Saturday 26 September 2015

नेपाल का संविधान भारत को मंजूर नहीं, क्या दबाव रंग लाएगा?

सात प्रांतों के मॉडल वाला नया नेपाली संविधान भारत को मंजूर नहीं है। भारत ने नेपाल को साफ शब्दों में कहा है कि उसका नया संविधान न समावेशी है और न ही उस पर सहमति है। इसमें मधेसियों और तराई के क्षेत्र की नेपाली जनता को उसके अधिकारों से वंचित रखा गया है। भारत ने नेपाल सरकार को सात अनुच्छेदों में संशोधन का सुझाव दिया है। इससे आंदोलन कर रहे दक्षिण नेपाल के मधेसी और जनजातीय समुदाय के लोगों को संबल मिलेगा। संविधान तैयार करना किसी भी देश का अपना अधिकार है और नेपाल ने भी यही किया है। लेकिन क्या नेपाल ने अपने देश की लगभग आधी आबादी यानि मधेसियों को संविधान में पूरा प्रश्रय दिया है? अगर नेपाल के संविधान के कुछ हिस्सों को देखें तो यह साफ हो जाता है कि इसके कई प्रावधान मधेसियों को वहां दोयम दर्जे का नागरिक बना देंगे। यही वजह है कि पिछले दो हफ्तों से तराई के मधेसी बहुल हिस्सों के लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इस वजह से जो हिंसा फैली है उसमें 40 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। जानकारों के मुताबिक नेपाल के पांच विवादित जिलोंöकांचीपुर, केइलाली, सुनसरी, झापा और मोरांग को इसके पड़ोसी जिलों में मिलाने का रास्ता तैयार किया गया है। इन पांच जिलों में पहाड़ी लोगों की संख्या ज्यादा है और इन्हें पड़ोस के उन जिलों से मिलाने की तैयारी है जहां मधेसियों की संख्या ज्यादा है। मधेसी और जनजातीय समुदाय के लोग लगातार नए संविधान में प्रतिनिधित्व के मसले को लेकर विरोध जाहिर कर रहे थे। संविधान सभा के 69 सदस्यों ने संविधान निर्माण प्रक्रिया का बहिष्कार किया था। दरअसल पहले वहां के संविधान में प्रावधान था कि निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण आबादी, भौगोलिक स्थिति, विशेष लक्षणों के अनुसार होगा और मधेसियों के मामले में यह जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर होगा। लेकिन नए संविधान में एक तरह से मधेसी लोगों को बाहरी के तौर पर माना गया है। इसमें कहा गया है कि प्रमुख संवैधानिक पदों पर वही लोग होंगे जो नेपाल के मूल  निवासी हैं। इसी तरह मधेसी लोगों को राजनीति में प्रतिनिधित्व को भी संकुचित कर दिया गया है। सोनौली के नागरिकों से मधेसी मोर्चा के नेताओं ने मदद की गुहार लगाई है। नेताओं ने कहा कि उन्हें भारत में शरण चाहिए। ऐसे वक्त भारत उनकी मदद करे। मंगलवार की देर शाम सोनौली के रामजानकी मंदिर में नेपाल के मधेसी नेताओं ने संवाददाताओं से बातचीत में बताया कि नेपाल प्रशासन मधेसियों का दमन कर रहा है। भारत-नेपाल संबंधों की दुहाई देते हुए नेताओं ने कहा कि भारत-नेपाल सीमा पर मधेसी रहते हैं, इसलिए आज तक भारत से कोई विवाद नहीं हुआ। हम झंडा-डंडा लेकर आंदोलन कर रहे हैं और रूपनदेही प्रशासन हमें हमारे घर में घुसकर डरा-धमका रहा है। भारत ने नेपाल पर अपने संविधान में सभी नागरिकों को बराबर का प्रतिनिधित्व देने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। सवाल यह है कि क्या यह दबाव काम आएगा? क्या नेपाल अपनी संप्रभुता और तटस्थता को ऊपर रखते हुए अपनी जनता, राजनीति और दुनिया के सामने कैसे पेश आएगा, यह  बड़ा सवाल है। दूसरा सवाल यह  कि इस स्थिति का फायदा चीन या पाकिस्तान, जिनका नेपाल में खासा दबाव है क्या नेपाल सरकार को पुन विचार और संशोधन करने का विरोध करेंगे? यह सब अहम इसलिए और ज्यादा हैं कि नेपाल में लागू हुए संविधान का समर्थन संविधान सभा के करीब 80 प्रतिशत सदस्यों ने किया है। यह चिन्ता केवल भारत को ही नहीं सभी लोकतांत्रिक देशों को होनी ही चाहिए कि वहां के नागरिकों को समान अधिकार, सुरक्षा दी जाए और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक न माना जाए।

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