Tuesday 1 September 2015

शीना, इंद्राणी और मर्डर मिस्ट्री

सनसनीखेज शीना बोरा हत्याकांड वैसे तो आपराधिक घटना है मगर इसने हमारे आज के फाइव स्टार संस्कृति समाज को हिलाकर रख दिया है। इस घटना ने आधुनिक जीवनशैली का एक अत्यंत काला पक्ष सामने लाकर रख दिया है। शीना बोरा हत्याकांड को लेकर हो रहे ताजा खुलासों के बाद स्वाभाविक ही है एक बार फिर मानवीय रिश्तों की दरकती जमीन पर चिंता जताई जाने लगी है। एक मां अपने ही बच्चों को इसलिए भाई-बहन के रूप में पेश करती रही और उन्हें डरा-धमका कर अपने रिश्तों को उजागर करने से रोकती रही कि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा और आलीशान जिंदगी पर आंच न आए। वह खुद तो शानो-शौकत और चमक-दमक की जिंदगी बिताती रही पर पहले विवाह से पैदा हुए दो बच्चों को परदे की ओट में रखकर उन्हें अपने रहमोंकरम पर पलने को मजबूर करती रही। महत्वाकांक्षा व्यक्ति को इतना कूर भी बना सकती है कि अपनी ही औलाद का गला घोंटने में उसके हाथ नहीं कांपते। इंद्राणी मुखर्जी इसका ताजा उदाहरण है। पुलिस की छानबीन में पता चला कि इंद्राणी मुखर्जी ने अपने तीसरे पति पीटर मुखर्जी और आसपास के तमाम लोगों से यह बात छिपाए रखी कि 21-22 साल की उम्र में उसकी पहली शादी हुई थी, जिससे दो बच्चे शीना और मिखाइल हैं। इन दोनों बच्चों को वह छोटी उम्र में ही अपने माता-पिता के पास छोड़कर अपनी महत्वाकांक्षाओं के पर लगाकर घर से निकल गई थी। फिर उसने कोलकाता के एक व्यापारी से विवाह किया। बाद में एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी चैनल के कार्यकारी अधिकारी पीटर मुखर्जी से मेलजोल बढ़ाया और उनसे विवाह करके साथ रहने लगी। पहले विवाह से पैदा हुई बेटी शीना को मुंबई तो ले गई पर उसे अपनी बहन बताकर रखा। जब पीटर मुखर्जी की पहली शादी से पैदा हुए बड़े बेटे से शीना का प्रेम हो गया तो इंद्राणी को नागवार गुजरा और उसने शीना की हत्या कर दी। कहीं न कहीं इसके पीछे पैसों का मामला भी जुड़ सकता है। रोज-रोज नए खुलासे हो रहे हैं। हालांकि यह घटना इतनी उलझी और इतने सवालों में लिपटी हुई है कि किसी के भी बारे में साफ-साफ कुछ भी कहना फिलहाल मुश्किल है। पर जाहिर है कि इस पढ़े-लिखे, पांच तारा संस्कृति के समाज में पैसा, पद, प्रतिष्ठा और चमक-दमक वाली जिंदगी का मोह इतना भारी है कि उनकी मानवीय संवेदनाएं पुंद होती जा रही हैं। आज के इस दौर में रिश्ते कितने खोखले, स्वार्थपूरक और छद्म हो गए हैं, यह घटना इसकी मिसाल बन गई है। इससे तो यह भी लगता है कि आरुषि हत्याकांड में मां-बाप का हाथ होना भी अब संभव ही लगता है। उस समय यह मानना मुश्किल लग रहा था कि कोई मां-बाप अपनी ही औलाद का कत्ल कर सकते हैं? मगर जब ऐसे संबंध झूठ और निहायत खुदगर्जी के आधार पर बनने लगें और सच्चाई छिपाने के लिए अपनी ही संतान की हत्या किसी सामान्य गतिविधि की तरह कर दी जाए तो यही समझना चाहिए कि मानव सभ्यता की यात्रा उल्टी दिशा में यानि बर्बरता की तरफ मुड़ गई है।

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