डूसू चुनाव के नतीजे से
दिल्ली के सियासी समीकरण पर भले ही कोई खास असर पड़े या न पड़े पर इस नतीजे से दिल्ली
के सियासी मूड का अंदाजा लग जाता है। दरअसल सूपड़ा साफ कराकर बैठी कांग्रेस व आप, भाजपा की तिगड़ी के सामने नहीं चली। दिल्ली विश्वविद्यालय
छात्र संघ (डूसू) के चुनाव मुख्यमंत्री
अरविंद केजरीवाल के लिए एक तरह से अग्निपरीक्षा थे। चुनाव के परिणाम से पता चलता है
कि राजधानी के युवाओं में क्या आज भी उनकी उतनी ही पकड़ है जितनी दिल्ली विधानसभा चुनाव
के समय थी। डूसू के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब चुनाव में सीधे तौर पर दिल्ली
सरकार की भागीदारी थी। मुख्यमंत्री केजरीवाल, उनकी कैबिनेट,
विधायकों के अलावा पार्टी नेताओं ने इस चुनाव में अपनी छात्र इकाई सीवाईएसएस
को जिताने के लिए दिन-रात एक कर दिया। यह एक ऐसा चुनाव था जिसमें
दिल्ली सरकार सीधे तौर पर जुड़ी हुई थी और चुनाव जीतने की रणनीति मुख्यमंत्री कार्यालय
से बनाई गई थी। छात्रों के वोट पाने के लिए सरकार और आप की ओर से ऐसे लोक-लुभावन वादे किए गए, जिन्हें पूरा करने में सरकार को
पसीने आ जाते। इसके बावजूद युवाओं का वोट हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। इस
चुनाव से पहले कभी भी दिल्ली सरकार इसमें सीधे तौर पर शामिल नहीं हुई। कांग्रेस नेता
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित राजधानी में 15 साल मुख्यमंत्री रहीं
लेकिन उन्होंने कभी भी छात्रों से सीधा संवाद नहीं किया और न ही चुनाव जीतने के लिए
अपनी छात्र इकाई एनएसयूआई के माध्यम से वादे ही किए। आप पार्टी का तो इस चुनाव में
यह हाल था कि पूरा विश्वविद्यालय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पोस्टरों-बैनरों से भरा हुआ था। इससे पहले भाजपा की सरकार ने भी कभी डूसू चुनाव में
यूं सीधा हस्तक्षेप नहीं किया। लेकिन आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा
का सवाल बना लिया। इसी रणनीति के तहत पार्टी ने कॉलेजों में चुनाव न लड़ने का भी निर्णय
लिया ताकि सारा ध्यान डूसू चुनाव पर ही लगे। भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी
परिषद (एबीवीपी) ने चारों सीटों पर जीत
दर्ज की है। जबकि एनएसयूआई और आप की छात्र शाखा सीवाईएसएस अपना खाता भी नहीं खोल सकी।
80 के दशक के बाद यह दूसरा मौका है जब एबीवीपी ने लगातार दूसरी बार चारों
सीटें जीती हैं। एनएसयूआई दूसरे नम्बर पर रही और आप पार्टी छात्र इकाई तीसरे पर। आप
पार्टी की छात्र इकाई तो कांग्रेस से भी पिछड़ गई। हार के बाद आम आदमी पार्टी ने अपनी
ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन अब पार्टी ने हार से किनारा
कर लिया है। विरोधी दल इसे केजरीवाल की हार बता रहे हैं वहीं केजरीवाल इसे सीवाईएसएस
की हार बता रहे हैं। प्रचार के दौरान सीवाईएसएस ने तो केजरीवाल के पोस्टरों के साथ
उनके नाम पर ही चुनाव लड़ा था। रॉक शो में भी केजरीवाल ने स्वयं छात्रों को संबोधित
किया था। प्रचार के बहाने विशाल डडलानी ने छात्रों को लुभाने का पूरा प्रयास किया।
अरविंद केजरीवाल के लिए सबसे बड़ा झटका यह है कि उन शिक्षित युवा वर्ग में उनकी छवि
धूमिल हो गई है। उस युवा वर्ग जिसने कुछ महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में उनका खुलकर
साथ दिया था आज उनसे नाराज हो गया है। वहीं इससे यह अंदाजा भी लगाया जा सकता है कि
नरेंद्र मोदी का आज भी शिक्षित युवा वर्ग कायल है। आज भी वह उन्हें ही सपोर्ट करता
है। इस परिणाम का अगले महीने बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों पर क्या असर पड़ेगा
यह तो कहना मुश्किल है पर इतना जरूर पता चलता है कि हवा किस ओर बह रही है खासकर छात्रों
में। हम सतेन्द्र अवाना, सन्नी डेढ़ा, अंजलि
राणा और छत्रपाल यादव को उनकी शानदार जीत पर अपनी बधाई देते हैं।
-अनिल नरेन्द्र
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