Saturday, 19 September 2015

मोदी की सफल विदेश नीति रंग ला रही है

कार्यभार संभालने के साथ ही विदेश नीति के क्षेत्र में सक्रियता बरत रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अथक प्रयासों के परिणाम सामने आने लगे हैं। अरसे से अपने लिए संयुक्त राष्ट्र परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सीट की मांग कर रहे भारत को संयुक्त राष्ट्र में बड़ी कामयाबी मिली है। सुरक्षा परिषद के विस्तार की बातचीत पर सहमति बन गई है, जिसे भारत के लिए अच्छी खबर माना जा रहा है। खास बात यह है कि भारत के प्रस्ताव को यह मंजूरी उसके परंपरागत प्रतिद्वंद्वी चीन के विरोध को दरकिनार कर मिली है जो खुद तो इस सर्वोच्च निर्णयकारी संस्था में वीटो प्राप्त स्थायी सदस्य है किन्तु भारत की सदस्यता या प्रस्तावों में वह सदैव अड़ंगा लगाता रहा है। चूंकि परिषद का ढांचा लंबे समय से ऐसे ही ढर्रे पर चल रहा है और यूरोप तथा पांच स्थायी सदस्यों के हितों के पक्ष में उसका झुकाव साफ-साफ दिखता है, इस कारण अनेक देश पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से सुरक्षा परिषद का विस्तार और उसके मौजूदा ढांचे में बदलाव चाहते हैं। दूसरी ओर सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से ज्यादातर न सिर्प यथास्थिति बनाए रखने के पक्षपाती हैं बल्कि दुनिया की इस सबसे बड़ी पंचायत में अब तक बदलाव से संबंधित कोई प्रस्ताव भी नहीं आया था। इस लिहाज से सुरक्षा परिषद के विस्तार से संबंधित चर्चा को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सर्वसम्मति से मिली मंजूरी को स्वाभाविक ही एक ऐतिहासिक घटनाक्रम बताया जा सकता है। सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी जता रहे भारत के लिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह एक बड़ी कूटनीतिक जीत है। भारत लंबे समय से इसकी मांग करता आ रहा है और केंद्रीय सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने हर विदेशी दौरे में यह मुद्दा उठाया है। अब संयुक्त राष्ट्र की बैठक में 200 सदस्य देशों ने सुरक्षा परिषद में सुधार और विस्तार का सुझाव देने वाले दस्तावेज को अगले साल तक तैयार करने के लिए सहमति जता दी है। फैसला लेने वाली सर्वोच्च संस्था में 15 देश हैं जिनमें रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका सहित पांच को स्थायी सदस्यता प्राप्त है। ऐसा पहली बार हुआ है जब विभिन्न देशों ने लिखित सुझाव देकर बताया कि प्रस्ताव में क्या लिखा जाए। अमेरिका, रूस और चीन ने इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया पर भारत की कोशिशों पर इससे पानी नहीं फिरा है। पहले इसे भारत की स्थायी सदस्यता की मांग को झटका देने की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा था। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने, उत्तरोत्तर तक आर्थिक शक्ति बनने, संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में उल्लेखनीय भूमिका निभाने और अनेक सदस्य देशों का समर्थन होने के कारण भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता तो मिलनी ही चाहिए। अलबत्ता यह इतना आसान भी नहीं होगा। फिलहाल यह कहा जा सकता है कि इससे भारत की स्थायी सदस्यता की उम्मीद तो बनती ही है।

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