Friday 27 March 2015

आप में शह-मात का खेल चरम सीमा पर

आम आदमी पार्टी (आप) में सतह पर बेशक सुलह-समझौते की कोशिश चल रही है लेकिन अंदरखाते शह-मात का सियासी खेल चल रहा है। दोनों गुट दमदारी से अपनी चाल चल रहे हैं। नजर राष्ट्रीय परिषद की पर बैठक है। बेंगलुरु से इलाज के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की कमान क्या संभाली, ऐसा लग रहा है कि आम आदमी पार्टी में सारे विवाद खत्म हो गए और सब कुछ शांत-शांत-सा नजर आ रहा है। लेकिन यह शांति कहीं तूफान से पहले की शांति तो नहीं है क्योंकि न तो अब योगेन्द्र यादव कुछ बोलते दिखाई दे रहे हैं और न ही अरविंद केजरीवाल के खेमे में कोई उथल-पुथल। सूत्रों की मानें तो दिल्ली में 28 मार्च वाली राष्ट्रीय परिषद की बैठक में सब कुछ ठीक नहीं रहने वाला है। बताया जा रहा है कि दोनों गुट अपने-अपने गुटों को जोड़ने में लगे हुए हैं। एक ओर योगेन्द्र यादव आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों को अपने खेमे में जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं तो मिशन विस्तार की घोषणा के जरिये पार्टी ने भी राष्ट्रीय परिषद के लोगों को पद और चुनाव का लालच देकर पार्टी में और अरविंद केजरीवाल के खेमे में रहने का संकेत दे दिया है। लेकिन सूत्रों की मानें तो योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी इतनी आसानी से माफ नहीं करेगी। बताया जा रहा है कि दिल्ली इकाई की रिपोर्ट के आधार पर पार्टी योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से बाहर तो नहीं निकालेगी, लेकिन दिल्ली से बाहर किसी और राज्य की जिम्मेदारी दे सकती है। पीएसी से निकाले जाने के बाद यादव और प्रशांत भूषण खेमा कार्यकर्ताओं से सीधी बात कर रहा है। इसमें आम कार्यकर्ताओं की दुखती रग दबाई जाती है। सीधा सवाल यही होता है कि पार्टी फिलहाल उनसे संवाद कर रही है या नहीं। मंगलवार को अरविंद केजरीवाल को भेजी गई चिट्ठी में योगेन्द्र और प्रशांत भूषण ने एक बार फिर दोहराया है कि पार्टी में कार्यकर्ताओं को सम्मान मिले। दूसरे राज्यों में पार्टी विस्तार व पारदर्शिता की बात कही है। हमें नहीं लगता कि करीब तीन साल पहले बनी आम आदमी पार्टी में मचे घमासान में अब सुलह की संभावना बची है। 28 तारीख की नेशनल काउंसिल के लिए तलवारें खिंच चुकी हैं। पार्टी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय संयोजक ही नेशनल काउंसिल की मीटिंग की अध्यक्षता करता है। अगर वो मौजूद नहीं हैं तो उनकी जगह कोई और अध्यक्षता कर सकता है। अगर सूत्रों की मानें तो यह लगभग तय हो चुका है कि प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को पार्टी से बाहर निकाला जाएगा। नेशनल काउंसिल की बैठक में पॉलिटिक्स अफेयर्स कमेटी का कोई सदस्य एक लाइन का प्रस्ताव रखेगा जिसमें यह कहा जाएगा कि अगर प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव पार्टी में रहते हैं तो अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय संयोजक के तौर पर काम नहीं कर पाएंगे। हालांकि पार्टी के नेता इस बारे में खुलकर कुछ बोलने से कतरा रहे हैं। केजरीवाल विरोधी गुट के एक सदस्य ने बताया कि पार्टी के संविधान को चुनाव आयोग से मान्यता मिली हुई है। इस संविधान के मुताबिक एक व्यक्ति दो पदों पर नहीं रह सकता है। कुल मिलाकर 28 मार्च की राष्ट्रीय काउंसिल की मीटिंग हंगामेदार होगी। इसमें कुछ भी हो सकता है।

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