Friday 4 September 2015

हर घंटे देश में 15 लोग आत्महत्या कर रहे हैं?

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में पढ़ने वाली छात्रा का छात्रावास में खुदकुशी करना, हैदराबाद में एक छात्र का खुदकुशी करना चिंता का विषय है। देश में आत्महत्याओं की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। देश में हर घंटे 15 लोग आत्महत्या कर लेते हैं। पिछले साल (2014) में एक लाख 31 हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान दी। इस मामले में राज्यों में महाराष्ट्र और शहरों में चेन्नई शीर्ष पर है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2014 के दौरान जिन लोगों ने आत्महत्या की उनमें से 69.7 फीसद की सालाना कमाई एक लाख रुपए से कम थी। दूसरे शब्दों में गरीबी का कारण। गरीबी जीवन को किस तरह प्रभावित करती है इसी से पता चलता है कि पिछले साल खुदकुशी करने वालों में करीब 70 फीसदी वह थे जिनकी आय एक लाख रुपए (वार्षिक) से कम थी। जबकि अपनी जिंदगी खत्म करने वाले 26.9 फीसद सालाना एक लाख से पांच लाख रुपए कमाते थे। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल राष्ट्रीय दर की तुलना में शहरों में आत्महत्या की दर ज्यादा थी। राष्ट्रीय दर 10.6 फीसद के मुकाबले शहरी दर 12.8 फीसद थी। जहां तक आत्महत्याओं की वजहों की बात है तो उसमें पारिवारिक समस्याओं (शादी से इतर) का योगदान 21.7 फीसद रही, जबकि जान देने के पीछे 18 फीसद बीमारी वजह थी। इस आंकड़े से यह भी पता चलता है कि आत्महत्या के प्रत्येक छह मामले में एक गृहणी शामिल थी और कुल पुरुष व महिला का अनुपात 68.32 था। 2014 में आत्महत्या करने वालों में सर्वाधिक 19.7 फीसद स्वरोजगार करने वाले लोग थे। इसके अलावा 12 फीसद मजदूर, 7.4 फीसद वेतनभोगी, 6.1 फीसद छात्र और 0.7 फीसद सेवानिवृत्त लोग शामिल हैं। जहां तक आत्महत्या के तरीके का सवाल है तो 41.8 फीसदी लोगों ने फांसी लगाकर आत्महत्या की। जबकि 26 फीसद ने जहरीले पदार्थ का सेवन किया, 6.9 फीसद ने आत्मदाह किया, 5.6 फीसद ने डूबकर और 1.1 फीसद ने इमारत से छलांग लगाकर अपनी जान दी। आत्महत्या करने वालों में 20.2 फीसद मैट्रिक पास थे, जबकि 19 फीसद ने प्राइमरी तक की पढ़ाई की थी। पिछले साल आत्महत्या करने वालों में 14.3 फीसद अनपढ़ और 11 फीसद 12वीं कक्षा तक ही पढ़ने वाले थे। छात्रावास और स्कूलों में इस तरह का माहौल बनाना जरूरी है जिससे देश के कोने-कोने से आए छात्र खुद को सुरक्षित और एक ही परिवार का हिस्सा समझें। हम उन आत्महत्याओं को तो रोकने का प्रयास करें जो बच्चों में हो रही हैं। बच्चों से समय-समय पर बातचीत कर उनकी परेशानियों के बारे में जानना भी जरूरी है। एम्स प्रशासन और हैदराबाद के कॉलेज को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इन छात्रों के साथ कुछ भी गलत न हो। छात्रों को भी समझना चाहिए कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment