Wednesday 9 September 2015

नेताओं और सरकार पर बेजा टिप्पणी होगी देशद्रोह?

महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग द्वारा 27 अगस्त को जारी एक मार्गदर्शन सूचना पर बवाल खड़ा हो गया है। महाराष्ट्र सरकार के उपसचिव कैलाश गायकवाड़ द्वारा 27 अगस्त 2015 को जारी मार्गदर्शन सूचना में कहा गया है कि व्यंग्य चित्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता असीम त्रिवेदी के खिलाफ जब भारतीय दंड संहिता की धारा 124 () यानि देशद्रोह की एफआईआर दर्ज हुई तो महाधिवक्ता से राय लेकर वह धारा हटा दी गई थी, मगर संस्कार मराठे नामक व्यक्ति ने बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की और जिस तरह से त्रिवेदी के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ, उस प्रकार की घटना भविष्य में अन्य किसी व्यक्ति के खिलाफ न हो और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बरकरार रहे, इसके लिए हाई कोर्ट से हस्तक्षेप करने का निवेदन किया था। इस पीआईएल पर सुनवाई के दौरान राज्य के महाधिवक्ता की ओर से पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने के बारे में मार्गदर्शन सूचना जारी करने की लिखित जानकारी दी गई। ध्यान रहे हाई कोर्ट में दी गई इसी लिखित जानकारी की वजह से 27 अगस्त को गृह विभाग ने देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने के बारे में एक मार्गदर्शन सूचना जारी की थी। जिसको लेकर महाराष्ट्र में विवाद खड़ा हो गया है। चूंकि गृह विभाग खुद मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के पास है। लिहाजा इस मार्गदर्शन सूचना की आड़ में कांग्रेस और राकांपा ने सीधे उन पर ही निशाना साधना शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटिल ने राज्य सरकार पर आपातकाल जैसी परिस्थिति पैदा करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि नेताओं या किसी सरकार के खिलाफ टिप्पणी किए जाने या फिर व्यंग्य चित्र निकालने पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की सूचना गलत है। विपक्ष ने कहाöअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटना चाहती है सरकार। महाराष्ट्र सरकार इससे पहले भी देशद्रोह का एक मामला दायर करने के बाद पीछे हट चुकी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान 2011-12 में असीम त्रिवेदी के खिलाफ पुलिस ने देशद्रोह का मामला दायर किया था। बाद में जब मामला हाई कोर्ट में चला तो सरकार ने 124 () धारा हटा ली थी और त्रिवेदी बरी हो गए। उधर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने आरोप लगाया है कि राजद्रोह के आरोपों के संबंध में उनकी सरकार की ओर से जारी इस विवादास्पद सर्पुलर के लिए राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस-राकांपा सरकार जिम्मेदार है। सर्पुलर जारी करने वाले गृह विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे फड़नवीस ने पत्रकारों से कहाöसर्पुलर कांग्रेस-राकांपा शासन के दौरान बंबई उच्च न्यायालय में राज्य के एडवोकेट जनरल के बयान से लिया गया है। उन्हें दिशानिर्देशों की आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है। बहरहाल फड़नवीस ने इस विवाद से दूरी बनाते हुए कहाöएक चीज अवश्य ही ध्यान रखी जानी चाहिए कि यह कोई सरकार का फैसला नहीं है। राज्य गृह विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि कानूनी तरीके से आलोचना या विरोध करने पर राजद्रोह का आरोप नहीं लगेगा।

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