देश की
सबसे बड़ी कारपोरेट अस्पताल चेन फोर्टिस के पूर्व प्रमोटर मलविंदर सिंह और शिवेंद्र
मोहन सिंह का नाम हमेशा से विवादों में रहा है। दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को शिवेंद्र
सिंह (44) व तीन अन्य लोगों को करीब 740 करोड़
रुपए की धोखाधड़ी के एक मामले में गिरफ्तार कर लिया। शिवेंद्र सिंह के अलावा रेलिगेयर
के पूर्व सीएमडी सुनील गोधवानी, कवि अरोड़ा और अनिल सक्सेना को
भी गिरफ्तार किया गया है। दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त (ईओडब्ल्यू)
ओपी मिश्रा ने बताया कि साउथ एक्सटेंशन पार्ट-2 निवासी शिवेंद्र सिंह के अलावा अन्य आरोपियों की पहचान फतेहपुरी बेरी के इनायत
फर्म निवासी सुनील गोधवानी (56), गुरुग्राम के सेक्टर-50
निवासी कवि अरोड़ा (48) और नोएडा सेक्टर-104
निवासी अनिल सक्सेना (51) के तौर पर हुई। इन सभी
की पूछताछ के लिए ईओडब्ल्यू के मंदिर मार्ग स्थित कार्यालय बुलाए जाने के बाद गिरफ्तारी
की गई। शिवेंद्र के भाई मलविंदर की भी पुलिस तलाश रही है। उसे देश छोड़कर भागने से
रोकने के लिए लुक आउट सर्कुलर जारी कर दिया गया है। रेलिगेयर फिटनेस लिमिटेड
(आरएफएल) की तरफ से दर्ज कराई गई शिकायत में इन
सभी पर कंपनी के पैसे को गलत तरीके से अन्य कंपनियों में ट्रांसफर करने का आरोप लगाया
गया है। शिकायत में कहा गया है कि 2010 तक रेलिगेयर एंटरप्राइजेज
लिमिटेड (आरईएल) के प्रमोटर रहे सिंह भाइयों
ने कंपनी के पूर्व चेयरमैन व एमडी सुनील गोधवानी के साथ मिलकर आरएफएल के लिए कर्ज लिया
था। लेकिन इस पैसे का निवेश अन्य कंपनियों में कर दिया। इससे आरएफएल को
2393 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। फरवरी 2018 में
आरएफएल का संचालन नए प्रबंधन के पास आने के बाद इस घोटाले का पता चला और इसके बाद रेलिगेयर
के सीनियर मैनेजर मनप्रीत सिंह सूरी ने ईओडब्ल्यू के पास शिकायत की थी। आरोप है कि
शिवेंद्र मोहन सिंह रेलीगेयर एंटरप्राइजेज लिमिटेड कंपनी में 85 प्रतिशत शेयर होल्डर थे। जानिए इस बिजनेस समूह के पतन की कहानी... देश के बंटवारे के बाद रावलपिंडी से मलविंदर-शिवेंद्र
के दादा मोहन सिंह दिल्ली आ गए थे। उन्होंने पैसा ब्याज पर देना शुरू किया। रेनबैक्सी
ने भी पैसे उधार लिए, लेकिन वह वापस नहीं कर पाई। इसके बाद
1952 में मोहन सिंह ने रेनबैक्सी को 2.5 लाख रुपए
में खरीद लिया। मोहन सिंह के कब्जे में रेनबैक्सी कंपनी तेजी से बढ़ी। उनके बाद मलEिवदर-शिवेंद्र ने कंपनी को आगे बढ़ाया। दोनों भाइयों
ने 1984 में रेलिगेयर और 1996 में फोर्टिस
की शुरुआत की। परिवार की वजह से दोनों भाई राधास्वामी सत्संग ब्यास के डेरे से जुड़े
हुए हैं। मामा गुरिंदर सिंह ढिल्लों राधास्वामी सत्संग ब्यास के आध्यात्मिक गुरु हैं।
इनके कहने पर उन्होंने गोधवानी को रेलिगेयर का सीएमडी बना दिया। वहीं सिंह बंधुओं ने
2008 में रेनबैक्सी को जापान की कंपनी दाइची सांक्यो को बेचा था। डील
में उन्हें 9500 करोड़ रुपए मिले। यह पैसे रेलिगेयर और फोर्टिस
में मनमाने तरीके से विस्तार में लगाए गए। इससे काफी नुकसान हुआ। शिवेंद्र ने
2015 में राधास्वामी सत्संग ब्यास से जुड़ने का फैसला किया। तीन साल
पहले 2016 में मलविंदर-शिवेंद्र फिर चर्चा
में आए जब यह पता चला कि दोनों भाई 22,500 करोड़ रुपए का अपना
पूरा कारोबार गंवा चुके हैं। उन पर करीब 13,000 करोड़ रुपए का
कर्ज हो चुका है। 2018 के आखिर में शिवेंद्र ने एनसीएलटी में
मलविंदर के खिलाफ दायर याचिका वापस ली थी। लेकिन साफ कर दिया था कि मतभेद सुलझाया नहीं
गया तो फिर से मुकदमे का विकल्प खुला रहेगा। पांच सितम्बर 2018 को मलविंदर और शिवेंद्र ने एक-दूसरे पर मारपीट का आरोप
लगाया और यूं हुआ आपसी विवाद और गलत फैसलों से मलविंदर और शिवेंद्र ने जमा-जमाया 22,500 करोड़ का कारोबार गंवाया। पूछताछ में और
खुलासे की उम्मीद है।
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