Wednesday, 16 September 2015

ओवैसी की ताल से परेशान नीतीश-लालू

एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बिहार के सीमांचल में चुनाव लड़ने की घोषणा ने बिहार के नीतीश-लालू महागठबंधन में हलचल मचा दी है। घोषणा के एक दिन बाद ही तमाम सियासी दल रणनीति बनाने में जुट गए हैं। ओवैसी की जोर-आजमाइश बेशक सीमांचल के चार जिलों में 24 सीटों पर सिमटी होगी लेकिन विधानसभा की करीब 10 फीसद सामर्थ्य वाला यह चुनावी इलाका अगर सत्ता संघर्ष में उलटफेर करने वाला साबित हो तो आश्चर्य की बात नहीं। महागठबंधन के लिए झटका खास पीड़ादायक होगा क्योंकि इस मुस्लिम बहुल इलाके से उसे दोहरी उम्मीदें थींöसीटों की संख्या बढ़ेगी और भाजपा को करारी शिकस्त देने में वह सफल रहेगी। सीमांचल के यह चार जिले खासकर लालू प्रसाद यादव के मुस्लिम-यादव (एम-वाई) फॉर्मूले की भी आदर्श प्रयोगशाला थी। माहौल को आक्रामक रुख देते हुए भाजपा के गिरिराज सिंह ने ओवैसी को शैतान बताते हुए कहा कि ऐसे जहरीले लोगों से हमें फर्प नहीं पड़ता। वहीं नीतीश की जेडीयू ने ओवैसी को भाजपा का एजेंट बताते हुए कहा कि वे वोट काटकर भाजपा को फायदा पहुंचाने आए हैं। लेकिन बिहार में ओवैसी फैक्टर काम नहीं करने वाला। दूसरी ओर खुद ओवैसी ने कहाöअब वक्त आ गया है कि बिहार ही नहीं, पूरे देश में मुस्लिमों को उनका सियासी हक मिलना चाहिए। कम से कम 60 सांसद मुस्लिमों के बनने चाहिए। कांग्रेस ने भी ओवैसी को भाजपा का मददगार बताया है। उधर महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने भी बिहार में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। शिवसेना सांसद व नेता संजय राउत ने कहा कि एक मौका हमें भी दें। हम बिहार में 50 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। जब उनसे पूछा गया कि आप तो एनडीए का हिस्सा हो तो राउत ने कहा कि वो सिर्प लोकसभा और महाराष्ट्र में एनडीए के साथ हैं। बाकी जगह हम अलग हैं। अगर ओवैसी नीतीश कुमार के महागठबंधन के लिए वोट काटू बन सकते हैं तो शिवसेना भाजपा गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकती है। हालांकि यह कहा जा सकता है कि न तो ओवैसी का और न ही शिवसेना का बिहार में कोई खास रसूख है। वैसे ओवैसी का आना अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि सीमांचल में पिछले दिनों उनकी जनसभा को असरदार समर्थन मिला था। लेकिन इसका असल झटका तो उन धर्मनिरपेक्ष ताकतों को लगेगा जो भाजपा के विजय अभियान का रथ थामने की तमाम उम्मीदें बांधे बैठी हैं। भाजपा के लिए तो बिहार चुनाव जीवन-मरण का सवाल है क्योंकि उसने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर जुआ खेला है। ओवैसी अगर बिहार में अच्छी सम्मानजनक सीटें पा जाते हैं तो पूरे देश की मुस्लिम सियासत में एक नया मुकाम बना सकते हैं।

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