जब से पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी सुभाष चन्द्र
बोस से जुड़ी 64 फाइलें सार्वजनिक की हैं,
तभी से हर दिन कुछ न कुछ खुलासे हो रहे हैं। नेताजी के परिवार सहित नेताजी
के प्रेमी इन फाइलों को पढ़ रहे हैं और समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर नेताजी के
अंतिम वर्ष कैसे और कहां गुजरे और उनका अंत कैसे हुआ? दैनिक भास्कर
के प्रतिनिधि ने नेताजी के पोते चन्द्रकुमार बोस से इन विषयों पर चर्चा की। उनका कहना
है कि इन 64 फाइलों से दो बातें तो साफ हो गई हैं ः पहलीöनेताजी की मौत प्लेन कैश में नहीं हुई, दूसरीöनेताजी के परिवार के हर सदस्य की उच्च स्तर पर जासूसी हुई। चन्द्रकुमार बोस
का कहना है कि अब तक हमने जितनी भी फाइलें पढ़ी हैं उनसे एक साफ संकेत तो मिला है कि
नेताजी की मौत 1945 विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। हालांकि
कई ऐसे सच तब सामने आएंगे जब बाकी की 150-160 फाइलें सार्वजनिक
होंगी। ये फाइलें केंद्र सरकार के पास हैं। फाइलों से यह पता चलता है कि भारत सरकार
ने नेताजी के परिवार की 24 घंटे जासूसी करवाई थी। देश ही नहीं,
विदेश में भी। पिता अमियोनाथ 1957 में नेताजी से
जुड़े सबूत लेने जापान गए तो वहां भी उनके पीछे भारत सरकार ने अपने कई एजेंट लगा दिए
थे। चन्द्रकुमार बोस आगे कहते हैं कि पंडित नेहरू से हुई गलती के लिए सोनिया गांधी
या राहुल को तो सूली पर नहीं चढ़ाया जा सकता न? उन्हें तो पहल
करनी चाहिए। कहना चाहिए कि हां, हमारे पूर्वजों से गलती हुई।
उन्हें राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए। अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती तो यह साजिश है।
जिसको आप सपोर्ट कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी उस साजिश में उनका साथ दे रही है। बोस
ने कहा कि हमें तीन सबूत मिले हैं या यूं कहें कि तथ्य मिले हैं जो बताते हैं कि नेताजी
जीवित थे ः पहलाöएयर कैश की थ्यौरी झूठी थी। असली वह था जो जस्टिस मुखर्जी कमीशन ने कहा था।
2005 में मुखर्जी कमीशन ने कहा था कि कोई एयर कैश नहीं हुआ था। जो अस्थियां
जापान के रेकोंजी मंदिर में रखी हैं वह जापानी सैनिक इजिरो ओकिस की हैं। जिसकी मौत
सामान्य तौर पर हुई थी। इसे नेताजी की अस्थियां बताया जा रहा था, दूसराöमेरे पिता अमियोनाथ बोस को लिखा एक पत्र मिला है।
पांच मार्च 1948 के लिखे इस पत्र से साबित होता है कि
1948-49 तक नेताजी जीवित थे। चाउ सियांग क्वांग वो इंफोर्मेशन एवं ब्राडकास्टिंग
मिनिस्ट्री नई दिल्ली के ऑफिसर थे। वो सरकारी अधिकारी थे। वो अमियोनाथ बोस को लिखते
हैं कि उन्हें सबूत मिले हैं कि वह नेताजी नैनचिंग में थे। तीसराöएक स्विस पत्रकार लिली एबेग जिसे नेताजी की मौत से कोई फर्प नहीं पड़ना था,
उसने शरतचन्द्र बोस को एक पत्र लिखा था। शरतचन्द्र बोस नेताजी के बड़े
भाई थे। नौ दिसम्बर 1949 को लिखी इस चिट्ठी में बताया गया है
कि जापानी इंटेलीजेंस सोर्स ने यह कंफर्म किया है कि नेताजी 1949 में जिन्दा थे। नेताजी का आधा सच सामने आया है। पूरा सच बाकी फाइलों में दबा
है।
-अनिल नरेन्द्र
No comments:
Post a Comment