Sunday 13 September 2015

बढ़ते मादक पदार्थों के सेवन से देश बर्बाद हो रहा है

मादक पदार्थों की ओर बढ़ती नशे की लत से भारत हलकान हो रहा है। मामला चाहे नौनिहालों में बढ़ती नशे की लत हो या फिर आतंकवाद को बढ़ाने के लिए मादक पदार्थों की तस्करी हो दोनों से ही देश की चिन्ता बढ़ना स्वाभाविक है। पिछले दिनों खबर आई थी कि गोवा में बड़ी तादाद में स्कूली बच्चों के मादक पदार्थों की लत का शिकार होने की गहरी चिन्ता का विषय है। ऐसा लगता है कि इससे समाज को इस बात की ज्यादा फिक्र है कि इस स्थिति में भविष्य की कैसी तस्वीर बन रही है। अगर समाज में किसी भी प्रकार के नशे चाहे वह शराब का हो या दूसरे मादक पदार्थों के सेवन को लेकर कोई सीमा या हिचक नहीं है, तो इस माहौल का असर कोमल मन मस्तिष्क वाले बच्चों पर पड़ना तय है। आज गोवा में मादक पदार्थों की लत के शिकार लोगों के बड़ी संख्या में किशोरों की है। यहां राजधानी दिल्ली में रेव पार्टियों में बढ़ते नशे की लत की खबरें अकसर आती हैं। करोड़ों रुपए के मादक पदार्थों के साथ तस्कर पकड़े जाते हैं। गोवा के एक गैर सरकारी संगठन का कहना है कि आज की तारीख में गोवा के स्कूली बच्चे बड़ी संख्या में मादक पदार्थों के आदी बनते जा रहे हैं। संगठन के संचालकों का कहना है कि पहले स्कूल से पास आउट हो जाने के बाद ही युवाओं में मादक पदार्थों के लती होते देखा जाता रहा है लेकिन पिछले ढाई-तीन सालों में क्षेत्र के किशोरों में भी मादक द्रव्यों के सेवन के प्रति ललक बढ़ती जा रही है। गोवा जैसे छोटे से राज्य की चिन्ता पूरे देश के परिप्रेक्ष्य में बहुत बड़ी हो जाती है। कारण स्कूल-कॉलेजों से लेकर गांवों-देहातों तक और संभ्रांत तबके से लेकर मजदूर वर्ग तक देश की आबादी का एक बहुत बड़ा प्रतिशत न केवल नशीले पदार्थ का आदी है बल्कि देश का एक ऊर्जावान भविष्य मादक पदार्थों की तस्करी में संलिप्त होकर आपराधिक जगत का हिस्सा बन चुका है। माना जा रहा है कि नशाखोरी की लत देश के अंदर इस कदर अपना जाल फैला चुकी है कि 10 साल की आयु में प्रवेश करते-करते तमाम बच्चे नशाखोरी का शिकार हो जाते हैं। खासकर मजदूर तबका इस नरक में अपना पूरा भविष्य खाक करने के लिए अभिशप्त है। उधर देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मादक पदार्थ तस्करी में आतंकवादी समूहों की संलिप्तता को रेखांकित कर विश्व बिरादरी को सावधान रहने की हिदायत दी है। यह चुनौती गंभीर है और इसके परिणाम पीढ़ियों तक देशों को खोखला करने वाले हो सकते हैं। हालांकि इस कारोबार की कोई भौगोलिक सीमा तय नहीं है किन्तु अफीम उत्पादक देशों का पड़ोसी होने और दुनिया के कई खतरनाक आतंकी संगठनों के निशाने पर होने के नाते भारत के लिए यह चुनौती कहीं ज्यादा गंभीर है। चूंकि यह चुनौती अकेले भारत की न होकर वैश्विक है। इसके लिए इसके निराकरण भी समेकित वैश्विक प्रयासों से ही होंगे और इसकी ओर गृहमंत्री ने ध्यान भी दिलाया है।

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