Friday 11 September 2015

भारतीय इस्लामिक विद्वानों ने आईएस के खिलाफ फतवा जारी किया

दुनिया में भारत के मुसलमानों ने पहली बार खुले और सार्वजनिक रूप से आईएस (इस्लामिक स्टेट) के खिलाफ आवाज उठाई है। देश के 1000 से अधिक उलेमा व मुफ्तियों ने फतवे पर दस्तख्त करते हुए आतंकी संगठन आईएस को गैर-इस्लामी और अमानवीय करार दिया है। आखिरकार भारतीय मुसलमान आईएस के खिलाफ लामबंद होने लगे हैं। एक हजार से अधिक इस्लामिक विद्वानों और मुफ्तियों ने फतवा जारी कर आतंक का पर्याय बन गए आईएस की करतूतों को गैर-इस्लामिक करार दिया है। इन फतवों को संयुक्त राष्ट्र महासचिव को भेजकर दूसरे देशों के मुफ्तियों से ऐसा ही फतवा जारी कराने की अपील की गई है। फतवा जारी करने वालों में दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी, अजमेर शरीफ और निजामुद्दीन के प्रमुख शामिल हैं। दुनिया में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम विद्वानों और मुफ्तियों ने एक साथ आईएस के खिलाफ फतवा जारी किया है। अभी तक आईएस जेहाद के नाम पर दुनियाभर के मुस्लिम युवाओं को बरगलाता रहा और उनकी भर्ती करता आ रहा है। अनजान लड़के इनके झांसे में आकर उनके जाल में फंस भी रहे हैं। इस संयुक्त फतवे से कम से कम भारतीय युवाओं में आईएस की भारतीय युवाओं में पैठ बनाने की कोशिशों को झटका लगेगा। फतवे में कहा गया है कि आईएस की करतूतें इस्लाम के खिलाफ हैं। इसके अनुसार इस्लाम में महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों की हत्या की सख्त मनाही है। लेकिन आईएस के आतंकी कहर की हर रोज ऐसी ही घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। मुंबई के डिफेंस साइबर के प्रमुख अब्दुल रहमान अनजारी ने देशभर के मुस्लिम विद्वानों और मुफ्तियों से आईएस के बारे में राय मांगी थी। सभी ने एक सुर में इसे गैर-इस्लामिक करार दिया और इसके खिलाफ फतवा जारी कर दिया। अनजारी ने 1050 मुस्लिम विद्वानों और मुफ्तियों द्वारा जारी फतवे को संयुक्त राष्ट्र महासचिव वॉन की मून को भेज दिया है। मून से दूसरे देशों के मुस्लिम विद्वानों और उलेमाओं से ऐसे ही फतवे जारी करने की अपील की गई है ताकि पूरी दुनिया में मुस्लिम युवाओं को आईएस के दुप्रचार से बचाया जा सके। इस्लामिक विद्वानों और उलेमाओं की ओर से दुनिया के सबसे बर्बर और कूर आईएस के खिलाफ आवाज बुलंद करना वक्त की मांग थी। आईएस भले ही अपने नाम में इस्लामिक शब्द नत्थी किए हों, लेकिन वह अपनी हरकतों से सबसे ज्यादा नुकसान भी इस्लाम को पहुंचा रहा है। यह हैरत की बात है कि जब-जब कुछ युवा उसकी ओर जाते दिखते हैं और इन्हें रोकना जरूरी है। कश्मीर में तो उसके झंडे भी दिख जाते हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी ऐसे तत्व हैं जो इस खौफनाक इरादे के साथ हमदर्दी रखते हैं। हम भारतीय इस्लामिक विद्वानों, मुफ्तियों और उलेमाओं को बधाई देना चाहते हैं कि कम से कम उन्होंने तो इस आतंकी संगठन को गैर-इस्लामी करार देने का साहस दिखाया।

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