Friday, 25 September 2015

दिल्ली में गवर्नेंस की समस्या है ः सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

जिस दिन से श्री अरविंद केजरीवाल ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद संभाला है तभी से केंद्र से, उपराज्यपाल के सिवाय टकराव के और कुछ नहीं किया। हर बात में विवाद पैदा करना, बेकार के प्रशासनिक विवादों में उलझे रहना, प्रधानमंत्री को कोसना बस यही सब कुछ किया है। शायद तमाम उम्र आंदोलनकारी रहे हैं उन्हें केवल यही रास्ता रास आता है। नतीजा यह हो रहा है कि दिल्ली की जनता का आम आदमी पार्टी से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है। इसके कई संकेत भी मिले हैं। सबसे ताजा संकेत दिल्ली विश्वविद्यालय संघ के चुनाव थे। रोज-रोज नए-नए विवाद पैदा करने से माननीय सुप्रीम कोर्ट भी तंग आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच चल रही खींचतान पर सख्त टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोनों के बीच चल रहे टकराव से वह भलीभांति अवगत है। दिल्ली में शासन व्यवस्था को लेकर कोर्ट ने कहा कि उसे केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव के कारण यहां के लोगों को पेश आ रही गवर्नेंस की समस्या का पता है। हम जानते हैं कि दिल्ली की जनता गवर्नेंस की समस्या का सामना कर रही है। साथ ही उसने इस मामले में दखल देने से इंकार करते हुए कहा कि समय आने पर जनता उनके कामकाज को देखकर अपना फैसला सुनाएगी। न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति गोपाल गौड़ा की पीठ ने कहा कि हम जानते हैं कि दिल्ली में शासन और प्रशासन को लेकर समस्या है और कई मसलों को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सहमति नहीं बन पाई। अखबारों में इससे संबंधित खबरें भरी पड़ी हैं। लिहाजा जरूरी है कि दोनों सरकारें आमने-सामने बैठकर बातचीत करें। पीठ ने कहा कि अगर शासन को लेकर कमी है तो आम जनता समय आने पर उनके कामकाज को देखते हुए अपना फैसला सुनाएगी। कोर्ट ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा। याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ के समक्ष कहा कि दिल्ली में शासन व्यवस्था सही नहीं है। इस कारण लोगों को कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। याचिका में कोर्ट से अपील की गई कि केंद्र और दिल्ली सरकार को यह निर्देश दिया जाए कि वे अपना काम इस तरह से करें कि लोगों को कोई समस्या न हो। दोनों संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह नहीं कर रही हैं। लोग डेंगू से मर रहे हैं और दोनों सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह सख्त टिप्पणी अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार की कारगुजारी को सही बयान करती है। आए दिन उपराज्यपाल या गृह मंत्रालय से उलझने के सिवाय इस सरकार ने और किया क्या है? अगर गृह मंत्रालय या उपराज्यपाल इतने ही अड़ंगेबाज थे तो श्रीमती शीला दीक्षित ने 15 साल इतना अच्छा प्रशासन कैसे चलाया? उनके समय में भी एनडीए सरकार थी पर शीला जी तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से मिलकर अपने सब काम करवा लेती थीं। उनकी नीयत काम कराने की थी, फिजूल विवाद पैदा करने की नहीं थी। उम्मीद करते हैं कि केजरीवाल अपने रवैये को बदलेंगे और अपने शासन को सुचारू रूप से दिल्ली की जनता की भलाई की ओर लगाएंगे। इन विवादों से कुछ हासिल होने वाला नहीं।

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