Sunday, 27 September 2015

फिर विवादों में घिरी राहुल गांधी की विदेश यात्रा

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के विदेश दौरों और विवादों का चोली-दामन जैसा साथ हो गया है। असल में पिछली बार जब राहुल 56 दिनों की छुट्टी पर गए थे तब पार्टी की चुप्पी के कारण विवाद हुआ था, इसलिए इस बार राहुल के विदेशी दौरे पर अटकल शुरू होते ही कांग्रेस ने बुधवार को औपचारिक बयान जारी कर कहा कि राहुल अमेरिका में कोलराडो के एस्पेन में एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने गए हैं जिसका आयोजन जाने-माने पत्रकार चार्ली रोज करते हैं। भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा ने अमेरिकी वेबसाइट `अमेरिकन बाजार' के हवाले से कहा कि एस्पेन आइडियाज फेस्टिवल का आयोजन 25 जून से चार जुलाई के बीच हो चुका है। ऐसे में कांग्रेस उस आयोजन का नाम लेकर देश को भ्रमित कर रही है। एक और वेबसाइट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इस वेबसाइट ने आयोजकों से बात की तो पता चला कि 2005 से अब तक हर साल होने वाले वीकेंड विद चार्ली कांफ्रेंस में कभी राहुल नाम के शख्स ने हिस्सा नहीं लिया। भाजपा जहां राहुल की अमेरिका यात्रा को बिहार चुनाव से जोड़कर सहयोगियों के दबाव में दिया गया देश निकाला बता रही है वहीं कांग्रेस को नित नए तथ्यों और तर्कों के साथ सफाई और बचाव में आना पड़ रहा है। बिहार में कांग्रेस लालू और नीतीश कुमार के गठबंधन की भागीदारी है। इस नाते राहुल गांधी की सार्वजनिक जरूरत इस समय बिहार में होनी चाहिए। उनके दल को सीटें भी उसकी जमीनी हकीकत व हैसियत से ज्यादा मिली हैं। लेकिन इन उम्मीदवारों को जिताने की चिन्ता छोड़कर राहुल अमेरिका चले गए हैं और ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब सियासी मजबूरियों को दरकिनार करते हुए राहुल समय पर खिसक गए हों। इसी तरह संसद के बेहद महत्वपूर्ण सत्र को छोड़कर वह 56 दिनों के लिए एकांतवास पर चले गए थे। राहुल की ताजा विदेश यात्रा के जो कारण उनकी पार्टी बता रही है उनमें कोई सच्चाई नहीं लगती जैसा कि भाजपा ने साबित कर दिया है फिर भला राहुल चुनाव छोड़कर क्यों विदेश यात्रा पर गए हुए हैं। उनकी यही अगंभीरता शायद उनके नेतृत्व को जमने नहीं देती और इस दलील को बल मिलता है कि शायद बिहार में उनके महागठबंधन के साथी नहीं चाहते कि राहुल प्रचार करने बिहार आएं। चम्पारण में उनकी प्रथम और प्रभावशाली रैली का मंच साझा करने से जिस तरह लालू और नीतीश ने किनारा किया था उससे भी यह बात पुख्ता होती है कि राहुल के पराजय चुनावी रिकार्ड से सहयोगी भी सहमे हुए हैं और उन्हीं के दबाव में राहुल अमेरिका गए हैं। वैसे यह मामला सिर्प कांग्रेस पार्टी के विचारकों का है, राहुल जो चाहें वह करें पर अगर राहुल को आगे चलकर कांग्रेस का नेतृत्व संभालना है तो ऐसी हरकतें नहीं चलेंगी। वैसे भी कांग्रेस पार्टी धरातल पर है और अगर खुद पार्टी के उपाध्यक्ष चुनौतियों से ऐसे भागेंगे तो हो चुका पार्टी का भला।

-अनिल नरेन्द्र

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