पड़ना भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। देश में 2005 से 2015 तक यानि 11 सालों में सात वर्ष ऐसे रहे हैं जब सामान्य से कम या बहुत कम बारिश हुई है। मौजूदा साल इस मामले में सबसे खराब वर्ष साबित हुआ। इस साल अब तक सामान्य से 13 फीसदी वर्षा कम हुई है। भारत के कुछ हिस्सों को छोड़ दिया जाए तो बारिश के कारण खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है। अनुभव तो यही बताता है कि खराब मानसून का सीधा असर जीडीपी पर पड़ता है जिसमें कृषि क्षेत्र का योगदान 15 फीसदी के आसपास होता है। सरकार ने आठ फीसदी विकास दर की उम्मीद जताई थी जिसके विपरीत पिछले पखवाड़े में ही इसके सात फीसदी तक रहने का अनुमान जताया गया है। सवाल यह है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आखिर कब तक प्रकृति की मोहताज बनी रहेगी जबकि देश की दो-तिहाई आबादी आज भी खेत-खलिहानों के भरोसे पेट चलाती है। भूलना नहीं चाहिए कि जिन चार राज्यों में आज सूखा मंडरा रहा है वहां से देश के खाद्य उत्पाद का करीब एक-तिहाई भाग बनता है। सूखे की चुनौती सिर्प खेती तक ही सीमित नहीं है, लगातार मानसून कमजोर रहने से भूजल स्तर भी नीचे आ जाता है जिससे निपटने के लिए गंभीर प्रयासों की सख्त जरूरत है।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी की सफल विदेश नीति रंग ला रही है

कार्यभार संभालने के साथ ही विदेश नीति के क्षेत्र में सक्रियता बरत रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अथक प्रयासों के परिणाम सामने आने लगे हैं। अरसे से अपने लिए संयुक्त राष्ट्र परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सीट की मांग कर रहे भारत को संयुक्त राष्ट्र में बड़ी कामयाबी मिली है। सुरक्षा परिषद के विस्तार की बातचीत पर सहमति बन गई है, जिसे भारत के लिए अच्छी खबर माना जा रहा है। खास बात यह है कि भारत के प्रस्ताव को यह मंजूरी उसके परंपरागत प्रतिद्वंद्वी चीन के विरोध को दरकिनार कर मिली है जो खुद तो इस सर्वोच्च निर्णयकारी संस्था में वीटो प्राप्त स्थायी सदस्य है किन्तु भारत की सदस्यता या प्रस्तावों में वह सदैव अड़ंगा लगाता रहा है। चूंकि परिषद का ढांचा लंबे समय से ऐसे ही ढर्रे पर चल रहा है और यूरोप तथा पांच स्थायी सदस्यों के हितों के पक्ष में उसका झुकाव साफ-साफ दिखता है, इस कारण अनेक देश पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से सुरक्षा परिषद का विस्तार और उसके मौजूदा ढांचे में बदलाव चाहते हैं। दूसरी ओर सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से ज्यादातर न सिर्प यथास्थिति बनाए रखने के पक्षपाती हैं बल्कि दुनिया की इस सबसे बड़ी पंचायत में अब तक बदलाव से संबंधित कोई प्रस्ताव भी नहीं आया था। इस लिहाज से सुरक्षा परिषद के विस्तार से संबंधित चर्चा को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सर्वसम्मति से मिली मंजूरी को स्वाभाविक ही एक ऐतिहासिक घटनाक्रम बताया जा सकता है। सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी जता रहे भारत के लिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह एक बड़ी कूटनीतिक जीत है। भारत लंबे समय से इसकी मांग करता आ रहा है और केंद्रीय सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने हर विदेशी दौरे में यह मुद्दा उठाया है। अब संयुक्त राष्ट्र की बैठक में 200 सदस्य देशों ने सुरक्षा परिषद में सुधार और विस्तार का सुझाव देने वाले दस्तावेज को अगले साल तक तैयार करने के लिए सहमति जता दी है। फैसला लेने वाली सर्वोच्च संस्था में 15 देश हैं जिनमें रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका सहित पांच को स्थायी सदस्यता प्राप्त है। ऐसा पहली बार हुआ है जब विभिन्न देशों ने लिखित सुझाव देकर बताया कि प्रस्ताव में क्या लिखा जाए। अमेरिका, रूस और चीन ने इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया पर भारत की कोशिशों पर इससे पानी नहीं फिरा है। पहले इसे भारत की स्थायी सदस्यता की मांग को झटका देने की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा था। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने, उत्तरोत्तर तक आर्थिक शक्ति बनने, संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में उल्लेखनीय भूमिका निभाने और अनेक सदस्य देशों का समर्थन होने के कारण भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता तो मिलनी ही चाहिए। अलबत्ता यह इतना आसान भी नहीं होगा। फिलहाल यह कहा जा सकता है कि इससे भारत की स्थायी सदस्यता की उम्मीद तो बनती ही है।

Friday 18 September 2015

आईएस की पहली महिला एजेंट की गिरफ्तारी?

मुसलमानों को अबू अल बगदादी जो आईएस प्रमुख है, को अपना आदर्श बनाना चाहिए। गैर मुसलमानों का जबरन मुस्लिम धर्म में परिवर्तन करो तो अल्लाह तुम्हें जन्नत में मुकाम अता फरमाएंगे यानि अल्लाह तुम्हें जन्नत में स्थान देंगे। इस तरह की आग उगलने वाले पैगाम पिछले कुछ दिन पूर्व गिरफ्तार हुई इस्लामिक स्टेट (आईएस) के लिए काम कर रही अफशा जबीन की फेसबुक वॉल पर पड़े हैं। इराक और सीरिया में अपनी जड़ें जमा चुके बर्बर आतंकी संगठन आईएस के लिए एजेंट के तौर पर काम करने वाली पहली भारतीय महिला अफशा जबीन को यूएई से भारत डिपोर्ट किए जाने के बाद हैदराबाद से गिरफ्तार कर लिया गया है। अशफा जबीन उर्प निकोल जोसेफ जो आईएस के लिए ऑनलाइन भर्ती करती थी, को उसके पति और तीन बेटियों के साथ गत बृहस्पतिवार को दुबई से भारत डिपोर्ट कर दिया गया था। उसके पति की पहचान देवेन्द्र बत्रा उर्प मुस्तफा हुई है। भारत पहुंचने के बाद महिला को हैदराबाद पुलिस ने शुक्रवार को राजीव गांधी एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया। इस महिला के तार आईएस से जुड़े होने का खुलासा उस समय जनवरी में हुआ था जब हैदराबाद एयरपोर्ट से दुबई रवाना होते समय गिरफ्तार किए गए एक युवा टेक्नोकेट सलमान मोइनुद्दीन ने उसकी जानकारी दी थी। लगभग 30-35 साल के मोइनुद्दीन ने पुलिस को बताया था कि खुद को निक्की जोसेफ नाम की ब्रिटिश नागरिक बताने वाली एक महिला उसे ऑनलाइन मिली थी और बताया था कि वह सलमान से प्यार करती है। उस दौरान उसने पुलिस को बताया था कि वह महिला उसके साथ भागकर सीरिया जाना चाहती है ताकि सलमान को आईएस में भर्ती किया जा सके। हालांकि सलमान मोइनुद्दीन विवाहित है और विज्ञान में पोस्ट-ग्रेजुएट है और पहले आईएस के लिए काम कर चुका है। जबीन वर्तमान में दुबई में रह रही थी। लेकिन भारतीय एजेंसी को जैसे ही उसके बारे में सबूत मिले उन्होंने तुरन्त यूएई के अधिकारियों से सम्पर्प किया और उसे भारत डिपोर्ट कराया गया। अफशा जबीन से पूछताछ जारी है। अफशा जबीन को भारत भेजने के बाद यूएई ने चार और भारतीयों को भारत भेजा है। आईएस के लिए काम करने वाली अफशा जबीन से छानबीन जारी है। हालांकि इस बात का पूर्ण रूप से खुलासा नहीं हुआ कि 37 वर्षीय अफशा जबीन उर्प निक्की जोसेफ आईएस लीडरों के सीधे सम्पर्प में थी या नहीं। पूछताछ में इस बात का खुलासा हुआ है कि वर्ष 2014 में गाजा में घटना घटी थी, जिसमें काफी मुसलमानों की मौत हुई थी। उस घटना के बाद अफशा जबीन कट्टर मुसलमान हो गई। उसके बाद उसने फेसबुक पर चार ग्रुप बनाए। उस फेसबुक पर अफशा ने आग उगलनी शुरू कर दी और गैर मुसलमानों को भी मुस्लिम धर्म में जबरन परिवर्तित कराने की मुहिम छेड़ दी। वह फेसबुक पर यह भी डालती थी कि जेहाद के नाम पर जो भी गैर मुसलमानों को मुस्लिम धर्म में परिवर्तित करेगा उसे अल्लाह जन्नत में मुकाम अता फरमाएगा। भारत में आईएस का खतरा बढ़ता जा रहा है और अगर हमारी सरकार और सुरक्षा एजेंसियां चौकस नहीं हुई तो अनर्थ हो जाएगा। अफशा जबीन जैसे काफी समर्थक भारत में भी मौजूद हैं। कुछ सिमी जैसे संगठन भी आईएस से हमदर्दी रखते हैं। आईएस अब खाड़ी देशों में रह रहे भारतीय मुसलमानों को शामिल करने की भी मुहिम में लगा हुआ है। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मुस्लिम जनसंख्या वाले भारत से नगण्य बहाली से चिंतित आईएस के गुर्गे संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) सऊदी अरब, कुवैत और यमन जैसे देशों में सालों से रह रहे भारतीयों को इस्लाम मजबूत करने के नाम पर रिझा रहे हैं। इसी झांसे में आई अफशा जबीन को वापस भेजने के बाद यूएई ने चार और भारतीयों को वापस भेजने का फैसला किया। एक दृष्टि से यूएई अपने गंद को भारत में धकेलने लगा है। गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक मंगलवार को भारत पहुंचे ये चार मुस्लिम युवक केरल के कोझीकोड और तिरुवनंतपुरम के रहने वाले हैं। सूत्रों ने बताया कि यूएई में चार और युवकों की पहचान की गई है जो आईएस की तरफ आकर्षित हैं। दरअसल ये आठों युवक सीरिया में मौजूद एक उत्तर भारतीय और एक बांग्लादेशी के सम्पर्प में थे। आईएस की विश्वव्यापी गतिविधि पर नजर रख रही एजेंसी के अधिकारी ने बताया कि भारत के मुफ्तियों और उलेमाओं की ओर से आईएस को गैर इस्लामिक करार दिए जाने के बाद उसके गुर्गे विदेश में 10 से 15 साल से रह रहे मुस्लिम भारतीयों की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इसकी काट की कोशिश में उलेमाओं ने आईएस के गैर इस्लामिक करार दिए जाने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का हिस्सा बनाया जाएगा। मोदी इस महीने के आखिरी हफ्ते में अमेरिका जाने वाले हैं। सूत्रों के मुताबिक यूरोप में आईएस में सबसे ज्यादा भर्ती हो रही है। इसी वजह से यूरोप के कई देशों के लिए यह चिन्ता और तनाव का बड़ा विषय बना हुआ है। भारत को आईएस से अपने दमखम पर मुकाबला करना होगा। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने घोषणा कर दी है कि वह आईएस से मुकाबला करने के लिए जमीनी जंग लड़ने को अपनी सेना नहीं उतारेंगे। अगर भारत यह सोचे कि अमेरिका आईएस को रोकने के लिए भारत की मदद करेगा तो अपने आपको धोखे में रखेगा। सीरिया में असद सरकार चाहे वह जितनी भी बुरी हो आज जमीन पर आईएस को रोकने की सबसे अच्छी स्थिति में है। भारत को असद सरकार की हरसंभव मदद करनी होगी। आईएस को अब रोकने की कुव्वत सऊदी अरब इत्यादि खाड़ी के अन्य देशों में नहीं है। एक बात समझ से बाहर जो है पूरे मसले पर ईरान का रुख। शिया देश के नाते वह असद (शिया) की सरकार की खुलकर मदद क्यों नहीं कर रहा? आईएस भारत के लिए खतरा बन चुका है। इस हकीकत को भारत जल्द से जल्द समझ ले।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday 17 September 2015

डेंगू का प्रकोप सितम्बर से ज्यादा खतरनाक अक्टूबर

दिल्ली में डेंगू का पकोप घटने की जगह बढ़ता जा रही है। दिल्ली में डेंगू के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अब तक 1800 मामले आ चुके हैं जिसमें अकेले सितम्बर के दो हफ्तों में ही 104 मामले देखे गए हैं। अभी आधा सितम्बर बाकी है। इस लिहाज से इस साल पिछले 5 सालों की तुलना में डेंगू ज्यादा डेंजरस साबित होता दिख रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि डेंगू के मामले सितम्बर से ज्यादा अक्तूबर में बढ़ते हैं। एमसीडी के आंकड़े भी यही कह रहे हैं। लगभग हर साल अक्तूबर में डेंगू के मामले सितम्बर से ज्यादा रहे है। ऐसे में डाक्टरों का कहना है कि सितम्बर हाई ब्रीडिंग का समय होता है। बारिश के बाद इधर-उधर पानी जमा रहता है। इस माह तापमान और उमस डेंगू मच्छरों के अनुकूल होता है। जिन मच्छरों की ब्रीडिंग सितम्बर के अंत तक होती है वे अक्तूबर तक ज्यादा सकिय रहते हैं। लाडो-सराय की घटना के बाद अब दिल्ली के श्रीनिवासपुरी में भी अस्पतालों की अनदेखी की वजह से एक और मासूम की डेंगू से मौत हो गई। जानकारी के अनुसार बुखार की शिकायत के बाद छह साल के अमन को श्रीनिवासपुरी के एक निजी अस्पताल में भती कराया गया था। वहां जांच में डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे को डेंगू है। इसके बाद परिजन आनन फानन में बच्चे को लेकर केंद्र सरकार के सबसे बड़े अस्पताल सफदरजंग लेकर गए। लेकिन ताज्जुब है कि वहां डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे को डेंगू नहीं है। परिजन बच्चे को लेकर घर पर आ गए। घर पर जब बच्चे की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई तो उसे पास के अस्पताल ले गए लेकिन वहां डॉक्टरों ने कहा कि बच्चे को कहीं और ले जाइए, यहां इलाज मुश्किल है। इसके बाद बच्चे को लेकर परिजन मूलचंद और बत्रा अस्पताल भटकते रहे। कहीं उन्हें बेड नहीं मिला। अंत में एक निजी अस्पताल ले गए लेकिन आखिरकार मासूम अमन की मृत्यु हो गई। दिल्ली नगर निगम की ओर से सोमवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक बीते सप्ताह डेंगू के 613 नए मामले सामने आए हैं। अब तक इस वर्ष डेंगू के 1872 केस सामने आ चुके हैं। दिल्ली में डेंगू के बढ़ते मामलों में चिकित्साकमी कम पड़ने लगे हैं। कुछ अस्पतालों की ओर से डॉक्टरों व दूसरे कर्मियों की मांग की गई है। मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए दिल्ली सरकार ने सभी अस्पतालों के डॉक्टरों, नर्सें और पैरा मेडिकल स्टॉफ की छुट्टियां रद्द करने का निर्णय लिया है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने सभी अस्पतालों में स्पेशल फीवर क्लीनिक खोलने के निर्देश भी दिए हैं। डेंगू पर दिल्ली नगर निगम के आंकड़े कुछ कहें लेकिन वास्तविक सच्चाई इससे अलग है। भारत सरकार, दिल्ली सरकार और नगर निगम के अस्पताल डेंगू के मरीजों से भरे पड़े हैं। अलग वार्डों में भी जगह खाली नहीं है। सियासत चमकाने की बजाय सभी को इस समस्या से कैसे निपटा जाए इस पर ध्यान देना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद शिक्षा मित्रों में हताशा

उत्तर पदेश की अखिलेश यादव सरकार को हाई कोर्ट से झटके पर मटके मिल रहे हैं तो इसके लिए उसकी अपारदर्शी कार्यपणाली ही जिम्मेदार है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने करीब पौने दो लाख शिक्षा मित्रों को शिक्षक बनाने के सरकार के फैसले को उलट दिया और कहा कि मानकों का पालन नहीं किया गया है। हाई कोर्ट को यह मामला इतना जरूरी लगा कि अवकाश के दिन शनिवार को तीन सदस्यीय बेंच ने सर्वसम्मति से सरकार के फैसले को पलटते हुए सारी नियुfिक्तयों को रद्द कर दिया। इस फैसले की राज्य में भयंकर पकिया होना स्वाभाविक ही था। राज्य के अलग-अलग जिलों में शिक्षा मित्रों की सदमे से मौत या खुदकुशी करने के मामले सामने आ रहे हैं। अब तक छह शिक्षा मित्रों की जान जा चुकी है। पूरे राज्य में जगह-जगह हा-हाकार मची हुई है। स्कूल बंद किए जा रहे हैं, टेनें रोकी गईं वहीं सम्भल में ज्ञापन देकर राष्ट्रपति तथा पधानमंत्री से इच्छा मृत्यु की अनुमति की गुहार लगाई गई है। बरेली में शिक्षा मित्रों ने बैठक कर कलेक्ट्रेट पर पदर्शन के बाद डीएम को ज्ञापन दिया। ज्ञापन में राष्ट्रपति को पत्र भेजकर इच्छा मृत्यु देने का अनुरोध किया गया है। इनकी संख्या 3400 है। फैजाबाद के आदित्य नगर में शिक्षा मित्रों की बैठक के दौरान एक शिक्षा मित्र को हार्ट अटैक आ गया उसको गंभीर हालत में जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। शिक्षा मित्रों की हड़ताल के कारण सैकड़ों पाइमरी स्कूल बंद हैं। पदेश में एक लाख 72 हजार शिक्षा मित्रों के सामने आजीविका की समस्या खड़ी हो गई है। इसके अलावा ज्यादातर शिक्षा मित्रों की उम्र सरकारी नौकरी पाने के लिए निर्धारित आयु से ज्यादा हो चुकी है, लिहाजा वे दोराहे पर खड़े हो गए हैं। बेशक शिक्षा मित्रों की पीड़ा समझी जा सकती है जिनमें से कुछ ने हताशा में आत्महत्या जैसा कदम भी उठाया है। लेकिन इस पूरे पसंग में उत्तर पदेश सरकार की भूमिका ज्यादा कचोटने वाली है। स्थाई और पशिक्षित शिक्षकों की नियुqिक्ति की बजाय सूबे की पाथमिक शिक्षा करीब डेढ़ दशक से जिस तरह शिक्षा मित्रों के हवाले कर दी गई, अव्वल तो यही बहुत हैरान करने वाली बात है। जिस तरह उत्तर पदेश की सरकारें ने इन शिक्षा मित्रों को स्थाई शिक्षक बनाने की शुरुआत की थी वह भी नियम-कानून को ताक पर रखकर। इससे शिक्षक बनने की लाइन में लगे बेरोजगार नौजवानों को बड़ा आघात तो पहुंचा ही लेकिन उन्हें इसके लिए हाई कोर्ट को दोषी मानने की बजाय सरकार की अपारदर्शी कार्य पद्धति को दोषी मानना चाहिए। इन नियुक्तियों में मायावती सरकार के समय की गई नियुक्तियां भी शामिल हैं। लिहाजा मायावती भी कठघरे में हैं। इससे पहले हाई कोर्ट ने साढ़े 38 हजार सिपाहियों की नियुक्तियां भी रद्द की थीं। नोएडा समेत तीन पाधिकरणों के चीफ इंजीनियर यादव सिंह का आर्थिक गोलमाल जब सामने आया तो पूरी सरकार उसके साथ खड़ी हो गई। उसकी सीबीआई जांच का विरोध करने के लिए सुपीम कोर्ट तक पहुंच गई। सुपीम कोर्ट ने सरकार को फटकारा था। बीती सदी के आठवें दशक में पाथमिक शिक्षा के विकेद्रीकरण और स्थानीय युवकों को रोजगार देने के लिए शिक्षा मित्रों की जो शुरुआत की गई थी वह एक पयोग के तौर पर तो ठीक मानी जा सकती है पर जब राज्यों ने इसे भी अध्यापकों की भर्ती का तरीका मान लिया। एक के बाद एक राज्य में पाथमिक शिक्षा ठेके पर नियुक्त शिक्षकों के हवाले कर दी गई। बेहतर हो कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह फैसला दूसरे राज्यों में भी शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त इस विसंगति को दूर करने का अवसर बने। इससे हमारी शिक्षा व्यवस्था भी बेहतर होगी, जब शिक्षकों की पतिभा, योग्यता और उनके पशिक्षण को पाथमिकता दी जाएगी। पर फिलहाल तो उत्तर पदेश की अखिलेश सरकार इस फैसले से सकते में आ गई है। संभव है कि सरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुपीम कोर्ट में चुनौती दे और इस फैसले पर स्टे करवाए। तब तक उसे इस नई समस्या से कैसे जूझना है। इस पर तत्परता से विचार करना होगा।

Wednesday 16 September 2015

दिल्ली का भगौड़ा पूर्व कानून मंत्री भारती

आप पार्टी के आम आदमी मालवीय नगर से विधायक व पेशे से वकील पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती पर दहेज प्रताड़ना और हत्या के प्रयास सहित कई धाराओं में गत बुधवार शाम एफआईआर  दर्ज की गई। दक्षिण-पश्चिम रेंज के संयुक्त आयुक्त दीपक पाठक ने बताया कि भारती की पत्नी लिपिका मित्रा ने इस साल जून में शिकायत दर्ज कराई थी, उसी आधार पर केस दर्ज किया गया है। भारती की पत्नी लिपिका मित्रा ने इस साल 10 जून को दिल्ली महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि 2010 में शादी के समय ही उनके पति दुर्व्यवहार करते रहे हैं। उन्होंने इस बाबत पुलिस से भी शिकायत की थी। द्वारका स्थित क्राइम अंगेस्ट विमेन सेल में काउंसिलिंग में पुलिस चाहती थी कि सोमनाथ भारती और लिपिका समझौता कर लें। लेकिन चार बार हुई काउंसिलिंग के बाद भी नतीजा सिफर रहा। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि काउंसिलिंग के दौरान लिपिका और सोमनाथ में काफी तनाव देखा गया, लिपिका ने कई बार बोला कि वह सोमनाथ को देखना पसंद नहीं करती हैं। दिल्ली पुलिस के एक आला अफसर के मुताबिक एफआईआर दर्ज होने के अगले दिन सोमनाथ को द्वारका नॉर्थ थाने से पुलिस ने नोटिस जारी किया और उन्हें पूछताछ के लिए थाने आने और जांच में शामिल होने के लिए कहा। उन्हें गत शुक्रवार को 12 बजे तक पेश होना था। जब वह नहीं आए तो पुलिस उनकी तलाश में जुट गई और शुक्रवार को ही कई स्थानों पर छापेमारी की। उधर सोमनाथ भारती ने गिरफ्तारी से बचने के लिए दिल्ली की एक स्थानीय अदालत में अग्रिम जमानत याचिका लगा दी। भारती की अग्रिम जमानत (एंटीसिपेटरी बेल) अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजय गर्ग ने खारिज करते हुए कहा कि विधायक के खिलाफ उनकी पत्नी लिपिका मित्रा ने यह दूसरी शिकायत दर्ज कराई है। लिपिका का आरोप है कि महिला विरोधी अपराध प्रकोष्ठ के समक्ष भरोसा देने के बावजूद भारती ने अपने व्यवहार में सुधार नहीं किया। जज महोदय ने अपने फैसले में कहाöऐसा आरोप है कि अपीलकर्ता ने अपने आचरण में सुधार नहीं किया और शिकायतकर्ता के प्रति बर्बरता जारी रखी। तथ्यों को सम्पूर्णता में देखते हुए अपीलकर्ता अग्रिम जमानत के हकदार नहीं है। इसके मुताबिक आवेदन को खारिज किया जाता है। अब भारती के वकील ऊपरी अदालतों का दरवाजा खटखटाएंगे पर उनकी गिरफ्तारी अब किसी भी समय संभव है। दिल्ली सरकार का पूर्व कानून मंत्री आज की तारीख में भगौड़ा बन गया है और कानूनी रूप से फरार है। सोमनाथ भारती ने अपनी तो थू-थू करवाई है साथ-साथ आम आदमी पार्टी (आप) की भी बेइज्जती करवा दी है। आप पार्टी ने सारे मामले में अपने आपको यह कहते हुए अलग कर लिया है कि यह पारिवारिक मामला है और ऐसे मामलों में हम कुछ नहीं कहना चाहेंगे। अच्छा उदाहरण पेश किया है सोमनाथ भारती ने।

-अनिल नरेन्द्र

ओवैसी की ताल से परेशान नीतीश-लालू

एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बिहार के सीमांचल में चुनाव लड़ने की घोषणा ने बिहार के नीतीश-लालू महागठबंधन में हलचल मचा दी है। घोषणा के एक दिन बाद ही तमाम सियासी दल रणनीति बनाने में जुट गए हैं। ओवैसी की जोर-आजमाइश बेशक सीमांचल के चार जिलों में 24 सीटों पर सिमटी होगी लेकिन विधानसभा की करीब 10 फीसद सामर्थ्य वाला यह चुनावी इलाका अगर सत्ता संघर्ष में उलटफेर करने वाला साबित हो तो आश्चर्य की बात नहीं। महागठबंधन के लिए झटका खास पीड़ादायक होगा क्योंकि इस मुस्लिम बहुल इलाके से उसे दोहरी उम्मीदें थींöसीटों की संख्या बढ़ेगी और भाजपा को करारी शिकस्त देने में वह सफल रहेगी। सीमांचल के यह चार जिले खासकर लालू प्रसाद यादव के मुस्लिम-यादव (एम-वाई) फॉर्मूले की भी आदर्श प्रयोगशाला थी। माहौल को आक्रामक रुख देते हुए भाजपा के गिरिराज सिंह ने ओवैसी को शैतान बताते हुए कहा कि ऐसे जहरीले लोगों से हमें फर्प नहीं पड़ता। वहीं नीतीश की जेडीयू ने ओवैसी को भाजपा का एजेंट बताते हुए कहा कि वे वोट काटकर भाजपा को फायदा पहुंचाने आए हैं। लेकिन बिहार में ओवैसी फैक्टर काम नहीं करने वाला। दूसरी ओर खुद ओवैसी ने कहाöअब वक्त आ गया है कि बिहार ही नहीं, पूरे देश में मुस्लिमों को उनका सियासी हक मिलना चाहिए। कम से कम 60 सांसद मुस्लिमों के बनने चाहिए। कांग्रेस ने भी ओवैसी को भाजपा का मददगार बताया है। उधर महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने भी बिहार में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। शिवसेना सांसद व नेता संजय राउत ने कहा कि एक मौका हमें भी दें। हम बिहार में 50 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। जब उनसे पूछा गया कि आप तो एनडीए का हिस्सा हो तो राउत ने कहा कि वो सिर्प लोकसभा और महाराष्ट्र में एनडीए के साथ हैं। बाकी जगह हम अलग हैं। अगर ओवैसी नीतीश कुमार के महागठबंधन के लिए वोट काटू बन सकते हैं तो शिवसेना भाजपा गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकती है। हालांकि यह कहा जा सकता है कि न तो ओवैसी का और न ही शिवसेना का बिहार में कोई खास रसूख है। वैसे ओवैसी का आना अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि सीमांचल में पिछले दिनों उनकी जनसभा को असरदार समर्थन मिला था। लेकिन इसका असल झटका तो उन धर्मनिरपेक्ष ताकतों को लगेगा जो भाजपा के विजय अभियान का रथ थामने की तमाम उम्मीदें बांधे बैठी हैं। भाजपा के लिए तो बिहार चुनाव जीवन-मरण का सवाल है क्योंकि उसने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर जुआ खेला है। ओवैसी अगर बिहार में अच्छी सम्मानजनक सीटें पा जाते हैं तो पूरे देश की मुस्लिम सियासत में एक नया मुकाम बना सकते हैं।